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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
जड़ीबूटी उपचार मनुष्य के बढ़ते हुए रोगों की रोकथाम में असाधारण रूप से सहायक हो सकता है। वह निर्दोष भी है और हानिकारक प्रतिक्रिया से रहित भी। उनमें मारक गुण कम और शोधक गुण विशेष होते हैं। वे रोगों को दबाती नहीं, वरन् उखाड़ती और भगाती हैं; साथ ही सस्ती भी हैं। शाकाहारी प्रकृति वाले मानवी संरचना के अनुरूप भी। इसलिए अच्छा हो हम आहार-विहार की कृत्रिमता को पूर्णरूप से नहीं हटा सकते, तो कम से कम इतना तो करें ही कि यह विज्ञान उपेक्षा के गर्त में गिरने से अपनी गुणवत्ता खो बैठा है, उसे तो सुधार ही लें। यह वनस्पति चिकित्सकों का काम है कि वे इस संबंध में जो अनुपयुक्तता घुस पड़ी है, उसका संशोधन करें और उस क्षेत्र की खोई हुई गरिमा को फिर से वापस लौटाएँ। – पं० श्रीराम शर्मा आचार्य
Botanical Name: Adhatoda Vasica Nees.
Family: Acanthaceae.
English Name: Malabarnut.
हिंदी – अडूसा।
बंगाली – वासक
मराठी – अडूलसा
गुजराती – अरडुसी
तेलगू – आडासारं
मलयालम – बलिय आटलोकट्कम्
पंजाबी – भेकर
कन्नड़ – आडूसोगे
तामिल – अटताटै
प्राप्ति स्थान – अडूसा सर्वत्र लगभग सभी प्रांतों में जंगली स्वरूप में मिलता है एवं हिमालय के निचले भागों में भी उगता हुआ देखा गया है।
पहचान – यह पौधा सफेद अडूसा तथा श्याम अडूसा दो तरह का होता है, किन्तु सफेद अडूसा के पत्रों का रंग हरा होता है और उन पर सफेद हल्के दाग देखे गए हैं। यह सदाहरित क्षुप जो झाड़ीदार एवं दुर्गंधयुक्त, इसकी ऊँचाई लगभग4 - 8 फुट और यह समूह में उगता है। इसके पत्ते भालाकार या अण्डाकार, इसके दोनों सिरे नोकीले तथा पत्तों की लंबाई 5 - 8 इंच तथा 1.5 - 2.5 इंच चौड़े एवं लंबे पर्ण वृंत वाले होते है। इसके फूल सफेद लंबी मंजरियों में गुंथे होते हैं। सफेद पुष्प दलों पर बैंगनी रंग की दो धारियाँ होती हैं। इसमें हरे रंग के वृंत्त पत्र अधिक संख्या में होते हैं। इसके फूलों का मुख शेर जैसा होता है, इसलिए इसे 'सिंहास्य' भी कहते हैं।
चिकित्सा में उपयोगी अंग – पत्र, पुष्प एवं मूलत्वक् (पुराने पौधे से)
प्रयोग - यह औषधि कफ नि:सारक, शीतवीर्य, श्वासहर, कासहर तथा क्षयघ्नगुण वाला है।
1. श्वास, कास(खांसी), कफ क्षय एवं रक्तपित्त में – अडूसा के पत्रों का रस मधु के साथ मिलाकर कुछ दिनों तक प्रतिदिन सेवन करने से उपरोक्त रोगों में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त श्वसनी शोथ (Bronchitis) में भी लाभ होता है।
2. कामला (Jaundice) तथा कफपित्त ज्वर में – पत्र तथा पुष्पों का रस निकाल उसमें चीनी तथा मधु मिलाकर सेवन से कुछ दिनों में लाभ होता है।
3. श्वास रोग (Bronchial Asthma ) में – अडूसा के पुष्प एवं पत्रों का रस गाय के मक्खन में मिलाकर तथा इसमें त्रिफला का चूर्ण डालकर सेवन करने से कुछ दिनों में श्वास रोग में लाभ होता है।
4. खाज – खुजली में – इसके कोमल पत्रों को आंबिया हल्दी (कच्ची हल्दी) के साथ गाय के मूत्र में पीस कर इसका लेप रोगग्रस्त भाग पर करने से एवं पत्रों को जल में उबालकर इसका स्नान करने से लाभ होता है।
5. श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) – अडूसा के मूल का रस मधु में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
6. खाँसी, यक्ष्मा तथा रक्तपित्त में (Tuberculosis) – इसके पत्रों को गरम जल में थोड़ा उबालकर पत्रों को मसल कर रस निकालते हैं। इस रस में चीनी डालकर मधु जैसा गाढ़ा बनने तक गरम करते हैं। इसमें बहेड़ा एवं हल्दी का चूर्ण मिलाकर कुछ समय तक रखते हैं। इसको दिन में आठ से दस बार चाटने से लाभ होता है।
7. गाढ़े कफ में – गरम चाय में अडूसा के पत्रों का रस मिश्री मधु एवं रत्ती भर काला नमक मिलाकर सेवन से कफ पतला होकर निकलता है।
8. शीतला का आजार न आने के लिए – अडूसा के पत्र एवं फूलों का रस मधुयष्ठी चूर्ण मिलाकर सेवन से शीतला का आजार नहीं आता।
9. मलेरिया ज्वर में – अडूसा के पत्रों का चूर्ण या मूलत्वक् का चूर्ण प्रतिदिन 1- 2 माशा सेवन से लाभ होता है।
10. संधि शोथ एवं नाड़ीशूल में – अडूसा के पत्रों को पीसकर इसका पोल्टिस लगाया जाए तो लाभ होता है।
मात्रा:-
पत्र चूर्ण - 1 से 2 माशा
मूल त्वकचूर्ण – 4 रत्ती से 1 माशा
पुष्प चूर्ण – 5 से 10 रत्ती
क्वाथ – 1 - 2 तोला