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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
हमारा ॠषितंत्र प्राचीनकाल से ही वृक्ष-वनस्पतियों में अंतर्निहित तत्वों के माध्यम से जनमानस को समग्र स्वास्थ्य के राजमार्ग पर अग्रसर करता रहा है।
कालांतर में बृहत्तर भारत में समाविष्ट अन्यान्य संस्कृतियों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन भी स्वाभाविक रूप से जनमानस का एक अभिन्न अंग बन गया। समाज के विकास के साथ-साथ मनुष्य की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि हुई, निदान के अत्याधुनिक उपाय भी खोज लिए गए। मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालने वाले जीवाणुओं-विषाणुओं की तत्काल पहचान कर उनके त्वरित निराकरण की पद्धतियाँ भी ढूँढ निकाली गईं, परंतु स्वास्थ्य लाभ की आवेशपूर्ण जल्दबाजी ने मानव समाज को आधुनिक औषधियों का गुलाम बनाकर हमारे चिंतन में दूरगामी विवेकशीलता के अभाव का ही परिचय दिया। आज हम एक बार गंभीरतापूर्वक यह सोचने के लिए विवश हो गए हैं कि क्या इन औषधियों के दुष्प्रभाव से अकाल मृत्यु प्राप्त कर रहा वर्तमान जनसमाज एवं भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य पर लगा आसन्न ग्रहण ही हमारी नियति है।
यह एक विडंबना ही है कि समग्र स्वास्थ्य के आधार पर जिस भारतवर्ष की विशिष्टता एवं संपन्नता का आकलन संपूर्ण विश्व में ससम्मान किया जाता था और आज पुन: किया जा रहा है, आज हमने ही उस चिकित्सा पद्धति की अनुपम विधा को विस्मृत कर दिया है। इसे बौद्धिक परावलंबन ही कहा जाएगा कि चिकित्सा जगत के गौरवमय अतीत के प्रत्यक्षदर्शी रहे भारतवर्ष के चिकित्सा मनीषी आज पश्चिम की ओर आशा भरी निगाह से ताक रहे हैं।
आज पश्चिम में सर्वसुलभ एवं दोष रहित चिकित्सा पद्धति के रूप में आयुर्वेद की अपरिहार्य आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। अब आवश्यकता आ पड़ी है कि हम एकजुट होकर अपनी इस विज्ञान सम्मत परम्परा को पुनर्जीवित करें।
इस राष्ट्र का वनस्पति जगत समस्त विश्व को नैसर्गिक जीवनक्रम अपनाने हेतु सतत प्रेरित करता रहा है। विधाता द्वारा मानव समाज को प्रदत्त वनौषधियों का यह वरदान शारीरिक व मानसिक व्याधियों के निवारण में निर्विवाद रूप से अमृतोपम है।
प्रस्तुत लेखमाला से एक ओर जहाँ जनसामान्य को वनौषधियों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी, वहीं दूसरी ओर घर में ही गमलों में इन्हें लगाकर सस्ता और हानि रहित आरोग्य भी प्राप्त किया जा सकेगा।