Botanical Name :- Tinospora Cordifolia (Wild) Miers.
Family :- MENISPERMACEAE.
English Name :- Tinospora.
हिन्दी – गिलोय।
गुजराती – गलो।
मराठी – गुलबेल।
बंगाली – गुलंच।
कन्नड़ – अमदवल्ली ।
तेलगू – तिप्पतीगे।
तमिल – अमृतावल्ली।
पंजाबी – गिलो।
प्राप्ति स्थान – यह काष्ठीय कांड वाली लता है, प्राय: जंगलों में झाड़ियों तथा वृक्षों के साथ लिपटी हुई पायी जाती है, किंतु यह लता विशेषकर उष्ण प्रांतों में अधिक मात्रा में पायी जाती है।
पहचान – यह बहुवर्षीय, काष्ठीय, चिकनी लता है जो वृक्षों के साथ लिपटी हुई फैलती है। इसकी शाखाओं से मूल डोरे के समान निकलकर जमीन की तरफ लटकते हैं। इसके पत्ते गोलाकार, हृदयाकार, चिकने, पतले एवं पत्राग्र नुकीला; पत्रों में 8 से 9 शिराएँ, 1- 2 इंच पर्णवृंत युक्त; इसके पुराने पत्ते पीले होकर वसंत ॠतु में गिर जाते है और नए पत्ते ज्येष्ठ मास तक आ जाते है। इसी समय हरापन लिए पीले छोटे-छोटे समूह में पुष्प आते हैं। इसके फल प्रारम्भ में हरे, परंतु पकने पर लाल हो जाते हैं।
प्रयोज्य अंग – इसके मूल तथा कांड का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
इसके मूल तथा कांड शक्तिवर्धक, दीपन, मूत्र जनन, पित्तसारक, ज्वरहर, गुण वाले हैं।
प्रयोग – गिलोय का फांट - गिलोय कांड के टुकड़े साफ कर, इनको पीसकर, इसमें से दस तोला कल्क एवं अनंत मूल का चूर्ण दस तोला, इनको 100 तोला, उबलते पानी में, बंद पात्र में, दो घंटे बंद रखें, फिर मसल कर छान लें - इस फांट का प्रयोग- कुष्ठ रोग, वातरक्त तथा जीर्ण आमवात में बहुत ही लाभदायक है। यह पौष्टिक होने के कारण इसका प्रयोग ज्वर पश्चात दौर्बल्य तथा दौर्बल्य युक्त अन्य रोगों में अतिलाभकारी है। इसके सेवन की मात्रा प्रतिदिन तीन बार 10-20 तोला।
मात्रा– चूर्ण 1-3 माशा। क्वाथ 4-8 तोला। सत्व 5-15 रत्ती।
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