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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
सरसों की बिरादरी में ही राई की गणना होती है। इसका दाना छोटा और काला होता है। तेल भी कम निकलता है, इसलिए तिलहन विक्रेताओं के यहाँ यह नहीं मिलती। उसे पंसारी ही बेचता है, क्योंकि उनका प्रमुख उपयोग मसाले की तरह होता है। इसकी दाल पीस ली जाए, फिर पानी में डाला जाए, तो पानी खट्टा हो जाता है। कांजी-बड़े, मूँग-उड़द दाल से बनते हैं, पर उन्हें राई के पानी में फुलाया और साथ-साथ खाया जाता है।
राई का प्रमुख गुण पाचक है। खटाई पैदा करने का गुण होने से वह स्वादिष्ट भी है। पेट में नन्हें कीड़े पड़ जाने पर इसके पानी से कीड़े मर जाते हैं। हैजे में राई पीस कर पेट पर लेप करने से उदरशूल व मरोड़ में आराम मिलता है। सभी अचारों में राई डाली जाती है। उससे वे सड़ते भी नहीं और खटाई लिए हुए अपना स्वाद भी बनाए रहते हैं। इसी प्रकार दाल-शाक में अन्य मसालों के साथ इसका भी उपयोग होता है।
दर्द या सूजन मिटाने का उसमें गुण है। इसकी पुल्टिस बनाकर यदि दर्द वाली जगह में सेक किया जाए, तो तुरंत राहत मिलती है। बाह्योपचार में राई का लेप सूजन कम करने वाला माना जाता है। गरम पानी में राई डालकर सहने योग्य तापमान तक बना लिया जाए, इतने में राई फूल जाती है और पानी में उसका असर हो जाता है। इस पानी को किसी टब में कमर की ऊँचाई तक भरा जाए और उसमें टब-बाथ की तरह बैठा जाए तो प्रदर, प्रमेह आदि यौन रोगों के सुधार में इसका बहुत अच्छा प्रतिफल निकलता है।
राई या सरसों के तेल में बारीक नमक मिलाकर, उससे मंजन का काम लिया जाए, तो दाँतों तथा मसूढ़ों की मजबूती व सफाई होती रहती है।
विष विकार में राई का चूर्ण एक से दो चम्मच की मात्रा में दिया जाता है, ताकि वमन के द्वारा विष बाहर निकल जाए। राई का औषध प्रयोजन हेतु कम मात्रा में उपयोग ही लाभकारी है। इसे पीसकर शहद में मिलाकर सूँघने से जुकाम मिटता है। मात्र राई पीस कर सूँघने से जुकाम मिटता है। मात्र राई पीस कर सूँघने या राई का तेल सूँघने से मिर्गी - मूर्छा दूर होती है। कान के फोड़े फुन्सी व बहरेपन में राई का तेल कान में डालते हैं। राई पीस कर अरण्डी के पत्तों में चुपड़ कर जोड़ों पर लगाने से संधियों की सूजन मिटती है।
राई अग्निदीपक, पाचक, उत्तेजक एवं पसीना लाने वाली बड़ी गुणकारी औषधि है।