जामुन के दो प्रकार होते हैं। एक बड़ी जामुन, दूसरी छोटी । जामुन को रायजामूल, थोरजामूल, जांबो, कालाजाम आदि नामों से विभिन्न प्रांतों में जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे ब्लैक बेरी (जांबुल) कहा जाता है। जामुन के बीजों में जंबोलिन नामक ग्लुाकोसाइड पाया जाता है, जो स्टार्च को शर्करा में बदलने से रोकता है, इसीलिए यह डायबिटीज के रोगी के लिए हितकारी है। जामुन के पत्ते, फल एवं छाल औषधीय प्रयोजन में उपयोग में लाए जाते हैं। जामुन के पत्ते आम के पत्ते के समान होते हैं, परंतु चिकने और चमकदार होते हैं।
गुण धर्म- यकृत, प्लीहा की वृद्धि मिटाता है। भूख बढ़ाता, कफ एवं पित्त का शमन करता है। त्वचा-विकारों का निवारण करता है। दाहनाशक, पाचक एवं शीतल प्रभाव वाला तृषानाशक है। मलावरोधक होने से दस्त में लाभप्रद तथा श्वास, खाँसी, पेट रोग तथा कृमिनाशक है। रक्तशर्करा एवं मूत्रशर्करा को कम करता है। विटामिन सी और आरयन से भरपूर जामून शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता है। खाली पेट सेवन करने से वायुविकार बढ़ाता है। अतः दोपहर के भोजन के बाद सेवन करना चाहिए। जामुन खाने के तुरंत बाद दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
मधुमेह में- मधुमेह के रोगी को चिकित्सक के प्रत्यक्ष परामर्श से ही उपचार क्रम सुनिशचित करना चाहिए। मधुमेह में पथ्य एवं परहेज पर अधिक ध्यान देना अनिवार्य होता है। गेहूँ की रोटी खाना हो तो चोकर सहित चालीस ग्राम आटे की रोटी खाएँ। हरी सब्जी एवं सलाद आदि की मात्रा भोजन में बढ़ा देना चाहिए। चना, जौ, सोयाबीन तथा थोड़ा तिल मिलाकर बनाए गए आटे की रोटी, अंकुरित मूँग का सेवन, मूँग की दाल, अंकुरित मैथी दाना, तोरई, लौकी, भिंडी, मूली, टमाटर, फूल गोभी, पत्ता गोभी, गाजर, परवल, करेला, पालक, सेम, खीरा, दही, मठा का सेवन करें। गेहूँ, चावल, आलू, शकरकंद, अरबी, गन्ने का रस, गुड़-शक्कर तथा मिठाइयों का त्याग करेें। दिन में नहीं सोना चाहिए। मल-मूत्र के वेग को नहीं रोकना चाहिए। एक ही स्थान पर देर तक बैठे नहीं रहना चाहिए। शारीरिक शक्ति के अनुसार सुबह-शाम एक-दो घंटे टहलना, परिश्रम करना लाभप्रद होता है। उपरोक्त नियमों का पालन करते हुए निम्नानुसार औषधि बनाकर सेवन करें। जामुन की गुठली का चूर्ण तथा मेथी, पीली हल्दी, गिलोय, आंवला, कुटकी चूर्ण सभी को सम मात्रा में मिलाकर सेवन करने से मधुमेह के रोगी को लाभ होता है।
जामुन की गुठली का चूर्ण तथा सोंठ समान मात्रा में लेकर दोगुना मात्रा में गुड़मार चूर्ण लेकर घृतकुमारी के रस में खरल करके बेर की गुठली के बराबर गोलियाँ बनाकर दिन में तीन बार पानी के साथ नित्य सेवन करने से दो माह में लाभ मिल जाता है। उचित पथ्य-परहेज का पालन करने पर ही लाभ होता है।
जामुन का बहूपयोगी शरबत- जामुन के पके हुए मीठे फल को एक लीटर रस लेकर उसमें ढाई किलो शक्कर मिलाकर पकाना चाहिए। दस मि.ली.शरबत जल के साथ सेवन करने से पित्तज अतिसार, रक्तस्रावी दस्त, खूनी दस्त व उल्टी, सुजाक, प्रमेह, रक्तप्रदर, रक्तस्रावी बवासीर, उल्टी आदि में लाभप्रद होता है।
खूनी दस्त एवं रक्तप्रदर में- जामुन की गुठली का चूर्ण, आम की गुठली की गिरी (गुठली के अन्दर की मिंगी) का चूर्ण तथा समभाग देशी खांड़ बराबर मात्रा में लेकर तीन ग्राम मात्रा में लेकर पानी या ताजा मठा के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
घरेलू प्रयोग- पथरी में- जामुन के पके फल उपलब्ध हों तब नित्य सेवन करें तथा अन्य मौसमों में जामुन की गुठली का चूर्ण पाँच ग्राम, एक सो पचास ग्राम दही में मिलाकर दो बार सेवन करें।
शीघ्र पतन में- जामुन की गुठली का पाँच ग्राम चूर्ण नित्य प्रातः एवं शाम को पानी के साथ सेवन करें। इससे मूत्रसंस्थान के सभी रोगों में भी लाभ होता है।
रक्तविकार में- खूनी दस्त में दस ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण ठंढे पानी के साथ सेवन करें।
उदर विकार में- जामुन मल बाँधने का काम करता है। पतले दस्त, पेट दर्द, भूख की कमी इत्यादि उदर विकारों में सेंधा नमक मिलाकर जामुन के रस का सेवन करना चाहिए।
यकृत एवं तिल्ली बढ़ने पर- जामुन के फलों का सेवन या जामुन की गुठली का चूर्ण या पत्तों का क्वाथ बनाकर सेवन करना चाहिए।
नींद में पेशाब करना- छोटे बच्चे जो बिस्तर में पेशाब कर देते हैं, उनके लिए जामुन की गुठली का चूर्ण तीन से चार ग्राम लेकर पानी के साथ नित्य सेवन कराना चाहिए। कुछ ही दिनों में यह रोग मिट जाता है।
पीलिया में- जामुन लीवर टॉनिक है। इसमें हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाला लौह तत्व है। यकृत को स्वस्थ बनाकर पीलिया रोग को दूर करता है।
उल्टी में- जामुन की छाल निकालकर, जलाकर भस्म बनाकर छानकर रख लें। उल्टी बंद करने के लिए शहद में एक ग्राम भस्म मिलाकर चटा दें। जामुन की गुठली का चूर्ण शहद के साथ सेवन कराने से भी उल्टी बंद होती है।
पेट में बाल या लोहा जाने पर- पेट में भूल से बाल या लोहे की पिन, कील इत्यादि जाने पर नियमित जामुन का सेवन करते रहने से नष्ट हो जाते हैं।
मुँहासा होने पर- मुँहासों का प्रमुख कारण चिकनाईयुक्त गरिष्ठ खाद्यों का अधिक सेवन एवं कब्ज होना है। उन कारणों को दूर करने के उपायों के साथ जामुन की गुठली को पानी के साथ घिसकर मुँहासों पर लेप करने से भी लाभ होता है।
खूनी बवासीर में- जामुन के कोमल पत्तों का बीस मि.ली.रस निकालकर उसमें चीनी या मिसरी मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन कराने से लाभ होता है।
मसूड़ों की सूजन में- जामुन की छाल निकालकर काढ़ा बना लें तथा नित्य तीन बार जामुन के काढ़े का कुल्ला करने से सूजन ठीक होती है।
दंत रोगों में- दंत रोगों के निवारण एवं बचाव के लिए जामुन के पत्ते छाया में सुखा लें तत्पश्चात पीसकर चूर्ण बनाकर कपड़े से छान करके अल्प मात्रा में कपूर, सेंधा नमक, फिटकरी तथा शुद्ध हल्दीचूर्ण मिलाकर सुबह एवं शाम को मंजन करने से सभी प्रकार के दंत-विकारों का शमन होता है। जामुन की टहनी की दाँतोन नित्य करने से भी दंत रोग मिटते हैं।
फोड़ा होने पर- जामुन के पत्तों को पीसकर फोड़ा पर लेप करने से फोड़ा जल्दी पककर फूट जाता है और फोड़ा का घाव ठीक हो जाता है।
कान बहने पर- कान के रोगों में जामुन की गुठली का चूर्ण तिल या सरसों के तेल में पकाकर छानकर रखें। जब कान के रोग सताएँ तब दो बूँद तेल कान में टपकाकर कान में रूई लगा लें।
योनि संबंधी रोगों में- 100 ग्राम जामुन के कोमल पत्तों को पीसकर 400 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस क्वाथ में पाँच ग्राम फिटकरी घोलकर ठंडा कर लें। इस क्वाथ में पाँच ग्राम फिटकरी घोलकर ठंढा कर लें। इस काढ़े से योनि मार्ग का प्रक्षालन करने से योनि संबंधी अनेक रोगों का निवारण होता है।
प्रमेह एवं धातु दोष में- पके हुए जामुन के फलों का कल्प भी इन रोगों में लाभकारी होता है। जामुन फल दिन में चार बार सेवन करें। प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा बढ़ाते जाएँ। पाचनशक्ति के अनुसार मात्रा विवेकपूर्वक निर्धारित कर लेें।