मुझमें ब्रह्मा विष्णु महेश, पूजता मुझे ॠषियों का देश ।
सारे रोगों के हरती क्लेश, अनाचार से मेरा द्वेष ।।
भारतीय संस्कृति और धर्म में तुलसी को उसके महान गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियों का इलाज करने के आश्चर्यजनक गुण लिए हुए होता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक हैं।
भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व में रोगों के बढ़ते हुए स्वरूप को देख कर मन में दुख होना स्वाभाविक ही है। वास्तव में काल, इंद्रियाँ,अर्थ और कर्म का हीनयोग, मिथ्यायोग और अतियोग रोग के कारण होते हैं। उक्त क्रियाओं से पंचतत्व में विषमता आ जाती है। यह विषमता प्रकृति में भी विकृति लाती है, और हमारे शरीर एवं मन को विकृत करके रोग का कारण सिद्ध होती है। इन परिस्थितियों में तुलसी एक निरापद एंटीबायोटिक सर्व रोग हरि औषधि है जो शारीरिक एवं मानसिक रोगों का शमन करती है। हमारे धर्म शास्त्रों में इसकी महिमा गाई गई है । आयुर्वेद की दृष्टि से भी इसे अनेक रोगों में प्रभावकारी पाया गया है । तुलसी का पौधा भी पीपल की तरह सतत ऑक्सीजन प्रदान कर मानव मात्र के लिए परम कल्याणकारी है। विकिरण के दुष्प्रभाव को दूर करने का गुण तुलसी में है। घरों में तुलसी के पौधों के पूजन की सुदीर्घ परंपरा है । तुलसी पंचांग (फूल, फल, पत्ती, डंठल तथा जड़) आदि का औषधीय महत्व है। तुलसी के दो प्रकार हैं- एक रामा तुलसी जिसके पत्ते हरे होते हैं तथा दूसरी श्यामा जिसके पत्ते काले होते हैं। आयुर्वेद में दोनों के गुण समान बताए गए हैं ।
तुलसी को वैष्णवी, वृंदा, तुलसा, विष्णु पत्नी, सुगंधा, पावनी आदि नामों से जाना जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार तुलसी कृमि नाशक, वात नाशक, कफ विकारों को दूर करने वाली, उल्टी, मूत्रल (मूत्रावरोध दूर करने वाली), पित्तकारक, हृदय के हितकारक, ज्वरनाशक, चर्मरोग नाशक, हिस्टीरिया, बेहोशी को दूर करने वाली है ।
अनेक रोगों को दूर करने का गुण एवं सरलता से उपलब्ध होने के कारण तुलसी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। सभी प्रकार के वात रोग एवं कफ से संबंधित बीमारियों में इसका प्रभाव बहुत ही कारगर पाया गया है। तुलसी में कैंसररोधी तत्त्व भी है। स्थानीय लेप के रूप में घाव, फोड़े, संधियों की सूजन , मोच आदि में इसका उपयोग प्रभावी होता है। मानसिक अवसाद एवं लो ब्लड प्रेशर की स्थिति में इसे त्वचा पर मलने से तुरंत स्नायु संस्थान सक्रिय होता है। शरीर के बाहरी कृमियों को नष्ट करने में भी इसका लेप किया जाता है। उदर शूल तथा आंतों के कृमियों को नष्ट करने में भी इसका उपयोग किया जाता है। तुलसी सभी प्रकार के ज्वरों का क्रम तोड़ देती है। तुलसी क्षय रोग नष्ट करने में भी प्रभावी है। तुलसी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है एवं हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करती है। जहां तुलसी के पौधे होते हैं वहां की वायु विषाणु रहित तथा सुगंधित होती है।
खांसी में - अडूसा (वासा) के पत्तों का रस एवं तुलसी के पत्तों के रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है । चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्ते के साथ सेवन सभी प्रकार की खांसी में लाभकारी है। अदरक के रस के साथ तुलसी के पत्तों का रस, शहद के साथ मिलाकर चटाने से खांसी में लाभ मिलता है। काली तुलसी के पत्तों का रस, काली मिर्च के साथ सेवन करने से खांसी का वेग शांत होता है।
दाँत दर्द में- तुलसी के पत्ते काली मिर्च के साथ छोटी-छोटी गोली बनाकर दर्द वाले दाँतो के बीच दबाकर रखने से दाँत दर्द बंद होता है।
पीनस रोग में - तुलसी के पत्ते या मंजरी को पीसकर कपड़छन कर चूर्ण बना लेना चाहिए तथा इसे नस्य के रूप में सुंघाना चाहिए। इससे नाक से बदबू आना बंद हो जाती है।
कान रोग में- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर हल्का गर्म करके दो-तीन बूंद कान में टपकाएं, इससे कान का दर्द बंद हो जाता है। तुलसी के पत्तों का रस 2 भाग तथा सरसों का तेल एक भाग मंद आंच पर गर्म कर सिद्ध तेल बना कर इसका एक दो बूंद कान में डालने से कान की पीड़ा दूर होती है।
मुंह की दुर्गंध में- प्रातः स्नान के पश्चात पांच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।
सिरदर्द में- अर्धकपाली (आधीसीसी या माइग्रेन) के दर्द में तुलसी की छाया में सुखाई गयी मंजरी 2 ग्राम लेकर शहद के साथ सेवन कराने से लाभ होता है, तथा स्मरण शक्ति एवं मेधा में वृद्धि होती है।
तुलसी के 11 पत्ते पीसकर 1 ग्राम बायविडंग चूर्ण तथा ताजे जल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। बच्चों के पेट फूलने पर 1 - 2 ग्राम तुलसी के पत्ते का रस पिलाने से लाभ होता है।
बालतोड़ में - तुलसी के पत्ते तथा पीपल की कोमल पत्तियों को पीसकर दिन में दो बार लेप करने से लाभ होता है। टमाटर के पत्तों एवं तुलसी के पत्तों को बराबर मात्रा में पीसकर बालतोड़ वाले स्थान पर लेप लगाने से लाभ मिलता है।
धातु दुर्बलता में- तुलसी के बीज 1 ग्राम लेकर गाय के दूध के साथ प्रातः एवं रात्रि में सेवन करने से लाभ होता है।
प्रदर रोग में - अशोक के पत्तों और तुलसी के पत्तों का काढ़ा कुछ दिन देने से लाभ होता है।
श्वास रोग में - 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद एवं 2 ग्राम छोटी पिप्पली के साथ सेवन करने से अस्थमा में लाभ होता है।
चर्म रोग में तुलसी को बड़ी प्रभावी औषधि माना गया है।
दाद- तुलसी के पत्तों को पीसकर उसमें नींबू का रस मिलाकर कुछ दिन तक दाद पर लेप करने से दाद ठीक हो जाता है।
सफेद दाग- तुलसी के पत्तों को गंगा जल में पीसकर नित्य लगाने से सफेद दाग मिट जाता है।
खुजली- तुलसी के पत्तों का रस दो भाग तथा तिल का तेल 1 भाग लेकर मंद आंच में सिद्ध किया हुआ तेल खुजली पर लगाना लाभकारी है।
चेहरे के सौंदर्य के लिए तुलसी के पत्तों को पीसकर एवं मुल्तानी मिट्टी के साथ उबटन की तरह लगाना चाहिए।
ज्वर रोगों में- 21 तुलसी के पत्ते एवं 2 काली मिर्च पीसकर एक गिलास पानी में उबालें। जब पानी का चौथाई भाग शेष रह जाये तो उसे छानकर हल्का गुनगुना सेवन करने से मलेरिया में लाभ होता है।
दस्त एवं उल्टी में- तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी मात्रा में जायफल पीसकर पिलाने से दस्त में लाभ होता है। 200 ग्राम दही में 1 ग्राम तुलसी के पत्ते पीसकर मिलाकर तथा 3 ग्राम ईसबगोल, 5 ग्राम बेल चूर्ण भी मिलाकर खिलाने से पतले दस्त होना बंद हो जाता है। तुलसी के पत्ते का रस शहद के साथ मिलाकर चाटने से उल्टी में लाभकारी है। अदरक का रस, तुलसी के पत्ते का रस, छोटी इलायची के साथ पीस कर देने से उल्टी बंद हो जाती है।
तुलसी का प्रयोग विष नाशक औषधि के रूप में भी किया जाता है।
तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवनी शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है।
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