मनुष्य शरीर में ये तीनों इंद्रियाँ बहुत महत्वपूर्ण और साथ ही कोमल हुआ करती हैं। अत एव इनकी किसी व्याधि में एका एक तीव्र औषधि का व्याहार करना उचित नहीं। तुलसी ऐसी सौम्य और निरापद औषधि है जो अपने सूक्ष्म प्रभाव से इन अंगों को शीघ्र निरोग कर सकती है। इस संबंध में 'चरक संहिता' का निम्न वचन विशेष महत्वपूर्ण है -
गोरवे शिरसे शूले पीनसे अर्धभेदके ।
क्रिमी व्याधावपस्मारे घ्राणनाशे प्रपोहके ।।
अर्थात 'तुलसी का प्रयोग मस्तक में एकत्रित दोषों को दूर करके सिर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूँघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है।
1. तुलसी के बीज 2 माशा, रसौत 2 माशा, आमा हलदी 2 माशा, अफीम चार रत्ती, इन सबको घीग्वार के गूदे में मिलाकर पीस लें। इसका आँखों के चारों ओर लेप करने से दर्द और सुर्खी में लाभ होता है।
2. केवल तुलसी का रस निकालकर आँखों में आँजने से भी नेत्रों की पीड़ा तथा अन्य रोग दूर होते है। यदि तुलसी के रस में थोड़ा असली शहद मिलाकर छानकर शीशी में रख लें तो वह आँखों में टपकाए जाने वाले उत्तम 'आईड्राप' औषधि का काम दे सकती है।
3. आँखों में सूजन और खुजली की खुजली की शिकायत होने पर तुलसी पत्रों का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी-सी फिटकरी पीसकर मिला दें। जब काढ़ा गुनगुना रहे तभी साफ रूई को उसमें भिगोकर बार-बार पलकों को सेकें। पांच-पांच मिनट में दो बार सेकने से सूजन कम होकर आँखें खुल जाती हैं।
4. अगर कान में दर्द हो या श्रवण - शक्ति में कुछ गड़बड़ी जान पड़ती हो तो तुलसी का रस जरा-सा गुनगुना करके दो-चार बूँद टपकाने से आराम होता है। कान बहता हो या पीव पड़ जाने से दुर्गंध आती हो तो प्रतिदिन रस डालते रहने से लाभ होता है।
5. अगर नाक के भीतर दर्द होता हो, किसी तरह का जख्म अथवा फुंसी हो गई हो तो तुलसी के पत्तों को खूब बारीक पीसकर सूँघनी की तरह सूँघने से आराम होता है।
6. नाक में पीनस रोग होकर कीड़े पड़ जाने पर और दुर्गंध आने पर वन तुलसी के पत्तों का रस और कपूर मिलाकर नस्य लेना चाहिए ।
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