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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
जीवन में हमारा सबसे पहला कर्तव्य है - शरीर को स्वस्थ रखना। यदि शरीर स्वस्थ है, तो जीवन आनंदमय व्यतीत होगा; और यदि शरीर अस्वस्थ है, तो जीवन कष्टमय व्यतीत करना पड़ेगा।
किचन फार्मेसी:- अर्थात् हमारा रसोईघर घरेलू औषधि से भरा हुआ एक औषधालय (फार्मेसी) से कम नहीं है।
जैसे:- दालचीनी, तेजपत्र, अजवाइन, जीरा, अदरक, काली मिर्च, हींग, सेंधा नमक, हल्दी, इत्यादि।
इस बार के अंक में हम अपने शरीर को स्वस्थ और निरोग रखने के लिए अपने रसोईघर (किचन फार्मेसी) से चयन करते हैं - "हल्दी" - जो कई बीमारियों की उपयोगी औषधि है।
हिंदी नाम – हल्दी
संस्कृत नाम – हरिद्रा
अंग्रेजी नाम – Turmeric
लैटिन नाम – Curcuma longa linn.
कुल (Family) – Zingiberaceae
हल्दी से सभी परिचित हैं। भारतीय आहार पद्धति विशेष प्रकार की है। भारतीय ग्रहणियों के रसोई घर में अनेक प्रकार के मसाला द्रव्य होते हैं। रसोई घर में प्रयोग होने वाले मसालों में हल्दी अपना विशिष्ट स्थान रखती है। बिना हल्दी का भोजन अच्छा नहीं लगता। मांगलिक कार्य बिना हल्दी से पूरा नहीं होता है। हल्दी को रसोई घर की रानी कहा जाता है। हल्दी शीघ्र प्रभावशाली औषधि है।
सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका महत्वपूर्ण प्रयोग होता है। हल्दी के चूर्ण का उबटन किया जाता है। दाल, शाक को पीला रंग देने के लिए हल्दी डालना शोभा भी बढ़ाता है, सुगंध भी देता है और गुणकारी भी होता है। हल्दी आहार और औषधि द्रव्य दोनों है। इसका आकार भी अदरक जैसा होता है। पौधे की एक-एक फुट की चौड़ी पत्तियाँ होती है। पीले रंग के फूल वर्षा के दिनों में बड़े सुहावने लगते हैं।
हल्दी की जाति निम्न प्रकार की है:-
(1) पीली हल्दी
(2) आमा हल्दी
(3) काली हल्दी
(4) वन हल्दी
(5) दारूहल्दी इत्यादि।
गुणधर्म:- आयुर्वेद के अनुसार हल्दी उष्ण, सौंदर्य बढ़ाने वाली, रक्तशोधक, कफ-वात नाशक, पित्त शामक एवं लीवर के लिए उत्तेजक मानी गई है। हल्दी कटु और तिक्त, लघु और रुक्ष है। उष्ण वीर्य होने के कारण कफ, वात, रक्त विकार, यकृत विकार, चर्म रोग, प्रमेह जैसे कई रोगों में उपयोग किया जाता है।
हल्दी का उपयोग / प्रयोग
आयुर्वेद ग्रंथ सूत्रात्मक है और प्रत्येक सूत्रों का विशिष्ट अर्थ होता है। आयुर्वेद में विविध विषयों के सूत्रों का वर्णन है। इस तरह देखे तो प्रमेह की चिकित्सा के लिए ग्रंथों में एक सूत्र दिया है - “हरिद्रा प्रमेहहराणां” अर्थात प्रमेह को दूर करने के लिए हरिद्रा सर्वश्रेष्ठ द्रव्य है। यह एक शक्तिवर्धक द्रव्य है। अर्थात की जितने भी प्रमेह नाशक द्रव्य है, उसमें हरिद्रा एक सर्वोत्तम प्रमेह नाशक औषधि है। हरिद्रा को हल्दी ही कहते हैं।
हल्दी अनेक रोगों में उपयोगी है। हल्दी की दो प्रकार से गुण प्रकाशक संज्ञा व्यक्त की गई है -
पहला 'क्रिमिघ्नता' (क्रिमियों का नाश करने वाला), दूसरा 'मेहघ्नी' (मधुमेह और प्रमेह का नाश करने वाली)। इस तरह कृमि, प्रमेह और मधुमेह में हल्दी की सर्वोपरिता सिद्ध होती है।
भाव प्रकाश और धनवंतरी निघंटु में हल्दी को प्रमेह नाशक बताया गया। प्रसिद्ध ग्रंथ 'अष्टांग हृदय' में कहा है कि हल्दी चूर्ण को आंवला स्वरस और शहद के साथ प्रतिदिन लेने से प्रमेह मिट जाता है। ॠषिवर्यों ने कहा है कि हरी अथवा कच्ची हल्दी का स्वरस और उनका चूर्ण प्रमेह नाशक है।
हल्दी त्रिदोष नाशक है; विशेषकर वह कफ और पित्त दोष का शमन करती है। 'चरक संहिता' में कफ जन्य और पित्त जन्य प्रमेह को मिटाने के लिए हल्दी के अनेक प्रयोग बताए गए हैं। आधुनिक विज्ञान ने प्रयोग कर सिद्ध किया है कि वह रक्त में स्थित ग्लूकोज को कम करती है। इसके अलावा खाज, खुजली, फुन्सी आदि में हल्दी का सेवन अत्यधिक उपयोगी रहता है।
हल्दी के कुछ घरेलू प्रयोग निम्नलिखित हैं
गहरी चोट लग जाने पर हल्दी का चूर्ण दूध के साथ पिलाते हैं। अलसी तेल, नमक और हल्दी की पुल्टिस बनाकर सूजन, दर्द एवं चोट वाले स्थानों की सिकाई की जाती है।
हल्दी रक्त शोधक भी है। शरीर पर फुन्सियाँ उठने, चकत्ते जैसी पित्ती उछलने में हल्दी को शहद के साथ मिलाकर चाटते रहने की प्रथा है।
पेट में कृमि पड़ने पर हल्दी का क्वाथ बनाकर पिलाया जाता है।
खाँसी आने पर हल्दी के टुकड़े मुँह में पड़े रहने दिए जाएं और उन्हे धीरे-धीरे चूसते रहा जाए, तो लाभ होता है। खांसी में हल्दी को भूनकर इसका 1- 2 ग्राम चुर्ण मधु या घृत के साथ चाटने से लाभ होता है।
जुकाम, सर्दी, सिर दर्द में गर्म दूध के साथ उसके उपयोग से बहुत लाभ होता है। सर्दी लगने पर हल्दी की धूनी दी जाती है। सिरदर्द व साइनुसाइटिस में हल्दी गुनगुने जल के साथ लेने से बलगम निकलता व सिर हल्का होता है।
मूत्र रोगों में इसका काढ़ा बहुत आराम देता है।
आँखों के दुखने पर एक तोला हल्दी, एक पाव पानी में औटाकर, कपड़े से छानकर आँखों में टपकाते हैं, तो लाली जल्दी मिटती है।
प्रमेह में हल्दी के चूर्ण को आँवले के रस के साथ देते है।
प्रदर रोग में हल्दी का चुर्ण दूध में उबालकर एवं गुड़ मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
एक छोटी चाय के चम्मच भर हल्दी को मट्ठे में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से 4 - 5 दिन में कामला रोग शांत हो जाता है।
पायरिया होने पर हल्दी + सरसों का तैल तथा सेंधा नमक मिलाकर सुबह शाम मसूड़ों पर लगाकर अच्छी प्रकार मालिश करें तथा बाद में गरम पानी से कुल्ला करने पर मसूड़ों के सब प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
छाजन / एक्जिमा - हल्दी को पानी में घिसकर गाढ़ा - गाढ़ा लेप दिन में तीन बार करें। 20 दिन में पुराने छाजन को आराम आ जाएगा।
विशेष - इसकी प्रयोग मात्रा किसी भी रोग में दो माशे (लगभग 2 ग्राम) से अधिक नहीं होनी चाहिए। अनुपान प्राय: गुनगुना जल, दूध या मधु होता है।
बाजारू हल्दी में ऊपर से नकली रंग पोता जाता है, ताकि ग्राहक को आकर्षक लगे, पर यह रंग हानिकारक पाए गए हैं। इसलिए बिना रंग की हुई हल्दी प्राकृतिक रुप में लेनी चाहिए। पिसी हल्दी में पीली मिट्टी मिलाकर उसका वजन भारी कर दिया जाता है। इस प्रकार के मिश्रण खाने वाले को अनेक प्रकार की हानियाँ पहुँचती हैं। इसलिए घर पर उगाई और पीसी गई हल्दी का उपयोग ही उचित है।
अपने अगले अंक में अब हम रसोईघर में पाई जाने वाली किसी अन्य औषधि के बारे में जानेंगे।