मनुष्य जीवन प्रकृति पर आधारित है। जीवन में जितने भी परिवर्तन होते हैं, उतार चढ़ाव आते हैं, सब प्रकृति पर निर्भर होते हैं। शरीर द्वारा जन्म होना तो एक संरचनात्मक स्वाभाविक प्रक्रिया है, परन्तु पालन-पोषण, जन्म-मरण, जीवन संरक्षण सब प्रकृति पर आधारित होता है। मनुष्य जीवन के अति उपयोगी तत्व - वायु, जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी - सभी पाँच तत्व इसी में समाहित हैं। इसी आधार पर प्रकृति को पृथ्वी, धरती माता, जीवनदायिनि भी कहा गया है।
आदि काल से ही मानव का अस्तित्व प्रकृति से ही है। शायद यही कारण है कि हमारे सभी प्रकार के क्रियाकलापों में, चाहे वह सामाजिक हों, चाहे धार्मिक, या आध्यात्मिक, धरती माता का पूजन स्पर्श, प्रणाम के द्वारा सर्वप्रथम किया जाता है।
प्रकृति (धरती माता) से ही हमें अक्षुण्ण सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं - इस हेतु इसे रत्नगर्भा, धरित्री, इत्यादि न जाने कितने नामों से संबोधित किया गया है। प्रकृति में ही पृथ्वी के सभी सजीव निर्जीव घटकों का अस्तित्व है। जीवन के सभी आवश्यक तत्वों की पूर्ति का आधार प्रकृति है। यही हमारी अनमोल सम्पति होती है। इसका हर स्वरूप - पौधे, जंगल, नदी, पहाड़, वृक्ष, वनस्पति, यहाँ तक कि सूर्य और चन्द्रमा भी इसके कारण शोभित रहते हैं। प्रकृति में किसी भी एक तत्व की अस्थिरता मानव जीवन को नष्ट करने में सक्षम है। इसके बावजूद भी मानव प्रकृति के असली स्वरूप को नहीं समझ पा रहा है।
परमात्मा ने मानव हेतु प्रकृति की रचना की थी। मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन इस पर अवलक्षित है। इस कारण दोनों को एक दूसरे के पालन पोषण, रक्षण, संरक्षण और अस्तित्व की रक्षार्थ प्रयत्नशील रहना चाहिए - परन्तु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी बौद्धिक क्षमता और प्रोद्यौगिक विकास के क्रम में, एक दूसरे के सहयोग का भाव भूल गये हैं। परिणाम - पर्यावरण संकट, जलवायु, वृक्ष, वनस्पतियों का अभाव, और प्रकृति असंतुलन एवं दोहन से उत्पन्न भयावह प्राण घातक बीमारियाँ - रोग, व्याधि, कुपोषण, इत्यादि न जाने कितनी घातक परिस्थितियाँ पल-पल हमारे लिए खतरा पैदा कर रही हैं, जिससे समूची मानव जाति का अस्तित्व संकट में आता जा रहा है।
पृथ्वी पर अगर आकर्षण है, सुन्दरता है, तो वह केवल प्रकृति के कारण है - इसीलिए यह हमारी वास्तविक माता कही गयी कही गयी है। प्रकृति हमारे शरीर, मन की शांति है, और सुखमय जीवन के लिए आवश्यक है। यही कारण है कि आयुर्वेद में प्रकृति, वनौषधियों को, वृक्षों को, माता का स्थान दिया गया है, जिनमें प्रमुख रूप से अमृत समान गुणकारी फल आँवला है। आँवला गुणों से भरपूर होने के कारण भारतीय समाज में सदियों से आहार एवं औषधि दोनों रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। जिस प्रकार माँ हर परिस्थति में अपने बच्चों की रक्षा करती है उसी प्रकार यह आँवला भी। यही कारण है कि इसे सूपर फूड की संज्ञा दी जा रही है। आधुनिक विद्वानों के द्वारा यह सुपर फूड, गुणों का खजाना, हमारी प्रकृति माँ का एक छोटा सा वरदान स्वरूप वृक्ष है।
इसी प्रकार हमारे स्वास्थ्य, रोग का रक्षक, छोटा सा वृक्ष है, जिसे माँ का स्थान दिया गया है, शिवस्वरूप समझा गया है, और जीवन अमृत से उसकी तुलना की गयी है - ॠतु के अनुसार उसे विभिन्न स्वरूपों में स्वीकृत किया गया है - जिसका नाम है हरीतकी - हरड़, हर्रे, इत्यादि इसके अन्य नाम हैं - इसको कहा गया कि माता भी कभी-कभी शिशु पर, बालक पर क्रोध कर सकती है, परन्तु पेट में गयी हरीतकी या हरड़ कभी नुकसान नहीं कर सकती। इसी कारण इसको अभया शब्द से भी सम्बोधित किया गया है। ॠषियों ने इसे देवी का स्वरूप भी माना है।
इसी प्रकार असंख्य वृक्ष वनस्पतियाँ मानव जीवन के लिए वरदान हैं। अत: हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे जीवन की रक्षा, सुरक्षा, एकमात्र प्रकृति पर है - चाहे हम उसे ऑक्सीजन कहें या प्राण, बात एक ही है।
प्राकृतिक विविधिता, सौंदर्य ही जीवन है। प्रकृति का चक्र ही हमारे जीवन को पोषण या दिशा प्रदान करता है। प्रकृति का स्पर्श, आहट, हरियाली, वर्षा, बसंत, सब मनुष्य जीवन में मनमोहक रंग भरते हैं; जीवन में तनाव, नकारात्मकता को कम कर के, सौंदर्य, आनंद और हर्ष से भरकर, जीवन को समग्रता प्रदान करते हैं।
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