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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
व्यक्ति जिस शास्त्र से आयुवर्धन के विषय में ज्ञान प्राप्त करता है उसके फलस्वरुप आयु की वृद्धि होती है; महर्षियों ने उसे आयुर्वेद कहा है। आयुर्वेद के अतिरिक्त विश्व के किसी भी चिकित्सा शास्त्र में दीर्घ जीवन, संयम, सदाचार, रसायन (रस, रक्तादि धातुओं का पोषण) द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन तथा रोग निवारण आदि का पूरी तरह (सम्यक्) विवेचन नहीं हुआ है। आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन महर्षि चरक ने इस प्रकार बताया है- स्वस्थ पुरुष के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोगी के रोग का निवारण करना।
रोग निवारण में से रसायन - बाजीकरण का मुख्य उद्देश्य मुख्यतया स्वास्थ्य की रक्षा एवं स्वास्थ्य संवर्धन से है। स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य के संवर्धन से सम्बन्धित प्रतीत होते हैं, परन्तु सूक्ष्म रूप से इनका संबंध मानसिक स्वास्थ्य से भी है।
दीर्घायु और दीर्घ आरोग्य की उपलब्धि के लिए महर्षि चरक ने महत्वपूर्ण 'आचार रसायन' की प्रक्रिया का निर्देश दिया है। यह रसायन वास्तव में कोई पेय औषधि या शर्बत नहीं है। यह एक प्रकार की नियमित आचार (आचरण) प्रक्रिया है, जो रसायन से भी अधिक कार्य करती है; यानी मात्र सदाचार पालन एवं सद्वृत पालन से भी रसायन गुण युक्त औषधि - आहार के बिना भी शरीर और मन पर रसायन सेवन के सभी फल प्राप्त होते हैं। आचार रसायन में जिन भावों का समावेश होता है, उनमें प्रमुख हैं -
महर्षि चरक के अनुसार औषधि रहित यह आचार रसायन आज विश्व को आयुर्वेद की अनुपम देन है।
रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के अष्टांगो में से एक महत्वपूर्ण चिकित्सा है। रसायन का सीधा सम्बन्ध धातु पोषण से है। यह केवल औषध व्यवस्था न होकर औषधि आहार - विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है, जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातु पोषण के माध्यम से दीर्घ आयु, रोग प्रतिरोध कारक शक्ति एवं उत्तम बुध्दि शक्ति को उत्पन्न करना है।
स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन करता है, परन्तु सूक्ष्म रूप से इसका संबंध मन के स्वास्थ्य से अधिक है। केवल सदाचार के पालन से भी मन व शरीर पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन सेवन के सभी फल प्राप्त होते हैं।