पाठकों आपने पिछले अंक में वर्षा ॠतुचर्या के बारे में पढ़ा। इस समय विसर्गकाल तथा दक्षिणायन का काल चल रहा है। इस काल की गणना के अन्तर्गत वर्षा, शरद और हेमन्त इन तीन ॠतुओं का समावेश किया जाता है। इस काल को आयुर्वेद के मनीषियों ने पौष्टिकतावर्धक काल कहा है।
वर्षा के बाद शरद ॠतु का आगमन होता है। इसमें आश्विन-कार्तिक नामक हिन्दी मासों को लिया गया है। इस काल में सूर्य देव दक्षिणायन में होते हैं। इस काल में सूर्य की किरणों की प्रबलता कम हो जाती है। वर्षा से भूमि जल से तृप्त हो जाती है। नदी, नाले, तालाब, झील, खेतों में जल की अधिकता से यह सब लबालब भरे हुए दिखाई देते हैं। खरीफ की मुख्य फसल धान के खेत लहलहा रहे होते हैं। इसलिए यह सौम्य काल कहलाता है। वायु में नमी का अंश होता है। चन्द्रमा का बल अधिक होने के कारण प्राणियों में प्रसन्नता होती है। आदान-काल में शारीरिक बल की जो क्षति हुई थी उसकी पूर्ति होकर शरीर में पुष्टता आती है। विश्व को चन्द्रमा बल-पुष्टता प्रदान करने वाला होता है। प्राणियों तथा वनस्पतियों में मधुर, खट्टा और नमकीन रस की वृध्दि होने लगती है।
इस समय बादल आकाश में अनुपस्थित रहने से सूर्य की किरणें वर्षा ॠतु की अपेक्षा तीव्रता से धरती पर पड़ती है। जिसके फल स्वरूप शरीर में वर्षा में संचित हुआ पित्त प्रकुपित हो जाता है। परिणामत: पित्त से संबंधित रोगों में वृध्दि होने लगती है। जैसे-ज्वर, विषम ज्वर, पीलिया तथा विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों से लोग ग्रसित हो जाते हैं। इस काल में रात्रि के शुरू में चन्द्रमा की किरणों का सेवन लाभप्रद होता है। दिन में सूर्य किरणों का सेवन रोगों को आमंत्रित करने के जैसा है अत: इसमें बचना आवश्यक है। वसा, मछली, दही का भोजन में प्रयोग निषिद्ध है।
बढ़े हुए पित्त दोष को शान्त करने के लिए आयुर्वेद के विद्वान आचार्यों ने विरेचन की सलाह शास्त्रों में दी है। इसके लिए त्रिफला चूर्ण, त्रिफला घृत, महातिक्त घृत या पंचतिक्त घृत का सेवन वैद्य के निर्देश के अनुसार करना चाहिए। रक्त दान भी इसके लिए श्रेष्ठ उपाय है।
हंसोदक
हंसोदक का संधि विच्छेद, हंस+उदक है। इसका अर्थ है जल का हंस के समान स्वच्छ हो जाना। कई विद्वानो का कहना है कि हंस शुध्द जल ही ग्रहण करता है। अत: इस समय जल स्त्रोतों से प्राप्त जल की गुणवत्ता इतनी अच्छी होती है कि हंस उस जल का पान सहर्ष करते हैं। इसका कारण यह है कि दिन में सूर्य की किरणों से तृप्त जल रात्रि में चन्द्रमा की शीतल किरणों के सम्पर्क में आकर शुद्ध हो जाता है। इस समय आकाश में अगस्त नामक तारे का उदय होने के कारण उसकी किरणों से जल के गुणों में वृध्दि हो जाती है और वह शुद्ध हो जाता है।
इस जल को पीने, नहाने के लिए उत्तम माना गया है। इस प्रकार प्राकृतिक रूप से शुद्ध किये हुए जल को हंसोदक कहा गया है। अत: हमारा कर्तव्य है कि हम अपने जल स्त्रोतों को जैसे- नदी, झील, तालाब से पानी को गन्दगी डाल कर अशुद्ध न करें और उसे स्वच्छ रखें।
यम द्रंष्टा काल
शरद ॠतु के आयुर्वेद के शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक मास के अन्तिम आठ दिन अर्थात कार्तिक पूर्णिमा से पहले मास के आठ दिन और मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुरू के आठ दिन इनको "यम द्रंष्टा काल" कहा गया है ।
यमद्रंष्टा का अर्थ होता है। "यम की दाढ़" । इस काल (16 दिन) में जो व्यक्ति भूख से कम मात्रा में भोजन ग्रहण करता है वह यमराज की दाढ़ के समान दुखदायी रोगों से बच जाता है।
अत: इस काल में उपरोक्त नियम का अवश्यमेव पालन करना चाहिए।
आप सभी सुधी पाठकों को धन्वन्तरि जयन्ती, नरकचतुर्दशी, दीपावली पर्व एवं यम द्वितीया की हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान धन्वतरि आपको सदैव स्वस्थ और सुखी बनाए रखें, ऐसी शुभकामना है।
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