वानस्पतिक नाम – Terminalia arjuna (टर्मिेनेलिया अर्जुना)
सामान्य नाम – कहुआ
कुल – Combretaceae (कॉम्ब्रेटेसी) - हरीतकी कुल
स्वरूप – 60-80 फुट ऊँचा वृक्ष
गुण कर्म:-
गुण – लघु,रुक्ष
रस – कषाय
वीर्य – शीत
विपाक – कटु
प्रभाव – हृद्य
*क्षतनाशक * मेदहर * प्रमेह व्रणनाशक * कफ-पित्त नाशक
प्रयोज्य अंग – त्वक्
मात्रा - क्षीरपाक - 5-10 ग्राम
स्वरस - 10-20 मि.ली.
क्वाथ - 50-100 मि.ली.
चूर्ण – 3-6 ग्राम
प्रयोग –
हृदय के सभी प्रकार के रोगों में अर्जुन त्वक् क्षीरपाक प्रयुक्त करते हैं।
रक्तपित्त में अर्जुन त्वक्, उदुम्बर व वेतस मिश्रित अथवा पृथक्-पृथक् प्रयुक्त करते हैं।
क्षयज कास में त्वक् चूर्ण को वासापत्र स्वरस से भावित कर मिश्री, गोघृत व मधु के साथ प्रयुक्त करते हैं।
व्रण, अस्थिभग्न, शोथ आदि में बाह्य व आभ्यान्तर प्रयोग करते हैं।
रक्त व स्वेत प्रदर में अर्जुन त्वक् व श्वे्ेत चन्दन का क्वाथ प्रयुक्त करते हैं।