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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
पाठकों पिछले अंक में वर्षा ॠतु और उससे सम्बन्धित आहार विहार के बारे में आपने पढ़ा। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए इस अंक में शीत ॠतु से सम्बन्धित आहार- विहार एवं रोगों से बचाव आदि पर चर्चा करेंगे।
आयुर्वेद के अनुसार शीत ॠतु मुख्यत: हेमन्त और शिशिर इन दो ॠतुओं से सम्बन्धित है। अंग्रेजी मासों के आधार पर दिसंबर एवं जनवरी मास इनके अंतर्गत आते हैं। इस समय दक्षिणायन का अंत एवं आयुर्वेद के अनुसार विसर्ग काल होता है। इस काल में चंद्रमा का बल सूर्य की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता है। अत: इस ॠतु में औषधियाँ, वृक्ष पृथ्वी की पौष्टिकता में भरपूर वृध्दि होती है व जीव जन्तु भी पुष्ट होते हैं। कफ संचय एवं पित्त का शमन होता है।
शीत ॠतु में स्वाभाविक रुप से अग्नि तीव्र होती है, अत: पाचन शक्ति प्रबल रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि वातावरण की ठण्डी हवा और ठण्डे वातावरण का प्रभाव हमारे शरीर के अन्दर की उष्णता को बाहर निकलने से रोकता है। वह उष्मा एकत्रित होकर जठराग्नि को प्रबल कर देती है। अत: इस ॠतु मे लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। इसलिए इसे सेहत बनाने की ॠतु भी कहा जाता है।
शीत ॠतु में आहार-विहार के बारे में परामर्श
शीत ॠतु में आहार पौष्टिक मधुर घृत युक्त सूखे मेवे यथा-बादाम, छुहारा, काजू, चिलगोजा, मूंगफली, गुड़, तिल आदि का यथा सम्भव सेवन अपने आहार में करना चाहिए। सारे शरीर पर तेल की मालिश यदि नित्य हो सके तो अति उत्तम है। तेल तिल, सरसों, जैतून कोई भी हो सकता है। तेल को हल्का सा गुनगुना सहने योग्य रहना चाहिए। वस्त्रों में शीत लहर से बचने के लिए मोटे भारी ऊनी वस्त्रों का प्रयोग अति आवश्यक है।
शास्त्रों के अनुसार शीतऋतु में तेल, तिल और तूल (कपड़ा) इसका सेवन सभी को यथा शक्ति करना चाहिए। अर्थात तेल का शरीर पर अभ्यंग (मालिश), तिल - गुड़ के बने व्यंजन और ऊनी वस्त्रों का सेवन आवश्यक और लाभ दायक है। शीत ॠतु में खारा तथा मधुर रस प्रधान आहार का सेवन लाभदायक है। उड़द पाक, सालम पाक, छुहारा पाक, अश्वगंधा पाक, शुण्ठी पाक, च्यवनप्राश, दुध, घी, रबड़ी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, मेथी, खोपरा, पीपर इस ॠतु में सेवन योग्य माने जाते है।
बर्फ, फ्रिज का पानी रूखे-सूखे, कसैले-तीखे तथा कड़वे रस प्रधान, बासी भोजन, अधिक खटाई का प्रयोग वर्जित है। आचार्य चरक के अनुसार शीतकाल में अग्नि प्रबल होने के कारण, पौष्टिक और भारी आहार रूपी ईंधन न मिलने पर, बढ़ी हुई अग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगती है और वात का प्रकोप होने लगता है। अत: उपवास भी अधिक नहीं करना चाहिए ।
व्यायाम, योगासन, दौड़ना, कुश्ती आदि खेलों को यथा शक्ति करना चाहिए। हेमंत ॠतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण समभाग और शिशिर ॠतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण समभाग पीपर (पिप्पली) के साथ सूर्योदय के समय पानी में घोंट कर पीना एक उत्तम रसायन है।
स्थायी खांसी - जुकाम के रोगियों के लिए 2 ग्राम सोंठ, 10-12 ग्राम गुड़ एवं थोड़ा घी एक कटोरी में गर्म करके, गुड़ के पिघलने तक गर्म करने के बाद सुबह खाली पेट गरम-गरम खा लेना लाभदायक है।