संतोष कुमार
श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर संस्थान , खनवाँ
🙏 एक विनम्र निवेदन – अध्यक्ष संतोष कुमार की ओर से 🙏
मैं सबसे पहले ईश्वर को कोटिशः धन्यवाद अर्पित करता हूँ, जिन्होंने मुझे श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर, खनवाँ के निर्माण कार्य में मार्गदर्शन और दायित्व निर्वहन हेतु समाज को प्रेरित किया। यह कार्य उनकी कृपा और प्रेरणा के बिना संभव ही नहीं था — उनके आशीर्वाद के बिना तो एक ईंट भी न रखी जा सकती थी।
साथ ही, मैं आप सभी सम्माननीय समाजजनों का भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझ पर यह विश्वास जताया और मुझे इस महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व के योग्य समझा।
मैं यह स्पष्टता के साथ कहना चाहता हूँ कि —
"जिस दिन भी समाज को यह लगे कि मैं अपने कर्तव्य पथ से विमुख हो गया हूँ, या अपने दायित्वों का समुचित निर्वहन नहीं कर पा रहा हूँ — उस दिन समाज को यह पूर्ण अधिकार होगा कि वह मुझसे यह जिम्मेदारी का पद वापस ले ले।"
मैं सदैव समाज की भावना, इच्छा और मर्यादा को सर्वोपरि मानता हूँ।
और यदि कभी स्वयं मुझे यह अनुभव हो कि मैं अब इस पवित्र कार्य को उचित रूप से संचालित करने में सक्षम नहीं रहा — तो मैं बिना किसी आग्रह या प्रतीक्षा के, यह दायित्व समाज को ससम्मान सौंप दूँगा।
यह कार्य किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, हम सभी की सामूहिक आस्था, संकल्प और तप का प्रतिफल है। मैं बस एक माध्यम हूँ — सेवा का अधिकारी नहीं, सेवक मात्र हूँ।
हमने बाबा जगजीवन धाम, बिंदीडीह में इस "श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर" निर्माण की पगड़ी समर्पित कर दी है, यह कहते हुए कि –
“हे बाबा, आप आपकी बहन का मंदिर का निर्माण तो आप करगे, हम सब तो केवल निमित्त मात्र हैं।”
यह मंदिर निर्माण हमारे लिए केवल एक संरचना नहीं, बल्कि एक तपस्या है – जिसमें हम पूर्ण निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण के साथ जुटे हैं।
यह मंदिर निर्माण सिर्फ एक स्थापत्य कार्य नहीं, बल्कि हमारे समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने का सामूहिक प्रयास है। यह दायित्व अकेले सम्भव नहीं है – इसमें समिति के प्रत्येक सदस्य, हर सक्रिय सहयोगी और हर ज़िम्मेदार नागरिक की भागीदारी अनिवार्य है।
यदि आप भी मेरी तरह मंदिर को जनकल्याण और लोकआस्था का केंद्र मानते हैं, तो यह सपना अवश्य साकार होगा। ईश्वर स्वयं राह बनाएंगे – बस हमारी नीयत और निष्ठा स्पष्ट होनी चाहिए।
“इस पवित्र कार्य में हम सभी को निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर केवल समाज, श्रद्धा और भक्ति के भाव से काम करना होगा। राजनीति, अहंकार या वैचारिक मतभेद – ये सभी मंदिर की दिव्यता के विरोधी हैं।” अतः इसमें हर प्रकार की मानसिक गंदगी और नकारात्मकता से हमें स्वयं को दूर रखना होगा।” । अब समय आ गया है कि हम सभी अपनी-अपनी जवाबदेही को पहचानें और निभाएं।
राजनीति, व्यक्तिगत आकांक्षाएं या मानसिक विषाक्तता को स्थान न दें।
मंदिर निर्माण में केवल मंदिर के हित में सोचें, बोलें और निर्णय लें।
यह हम सभी का मंदिर है – गांव , सातों भाईयो और सम्पूर्ण समाज की भावनाओं का प्रतीक।
हम अनुशासन में रहकर मिलजुलकर कार्य करेंगे, तभी यह मंदिर भव्य, पवित्र और यश-कर्ति वाला होगा।
हमारा संकल्प है कि यह मंदिर पत्थर से निर्मित हो, जिसकी आयु 1000 वर्षों से भी अधिक हो।
हम हर कार्य को गुणवत्ता मानकों और पारंपरिक मर्यादाओं के अनुरूप करना चाहते हैं।
स्वाभाविक रूप से, इस उच्च स्तर की गुणवत्ता हेतु 30% तक अतिरिक्त लागत आ सकती है।
यह व्यय नहीं, निवेश है – भावी पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर।
बीते समय में हमने महसूस किया है कि कुछ सदस्य, कभी-कभी, मार्गदर्शन और अच्छे निर्णयों को अनदेखा कर देते हैं या व्यक्तिगत भावनाओं को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे क्षणों में कार्य की पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा प्रभावित होती है – और मैं स्वयं को असहाय अनुभव करता हूँ।
उन क्षणों में, मैं बाबा जगजीवन और श्री लक्ष्मी नारायण माता से प्रार्थना करता हूँ –
“आप ही मार्गदर्शक हैं, आप ही दिशा दें।”
फिर भी, अभी तक अधिकतर सदस्यों का सहयोग प्रशंसनीय और प्रेरणादायक रहा है – इसके लिए मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
हमारे गांव के पढ़े-लिखे, नैतिक रूप से जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों से मेरा विशेष निवेदन है –
कृपया इस पवित्र कार्य में नेतृत्व और सक्रिय सहभागिता प्रदान करें।
मैं आप सभी से यह भी निवेदन करता हूँ कि मुझे कार्य करने के लिए एक सकारात्मक, सहयोग और मानसिक शांति वाला वातावरण प्रदान करें।
क्योंकि मानसिक तनाव और अव्यवस्था में कोई भी अच्छे/महान कार्य नहीं हो सकता।
🙏 आप सभी से सहयोग, अनुशासन, समझ और सक्रिय सहभागिता की विनम्र अपेक्षा है। 🙏
आपका
संतोष कुमार , अध्यक्ष
श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर संस्थान , खनवाँ
(श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर निर्माण – खनवाँ)
हमारी सामूहिक आस्था, समर्पण और सतत प्रयासों के माध्यम से अब तक मंदिर निर्माण की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण मील के पत्थर पार किए जा चुके हैं। प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:
दिनांक – 7 फरवरी:
श्री लक्ष्मी नारायण बाबा बर मंदिर की पावन आधारशिला का पूजन अत्यंत श्रद्धा, उल्लास और विधिपूर्वक संपन्न हुआ। यह क्षण मंदिर निर्माण की आध्यात्मिक शुरुआत का प्रतीक बना।
निर्माण कार्य के सुचारु संचालन हेतु प्रमुख समितियाँ गठित की गईं, जिनमें शामिल हैं –
निर्माण समिति, लेखा (अकाउंटिंग) समिति, अनुशाशन समिति, सलाहकार समिति एवं अन्य
प्रत्येक समिति ने मेम्बर्स को स्पष्ट दायित्व एवं कार्य क्षेत्र सौंपा गया है। सभी को अनुशासन मे रह कर कार्य करना है।
मंदिर निर्माण से संबंधित समस्त जानकारी, योजनाएँ, चित्र, दस्तावेज़ और घोषणाएँ आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की गई हैं, जिससे समाज के सभी सदस्य कहीं से भी कार्य की पारदर्शिता देख सकें।
मंदिर का फ्रंट व्यू एलिवेशन, 2D और 3D डिज़ाइन अब पूर्ण रूप से स्पष्ट है।
यह डिज़ाइन न केवल सौंदर्य की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक भावनाओं का सजीव प्रतिनिधित्व करता है। समाज द्वारा इसे अत्यंत सराहा गया है।
प्रारंभिक चरण में भूमि चयन को लेकर कुछ असमंजस था, परंतु समिति, ग्राम समाज एवं वरिष्ठजनों के परामर्श से भूमि का अंतिम निर्धारण हो चुका है। अब मंदिर निर्माण हेतु समर्पित भूमि निश्चित है।
मंदिर की नींव रखने से पूर्व आवश्यक मृदा परीक्षण की प्रक्रिया चल रही है। रिपोर्ट प्राप्त होते ही हमें स्ट्रक्चर प्लान और तकनीकी डाटा शीट प्राप्त हो जाएगी, जिससे फाउंडेशन व निर्माण कार्य प्रारंभ हो सकेगा।
ठेकेदार चयन के प्रारंभिक चरण में कुछ भ्रम उत्पन्न हुए, किंतु समय रहते सतर्कता के साथ निर्णय लिया गया और किसी बड़े संभावित हानि से बचा गया। कुछ तो हानी हुई है पर हमे पूरा विश्वास है की वो राशि लौट जाएगी । अब प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और सहभागी बनाया जा रहा है। श्री लक्ष्मी नारायण की कृपा ही है कि हम किसी बड़े नुकसान से बचे और अब इस पूरी प्रक्रिया को और अधिक सतर्कता व पारदर्शिता से आगे बढ़ा रहे हैं।
इस निर्माण कार्य को हमने एक आध्यात्मिक तप के रूप में लिया है –
निर्णयों में पारदर्शिता,
चर्चाओं में सहभागिता,
क्रियान्वयन में निष्ठा,
और कार्य प्रणाली में शुचिता।
हमारा उद्देश्य केवल एक मंदिर बनाना नहीं, बल्कि एक ऐसा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र खड़ा करना है जो पीढ़ियों तक समाज का मार्गदर्शन करे।
यह हमारी आस्था है कि —
"यह कार्य हमारे नहीं, स्वयं लक्ष्मी नारायण बाबा और बाबा जगजीवन की प्रेरणा से ही सम्पन्न हो रहा है। हम सब केवल माध्यम हैं।"
जैसा कि पहले भी अवगत कराया गया है, 10 अप्रैल के बाद मेरा खनवाँ में उपस्थित रह पाना सीमित रहेगा। इसलिए मैंने अपनी ओर से अधिकतम विषयों को इस वेबसाइट लिखित रूप में दस्तावेज़बद्ध कर दिया है और आवश्यकतानुसार फोन एवं डिजिटल माध्यम से सदैव जुड़ा रहूँगा। जब कभी मेरी व्यक्तिगत उपस्थिति की विशेष आवश्यकता होगी, मैं यथासंभव उपलब्ध रहूंगा।
धन्यवाद।
संतोष कुमार
🙏 नम्र निवेदन एवं उद्देश्य स्पष्टिकरण
इस वेबसाइट के माध्यम से मैंने अपने सीमित ज्ञान और अनुभव के आधार पर मंदिर हित में जो भी श्रेष्ठ सुझाव संभव हो सके, उन्हें समर्पण भाव से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह मंदिर केवल किसी एक व्यक्ति का नहीं, हम सभी का है — पूरे गाँव और समाज के सामूहिक संकल्प, आस्था और श्रम का प्रतीक।
🧭 निर्णय में सहभागिता और विवेक का सम्मान
यहाँ व्यक्त विचार मेरी व्यक्तिगत राय अवश्य हो सकती है, किंतु अंतिम निर्णय का अधिकार संपूर्ण मंदिर निर्माण समिति और समाज के विवेकशील बुद्धिजीवियों पर आधारित होना चाहिए। हमारा धर्म है कि हम सत्य और न्याय के पक्ष में निर्भय होकर निर्णय में भाग लें ।
⚖️ न पक्षपात, न विरोध – केवल मंदिर कल्याण
मेरा उद्देश्य न तो किसी का विरोध करना है और न ही केवल समर्थन, बल्कि हर विचार और प्रस्ताव केवल मंदिर के कल्याण, व्यवस्था और भविष्य को दृष्टि में रखकर प्रस्तुत किए गए हैं। मुझे आशा है कि आप सबका मार्गदर्शन और अवलोकन इस प्रयास को और अधिक परिपक्व बनाएगा।
💔 यदि भूलवश कोई त्रुटि हो गई हो…
यदि मेरे किसी विचार, शब्द या कार्य से किसी को भी किसी प्रकार की पीड़ा हुई हो, तो मैं विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना करता हूँ। स्पष्ट उद्देश्य केवल मंदिर हित है — कभी भी कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं।
🙏 आप सभी का हार्दिक आभार
आप सभी का सहयोग, सुझाव और स्नेह इस प्रयास की सबसे बड़ी पूँजी है। आइए, मिलकर इस मंदिर को न केवल ईश्वर का निवास, बल्कि गाँव और समाज के आत्मगौरव का केन्द्र बनाएं।
"रण से भागे नहीं जो जीवन भर, वही दिनकर हैं!"
युद्ध नहीं जिसके जीवन में,
वो भी बड़े अभागे होंगे!
या तो प्रण को त्यागे होंगे,
या फिर रण से भागे होंगे!!
हर मानव अपने जीवन में संघर्षरत होता है। परंतु जिनके पास कोई योजना नहीं होती, उनके जीवन में न तो वास्तविक संघर्ष होता है और न ही सार्थक परिणाम। "जब जगा तब सवेरा" जैसे भाव से जीने वालों के हिस्से वही आता है, जो परिश्रमी लोगों ने त्याग दिया हो या जिसे उन्होंने दया कर छोड़ दिया हो।