https://youtu.be/B4tJbOKBSao?si=3Be3BJQttpNz0QTS
बहुत समय पहले एक छोटे से गांव में ममता नाम की बहुत ही गरीब औरत अपने बेटे लोकेश के साथ एक छोटे से घर में रहती थी। ममता दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम किया करती थी, जिससे घर का गुजारा होता था। एक दिन ममता लोकेश से कहती है लोकेश बेटा जा भानु भैया की दुकान से घर का राशन ले आ। अगर वह पैसे मांगे तो कह देना की पैसे अगले महीने दे देंगे। ठीक है मां मैं अभी राशन ले आता हूं। लोकेश भानु की दुकान पर राशन लेने पहुंच जाता है। लोकेश भानु से कहता है। भानु भैया मां ने राशन मंगाया है उन्होंने कहा है की पैसे अगले महीने दे देंगे। तुमने मुझे क्या समझ रखा है जो मुंह उठाए उधार लेने चले आते हो यहां। अरे! उधार की वजह से मेरी दुकान बंद होने की कगार पर है। अभी तुमने पहले के पैसे दिए नहीं है और उधार लेने चले आए। देखो भाई, मैं उधार का कोई सामान नहीं दे सकता। भानु दुकानदार की यह बात सुनकर लोकेश अपने घर की ओर चल पड़ता है और वह सोचने लगता है। मैं कितना अभागा हूँ जो दो वक्त के खाने के लिए पैसे नहीं जुटा सकता। मां किस तरह दूसरों के घरों में काम करती है। अब मुझसे उनका दुख देखा नहीं जाता। बेचारी कब तक दूसरों का काम करती रहेंगी। मुझे कोई काम जरूर करना होगा। शायद अब वक्त आ गया है कि मुझे अपनी जिम्मेदारी संभालनी होगी ताकि मैं अपनी माँ को इस स्थिति से निकाल सकूँ और उनकी जिंदगी में थोड़ी खुशियाँ ला सकूँ। लोकेश ये सोच ही रहा था। तभी उसकी नजर एक ऋषिवर पर पड़ी। ऋषिवर ने लोकेश को अपने पास बुलाया और बोले। क्यों उदास हो प्यारे बेटे! तुम्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे तुम किसी बड़ी समस्या से जूझ रहे हो। ऋषिवर! मैं एक गरीब लड़का हूँ। मेरे पास कुछ नहीं है। सिर्फ एक सपना है की एक दिन मैं अपनी माँ की मदद कर सकूँ। वह दूसरों के घरों में जाकर काम करती है, फिर भी उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते जिससे पूरे महीने का गुजारा हो जाए। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा की मैं क्या करूं। मेरी जिंदगी में आगे क्या होगा। तुम्हारे मन में जो सपना है वह एक दिन जरूर पूरा होगा। बेटा तुम बड़े तकदीर वाले हो। तुम्हारा भाग्य बहुत उज्जवल है। बहुत ही जल्दी ऐसा वक्त आएगा जब हर किसी की जुबान पर सिर्फ तुम्हारा नाम होगा। लेकिन मैं तो केवल एक साधारण सा लड़का हूं। मेरे पास तो साधन भी नहीं है और ना ही मैं कोई राजा हूं। फिर हर किसी की जुबान पर मेरा नाम क्यों होगा? स्वामी मैं समझ नहीं पा रहा हूं की आप क्या कहना चाहते हैं। इस संसार में हर एक व्यक्ति की कहानी अनोखी होती है और तुम्हारी कहानी अभी शुरू हुई है। इतना कहकर ऋषिवर वहां से चले जाते हैं। लोकेश को उनकी कोई भी बात समझ नहीं आती है और फिर लोकेश भी अपने घर चला जाता है। बेटा, तू खाली हाथ क्यों चला आया? मैंने तो तुझे घर का राशन लेने भेजा था। मां भानु भैया ने उधार राशन देने के लिए मना कर दिया है। वो कह रहे थे की मैं तुम्हें और उधारी नहीं दे सकता। तुम्हारे ऊपर पहले के ही बहुत पैसे हैं। कोई बात नहीं बेटा। मैं आज मालकिन से पैसे लेकर आऊँगी। तू भानु का हिसाब कर आना। जा तू खाना खा ले। माँ मैं खाना बाद में खाऊँगा। आप पहले मुझे एक बात बताओ। जब मैं रास्ते से आ रहा था तो मुझे एक ऋषिवर मिले थे। वो कह रहे थे की मैं बहुत तकदीर वाला हूँ। कुछ ही दिनों में हर किसी की जुबान पर मेरा ही नाम होगा। मैं तो उनकी बात समझ ही नहीं पाया। अगर तुम्हें कुछ समझ में आया तो तुम मुझे बताओ माँ। क्या सच में उन्होंने ऐसा कहा? हाँ माँ। उन्होंने ऐसा ही कहा। बेटा जब तेरा जन्म हुआ था तब भी एक ऋषि ने मुझसे कहा था की यह तेरा बेटा बहुत भाग्यशाली है, बड़ा होकर यह राजकुमार बनेगा। लेकिन मैंने उनकी बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया था। माँ यह सब फिजूल की बात है, भला एक गरीब माँ का बेटा राजकुमार कैसे बन सकता है? राजकुमार तो राजा का बेटा बनता है। तुम सही कहते हो लोकेश, लेकिन कभी कभी यह भविष्यवाणी सच भी हो जाती है। मैंने खुद अपनी आंखों से भविष्यवाणियों को सच होते हुए देखा है। हमारे गांव में सुनीता नाम की एक औरत ने एक बेटी और बेटे को जन्म दिया था। उन बच्चों की खुशी में उस औरत के पति महेंद्र ने आसपास के सभी गांव में दावत की थी। वह औरत भविष्यवाणी में बहुत विश्वास करती थी, इसलिए उसने अपने बच्चों का भविष्य पूछने के लिए एक ऋषि को बुलाया। उस ऋषि ने उससे कहा। मैं तुम्हें इन बच्चों का भविष्य नहीं बता सकता और तुम्हारे लिए भी यही बेहतर होगा की तुम कभी भी इन बच्चों का भविष्य जानने की कोशिश मत करना वरना तुम्हारा यह खुशहाल जीवन पल भर में दुख में बदल जाएगा। लेकिन ऋषिवर ऐसा क्या है इन बच्चों के भविष्य में जो आप हमें बताना नहीं चाहते? हमने तो ऐसा कोई पाप नहीं किया है, जिसकी सजा इन बच्चों को मिले। कितनी दुआओं के बाद ईश्वर ने हमें यह दो जुड़वा बच्चे दिए हैं। कृपया करके आप मुझे बताएं इन बच्चों के भविष्य में क्या लिखा है? ठीक है, अगर तुम अपने बच्चों का भविष्य जानना चाहती हो तो सुनो। तुम्हारा यह बेटा बड़ा होकर अपनी जुड़वा बहन से शादी करेगा। ऋषि की यह बात सुनकर सुनीता के होश उड़ गए। ऐसा कैसे हो सकता है ऋषिवर, भला एक भाई अपनी बहन से कैसे शादी कर सकता है? मैं यह भविष्यवाणी नहीं मानती। तुम झूठ बोल रहे हो। मैं आपकी बातों पर विश्वास नहीं कर सकती। अगर बेटा तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं। तो कोई बात नहीं। जब समय आएगा तो तुम सब खुद देख लोगे। इतना कहकर ऋषिवर वहां से चले जाते हैं। फिर सुनीता अपने पति से कहती है, नहीं, यह तो असंभव है। मेरे बच्चे आपस में विवाह नहीं कर सकते। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मुझे अपनी बेटी को मरवा देना चाहिए। तभी यह भविष्यवाणी गलत साबित होगी। तुम यह क्या बेहूदा बात कर रही हो? उस आदमी की बातों में आकर तुम इस मासूम की जान लेना चाहती हो। कितने वर्षों बाद ईश्वर ने हमें औलाद का सुख दिया और तुम कह रही हो की हम इस मासूम बच्ची को मरवा दें। मैं ऐसा नहीं करना चाहती लेकिन हमें इन भविष्यवाणियों को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह भविष्यवाणियां मेरे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। कई बार ऐसा हुआ है जब मैंने इनकी अनदेखी की है तो मुझे इसका नुकसान उठाना पड़ा। हमें इन भविष्यवाणियों को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ शब्द नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य के संकेत हैं। इसलिए इस भविष्यवाणी को नजर अंदाज करना हमारे लिए सही नहीं होगा। देखो सुनीता, हमें समझदारी से सोच समझकर ही कोई कदम उठाना चाहिए। बताओ, अब हमें क्या करना होगा? तुम इस बच्ची को कहीं दूर ले जाकर मार दो। हमें ना चाहते हुए भी ऐसा करना ही होगा। इसी में हमारी भलाई है। अगर भविष्यवाणी सच हो गई तो अनर्थ हो जाएगा। ठीक है। जो आज तक किसी ने नहीं किया, वह मैं करूंगा। अपने ही हाथों से अपनी बच्ची की जान लूंगा तो इस बच्ची को किसी कपड़े में लपेट दो, जिससे मुझ पर किसी को शक ना हो। वो आदमी उस बच्ची को एक ऊंची पहाड़ी पर ले जाता है और फिर उसे पहाड़ी से नीचे फेंक देता है। लेकिन वो बच्ची किसी तरह बच जाती है। एक अमीर आदमी उस जगह से गुजर रहा होता है तभी उसकी नजर उस बच्ची पर पड़ती है। अरे वाह कितनी प्यारी बच्ची है। लेकिन यह बच्ची इस जंगल में क्या कर रही है? इसे यहां पर कौन छोड़ कर गया होगा। मुझे इसे अपने साथ लेकर जाना चाहिए वरना इसे कोई जंगली जानवर खा जाएगा। वो अमीर आदमी उस बच्ची को अपने घर ले जाता है। अरे कहां हो भाग्यवान! जरा जल्दी इधर आओ। यह देखो मेरे साथ कौन आया है? अरे ये किसका बच्चा उठा लाए हैं आप? मैं क्या तुम्हें कोई बच्चा उठाने वाला दिखाई देता हूं? अरे नहीं, मेरा मतलब वह नहीं जो आप समझ रहे हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम्हें यह बच्चा कहां से मिला? यह नन्ही परी मुझे पहाड़ियों वाले जंगल में मिली है। पता नहीं इसे वहां पर कौन छोड़ कर गया था। मुझे इस बच्ची पर दया आई और मैं उसे उठा कर ले आया। यह तुमने बहुत अच्छा किया। इस बच्ची को अपने साथ ले आए। देखो, यह बच्ची कितनी सुंदर है। देखने में बिल्कुल चांद का टुकड़ा लग रही है। आज से यह बच्ची हमारे परिवार का हिस्सा है। हम इसे भी अपने बेटे सोहन की तरह ही पालेंगे। अब से हमारे एक नहीं बल्कि दो बच्चे हैं। यूं ही कई वर्ष बीत जाते हैं। अब दोनों भाई बहन बड़े हो चुके होते हैं। अपने बेटे को जवान होता देख सुनीता और उसका पति बहुत खुश होते हैं की भविष्यवाणी गलत साबित हुई। लेकिन होना तो वही था जो तकदीर में लिखा था। एक दिन सुनीता का लड़का किसी काम से बाहर कहीं दूर जा रहा होता है। तभी रास्ते में उसकी नजर अमीर आदमी की बेटी पर पड़ती है। उसे देखकर वह सब कुछ भूल जाता है। वह अपने मां बाप को बगैर कुछ बताए। उस लड़की से शादी कर लेता है और उसे लड़की घर ले आता है। मां। मैंने इस लड़की से शादी कर ली है। यह सेठ अमीरचंद की बेटी है। बेटा, तुझे शादी करने की इतनी भी जल्दी क्या थी? एक बार हमसे पूछ तो लेता, आखिर हम तेरे माता पिता हैं। हमने तुझे पाल पोस कर इतना बड़ा किया है। इसलिए हमारा भी हक बनता है कि तेरे सुख दुख में साथ रहे। अरे भाग्यवान! तुम भी यह क्या बात लेकर बैठ गई हो? अरे हमें तो खुश होना चाहिए। हमारे बेटे की खुशी में ही तो हमारी खुशी है। बेटी! तुम बहुत दूर से चल कर आई हो। जाओ, थोड़ा आराम कर लो। बेटी, तुम कितने भाई बहन हो। सासू जी हम दो भाई बहन हैं, लेकिन मैं सेठ अमीरचंद की सगी बेटी नहीं हूं। मैं तो उन्हें पहाड़ी के पास मिली थी, लेकिन उन्होंने मुझे कभी मां पापा की कमी महसूस नहीं होने दी। अपने बेटे की बहू के मुंह से यह बात सुनकर सुनीता सब समझ जाती है कि यह लड़की हमारी बेटी है। वह इस बात को अपने पति महेंद्र को भी बताती है कि भविष्यवाणी सच साबित हुई। यह बात किसी तरह सुनीता के बेटे को भी पता चल जाती है कि जिस लड़की से उसने शादी की है, वह उसकी सगी बहन है। इसलिए वह अपनी जान ले लेता है और फिर वह लड़की भी मर जाती है।
यह तो बहुत बुरा हुआ। इस बात को सुनकर मुझे पूरा विश्वास हो गया कि भविष्यवाणियां सच होती हैं। हमें इन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए। हां बेटा, मैं तुझे यही समझा रही थी कि इन भविष्यवाणियों को झूठ समझने की कोशिश मत करना। इसका मतलब ऋषिवर सच कह रहे थे कि मेरे मन में जो सपना है, वह एक दिन जरूर पूरा होगा और बहुत जल्दी मेरा भाग्य उज्जवल होगा। उसके बाद हर किसी की जुबान पर सिर्फ मेरा नाम होगा। जिस राज्य में लोकेश रहता था, उस राज्य का राजा सूरजमल बहुत ही शांतिप्रिय और दयालु था। उसके शासन में सभी खुश रहते थे। प्रजा भी राजा को बेहद पसंद करती थी। हर कोई गर्व महसूस करता था की वह ऐसे राज्य में रहते हैं जहाँ एक शांतिप्रिय और समझदार राजा शासन कर रहा है। राजा के राज्य की उचित व्यवस्था के पीछे जिस आदमी का हाथ था वो थे उनके सबसे प्रिय सलाहकार रघुवीर सिंह। रघुवीर सिंह के रहते राजा को कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। लेकिन अचानक एक दिन रघुवीर सिंह की मृत्यु हो गई। इससे राजा को बहुत दुःख हुआ। अब उनके प्रमुख सलाहकार का पद खाली पड़ा था। वो चाहते थे की पूरे राज्य में सबसे बुद्धिमान और जवान आदमी को ये पद मिले। इसलिए वो अपने मंत्री से कहते हैं। पूरे राज्य में घोषणा करवा दो जो भी व्यक्ति राजा के तीन पहेलियों का सही जवाब देगा उसे राजा एक हज़ार सोने के सिक्के और अपना प्रमुख सलाहकार नियुक्त करेंगे। अगले ही दिन मंत्री ढिंढोरची को घोषणा करवाने के लिए भेज देते हैं। सुनो लोगों महाराज सूरजमल का ताजा फरमान जरा गौर से सुनो। महाराज के सबसे प्रिय सलाहकार रघुवीर सिंह की अचानक मृत्यु हो गई है। इसलिए अब उनका पद खाली है। जो भी व्यक्ति महाराज की तीन पहेलियों का सही जवाब देगा, उसे महाराज एक हज़ार सोने के सिक्के और अपना प्रमुख सलाहकार नियुक्त करेंगे।
कौन जाने अब हमारे मुल्क का क्या होगा? क्यों बाबा कोई आफत आ गई है? सलाहकार की मृत्यु होने से।बेटा आफत तो कुछ नहीं आई। रघुवीर सिंह बहुत ही अच्छा इंसान था। ईश्वर अच्छे इंसान को जल्द ही अपने पास बुला लेता है। बेचारा हमेशा प्रजा की भलाई चाहता था। मैंने कितने ही सलाहकारों को बदलते देखा है, मगर यकीन मानो। रघुवीर सिंह जैसा कोई नहीं था। वह हमेशा गरीब लोगों के हित में ही सोचता था। पता नहीं अब राजा का नया सलाहकार कौन बनेगा, जो हम जैसे गरीबों के बारे में सोचेगा। अगले ही दिन राजमहल में बहुत से आदमी जाते हैं, लेकिन कोई भी राजा की पहेलियों का जवाब नहीं दे पाता है। यूं ही तीन दिन गुजर जाते हैं। एक दिन लोकेश अपनी मां से कहता है, मां। क्यों न एक बार मैं महाराज के पास जाकर इन पहेलियों का जवाब दूं। बेटा राजा हर बार पहेली बदलकर पूछता है, अभी तक कोई भी तीनों पहेलियों का सही जवाब नहीं दे पाया है। बहुत से अक्लमंद लोगों ने पहेलियों का जवाब देना चाहा, लेकिन हर कोई नाकाम रहा। तुम उन अमीर लोगों के बीच कैसे जा सकते हो? वहां बहुत ही तजुर्बेकार और होशियार लोग आए हुए हैं। मां बिल्कुल भी परेशान न हो, मैं महाराज के पास जरूर जाऊंगा। सोचो अगर मैंने पहेलियों के जवाब दे दिए तो एक हज़ार सोने के सिक्के मिलेंगे। फिर तुम्हें किसी के घर जाकर काम करने की जरूरत नहीं होगी और मैं भी महाराज का सलाहकार बन जाऊंगा। ठीक है बेटा, तू इतना कह ही रहा है तो जा, मेरी दुआएं तेरे साथ हैं। ईश्वर तेरी हिफाजत करे।
अगले दिन लोकेश राजमहल पहुँच जाता है। महाराज उससे पूछते हैं। तुम यहाँ किस लिए आए हो? महाराज, मैं यहाँ आपकी पहेलियों का जवाब देने आया हूँ। अभी तक कोई भी मेरी पहेलियों का जवाब दे नहीं पाया। तुम समझदार लगते हो, जवान भी हो। शायद तुम मेरी पहेलियों का जवाब दे सकते हो। जैसा की तुम शर्त जानते ही हो। जो भी पहेलियों का सही जवाब देगा वह मेरा सलाहकार बनेगा और उसे इनाम में एक हज़ार सोने के सिक्के दिए जाएंगे। ठीक है महाराज, मैं आपकी पहेलियों का जवाब देने के लिए तैयार हूँ।
तो बताओ तुम्हारे अनुसार सबसे बड़ा धन क्या है? महाराज सबसे बड़ा धन संतोष है। जब मन शांत होता है तो इंसान सबसे अमीर होता है। बहुत खूब। अब दूसरे सवाल का जवाब दो। जीवन में सबसे बड़ा ज्ञान क्या है? महाराज जीवन में सबसे बड़ा ज्ञान यह है कि खुद को जानना और समझना। जब हम अपने आप को पहचानते हैं, तब हम दूसरों को भी समझ पाते हैं। सही उत्तर। अब तीसरा और आखिरी सवाल। सच्ची मित्रता का अर्थ क्या है? महाराज सच्ची मित्रता वो है जब एक मित्र दूसरे की खुशियों में खुश और दुखों में दुखी होता है, बिना किसी स्वार्थ के। बहुत अच्छे। तुमने तीनों सवालों के सही जवाब दिए हैं। तुम वाकई में बुद्धिमान हो। आज से तुम मेरे सलाहकार हो।
मंत्री इसे एक हज़ार सोने के सिक्के दे दिए जाएँ। कल से तुम अपना पद संभालोगे। लोकेश एक हज़ार सोने के सिक्के लेकर अपने घर चला जाता है। लोकेश को देखकर ममता बहुत खुश होती है। वह लोकेश से कहती है, बेटा जब से तू गया है तब से ही मैं तेरे लिए दुआ कर रही थी कि तू कामयाब हो और ईश्वर ने मेरी दुआ सुन ली। अब हमारी सारी मुसीबतें दूर हो जाएंगी। हां मां, अब तुम्हें किसी भी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं है। आज से तुम्हें दूसरों के घरों पर जाकर काम करने की भी कोई जरूरत नहीं है। बेटा, मेरी पूरी जिंदगी दुख और तकलीफों में कट गई। आज सालों बाद तूने मुझे यह खुशी दिखाई है। अगर आज तेरे पिता जी जिंदा होते तो बहुत खुश होते। पूरे राज्य में यह बात फैल जाती है कि ममता का बेटा राजा का सलाहकार बन गया है। सब बहुत खुश होते हैं क्योंकि लोकेश बहुत ही समझदार और नेक लड़का था। एक दिन लोकेश महल से अपने घर जा रहा होता है। तभी रास्ते में दो भाई एक घोड़ी के बच्चे के ऊपर झगड़ते हुए दिखाई देते हैं। लोकेश उनके पास जाकर बोला। तुम दोनों झगड़ा क्यों रहे हो। जिस आदमी को तुम मेरे सामने खड़ा देख रहे हो, यह मेरा बड़ा भाई है। यह एक नंबर का झगड़ालू इंसान है। ईश्वर इसे गारत करे। हमारे पिताजी जो भी छोड़कर मरे थे, हमने उसे आपस में बांट लिया। मेरे हिस्से में घोड़ी आई थी। उस घोड़ी ने एक बच्चा दिया। यह बेईमान इंसान उस घोड़ी के बच्चे को अपना बता रहा है। जरा आप इसे समझाइए। जब बच्चा मेरी घोड़ी ने दिया तो वह घोड़ी का बच्चा मेरा हुआ या इस बदबख्त का? यह नामुराद झूठ बोल रहा है। सालों से यह अपनी घोड़ी को मेरी जगह में बांधता हुआ आ रहा है और इसकी घोड़ी ने बच्चा मेरी जमीन पर दिया है। इसलिए वह घोड़ी का बच्चा मेरा हुआ। जो चीज जिसकी जमीन पर पैदा होती है, वह उसी की हो जाती है। लोकेश समझ गया, यह दोनों पागल हैं, इसलिए वह उनसे बोला। तुम्हारी समस्या तो बहुत गंभीर है। तुम्हें राजा के पास जाना चाहिए। वही तुम्हारा फैसला कर सकते हैं। तुम सही कह रहे हो। हमें राजा के पास जाना चाहिए, वरना यह झगड़ालू इंसान कुछ उल्टा सीधा ना कर बैठे। अगले दिन दोनों भाई राजा के पास पहुंच जाते हैं। और राजा को अपनी सारी बात बताते हैं। राजा लोकेश से कहते हैं। इस समस्या का हल तुम करो। वो दोनों भाई लोकेश को पहचान लेते हैं, लेकिन राजा के सामने उनकी बोलने की हिम्मत नहीं होती इसलिए वो चुपचाप खड़े रहते हैं। देखो जगह से घोड़ी और बच्चे का कुछ भी लेना देना नहीं है। जिसकी घोड़ी है बच्चा भी उसी का है। लेकिन तुम्हें अपने बड़े भाई की जगह में घोड़ी बांधने का हर्जाना देना होगा। तुम्हें उसे एक सोने का सिक्का देना होगा। दोनों भाई लोकेश का फैसला सुनकर खुशी खुशी अपने घर चले जाते हैं।
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एक गांव में हरिया नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक छोटी बेटी थी जिसका नाम था सुमन। हरिया की अपनी कोई जमीन नहीं थी इसलिए वह दूसरों की जमीन पर खेती करता और जो कुछ पैसे मिलते उससे अपने घर का गुजारा करता था। पिछले कुछ दिनों से हरिया को गांव में कहीं भी काम नहीं मिल रहा था, जिससे वह बहुत परेशान था। हरिया की पत्नी आज कुछ कमा के लाए हो या नहीं, घर में खाने के लिए और कुछ नहीं बचा है। बस थोड़े से दाल चावल बचे थे उसकी मैंने खिचड़ी पका दी है। पिछले कई दिनों से गाँव में कोई काम नहीं मिल रहा है। लोगों का कहना है की अभी इस महीने उनके पास करवाने को कोई काम नहीं है। जब फसलों की कटाई शुरू होगी तब काम मिलेगा। अब मैं तो यह सोच कर परेशान हूँ की इस महीने अगर कोई काम नहीं मिला तो सबके खाने पीने का जुगाड़ में कैसे करूँगा। आप चिंता मत करो भगवान हमारी मदद जरूर करेंगे। पापा इस बार गाँव में जो मेला लगेगा उसमें आप मुझे गुड़िया दिलाओगे ना। अगली बार तो आपने यह कहा था की अभी मैं बहुत छोटी हूँ। अगले साल तक मैं बड़ी हो जाउंगी। अब तो मैं बड़ी हो गई हूँ तो अब मुझे गुड़िया दिलाओगे ना। हाँ बेटा इस साल में तुम्हें जरूर गुड़िया दिलाऊंगा। अब चलिए खाना खा लीजिए। ठंडा हो रहा है। सरला तुम भी आकर खाना खा लो। जी आप खा लीजिए, मैं थोड़ी देर बाद खा लूंगी। हरिया और उसकी बेटी दोनों खाना खा लेते हैं। तभी उनके दरवाजे पर एक संत की दस्तक होती है। कोई तो कुछ खाने को दे दो, भगवान तुम्हारा भला करेगा। संत की आवाज सुनकर हरिया और उसकी पत्नी बाहर आते हैं। बेटा, क्या तुम्हारे पास खाने को कुछ है? बाबा हमारे पास तो खुद के खाने के लिए भी ठीक से खाना नहीं हो पाता। हम आपको कहां से देंगे? थोड़े से खिचड़ी पकाई थी, वह भी मैं अभी खा लिया हूं। अब हमारे पास कुछ भी नहीं है। रुकिए बाबा, अभी मेरे हिस्से का खाना बचा हुआ है। मैं अभी लेकर आती हूं। पर सरला तुम अगर यह खाना बाबा को दे दोगी तो तुम क्या खाओगे? बर्तन में तो बस थोड़े से ही चावल बचे हैं। आप इसकी चिंता मत कीजिए। मैं भूखी रह लूंगी। लेकिन अपने घर के आंगन से मैं किसी संत को भूखा नहीं जाने दे सकती। इससे मुझे पाप लगेगा। ठीक है सरला! जैसी तुम्हारी इच्छा। सरला अपने हिस्से का खाना लाकर बाबा को दे देती है और बाबा उस खाने को खा लेते हैं। बेटा, तुमने मेरी भूख मिटाई है। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं। एक भूखे व्यक्ति को खाना खिलाना सच में पुण्य का काम होता है और यह पुण्य तुमने आज कमा लिया है बेटी। मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं है, लेकिन यह एक अंगूठी है। इसे अपने पास रखो। यह तुम्हारी बहुत मदद करेगी। पर याद रखना, रात के समय इसे मत पहनना। रात में इसकी शक्ति बढ़ जाती है जो तुम्हारी उंगली सहन नहीं कर पाएगी। धन्यवाद बाबा। हम आपकी आज्ञा का पालन करेंगे। संत के जाने के बाद हरिया अंगूठी को देखकर सरला से कहता है। इस अंगूठी में ऐसा क्या है जो बाबा ने हमें इसे देने के लिए चुना? शायद यह हमारे अच्छे कर्मों का फल है। आपने सुना तो होगा ना हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का फल हमें जरूर मिलता है। चलिए अब अंदर चलते हैं। पर सरला तुमने अपने हिस्से का खाना तो बाबा को दे दिया। अब तुम क्या खाओगी? काश हमारे पास थोड़े से और चावल होते। जैसे ही हरिया यह बात कहता है, अंगूठी में एक चमक सी उठती है और हरिया के सामने तुरंत एक चावल की प्लेट आ जाती है। सरला, यह देखो, जैसे ही मैंने चावल का नाम लिया, यहां चावल प्रकट हो गया। यानी कि यह अंगूठी सच में जादुई है। इससे हम कुछ भी खाने को मांग सकते हैं। अरे वाह। यह तो बहुत अच्छी बात है। तो आप इससे थोड़ी पूरी सब्जी मांगे ना। मेरा काफी दिन से पूरी सब्जी खाने का मन कर रहा था। ठीक है सरला, मैं अभी मांगकर देखता हूं। ये अंगूठी हमें थोड़ी सी पूरी सब्जी दे दो। हरिया के कहते ही फिर से अंगूठी में एक चमक सी उठती है और हरिया के सामने पूरी सब्जी की प्लेट आ जाती है। उसको देखकर सरला और हरिया बहुत खुश हो जाते हैं। अरे वाह! कितने दिनों बाद आज पूरी सब्जी देखने को मिली है। चलो अब हम सब बैठकर इसे खाते हैं। ऐसे वह सभी उस दिन भर पेट भोजन करते हैं। अगले दिन सुबह। पापा, आज गांव में बहुत बड़ा मेला लगने वाला है। आज आप मुझे गुड़िया दिलाओगे ना। हां, मेरी प्यारी गुड़िया, इस बार मैं तुम्हें जरूर गुड़िया दिलाऊंगा। सरला, तुम मेरी प्यारी गुड़िया को तैयार कर दो और तुम भी तैयार हो जाओ। हम सब आज उस बड़े मेले में जाएंगे जहां जाने के लिए हम अक्सर सपना देखा करते थे। सभी तैयार हो जाते हैं। फिर हरिया अंगुठी से कुछ पैसे मांगता है और उसके हाथ में पैसे आ जाते हैं और फिर वह सब मेले की ओर निकल पड़ते हैं। उस गांव में हर साल एक बहुत बड़ा मेला लगता था जिसमें दूर दूर के गांव से व्यापारी आते थे। उस मेले में तरह तरह की चीज मिलती थी। पापा, वह देखो गुड़िया की दुकान, मुझे गुड़िया दिला दो ना। भैया, जरा यह वाली गुड़िया दिखाना। यह लो मेरी प्यारी गुड़िया, यह तुम्हारे लिए। पापा, यह तो बहुत ही सुंदर गुड़िया है भैया। कितना दम है इस गुड़िया का जी ₹50। यह लो भैया, इस गुड़िया के पैसे। सरला तुम भी अपने लिए कुछ पसंद कर लो। वहां देखो कितनी सुंदर साड़ी की दुकान है। चलो वहां से तुम्हारे लिए साड़ियां भी पसंद करते हैं। भैया, जरा वह वाली साड़ी दिखाना। अरे भैया, वह साड़ी बहुत महंगी है। तुम उसे नहीं खरीद पाओगे। कोई सस्ती सी साड़ी देख लो। भैया, हमें वही साड़ी देखनी है। आप वही साड़ी दिखाओ। सरला तुम्हें यह साड़ी कैसी लगी? यह साड़ी तो बहुत अच्छी है, पर महंगी भी बहुत होगी। सरला तुम इसकी चिंता मत करो। बस तुम यह बताओ तुम्हें यह साड़ी पसंद तो है ना? हां जी, साड़ी तो बहुत पसंद आई। भैया, इस साड़ी का क्या दाम है? यह 1500 रुपए की साड़ी है। ठीक है भैया, यह लीजिए 1500 रुपए। और यह साड़ी हमारे लिए पैक कर दीजिए। हरिया साड़ी को खरीद लेता है। हरिया ने उसे मेले में से और भी काफी सारे सामान खरीदे। इस मेले में रामचंद्र के दो नौकर मोहन और प्यारे भी आए हुए थे। रामचंद्र गांव का सबसे अमीर सेठ था और मोहन और प्यारे उसके नौकर। जब मोहन और प्यारे ने हरिया को बहुत सारा सामान खरीदते हुए देखा तो वे दोनों आश्चर्य में हो जाते हैं। मोहन यह देख, यह तो वही हरिया है ना जो अक्सर अपने गरीबी पर पूरे गांव घर में रोता रहता है। ये देख कैसे सामान खरीद रहा है। आखिर इसके पास इतने सारे पैसे कहां से आए? हां प्यारे, यह तो वही गरीब किसान हरिया है। अभी दो दिन पहले ही तो यह सेठ जी से काम मांगने आया था। पर सेठ जी ने इसे काम देने से मना कर दिया था। चल उसी से पूछ कर देखते हैं। दोनों हरिया के पास आते हैं। और भाई हरिया, कैसी चल रही है खरीदारी? लगता है बहुत सामान खरीदा है आज। हरिया जादुई अंगूठी की बात को छुपाते हुए कहता है। नहीं भाई। बस वह थोड़ा बहुत घर के लिए सामान है। बस और कुछ नहीं। अच्छा हरिया भाई, तुम तो दो दिन पहले तो सेठ जी से काम मांगने आए थे ना? लगता है तुम्हें कहीं पर काम मिल गया है। हां भैया, कहीं और काम मिल गया था तो बस उसी से बच्चों को मेला घुमाने ले आया। अच्छा हरिया भाई, तुम करो खरीदारी, हम चलते हैं। दोनों नौकर वहां से चले जाते हैं। हरिया का परिवार मेला घूमने के बाद घर आ जाता है। आज उनके परिवार के चेहरे पर अलग ही चमक की। सभी बहुत खुश थे। पापा आज तो मेरे पास बहुत सारे खिलौने हैं। अब मैं अपने दोस्तों को ये खिलौने दिखाउंगी। मेरे पास भी बहुत सारे खिलौने हो गए हैं। हां बेटा, क्यों नहीं? अब से तुम्हें जो भी चीज चाहिए, तुम अपने पापा से मांग लेना। वह तुम्हें मना नहीं करेंगे। इस तरह हरिया के दिन हंसी खुशी गुजर रहे थे। हरिया ने अंगूठी की मदद से अपने घर के हालातो को सुधार लिया और अंगूठी से कुछ पैसे मांग कर गांव में उसने एक कपड़े की दुकान खोली। दुकान खोलने के साथ ही हरिया की दुकान चल पड़ी। उसकी दुकान पर तरह तरह के कपड़े थे। एक से बढ़कर एक यह सब हरिया ने उस अंगूठी की मदद से हासिल किए थे। नए नए डिजाइन के कपड़े होने की वजह से हरिया की दुकान पर अक्सर ही लोगों की भीड़ रहा करती थी। अब यह बात धीरे धीरे पूरे गांव भर में फैल रही थी की हरिया जो कितना गरीब था।
वह अचानक से अमीर हो गया है और उसने गांव में एक बहुत बड़ी कपड़े की दुकान खोली है। अरे भाई मैंने सुना है की हरिया ने गांव में कोई दुकान खोली है। हां भाई मैंने भी सुना है हरिया ने बहुत बड़ी दुकान खोली है। अरे भाई मैं तो उसकी दुकान को देख कर भी आया हूं। हरिया ने वाकई में बहुत बड़ी दुकान खोली है और उसके पास नई नई प्रकार के कपड़े हैं। अच्छा आखिर यह कैसे हुआ? हरिया के पास दुकान खोलने के लिए इतने पैसे आए कहां से? भाई, इस बारे में तो मुझे नहीं पता। बस मुझे इतना ही पता है की उसमें गांव में एक बहुत बड़ी कपड़े की दुकान खोली है। हे भगवान काश मेरे पास भी इतने पैसे होते तो मैं भी अपना कोई छोटा सा कारोबार खोल लेता। अरे भाई पैसे नहीं है तो तुम अब हरिया से उधार ले लो। हरिया दिल का बहुत नेक इंसान है। वह तुम्हें जरूर उधार दे देगा। हां, तुम ठीक कहते हो। मैं हरिया से एक बार बात करके देखता हूं। यार कुछ पैसे तो मुझे भी चाहिए थे। मुझे भी अपना छोटा सा कारोबार शुरू करना है। क्यों ना हम कल हरिया से बात करके देखें। क्या पता हरिया ही हमारी कुछ मदद कर दें। वह लोग इतनी बातें कर ही रहे थे तभी उन्होंने देखा की हरिया वहीं से गुजर रहा था। रामू ने हरिया को आवाज लगाई। अरे हरिया भाई कहाँ जा रहे हो? कहीं नहीं भाई बस तुम्हारे पास ही आ रहा था। बहुत दिन हो गए थे तुमसे मिले। सोचा तुमसे भी मिलता आऊँ। हरिया भाई, मैंने सुना है की तुमने कपड़े की बहुत ही बड़ी दुकान खोली है। हाँ भाई बस इसी बारे में मैं तुम्हें बताने आया था। मैंने एक कपड़े की दुकान खोली है और अब उस दुकान से मेरी अच्छी कमाई हो रही है। पर तुमने दुकान कैसे खोली? तुम्हारे पास इतने पैसे कहाँ से आए? देखो भाई, यह बात मैं तुम्हें इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि तुम मेरे दोस्त हो और मुझे तुम लोगों पर बहुत विश्वास है। कुछ दिन पहले मेरे घर पर एक साधु आए थे। हरिया उन सबको जादुई अंगूठी के बारे में सारी बात बता देता है। जादुई अंगूठी सच में तुम्हारे पास जादुई अंगूठी है और तुमने उसी से वह दुकान खोली है? हाँ, मैंने उसी से वह दुकान खोली है और मैं यहां तुम्हारे पास इसलिए आया हूं कि तुम भी अगर अपना कोई कारोबार शुरू करना चाहते हो तो बेझिझक आकर तुम मुझसे पैसे ले सकते हो। मैं तुम्हें कारोबार खोलने के लिए पैसे दूंगा। अरे हरिया भाई, यह बात कह कर तो तुमने हमारा दिल ही जीत लिया। ठीक है हरिया भाई, हम किसी को नहीं बताएंगे। इस तरह हरिया ने गांव वालों की मदद की और सभी को कारोबार खोलने के लिए पैसे दिए। अब गांव के लोगों ने भी अपना अपना कारोबार खोला। अब यह बात धीरे धीरे गांव के अमीर सेठ रामचंद्र तक भी पहुंच जाती है। मोहन और प्यारे। यह मैं क्या सुन रहा हूं। हमारे गांव में रहने वाले गरीब हरिया ने गांव में बहुत बड़ी कपड़े की दुकान खोल ली है। यह तो वही हरिया है ना, जो कुछ दिन पहले मेरे पास काम मांगने आया था। तो फिर इसके पास अचानक से इतने सारे पैसे कहां से आए? हां सेठ जी, हम भी यही सोच कर हैरान हैं। थोड़े दिन पहले हमने उसे मेले में देखा था। बहुत सारे सामान खरीद रहा था जैसे उसके पास अचानक से बहुत सारे पैसे आ गए हो और अब सुनने में आ रहा है की गांव में उसने एक नई दुकान खोली है। हां सेठ जी मैंने तो देखा भी है बहुत ही सुंदर दुकान है। उसकी 1 से 1 डिजाइन के कपड़े हैं उसकी दुकान में। मोहन जरा पता तो कर। आखिर उस गरीब हरिया के पास इतने सारे पैसे कहां से आ रहे हैं? आखिर ऐसी कौन सी लॉटरी लगी है उसके हाथ में जो कुछ ही दिन में वह इतना मालामाल हो गया है।
रामचंद्र की कहे अनुसार उसके दोनों नौकर अब हरिया पर नजर रखने लगते हैं। हरिया कब जाता है, कब घर आता है, इन सब पर उन दोनों आदमियों की नजर थी। एक दिन जब हरिया रात के समय घर आता है, तब वो दोनों आदमी चुपके से उसके घर के पास खड़े हो जाते हैं। वह देखते हैं की हरिया अपने हाथ में से अंगूठी निकाल रहा है और अपनी पत्नी से कह रहा है सरला। अभी मैं इस अंगूठी को निकाल देता हूं। काफी रात हो गई है सुबह इसे पहन लूंगा। वैसे भी अब हमारे पास भगवान का दिया सब कुछ है। अब इस अंगूठी से हमें और कुछ नहीं चाहिए। मुझे लगता है अब इस अंगूठी को हमें संभाल कर रख देना चाहिए। क्योंकि अब मेरा कारोबार भी काफी अच्छा चल रहा है। तो अभी हमें इस अंगूठी की जरूरत नहीं है। मैं सोच रहा हूं कि इस अंगूठी को मुझे किसी जरूरतमंद को दे देना चाहिए जो मेरी ही तरह गरीब और ईमानदार हो। जो इस अंगूठी का सही इस्तेमाल करें। हां जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। यह अंगूठी हमें किसी ऐसे ही इंसान को देनी चाहिए। रामचंद्र के दोनों नौकर यह सारी बात रामचंद्र को बताते हैं। हां सेठ जी, उनके पास एक अंगूठी है। उसके बारे में वह लोग बातें कर रहे थे की उस अंगूठी ने उनकी किस्मत बदल दी। अच्छा तो यह बात है लेकिन एक अंगूठी की वजह से ऐसा कैसे हो सकता है? क्या वह कोई जादुई अंगूठी है? क्या उस अंगूठी ने हरिया को पैसे दिए हैं? जाओ, इसका पता लगाओ। अगले दिन फिर वह दोनों आदमी चुपके से हरिया के घर आते हैं और हरिया और उसकी पत्नी की बातचीत को सुनते हैं।
सुनिए, मुझे एक बहुत ही सुंदर गुलाबी रंग की साड़ी चाहिए। आप इस अंगूठी से मांग लीजिए ना। तुम्हारे पास इतनी सारी साड़ियां तो है, फिर तुम्हें गुलाबी रंग की साड़ी क्यों चाहिए? और दुकान में भी काफी सारी साड़ियां रखी है। जाकर दुकान में से पसंद कर लो। नहीं, मेरे पास एक भी गुलाबी रंग की साड़ी नहीं है और मुझे एक ऐसी साड़ी चाहिए जो अभी तक दुकान में भी नहीं है। आप इस अंगूठी से गुलाबी रंग की साड़ी मांग कर देखिए ना। हरिया अंगूठी से गुलाबी कलर की साड़ी मांगता है और गुलाबी कलर की साड़ी प्रकट हो जाती है। यह देखकर दोनों नौकर बहुत आश्चर्य में हो जाते हैं और यह बातें जाकर वह दोनों रामचंद्र सेठ को बताते हैं।
अच्छा तो उस हरिया ने अंगूठी के सामने साड़ी बोला और अंगूठी से साड़ी निकल आई। अब तो पक्का हो गया है वह कोई जादुई अंगूठी है। तुमने कहा था की रात के समय वह हरिया अंगूठी को अपने उंगली में से निकाल देता है। हाँ सेठ जी, वह अंगूठी को निकाल कर अपने टेबल पर रख देता है। तो ठीक है, उस अंगूठी को हासिल करने का सबसे सही वक्त रात का है। मैं रात को ही उस हरिया के घर जाऊंगा। ऐसा सोच कर रामचंद्र रात के समय चुपके से हरिया के घर पहुंच जाता है। रात के समय वह अंगूठी का तेज बहुत ज्यादा था। वह अलग ही चमक रही थी। अरे वाह! इस अंगूठी की चमक तो देखो कितनी जगमगा रही है। आखिरकार यही है वह जादुई अंगूठी जिससे यह हरिया अमीर हुआ है। अब मैं अंगूठी को अपने घर ले जाऊंगा और इस अंगूठी की मदद से गांव का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा। यह सोच कर रामचंद्र उस अंगूठी को वहां से लेकर घर आ जाता है और उस अंगूठी को हाथ में पहन कर अंगूठी से बहुत सारे सोने के सिक्के मांगता है। हे अंगूठी मुझे बहुत सारे सोने के सिक्के दे दो। इतने सोने के सिक्के की मैं रातों रात अमीर बन जाऊं। जैसे ही रामचंद्र ऐसा कहता है, उसकी उंगली पर लाल निशान पड़ जाते हैं और उसे काफी जलन होने लगती है। रामचंद्र दर्द से कराहते हुए उसे अंगूठी को फेंक देता है और अस्पताल की ओर भागता है। रामचंद्र अस्पताल पहुंचता है और डॉक्टर को अपना हाथ दिखाता है। यह कैसे हुआ? इतनी ज्यादा चोट तुम्हें कैसे आई? तुम्हारा हाथ तो पूरी तरह से घायल है। मैं अभी इसकी पट्टी कर देता हूं। डॉक्टर रामचंद्र के हाथों की पट्टी कर देता है और उससे कहता है। देखो, मैंने तुम्हारी पट्टी तो कर दी है, पर तुम्हारे हाथों के जख्म बहुत गहरे हैं। इसे ठीक होने में कम से कम दो महीने का समय लग जाएगा और दो महीने तक तुम्हें अपने हाथों का ध्यान रखना होगा। यह सुनकर रामचंद्र बहुत दुखी होता है। यह सब उस अंगूठी के वजह से हुआ है। ना मैं उस अंगूठी को चुराता और ना ही मेरे हाथ का यह हाल होता। इतनी जलन हो रही है मेरे हाथ में क्या बताऊं? अगर मैं ज्यादा पैसे का लालच ना करके उस अंगूठी को ना लिया होता तो आज मेरे हाथों की ऐसी हालत नहीं होती। रामचंद्र उस अंगूठी को हरिया को वापस करने जाता है। यह लो हरिया अपनी अंगूठी कुछ वक्त के लिए मेरे मन में इस अंगूठी के प्रति लालच आ गया था। पर इस अंगूठी ने मुझे अच्छा सबक सिखाया है। अब यह अपनी अंगूठी तुम अपने पास रखो। मुझे इसकी जरूरत नहीं है। अब अंगूठी हरिया के पास वापस आ चुकी थी। सरला अब वक्त आ गया है कि इस अंगूठी को किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में दिया जाए जिसको इसकी बहुत जरूरत है। हमें जल्द ही ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी होगी। जी हां, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। अब इस अंगूठी को किसी गरीब को देने का सही वक्त आ गया है। वह लोग यह बातें कर ही रहे थे की तभी उनके घर पर एक गरीब बूढ़ा व्यक्ति आता है। कोई तो कुछ खाने को दे दो, भगवान तुम्हारा भला करेगा। सरला बूढ़े व्यक्ति के लिए खाना लाती है। बूढ़ा व्यक्ति खाना खाता है। खाना खाने के बाद हरिया उस बूढ़े व्यक्ति को वह जादुई अंगूठी दे देता है और उस जादुई अंगूठी की सारी शक्तियों के बारे में भी बता देता है। बूढ़ा आदमी बहुत खुश होकर वहां से चला जाता है। थोड़ी दूर जाकर वह बूढ़ा आदमी वापस अपने संत के रूप में आ जाता है। वह बूढ़ा आदमी और कोई नहीं बल्कि वही संत था, जिसने हरिया को वह जादुई अंगूठी दी थी और वह अब अपनी अंगूठी वापस लेने आया था। हरिया का जीवन अब सुधर चुका था। हरिया ने उस अंगूठी की मदद से अपने जीवन को ही नहीं सुधारा बल्कि गांव के लोगों के जीवन को भी बेहतर बनाया।
https://youtu.be/sXZtm8NBoZQ?si=xqhRYcBE3cZbaogR
बहुत पुराने जमाने की बात है। एक गाँव में एक मोहन नाम का लड़का रहता था। उसके पांच मित्र थे रवि, शशि, कमल, सूरज और भगवंत। वैसे तो वो पांचों ही उसके बहुत अच्छे मित्र थे लेकिन पिछले कुछ समय से उसके मन में एक शंका चल रही थी। जिसके हल के लिए वो एक संत के पास पहुंचा। आपके चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव। खुश रहो बालक। बताओ कैसे आना हुआ? मैं जानता हूं यह अजीब बात है। मेरे पांच मित्र हैं। उन पांचों में मेरा सच्चा मित्र कौन है, यह मुझे जानना है। नहीं, यह बिल्कुल अजीब नहीं है। इस उम्र में यह विचार आना बिल्कुल स्वाभाविक है। चलो मैं तुम्हें कुछ बिंदु बताता हूँ जिससे तुम पता लगा सकते हो कि तुम्हारा सच्चा मित्र कौन है। वह संत मोहन को पांच बिंदु बताते हैं, जिससे वह अपने सच्चे मित्र का पता लगा सकता है। मोहन वापस आ जाता है और अपना काम शुरू करता है।
उसने एक लड़के को बुलाया और उससे कहा कि वह उसके दोस्तों के बीच एक झूठ फैलाए। लड़के ने जाकर उन सब से कहा कि मोहन अपने पिता के पैसे चुराता है। रवि के सिवा सभी मित्र शशि, कमल, सूरज और भगवंत मोहन के पास आ गए और उससे पूछने लगे। मोहन, क्या यह सच है कि तुम अपने पापा के पैसे चुराते हो? बुरा मत मानना। लेकिन एक लड़के ने हम सब से ऐसा कहा है। हम तुम्हारे बारे में गलत नहीं सोचना चाहते। इसलिए सीधे तुमसे पूछने चले आए। हां मोहन बताओ ये झूठ है ना? हां, ऐसा कुछ नहीं है। ये जिसने भी कहा है, सरासर झूठ है। मोहन ने देखा कि रवि नहीं आया है। उसने सोचा कि रवि ने बिना पूछे ही उसके खिलाफ कही गई बात को मान लिया। उसे लगा कि शायद रवि उसका सच्चा मित्र नहीं है, लेकिन उसे अभी अपने दोस्तों की और परीक्षा लेनी थी।
एक दिन वो अपने पांचों दोस्तों के साथ नदी के पास खेलने गया। उसे तैरना आता था लेकिन वो उनकी परीक्षा लेने के लिए अचानक नदी में गिरकर डूबने का नाटक करने लगा। चलो आज पता चलता है कि कौन मेरा सच्चा मित्र है। बचाओ बचाओ। अरे मोहन तो डूब रहा है, जल्दी हमें उसे बचाना होगा। हाँ, चलो नदी में कूदो। रवि, कमल, सूरज और भगवंत सभी नदी में कूद पड़े और मोहन को बचाने की कोशिश करने लगे। लेकिन शशि ने नदी में कूदने की कोई कोशिश नहीं की। शशि क्यों नहीं आ रहा? क्या उसे मेरी परवाह नहीं है? मोहन को शशि का यह रवैया बहुत बुरा लगा। उसने सोचा कि शायद शशि उसकी परवाह नहीं करता और उसे सच्चे मित्र की तरह नहीं मानता। कल रवि और आज शशि। हद हो गई। जिन्हें मैंने अपना सबसे अच्छा मित्र समझा, वही मेरे सच्चे मित्र नहीं है।
फिलहाल असली दोस्तों की पहचान करने के लिए अगला पड़ाव था उनसे 500 सिक्के उधार माँगना। रवि मुझे 500 सिक्के उधार चाहिए। क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो? बिल्कुल मोहन, तुम्हें जितनी भी जरूरत हो ले लो। रवि ने बिना किसी सवाल के 500 सिक्के मोहन को दे दिए। मोहन ने रवि का धन्यवाद किया और आगे बढ़ गया। शशि, मुझे 500 सिक्के उधार चाहिए। मैं तुम्हें अगले महीने लौटा दूंगा। बिल्कुल मित्र, ये लो। शशि ने भी तुरंत 500 सिक्के दे दिए। सूरज मुझे 500 सिक्के चाहिए। क्या तुम उधार दे सकते हो? हां, क्यों नहीं। इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है? सूरज ने भी बिना किसी हिचकिचाहट के 500 सिक्के दे दिए। भगवंत यार, 500 सिक्के होंगे क्या तेरे पास? हाँ हाँ है। यह लो भगवंत ने भी तुरंत 500 सिक्के दे दिए। अब अंत में मोहन कमल के पास पहुँचा। कमल मुझे 500 सिक्के चाहिए। क्या तुम उधार दे सकते हो? मैं 500 तो नहीं 50 है। यह रख लो, पर मुझे बहुत जरूरत है। लेकिन यार मेरे पास बस 50 ही हैं। मोहन को कमल की यह कंजूसी बहुत बुरी लगी। उसने सोचा कि कमल शायद सच्चा मित्र नहीं है, क्योंकि उसने जरूरत के वक्त पूरी मदद नहीं की।
अब सच्चे मित्र की अगली परीक्षा के लिए उसने एक लड़के से कहा कि वह उसके दोस्तों तक उसकी झूठी दुर्घटना की खबर पहुँचाए। लड़के ने ऐसा ही किया। मोहन क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? हमने सुना कि तुम सीढ़ियों से गिर पड़े। कैसे हो तुम? तुम्हें कुछ ज्यादा चोट तो नहीं आई? भगवान करे, तुम जल्दी ठीक हो जाओ यार। सूरज कहाँ है? क्या उसे मेरी हालत के बारे में नहीं पता चला? पता नहीं मोहन हम भी सूरज को ढूंढ रहे थे लेकिन वो कहीं नहीं मिला। मोहन को यह बहुत बुरा लगा कि सूरज उसकी इतनी गंभीर स्थिति में भी मिलने नहीं आया। वो बहुत परेशान था कि उसका हर एक मित्र एक परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो रहा है।
आखिरकार कुछ दिन बाद मोहन ने संत द्वारा बताए पांचवें और अंतिम बिंदु पर काम किया। रवि मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ यार। पर यह किसी को बताना मत। मोहन, तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। शशि मैंने एक दुकान से कुछ सामान चुरा लिया। यार मुझे बहुत बुरा लग रहा है, पर यह किसी को बताना मत। अब तुम निश्चिंत रहो। मोहन मैं इसे किसी से नहीं कहूँगा। कमल ये बात किसी को बताना मत। पर पता है मैं ना रात को सोते हुए बिस्तर गीला कर देता हूँ। मुझे यह बीमारी है। मोहन तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। पर इसका इलाज करवाओ। एक राज़ की बात बताऊँ। मेरा असली नाम ना मंगल है। पर यह सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच ही रहनी चाहिए। तुम निश्चिंत रहो मोहन। मैं किसी को नहीं बताऊँगा। मेरा मतलब मंगल। भगवंत, मैं तुम्हें अपना एक राज़ बताता हूँ। किसी से कहना मत। दरअसल मेरी माँ सौतेली है। अरे मोहन, ऐसा कैसे हो सकता है? तुमने आज से पहले तो ऐसा कुछ नहीं बताया। पर चलो, तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। कुछ दिन बाद मोहन जब रास्ते से जा रहा था तो उसे एक लड़का मिला और वो बोला। क्या बात? मोहन सुना है तुम्हारी माँ सौतेली हैं। मोहन को बहुत बुरा लगा और उसे समझ आ गया कि भगवंत ने उसका राज़ खोल दिया।
संत के बताए पांच बिंदु पूरे हो चुके थे पर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि उसका सच्चा मित्र कौन है। इसलिए वो संत के पास पहुंचा और उन्हें पूरी बात बताई। आपके चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम। मैंने आपके बताए पांच बिंदुओं का पालन किया और अपने दोस्तों की परीक्षा ली। लेकिन हर एक परीक्षा में एक मित्र अनुत्तीर्ण हुआ। अब मैं कैसे पता लगाएं कि मेरा सच्चा मित्र कौन है? कुछ समझ में नहीं आ रहा। संत कुछ बोल पाते उससे पहले ही मोहन के सभी मित्र वहाँ आ पहुँचे। हम बताते हैं कि सच्चा मित्र कौन है। अरे तुम सब यहाँ कैसे? हमें लग ही रहा था कि कुछ गड़बड़ है। इसीलिए हमने तुम्हारा पीछा किया। अब हम तुम्हारे मन की सारी शंकाएं दूर कर देंगे। अब वो लोग बताना शुरू करते हैं। मोहन जब उस लड़के ने बताया कि तुम अपने पिताजी के पैसे चुराते हो तो मैंने तुमसे आकर इसलिए नहीं पूछा क्योंकि मुझे यकीन था कि तुम ऐसा कर ही नहीं सकते तो पूछकर तुम पर शक क्यों करूँ? मोहन यह सुनकर शर्मिंदा हो गया।
अब शशि ने मोहन से कहा। मोहन, मैं तुम्हें बचाने के लिए नदी में नहीं कूद पाया, क्योंकि मुझे तैरना ही नहीं आता। अगर मैं कूदता तो हम दोनों ही डूब जाते यार! अब मुझे माफ कर दो। शशि मुझे यह बात नहीं पता थी। मुझे माफ कर दो शशि। मुझे यह बात नहीं पता थी। मैंने बिना सोचे समझे तुम्हें गलत समझ लिया यार।
इसके बाद कमल ने मोहन को अपनी स्थिति समझाई। मोहन मैं तुम्हें 500 सिक्के नहीं दे सका, क्योंकि मेरे पास सिर्फ 50 ही थे। यह सब अमीर हैं, पर मैं गरीब हूं यार। इन्होंने अपनी संपत्ति का एक छोटा हिस्सा दिया। लेकिन मैंने तो अपनी पूरी पूंजी दे दी। मुझे माफ कर दो कमल। कमल यह बात तो मुझे पता होनी चाहिए थी। तभी सूरज बोला, मोहन, जब तुमने झूठी दुर्घटना वाली परीक्षा ली थी, उसी समय मैं एक सच्ची दुर्घटना का शिकार हुआ था। एक सांड ने मेरे पेट में सींग मार दिया था। मैं कुछ दिन उठ नहीं पाया और इलाज के लिए मेरे माता पिता मुझे दूसरे गांव ले गए थे। हे भगवान, तुमने मुझे बाद में बताया क्यों नहीं? कोई बात नहीं मोहन मैंने बस सोचा कि क्यों अपना दुख बता बताकर तुम्हारा दुख बढ़ाओ। मोहन ने सूरज से माफी मांगी और तभी भगवंत एक लड़के को सामने लाया। मोहन यह वही लड़का है जिसने तुम्हारा राज सुना था। मोहन मुझे माफ कर दो यार। मैंने भगवंत और तुम्हारी बातें गलती से सुन ली थी। भगवंत ने मुझे कुछ नहीं बताया था। अपने हिस्से की सच्चाई बता कर। मोहन के सभी मित्र अपनी नाराजगी जाहिर करने लगे। मोहन, क्या तुम्हें हम पर भरोसा नहीं था? तुमने हमारी मित्रता पर शक क्यों किया? क्या तुमने कभी सोचा कि हमारे पास भी अपनी अपनी समस्याएं हो सकती हैं? मैंने तैरना नहीं सीखा तो क्या मैं मित्रता के लायक नहीं हूं? मैंने अपनी पूरी पूंजी तुम्हें दे दी। फिर भी तुम्हें मेरी नीयत पर शक हुआ। मैं घायल था और दूसरे गांव में था। फिर भी तुमने मेरे बारे में गलत सोचा। तुम कुछ सकारात्मक भी सोच सकते थे। तुमने मेरे ऊपर भी शक किया। कम से कम पूछ तो लेते कि क्या मैंने वो बात बताई है किसी को? अब हम तुमसे पूछते हैं मोहन, क्या तुम हमारे सच्चे मित्र हो? मोहन कुछ नहीं बोल पाया। उसकी आँखों में शर्मिंदगी और पछतावे के आँसू थे। देखो मोहन, ये सभी तुम्हारे सच्चे मित्र हैं। कोई भी इंसान उत्तम नहीं होता। तुम भी नहीं हो। इंसान के जीवन में मुश्किलें आती रहती हैं जिनकी वजह से वो हर समय, हर कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता। सच्ची मित्रता का मतलब सिर्फ कसौटियों पर खरा उतरना नहीं होता, बल्कि एक दूसरे को समझना और साथ देना होता है। आज यह सब अपनी परिस्थितियां तुम्हें समझाने आए हैं। यही निशानी है कि यह तुम्हारे सच्चे मित्र हैं और तुम्हारी शर्मिंदगी इस बात का सबूत है कि तुम इनके सच्चे मित्र हो। मोहन ने अपनी गलती का एहसास करते हुए अपने दोस्तों से माफी मांगी। मुझे माफ कर दो दोस्तों। मैंने तुम सब की सच्ची मित्रता पर शक किया और तुम्हें गलत समझा। मैं बहुत शर्मिंदा हूं यार। कोई बात नहीं मोहन, हम सब गलतियां करते हैं। सच्ची मित्रता में समझ और माफी दोनों होनी चाहिए। साधु महाराज की बात बिल्कुल सही है। कोई भी व्यक्ति उत्तम श्रेणी का नहीं होता। सब से कभी ना कभी गलती हो जाया करती है या फिर परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि इंसान साथ नहीं दे पाता। हमें एक दूसरे को माफ कर देना चाहिए। हम तुम्हें माफ करते हैं मोहन। और तुम हमें माफ कर दो। मित्रता का मतलब ही एक दूसरे पर विश्वास करना है। हमारी मित्रता पहले से भी मजबूत हो गई है। अब सब कुछ भूल जाओ। जो हो गया सो हो गया। मोहन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सच्ची मित्रता का मतलब समझा। सभी मित्र हँसते हुए एक दूसरे के साथ समय बिताने लगे। उनकी मित्रता अब पहले से भी ज्यादा मजबूत और गहरी हो गई थी।
सुंदरवन नाम के एक जंगल में अनेक प्रकार के सुंदर पक्षियों का झुंड रहता था। वहां के पक्षियों का जीवन वन के हरे भरे पेड़ों पर बड़े अच्छे से गुजर रहा था। पक्षियों के अलावा वहां बंदरों का भी एक झुंड रहता था। सुंदर सुंदर पक्षियों की आवाज और बंदरों की कलाबाजियों से वन की सुंदरता और भी बढ़ जाती थी। वन के पक्षियों में छोटी नाम की एक सुंदर सी चिड़िया अपनी मां के साथ रहती थी। एक रात जब सभी जंगल के जानवर गहरी नींद में थे। जब सुबह हुई तब सभी ने देखा की जंगल के लगभग आधे पेड़ कोई काट चुका है। सभी जानवरों को मालूम हो गया था कि हो न हो यह काम जंगल के पास रहने आए इंसानों का ही था। कटे हुए पेड़ों के नीचे दबकर बहुत सारे छोटे बड़े जानवर मारे जा चुके थे। जिसमें छोटी चिड़िया की मां भी थी। छोटी चिड़िया वही अपनी मां के मृत शरीर के पास बैठकर रो रही थी। तुम मुझे छोड़कर कहां चली गई मां? अब मैं इस जंगल में अकेले कैसे रह पाऊंगी? इसी तरह सभी पक्षी और बंदर उस इलाके को छोड़ कर जंगल के बचे हुए इलाके में रहने लगे। अब छोटी चिड़िया बिना मां के उदास रहने लगी। जंगल के बचे हुए पेड़ अब इतने सारे पक्षियों और बंदरों के रहने के लिए पर्याप्त नहीं थे। कम पेड़ होने के कारण जंगल में फलों की मात्रा भी बहुत कम हो गई थी। जिसके कारण पक्षियों और बंदरों में झगड़ा शुरू हो गया था।
अब वन की शांति और सुंदरता पूरी तरह से खत्म हो गई थी। कभी बंदरों का झुंड पक्षियों के घोसले पर हमला कर देता तो कभी पक्षी बंदरों को अपनी चोंच से काटने लगते। यह लड़ाई खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बंदरों के डर के कारण छोटी चिड़िया उस इलाके से थोड़ी दूर एक पत्थर पर जाकर बैठ गई और रोती हुई बोली, पहले ही मैंने अपनी मां को खो दिया। उसके बाद जंगल के जानवरों ने अपना भाईचारा खो दिया। यह सब हुआ उन इंसानों के कारण कितने मतलबी होते हैं इंसान। छोटी चिड़िया वहीं बैठी बैठी शोक मना रही थी कि तभी वहां पर एक बंदर का बच्चा पहुंच गया। जिसको देखकर छोटी चिड़िया घबरा गई। बंदर भैया, मुझे छोड़ दीजिए। मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं बचा। डरो मत चिड़िया दीदी, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है। तुमने अपनी मां को इंसानों के कारण खो दिया। दरअसल, मेरी मां भी उस हादसे में मारी गई और मैं भी तुम्हारी तरह अनाथ हो गया हूं। और इसी तरह दोनों अपना दुख बांटने लगे। दोनों चाहते थे की जल्द से जल्द बंदरों और पक्षियों के बीच का झगड़ा खत्म हो जाए। की तभी छोटी चिड़िया को अपनी मां की एक बात याद आई।
जिसको छोटी चिड़िया ने बंदर को बताया। बंदर भैया मेरी मां ने मुझे एक बार बताया था उन्हें एक पेड़ ने खुश होकर एक जादुई आम की गुठली दी थी। अगर वह हमें मिल जाए तो हम इस जंगल की शांति फिर से ला सकते हैं। पर वह जादुई आम की गुठली अब हमें मिलेगी कहां? मां ने उसका इस्तेमाल सही समय में करने को कहा था और यह कहकर मां ने उसे यहां से थोड़ी दूर एक बड़े पत्थर के नीचे गाड़ दिया था। दोनों जादुई गुठली की तलाश में उस बड़े पत्थर तक पहुंचे। हम यहां तक पहुंच तो गए लेकिन यहां की खुदाई करने में हम दोनों ही सक्षम नहीं हैं। अब हम क्या करेंगे? तभी वहां से एक हाथी गुजर रहा था। बंदर ने हाथी को देखकर कहा। ओह हाथी काका! कहां जा रहे हो? मानवों ने इस जंगल के बहुत से पेड़ काट दिए हैं और बहुत सारी पेड़ की डालियां वहां पर जमा हो गई है। बस उन्हीं को खाने जा रहा हूं। हाथी काका वहां के जानवर आपको जंगल में घुसने नहीं देंगे लेकिन वहां के जानवर नुकीले दांत वाले जानवरों से बहुत डरते हैं। क्यों ना आप अपने दांत यहां की मिट्टी में घिसकर और नुकीले कर लें, जिसके बाद आपको कोई परेशान नहीं करेगा।
बंदर की बातों में आकर हाथी अपने दांत मिट्टी में घिसने लगा और देखते ही देखते वहां पर एक गहरा गड्ढा हो गया। जिसके बाद हाथी अपनी पूंछ हिलाते हुए वहां से निकल गया। बंदर की होशियारी के कारण अब वहां उन्हें ज्यादा खुदाई करने की जरूरत नहीं पड़ी और उन्हें जल्द ही गड्ढे से एक बक्सा मिला, जिसमें उन्हें आम की गुठली सुरक्षित मिली। जैसे ही दोनों गुठली को उपजाऊ मिट्टी में बोते हैं वैसे ही वहां पर एक जादू का बड़ा सा आम का वृक्ष उग जाता है जिसपर बहुत सारे आम लदे होते हैं। दोनों यह देखकर बहुत खुश हो गए और छोटी चिड़िया यह सब देखकर बोली। वाह यह तो कमाल हो गया। इन फलों से जंगल के कुछ जानवरों की भूख तो मिटेगी। तभी बंदर के दिमाग में एक ख्याल आया। चिड़िया दीदी, अगर यह पेड़ जादुई आम की गुठली से उग आए तो हो ना हो इसके आम की गुठली भी जादुई होगी। और इसके बाद दोनों पेड़ के फलों में से गुठली निकाल कर बो देते हैं। जिसके बाद वहां एक और जादुई पेड़ उग जाता है। इसी तरह दोनों वहां पर एक घना वन बना देते हैं। जिसके बाद जंगल के सभी जानवर छोटी चिड़िया और बंदर की तारीफ करने लगते हैं और खुशी खुशी रहने लगते हैं।
विक्रम एक बहुत ही साफ दिल इंसान था। वो गरीब होने के बावजूद भी सबकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। विक्रम का एक दोस्त था गुल्लू, गुल्लू एक बहुत ही चालाक, मतलबी और लालची इंसान था।विक्रम एक दिन जंगल में लकड़िया काटने के लिए जा रहा था, तभी उसे रास्ते में गुल्लू मिलता है। विक्रम कहा जा रहे हो? वही रोज़ की तरह लकड़ियाँ काटने जा रहा था, और तू बता, तू कहां जा रहा है? मैं तो आराम करने जा रहा हूँ। पिता जी इतना धन छोड़ के गए, वो सब मेरा ही तो है. चल तू जा। विक्रम चलते चलते जंगल पहुँचता है, और लकड़ियाँ काटना शुरू कर देता है। वो लकड़ियाँ काट ही रहा होता है कि उसकी कुल्हाड़ी छूट कर तालाब में गिर जाती है। ये देखकर विक्रम बोलता है अरे यार ये क्या हो गया? अब मैं लकड़ियाँ कैसे काटूँगा? दूसरी कुल्हाड़ी खरीदने के लिए मेरे पास पैसे भी नहीं है। अब क्या करूंगा मैं? अब तो इस तालाब के अंदर जाकर ही कुल्हाड़ी मिलेगी।
विक्रम तालाब के अंदर कूद जाता है और तैरते तैरते एक अलग ही जादुई दुनिया में पहुंच जाता है। अरे वाह, मुझे तो पता ही नहीं था कि ये तालाब इतना बड़ा और इतना सुंदर है। अगर पता होता, तो यहां ज़रूर घूमने आता। वाह वाह क्या हरियाली है? मैं तो भूल ही गया, मैं अपनी कुल्हाड़ी ढूंढ़ने आया था। चलो अब अपनी कुल्हाड़ी ढूंढूँ, वरना आज खाने का इंतज़ाम भी नहीं हो पाएगा। विक्रम चलते चलते अपनी कुल्हाड़ी इधर उधर ढूंढने लगता है तभी उसे एक बूढ़ा आदमी दिखाई देता है। वह उस आदमी से पास जाता है बाबा आपने मेरी कुल्हाड़ी देखी क्या मैं लकड़ी काट रहा था और मेरे हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर तालाब में गिर गई।बेटा मुझे कुल्हाड़ी का तो पता नहीं पर मेरी एक मदद कर दो मुझे बहुत भूख लगी है तो मैं इस पेड़ से थोड़े फ़ल मेरे लिए तोड़ दो। बाबा परेशान मत हो, मैं आपके लिए फ़ल तोड़ देता हूं। विक्रम पत्थर मारकर फ़ल तोड़ता है और उस आदमी को दे देता है। धन्यवाद बेटा, धन्यवाद तुम्हे तुम्हारी कुल्हाड़ी मिल जाएगी। ठीक है बाबा, मैं आगे जाकर देखता हूं।
विक्रम आगे चलने लगता है, चलते चलते उसे एक बकरी के बच्चे की मम्यानी की आवाज़ आती है। आवाज़ सुनकर विक्रम रुक जाता है और देखता है कि बकरी का बच्चा गड्ढे में घिरा हुआ है और उसकी मां इधर उधर मदद मांग रही है। यह देखकर विक्रम गड्ढे से बच्चे को निकालता है तभी उस बच्चे की मां बोलती है आपने मेरे बच्चे को बाहर निकाला है। अरे ये तो मनुष्य का कर्तव्य है कि वो सबकी मदद करें। चलो अब मैं आगे जा रहा हूँ, तुम अपने बच्चे का ध्यान रखना। विक्रम चलते चलते सोचने लगता है। अगर कुल्हाड़ी नहीं मिली तो मैं क्या करूंगा? कैसे कमाऊंगा? क्या होगा मेरा? तभी वहाँ एक फरिश्ता आता है, और बोलता है, क्या हुआ? क्या हुआ तुम परेशान क्यूँ हूँ? मेरी कुल्हाड़ी नहीं मिल रही है, मैं इतनी देर से अपनी कुल्हाड़ी ढूंढ रहा हूं लेकिन आप है कौन। मैं एक फरिश्ता हूं फरिश्ता एक सोने की कुल्हाड़ी निकालता है और पूछता है यह है क्या तुम्हारी कुल्हाड़ी। नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की है। विक्रम, मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूं। तुमने पहले उस भूखे और बूढ़े आदमी की मदद की, और फिर उस बच्चे को भी निकाला।मैं अब बहुत खुश हूं। बताओ तुम्हें क्या चाहिए? आप मुझे मेरी कुल्हाड़ी दे दीजिए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
फरिश्ता खुश होकर विक्रम को उसकी कुल्हाड़ी के साथ साथ कपड़े और मोतियों की माला और एक सोने की कुल्हाड़ी भी दी और उसे तालाब के बाहर भेज दिया। विक्रम बहुत खुश हुआ और अपने घर जाने लगा।तभी उसे रास्ते में गुल्लू मिला। अरे विक्रम, तू तो किसी राजा की तरह लग रहा है, ये सब कहाँ मिला तुझे? विक्रम गुल्लू को सारी बात बताता है और विक्रम की बातों को सुनकर गुल्लू बोलता है। क्या सच में तुझे यह सब चीज़ें उस तालाब में रहने वाले फरिश्ते ने दी? हां गुल्लू हां चल, अब मैं घर जा रहा हूं, मुझे काम भी करना है। विक्रम, ये कहकर वहां से चला जाता है, और गुल्लू उस तालाब की ओर एक कुल्हाड़ी लेकर जाता है, और जानबूझ के तालाब में कुल्हाड़ी फ़ेंक देता है, और तालाब में कूद जाता है, और थोड़ी देर बाद उस जादुई दुनिया में पहुंच जाता है और चलने लगता है।
थोड़ी देर बाद उसे वो बूढ़ा व्यक्ति मिलता है। अरे बाबा, वो फरिश्ता मुझे कहाँ मिलेगा? बेटा, तुम मुझे पहले कुछ खिला दो, बहुत भूख लगी है। तुम इस पेड़ से मेरे लिए कुछ फ़ल तोड़ दो। अरे अरे रास्ता बताना है तो बताओ, मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं फ़ल तोड़ने में अपना समय बर्बाद करूं? रहने दो, मैं खुद ही चला जाऊंगा. गुल्लू चलने लगता है और थोड़ी दूर चलने के बाद उसे वो बकरी और बकरी का बच्चा मिला, लेकिन गुल्लू उसकी भी मदद नहीं करता और आगे बढ़ जाता है। गुल्लू चलते चलते बहुत थक जाता है और थक कर एक जगह बैठ जाता है और बोलता है अरे फरिश्ता मिल क्यों नहीं रहा है। इतनी देर हो गई है तभी वहां फरिश्ता आता है और बोलता है अरे, तुम इतने परेशान क्यों हो? वह मेरी कुल्हाड़ी खो गई है। इतनी देर से ढूंढ रहा हूं, मिल ही नहीं रही। क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है? हाँ, ये तो मेरी कुल्हाड़ी है। तुम बहुत निर्दयी झूठे और लालची इंसान हो। तुमने जान बूझकर उस तालाब में कुल्हाड़ी फेंकी थी। तुम्हारा मन काला है। मैं तुम्हें तुम्हारे मन की तरह काला बना देता हूं। फरिश्ते ने अपनी शक्तियों से, गुल्लू का सारा शरीर काला कर दिया, और उसे तालाब के बाहर भेज दिया।
एक नगर में दो भाई राजू और दीपू नगर के एक गैराज में मैकेनिक का काम करते थे। दोनों बहुत मेहनती थे। एक दिन गैराज में काम करते हुए। भाई, मैं सोच रहा था अगर हम ऐसे ही काम करते रहे तो एक दिन अपना एक गैराज खोल लेंगे और फिर जल्दी ही दूसरा और फिर तीसरा और जल्दी ही हर शहर में अपना एक गैराज होगा। यह कहने के बाद दोनों राजू और दीपू अपना काम बंद करके मुस्कुराते हुए ऊपर की ओर देखते हुए अपने खयालों में खो जाते हैं। सपने में राजू और दीपू अपने नए गैराज के उदघाटन के रिबन काट रहे हैं। तभी पीछे से उसकी पीठ पर कोई धक्का देता है और दोनों घबराकर सपने से बाहर आते हैं। राजू के बगल में उसकी गैराज का मालिक ग्रे शर्ट, काले पैंट, सिमटे हुए बाल और आंखों पर चश्मा। तुम दोनों से एक काम सही से नहीं होता। कल एक गाड़ी तुम लोगों ने बना कर दी थी। ग्राहक का फोन आया था उनकी गाड़ी से धुआं निकल रहा है और रास्ते में बंद हो गई है। यह एक महीने में तुम्हारी आठवीं शिकायत है। मैं तुम दोनों को अभी काम से निकालता हूं। निकल जाओ मेरे गैराज से। मालिक पर यह भी तो हो सकता है उसकी गाड़ी खराब हो। हमने तो ठीक से ही काम किया था।
खराब गाड़ियों को ठीक करना ही हमारा काम है। निकल जाओ यहां से और मालिक दोनों को धक्के मार कर बाहर निकाल देता है। राजू और दीपू अपने छोटे से कमरे की बिस्तर पर हैं। सामने की दीवार पर विष्णु भगवान की तस्वीर टंगी है। दीपू राजू से भाई हम हर जगह मन लगा कर काम करते हैं। फिर भी हमें हर जगह से निकाल दिया जाता है। किसी को हमारी कद्र ही नहीं। हां भाई, यहां किसी को हमारी कद्र नहीं है। चल किसी दूसरी जगह जाते हैं। वहां शायद हमारी कीमत हो। भाई पर हम वहां करेंगे क्या? याद है मां कहती थी कि भगवान का नाम लेने से सब मिल जाता है। हाँ चल सामान बाँध। अब हम यही करेंगे। भगवान का नाम लेंगे और पैसे कमाएंगे। वो कैसे? अरे हम बाबा बन के लोगों को ज्ञान देंगे और उनसे पैसे लेंगे। वो तो ठीक है पर हम लोगों को क्या ज्ञान देंगे? अरे वही जो माँ हमें देती थी। तू ज्यादा सवाल मत कर। सामान बाँध हम राजा सूर्यदेव के चम्पक नगर जा रहे हैं। चम्पक नगर में राजू और दीपू। गेरुए धोती और गेरुआ शॉल में। कंधे तक बाल गले में रुद्राक्ष की माला पैरों में खड़ाऊ कंधे पर लटकी मटमैली गठरी कलाइयों में बंधी रुद्राक्ष की माला एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे के सामने।
यह राजा सूर्यदेव का चम्पक नगर है। हम यहीं से शुरू करेंगे। दीपू सुन, आज से तेरा नाम दीपू नहीं दीपेश्वर है समझा और मैं एक सिद्ध योगी हु। मैं यहाँ बैठता हूँ और ध्यान करता हूँ। तू नगर में जाकर यह खबर फैला की एक सिद्ध योगी आये हैं जो हर समस्या का हल देते हैं। ठीक है, मैं जाता हूँ। भाई हमारे सिद्ध बाबा जी के लिए कुछ दान दो। यह कौन से बाबा हैं और कहाँ हैं? बड़े सिद्ध बाबा हैं। उनके पास हर समस्या का हल है। नगर के बाहर जो बड़ा बरगद का पेड़ है ना, वहां ठहरे हुए हैं। अगर तुम्हें कोई समस्या हो तो उनसे जाकर मिल लो। वो तुम्हें हल जरूर बताएँगे। और हाँ, दान के लिए कुछ लेकर जरूर आना। हाँ हाँ, मैं जरूर आऊंगा। औरों को भी बता दो। पूरे नगर का भला हो जाएगा। जरूर बाबा जी जरूर। राजू पेड़ के नीचे ध्यान में बैठा हुआ है और दीपू थैले में सामान लेकर उसके पास जाता है। मैंने नगर में खबर फैला दी है। जल्दी ही लोग यहाँ आते होंगे। तुम तैयार रहो। मैं तो कब से तैयार हूं। देखते हैं क्या होता है। राजू फिर से ध्यान में बैठ जाता है। तभी नगर के लोग वहां आने लगते हैं और हाथ जोड़ कर नीचे बैठे हैं।
बाबा हमारा काम नहीं चल रहा है कृपा करें। आप जो भी दान के लिए लाए हैं, बाबा के चरणों में रखें और बाबा से गुरुमंत्र लें। दुकानदार राजू के पास पैसे रखता है और हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता है। राजू इशारे से दुकानदार को अपने पास बुलाता है और उसके कान में कहता है श्री राम। हर बिक्री के समय मन में यह नाम का जाप करो, बिक्री बढ़ जाएगी। याद रहे अपना यह मंत्र किसी को नहीं बताना, अपनी पत्नी को भी नहीं। जैसी आपकी आज्ञा बाबा जी। महाराज, आप राजकुमारी के लिए एक योग्य वर तलाश रहे थे। हमारे गांव में एक सिद्ध योगी आए हैं जो तेजवान हैं और राजकुमारी के लिए एकदम श्रेष्ठ हैं। गुरुदेव! मुझे आपके चयन पर पूरा विश्वास है। अगर आपने चुना है तो वह राजकुमारी के लिए अवश्य ही उत्तम होगा। सोने, जवाहरात और अनेक उपहार लाओ। हम अभी उन महान योगी के पास जाएंगे और उनसे राजकुमारी से विवाह करने का आग्रह करेंगे।
हे तपस्वी! मैंने आपके बारे में जो सुना था, आप उतने ही तेजस्वी हैं। मेरा आग्रह स्वीकार करें। राजू ध्यान से आंख खोलकर राजा को देखते हुए। जी महाराज! कहिए क्या परेशानी है आपको? मेरी इच्छा है कि आप मेरी पुत्री से विवाह करें और यह उपहार स्वीकार करें। राजू काफी देर तक उपहार में लाए सोने, चांदी और अनेक वस्त्र और उपहारों को देखता है। फिर राजा की ओर मुड़ता है। महाराज, मैं तो एक संन्यासी हूं। मुझे इन सब से क्या लेना? मुझे क्षमा करें, मैं आपकी बात नहीं मान सकता। दीपू चौंकते हुए राजू को देखता है। मैंने जो सुना था, आप उससे भी महान हैं। मुझे क्षमा करें, यदि मैंने आपका अनादर किया हो। आप जब तक यहां हैं, मैं कोशिश करूंगा आपको कोई दिक्कत न हो। और राजा सूर्यदेव को प्रणाम करके वापस चले जाते हैं। अरे राजू! यह क्या कर दिया तुमने? इतना अच्छा मौका हाथ से जाने दिया। अरे राज करते हम लोग राज, तुम्हें यह क्या हो गया है?
मैं यही सोच रहा था। लेकिन फिर मैंने सोचा कि इतने दिनों से ईश्वर का नाम लेते लेते इतना तो समझ आ गया है कि ईश्वर के नाम अमृत में ऐसा क्या है जो मीरा सारा राजसी ठाठ छोड़कर वैरागी बन गई? क्यों प्रह्लाद ने अपने पिता की इतनी यातनाएं सही? मुझे भी राम नाम का धन मिल गया है, जिसके आगे इस दुनिया का सारा धन फीका है। मुझे यह सब नहीं पता। हम यहां पैसे कमाने आए थे ना कि साधु बनने मैं चला मैं अकेले ही सब संभाल लूंगा। तुम्हें जो ठीक लगे करो। पर अगर किसी मुसीबत में फंस जाओ, पूरी श्रद्धा से ईश्वर का नाम लेना। तुम्हारी मुसीबत दूर हो जाएगी। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। इतनी आसानी से मुसीबत दूर होती तो सभी खुश होते। राजू बस उसे देखकर मुस्कुराता है और ध्यान में बैठ जाता है। दीपू अपनी पोटली उठा कर गांव में चल देता है। क्यों भाई, कैसा चल रहा है? हां भाई सब बढ़िया है और अब घर में सुख शांति भी है। यह भी बेवकूफ बन गया। राजू है तो चालाक। उसने ऐसी युक्ति की कि कोई उस पर सवाल नहीं उठा सकता। कुछ राशन दान करो।
दुकानदार राजू के थैले में चावल डालने जाता है। तभी दीपू यह क्या दे रहे हो? इतनी मिठाइयां और मेवे तुम्हारी दुकान में है और तुम यह कच्चे चावल दे रहे हो। इनमें से कुछ दो। पर बाबा तो यह सब नहीं कहते। तुम्हें क्या करना है? जितना कह रहा हूँ, वह करो। दीपू आगे जाता है और जौहरी की दुकान में दुकानदार से। और भाई जौहरी। कैसी चल रही है दुकानदारी? बाबा की कृपा से सब बढ़िया चल रहा है। कहिए क्या सेवा करूँ? बाबा के लिए कुछ दान दो। इससे पहले कि इन्हें मेरी असलियत पता चले, इनसे तगड़ा दान लेकर गाँव से गायब हो जाऊँगा। फिर ये लोग राजू के पीछे पड़ेंगे तो उसे समझ आएगा। बाबा के लिए कुछ दान दो। जौहरी पैसे निकाल कर देने लगता है। अरे यह क्या भीख दे रहे हो? बाबा की कृपा से तुम्हारी दुकान चल रही है। इतने सारे जवाहरात हैं। इनमें से दो कुछ कीमती सा। जितना दोगे, उससे ज्यादा मिलेगा। यह बाबा को क्या हो गया है? कोई नहीं बाबा को देने से मेरा क्या घटेगा? जौहरी एक सोने की हार दीपू को दे देता है। यह लीजिए बाबा, अच्छा धन बटोर लिया है मैंने। इससे काफी दिनों तक काम चल जाएगा। बड़ी भूख लग गई है। कुछ मिठाइयां खा लूं। दीपू एक पेड़ के नीचे बैठ के मिठाइयां खाने लगता है।
तभी वहां चार डाकू चेहरे पर नकाब, काले कपड़े और हाथ में छुरी लेकर ए जाते हैं। जो कुछ भी है वह हमें दे दो, नहीं तो हम तुम्हें मार डालेंगे। दीपू डर से अपनी पोटली उन्हें दे देता है। तभी डाकुओं के सरदार का नकाब खुल जाता है। दीपू उसे देख लेता है, अब तुझे मरना होगा, क्योंकि तूने मेरा चेहरा देख लिया है। हे भगवान, यह क्या हो रहा है? कैसे बचूं इनसे? भागने की कोशिश की तो यह लोग पकड़ लेंगे। अब क्या करूं? तभी उसे राजू की बात याद आती है। अगर किसी मुसीबत में फैंस जाओ पुरी श्रद्धा से ईश्वर का नाम लेना तुम्हारी मुसीबत दूर हो जाएगी। दीपू आंखें बंद कर घुटने पर बैठकर हे नारायण मेरी रक्षा करो हे नारायण मेरी रक्षा करो। डाकू का सरदार दीपू को उठाकर सुन राजा के सिपाही हमारी और आ रहे हैं।इसलिए तुझे छोड़ रहे हैं अगर तूने किसी को हमारे बड़े में बताने की कोशिश की तो तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।ये ले अपनी पोटली और डाकू भाग जाते हैं। दीपू सामने से सिपहिया को आते देख अपने मन में हे नारायण मुझसे भूल हुई। जो मैं राजू की बात को समझ नहीं पाया मैं राजू के पास वापस जा रहा हूं।और उसके साथ रहकर आपके ध्यान में अपना जीवन बिताऊंगा। मुझे माफ कर दो राजू मैं ईश्वर के नाम की महिमा को नहीं समझ पाया पर अब मैं समझ गया हूं। और तुम्हारे साथ ईश्वर के नाम का धन कमाना चाहता हूं राजू दीपू को गले से लगाता है।
2) सच्चे दोस्त l Sachhe Dost l Kids Moral Stories
https://www.youtube.com/watch?v=mXPyMZTYGw4
एक बड़े में जंगल एक हाथी और खरगोश रहा करते थे। दोनों एक दूसरे के पक्के दोस्त थे। वो साथ साथ रहते, खेलते और खाते थे। हाथी जैसा दोस्त होने के कारण खरगोश को किसी भी बात की चिंता नहीं रहती थी। वो बड़े मजे से अपने साथी हाथी पर सवार हो जाता था और बड़ी शान से जहां चाहता हसते गाते हुए चला जाता था। जंगल के सभी जानवर इन दोनों की दोस्ती को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते थे। एक सियार इन दोनों से बहुत ईर्ष्या करने लगा था। उसे खरगोश पर बड़ा गुस्सा आता था, लेकिन वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता था। वह चाहता था कि इन दोनों में फूट पड़े और खरगोश की जगह वह हाथी का साथी बन जाए। उसने हाथी को उल्टी पट्टी पढ़ाने का विचार बना लिया। हाथी राजा आप तो विशाल शरीर वाले हैं, शक्तिशाली हैं, बुद्धिमान हैं, फिर भी पिद्दी से खरगोश को अपना दोस्त बना लिया। कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली। इसकी आपकी कोई बराबरी नहीं है। सभी जानवर आपका मजाक उड़ाते हैं। खरगोश तो मेरा बहुत पक्का दोस्त है। हमेशा मेरा साथ देता है। साथ देने का क्या फायदा है? यह कोई मदद नहीं कर पाएगा। आपके ऊपर संकट आने पर भाग जाएगा। खरगोश किसी काम का नहीं है। इसका साथ छोड़ दो। मुझे अपना साथी बना लो। मैं बहुत चतुर चालाक हूं। किसी भी परिस्थिति में आपके काम आऊंगा। इस तरह से सियार ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में हाथी को ले लिया और अपने बस में कर लिया। हाथी के मन में खरगोश के प्रति खटास भर गई थी। उसने सियार की दोस्ती स्वीकार कर ली। सियार वहां से चला गया और उसी समय खरगोश चला आया। उसने मुस्कुराकर हाथी को अपनी उपस्थिति का संकेत दिया। हाथी बाई में आ गया। आज तुमने मुझे आवाज नहीं लगाई, फिर भी मैं आ गया। आज पहाड़ी की सैर करेंगे। पहाड़ी फलों का स्वाद लेंगे। बड़ा मजा आएगा। मैं क्या तुम्हारा नौकर हूं? जाओ अपना काम करो। मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मेरे दोस्त कैसी बातें कर रहे हो? क्या मुझसे कोई भूल हुई है? अगर कोई बात है तो खुलकर बोलो। अपनी गलती की माफी मांग लूंगा। गलती तुमसे नहीं, मुझसे हुई है, जो तुमसे दोस्ती कर ली है। मुझे तुमसे दोस्ती नहीं करनी चाहिए थी। हाथी की बात से खरगोश को बड़ा दुख हुआ और उसने सर झुका लिया। उसी समय सियार लौट आया। चलो दोस्त, चलो सैर किया जाए। सियार हाथी के ऊपर सवार होकर बैठ गया और हाथी आगे बढ़ गया। खरगोश को बड़ा कष्ट हुआ, लेकिन वह कर भी क्या सकता था। वह समझ चुका था कि सियार ने हाथी की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। यह भी हो सकता है कि हाथी किसी संकट में फंस जाए।
खरगोश हमेशा दूर से हाथी पर नजर रखता है। एक हाथी सियार को अपने ऊपर बिठाकर जंगल में जा रहा था। उसी समय शिकारियों ने एक गड्ढे में हाथी को फंसाने के लिए जाल लगाया था। सियार ने उसे देख लिया और कूदकर अलग हो गया। हाथी उसी गति से आगे जाता रहा और गड्ढे में हाथी फंस गया। हरे सियार भाई मैं तो जाल में फंस गया हूं। मेरी सहायता करो। कोई उपाय करो। हाथी भाई मैं जाकर आता हूं। जब तक मैं ना हूं, मेरा इंतजार करना। इतना कहकर सियार वहां से चला गया। खरगोश वहां हाजिर हो गया। अपने मित्र की स्थिति देखकर उसे बड़ा दुख हुआ। दूसरे ही क्षण हाथी की हिम्मत बढ़ाई। हाथी भाई, आप चिंता मत करो, मैं आ गया हूं। इस संकट से निकलने का मैं हर उपाय करूंगा। मैं अभी गया और अभी आया। नन्हा खरगोश दौड़ते हुए हाथियों के दल में पहुंच गया और साथ ही साथ खरगोशों को भी मदद के लिए पुकारा। उसने सभी हाथियों और खरगोशों को अपने दोस्त हाथी की मदद करने को आह्वान किया। खरगोश वहां पहुंच गए, जहां जाल में हाथी फंसा था। खरगोशों ने अपने नुकीले दांत से जाल को काटना शुरू किया। देखते ही देखते पूरा जाल कट गया। हाथियों ने मदद का हाथ बढ़ाते हुए हाथी को गड्ढे से बाहर निकाल लिया। हाथी अब पूरी तरह स्वतंत्र हो गया था और अपने प्रिय मित्र खरगोश को देखकर अपनी गलती पर पछतावा करने लगा था। वह उसकी तरफ बढ़ गया और क्षमा मांगने लगा। खरगोश मेरे प्यारे दोस्त, तुम मेरे सच्चे दोस्त हो। आज तुमने सही समय पर मेरी रक्षा की है। मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी कि मैंने सियार की बात में आकर तुम्हें अपने से दूर कर दिया था। तुमने संकट में मेरी बहुत मदद की और दोस्ती का सही अर्थ मेरी समझ में आ गया। मुझे क्षमा कर दो मित्र। कोई बात नहीं मित्र। दोस्ती दोस्त के काम आता है। इस तरह हम अपना फर्ज निभाते हैं। मुझे खुशी है कि मेरा भटका हुआ दोस्त रास्ते पर आ गया और अब हमारी दोस्ती फिर से परवान चढ़ेगी। सच्चा दोस्त वही है जो आवश्यकता पड़ने पर काम आए। मतलबी दोस्तों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह तो मौका देख कर रंग बदल लेते हैं। अपनी सच्ची दोस्ती पर विश्वास रखना चाहिए और किसी की बातों में आकर दोस्त पर अविश्वास नहीं दिखाना चाहिए। हाथी ने सभी को धन्यवाद दिया और बड़े ही प्यार से खरगोश को अपने ऊपर बिठा लिया और गाते मुस्कुराते हुए आगे बढ़ने लगे। चालबाज सियार यह दृश्य देखकर समझ गया और वहां से भाग गया।
3) वक्त की कीमत Wakt Ki Keemat | Value of Time - Inspirational Hindi Story
https://www.youtube.com/watch?v=ULPK-4W0M3s
एक समय की बात है। एक छोटे शहर में जॉर्ज अपने परिवार के साथ रहा करता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी लिंडा, दो बेटे बेन और पीटर और बेटी ग्रीस रहा करते थे। अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी जॉर्ज पर थी। वह एक साधारण नौकरी करके अपने पूरे परिवार का गुजारा किया करता था। जॉर्ज हर रोज सुबह जल्दी काम पर जाता था और देर रात को घर आता था। एक दिन ग्रीस अपनी मां से मां पिताजी को कब छुट्टी होगी। हमारी और उनकी मुलाकात तो होती भी नहीं है। हमें उनके साथ खेलना है। बहुत सी बातें करनी है बेटा। पिताजी बहुत मेहनत करते हैं और हमारा पूरा परिवार चलाते हैं। हां मां, हमारा भी बहुत मन करता है पिताजी से मिलने का। उनके साथ बातें करने का। लेकिन वह सुबह जल्दी जाते हैं और देर रात घर आते हैं। हां भैया, लेकिन पापा मेहनत करते हैं, इसीलिए हम घर। में आराम से रहते। हैं और अच्छे स्कूल। में भी जाते हैं। पीटर बहुत ही समझदार लड़का था। बच्चों की बात सुनकर लिंडा को बुरा लगता था, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी क्योंकि परिवार बड़ा होने के कारण उनको बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
जॉर्ज को हमेशा लगता था कि जिस तरह से उसका बचपन बीता, उस तरह की कठिनाई उसके बच्चों की जिंदगी में ना आए। उस दिन जॉर्ज देर रात को घर आता है और तभी लिंडा सुनो, अब थोड़ा जल्दी घर आया करो। बच्चों को भी आपको मिलने का मन करता है। मुझे सब पता है। लिंडा। लेकिन क्या करूं? तुम तो अपने हालात जानती हो। हां, मुझे सब पता है। लेकिन इस संडे के दिन तो आप बच्चों के साथ रुक सकते हो ना? जी, मैं ज़रूर कोशिश करूंगा। ऐसे ही कुछ दिन बीत जाते हैं। जॉर्ज की मेहनत और काम के प्रति लगन देखकर उसको प्रमोशन मिल जाता है। अब उसकी तंखा भी बन चुकी थी। अब जॉर्ज बच्चों की और भी ख्वाहिशें पूरी करने की कोशिश किया करता था। इसीलिए जॉर्ज अब और मेहनत करने लगता है। एक दिन।
मां अब मेरा birthday आने वाला है। पापा आएंगे ना। मुझे मेरे birthday पापा के साथ ही मनाना है। हां बेटा, जरूर उस दिन जॉर्ज घर आता है। सुनो। आने वाली 10 तारीख को ग्रीस का birthday है और वो अपना birthday आपके साथ ही मनाना चाहती है। मुझे कुछ नहीं सुनना। आप उस दिन जल्दी घर आना। हां, तुम चिंता मत करना, मैं वक्त पर पहुंच जाऊंगा।
और हां, यह मेरा कार्ड ग्रीस के लिए तुम्हें जो खरीदना है, वह तुम खरीद लेना। जॉर्ज अपने काम में इतना व्यस्त हो गया था कि उसे अपने बच्चों और पत्नी का birthday भी याद नहीं रहता था। उसके लिए अब पैसे कमाना ही सबकुछ था। अब उनकी हालत भी अच्छी हो गई थी। लिंडा को भी लगता था कि वह अपने पति और बच्चे के साथ कहीं घूमने जाए। लेकिन जब भी वह जॉर्ज से बात करती थी तो वह अपने काम बताकर बात को टाल देता था। ऐसे ही दिन बीत जाते थे। ग्रीस का birthday आता है। सुबह घर से निकलते समय जॉर्ज ग्रीस के पास जाकर उसे गले लगाकर birthday विश करता है। ग्रीस भी उन्हें अपने दोनों हाथों से पकड़ लेती है। पापा प्लीज शाम को जल्दी आना। हां बेटा, जरूर आउंगा। सुनो, आज जल्दी घर आना। बच्चों को नाराज मत करना। हां लिंडा मैं वक्त पर आ जाऊंगा। जॉर्ज ऑफिस के लिए निकल जाता है। शाम होते ही ग्रीस के दोस्त और उनकी जान पहचान वाले birthday के लिए आ जाते हैं।
सभी तैयार होकर जॉर्ज का वेट करती हैं। लिंडा जॉर्ज को फोन करती है, लेकिन वह उसका फोन नहीं उठाता। फिर लिंडा जॉर्ज के ऑफिस में फोन करती है तो उसको पता चलता है कि वह एक बहुत जरूरी मीटिंग में है। उसे घर लौटने में देर होगी। पर अब बाकी लोगों को देर हो रही थी। इसीलिए लिंडा ग्रीस को केक काटने के लिए बोलती है। लेकिन ग्रीस बहुत मायूस हो जाती है। सब लोग खाना खाकर अपने घर चले जाते हैं। तभी ग्रीस। मां मुझे पता था पापा नहीं आएंगे, क्योंकि उनके पास हमारे लिए वक्त ही नहीं। है। नहीं बेटा, तुम्हारे पापा जरूर कुछ काम में व्यस्त होंगे, इसीलिए नहीं आ पाए। मां क्यों छोटी बच्ची को उम्मीद दे रही हो? पापा का यह हमेशा का हो गया है। अब उनको सिर्फ पैसों की पड़ी है, हमारी नहीं। मैं तो यही देखकर बड़ा हो गया हूं। नहीं भैया, ऐसे नहीं है। आखिर ये सब पापा हमारे लिए ही तो करते हैं ना। हां, तू तो उनका lawyer ही है ना। बेन और ग्रीस दोनों गुस्से से वहां अपने कमरे में चले जाते हैं। अब लिंडा मन में ठान लेती है, आज कुछ भी हो जाए। वह जॉर्ज से इस बारे में बात करके ही रहेगी। जॉर्ज रात को घर आता है, तभी sorry dear! आज बहुत काम था, इसलिए मैं शाम को नहीं आ पाया। लेकिन हां, मुझे तुम्हें एक खुशखबरी देनी है। पता है, आज मुझे कंपनी में पार्टनरशिप मिली है। यह बात सुनकर लिंडा भी खुश हो जाती है, क्योंकि उसे पता था जॉर्ज ने इस मुकाम पर पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है। सच में आखिर आपकी मेहनत सफल हो गई? हां, इसमें मुझे तुम्हारी और बच्चों की बहुत साथ मिली है। अब मैं अपने बच्चों को सबसे बेस्ट जिंदगी देना चाहता हूं। मुझे आपसे एक बात करनी थी। बोलो डिनर।
आप पैसे के पीछे इतना क्यों भागते हो? हमारे पास जितना है अब हम उसमें खुश है। अब थोड़ा संभलकर रहना वरना हमारे पास पैसा होगा। लेकिन वक्त नहीं होगा। लिंडा तुम चिंता मत करो। दूसरे दिन लिंडा बच्चों को पार्टनरशिप के बारे में बताती है। वो सभी ये बात सुनकर बहुत खुश हो जाते हैं। अब जॉर्ज शहर में सबसे बड़े बिजनेसमैन में से एक बन गया था। अब कुछ ही दिनों में उसने अपना आलीशान घर बनवाया और अपने मां पिताजी को भी अपने घर बुला लिया। अब जॉर्ज के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी बच्चों को लगता था कि वो अपने पापा के साथ कुछ वक्त बिताएं। एक दिन जॉर्ज ऑफिस से जल्दी घर लौट आता है। उसको घर में देखकर बच्चे बहुत खुश हो जाते हैं। पापा ये तो आज तक का सबसे बेस्ट सरप्राइज है। हां बेटे और एक सरप्राइज है। और वो क्या। कल हम सब लोग अपने फार्म हाउस पर जाने वाले हैं। क्या सच में? हां, लिंडा। दूसरे दिन सभी फार्म हाउस पर जाती हैं जो कि एक sea face था। वहां जाकर सब लोग बहुत मजे करते हैं। जॉर्ज अपने बच्चों के साथ बहुत मस्ती करता है। वे सभी सुबह साथ में ब्रेकफास्ट के लिए बैठते हैं। तभी ग्रीस। क्या आप नए साल को हमारे साथ ही डिनर करेंगे?
हां डार्लिंग, अब मैं आज से कुछ दिन आपके साथ यही रहूंगा। हां, बस मुझे कल एक मीटिंग के लिए जाना है। मीटिंग खत्म होते ही मैं इधर वापस आ जाऊंगा। ग्रीस पापा को गले से लगाती है। दूसरे दिन सुबह जॉर्ज अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है। तभी समुद्र में अचानक आई सुनामी की वजह से उसका पूरा परिवार उसमें बह जाता है। जॉर्ज ऑफिस में जाकर न्यूज देखता है और वैसे ही अपने फार्म हाउस पर लौटता है तो देखता है कि चारों ओर पानी भरा हुआ है। वो अपने घरवालों को बच्चों को ढूंढने की कोशिश करता है लेकिन अब वो उसकी जिंदगी से हमेशा के लिए जा चुके थे। वो सब देखकर जॉर्ज जोर जोर से रोने लगता है। तभी उसे लिंडा की कही बात याद आती है। हमारे पास जो है उसमें ही हमें खुश रहना है। आप इतने पैसों के पीछे क्यों भागती हो? जॉर्ज बहुत रोने लगता है क्योंकि वो ना ही अपने बच्चों को देख सकता था ना ही अपनी पत्नी, माता पिता को। अब जॉर्ज बिल्कुल अकेला हो गया था।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जिंदगी में पैसा ही सबकुछ नहीं होता। हमेशा पैसा और वक्त का संतुलन होना चाहिए। नहीं तो अंत में हमारे पास पैसा तो होता ही है लेकिन अपने नहीं होती।
5) समय का सदुपयोग - Right Use Of Time - Hindi Kahaniya
https://www.youtube.com/watch?v=nFYlN5Fayvs
समय का सदुपयोग, समय का सदुपयोग जो करता है, उसी व्यक्ति को समय के साथ अच्छे परिणाम मिलते हैं। ऐसा ही हुआ जब सोनू और वाणी के एन्युअल एग्जाम्स आने वाले थे। अरे अब तक पढ़ रही हो। चलो खाना खाते हैं। बस थोड़ा सा प्रोजेक्ट बचा है। नहीं किया तो टीचर डांटेंगे। और अगले हफ्ते से परीक्षा भी तो शुरू होने वाले है। बानी बहुत ही मेहनती और समय का सदुपयोग करने वाली बच्ची थी जबकि उसका भाई सोनू बहुत ही लापरवाह और शैतान बच्चा था। हर काम कल पर टालता था। तुम्हारा प्रोजेक्ट हो गया। अभी से प्रोजेक्ट वो तो 6 पीरियड में देना है। अभी भी दो पीरियड बचे हैं। मैं झट से कर लूंगा। अब जल्दी आओ। भूख लगी है और खेलना भी है। अरे सुनो रूको, नहीं करोगी तो टीचर डांटेंगे। सोनू और वाणी के मम्मी पापा हमेशा सोनू को वाणी का उदाहरण देकर समझाते थे। देखो सोनू बेटा, अब तुम बड़े हो गए हैं। खेल के साथ साथ तुम्हें अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए। हां मम्मी, कल से पक्का। सोनू समय का सदुपयोग करना अपनी बहन से सीखो। देखो समय से पढ़ती है, समय से खेलती है। आज का काम काल पर कभी नहीं टालती। आप देखना मैं भी कल से पक्का ऐसा ही करूंगा। सोनू की लापरवाही दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी और आखिरकार एग्जाम्स के दिन भी नजदीक आ ही गए। सोनू वाणी की परीक्षा में अब केवल दो दिन बाकी थे। बच्चों अगले सोमवार से तो तुम दोनों की परीक्षाएं शुरू हो रही है ना? खूब मन लगाकर पढ़ो और अच्छे से परीक्षा दो। सोनू मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है। बेटा, तुम हमेशा आज का काम कल पर टाल देते हो। पढ़ाई कल पर नहीं टालना। वाणी की तरह सभी पाठ समय से पढ़ लेना। ठीक है। अरे पापा, परीक्षा में अभी पूरे दो दिन बाकी है। मैं झट से पढ़ लूंगा सब कुछ। अभी तो मैं खेलने जा रहा हूं। जब तक खेलूँगा नहीं तब तक पढ़ाई भी समझ नहीं आएगी।
अरे वाणी देखो ना कितना सुहाना मौसम हो रहा। आओ न थोड़ी देर खेल लेते हैं। पढ़ाई तो बाद में भी कर सकते हैं। झट से सब हो जाएगा। मौसम सुहाना है, लेकिन मुझे मेरा पाठ पूरा करना है। कल परीक्षा है। इस मौसम में तो खेलने का मजा ही कुछ और है। तुम पढ़ती रहो मैं तो चला खेलने। कुछ देर बाद वाणी ने देखा कि सुहाना मौसम धीरे धीरे आंधी तूफान का रूप ले रहा है और काले बादल उमड़ रहे हैं। मानो बारिश कभी भी हो सकती है। बारिश का मौसम देख वाणी को चिंता होने लगी कि अगर बारिश आ गई तो उसका पाठ कैसे पूरा होगा। क्योंकि बारिशों में अक्सर घर की बिजली कट जाती है। उसने सोनू को आवाज दी है। सोनू सोनू। सुनो। मौसम देखकर लगता है बारिश होने वाली है। शायद रात को बिजली भी कट जाए। खेलना छोड़ो और आकर अपना पाठ पूरा कर लो। वरना कल परीक्षा में क्या लिखोगे? चिंता मत करो वाणी अभी तो दोपहरी हो रही है। रात को बैठकर मैं फटाफट सब खत्म कर लूंगा। बिजली नहीं जाएगी, बल्कि बारिश के बाद पढ़ने में और मजा आएगा। अच्छा मैं जाता हूं। मेरी बैटिंग आ गई। सोनू देर शाम तक खेलता ही रहा, लेकिन उसकी चिंता तब बढ़ी जब अचानक से बारिश शुरू हो गई।
सोनू बुरी तरह घबरा गया और घर लौटा, जहां आकर उसने देखा घर पर ही नहीं बल्कि पूरे गांव में बिजली नहीं है। यह देख कर सोनू जोर जोर से रोने लगा। कल परीक्षा में मेरा क्या होगा? मैंने तो एक बार भी नहीं पढ़ा और अब तो बिजली भी नहीं है। मैं तो फेल हो जाहुगा। मैंने कहा था ना अपना पाठ समय से पढ़ लो। मैंने तुम्हें एक हफ्ते पहले ही कह दिया था कि समय पर पढ़ाई कर लेना, लेकिन तुम्हें कभी कुछ समझ में नहीं आता।सॉरी पापा। अब मैं क्या करूं। काश मैने सही समय पर अपने पाठ लिये होते। उसे समझ आ गया था कि उसकी लापरवाही के कारण उसके पास अब पढ़ने का समय बचा नहीं। रोने से अब कुछ नहीं होगा। अब समझ आया कि सब तुम्हे क्यों समझते थे। बस अब रोना बंद करो। अब चलो मेरे साथ। मैने अपनी पढ़ाई समय पर ही पूरी कर ली थी। मैं तुम्हें सारा पाठ समझा दूंगी और याद भी करवा दूंगी। अगले दिन दोनों बच्चे खुशी खुशी परीक्षा देने गए।
जो समय का करे सम्मान, भविष्य में कहलाए महान।
6) पापा की सीख - हिंदी कहानियाँ | Moral Stories for Kids
https://www.youtube.com/watch?v=QwVD5tqPbJE
पापा की सीख। आज है मंडे मतलब सप्ताह का सबसे मुश्किल दिन। फ्राइडे को घर आना जितना ईजी लगता है। संडे के बाद मंडे को स्कूल जाना उतना ही मुश्किल। और अंजली को तो आज यह और भी मुश्किल लग रहा था। ये अंजली है और ये कहानी अंजली के ही बारे में है। आज स्कूल में क्या मस्ती करने वाली हो। अंजली। बेटा बोलो बोलो मेरी गुड़िया इतनी उदास क्यों है? मैं मीनू की वजह से इतनी उदास हु पापा। उदास होने की कोई जरूरत नहीं। उससे दूर रहो। याद रखो, हमेशा उन्हीं लोगों के साथ रहो जो तुम्हें पसंद करते हैं। और जिनके साथ खेलना तुम्हें अच्छा लगता है। मीनू को तुम्हें परेशान करने का कोई मौका मत दो। पापा की बातें मानो अंजली पर बैटरी की तरह काम करती थी। उधर बैटरी डाली और इधर अंजली बड़ी से बड़ी जंग लड़ने के लिए भी तैयार हो जाती। आखिर स्कूल जाना भी तो अंजली के लिए किसी जंग से कम नहीं था। अंजली द वॉरियर को मीनू का सामना जो करना था। मीनू मेंढक जैसी आंखों वाली लड़की आज टिफिन में क्या लाई हो? मुझे परेशान मत करो। स्कूल में जितना डर अंजली को मीनू से लगता था, उतना ही अच्छा उसे अपने तीन दोस्तों से मिलकर लगता था। राजू, छुटकी और वरुण हमेशा अंजली के साथ रहते थे। उसकी मदद करते थे। मीनू का अंजली को इस तरह परेशान करना उसके दोस्तों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। जब जब मीनू अंजली को तंग करती, वरुण अंजली को उसे सबक सिखाने को कहता। वरुण को अंजली का यूं चुप रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। तुम्हें भी उसे धक्का देना चाहिए था। अंजली, तुम हमेशा चुप क्यों रह जाती हो? पापा कहते हैं मीनू पर ध्यान मत दो। आज टीचर से उसकी शिकायत कर के रहेंगे। नहीं चलो चलते हैं अंजली के स्कूल जाने के दो ही कारण होते थे। पहला कारण था अपने तीनों बेस्ट फ्रेंड से मिलना। उनके साथ थोड़ी, सी पढ़ाई और ढेर सारी मस्ती करना। और दूसरा कारण मम्मी का दिया हुआ टेस्टी लंच।
तीनों दोस्तों के साथ शेयर करना। सीमा टीचर की क्राफ्ट और म्यूजिक क्लास के बाद सबको बहुत जोरों से भूख लगती और जब लंच होता तो चारों दोस्त मिलकर लंच के लिए दौड़ते। मीनू अंजली का टिफिन गिरा देती है हो बेचारी अंजली का टिफिन गिर गया। अब अंजली क्या खाएगी? लेकिन शैतान मीनू अंजली को कोई न कोई शैतानी करके परेशान कर ही देती थी। शैतान लड़की अभी बताती हूं। रुको छुटकी कोई बात नहीं, उसे जाने दो। वो मीनू तुम्हें हमेशा तंग करती है और तुम हमेशा उसे छोड़ देती हो। ये तो सही नहीं है अंजली अगर तुम उसे हमेशा इसी तरह छोड़ दोगे तो वो तुम्हें तंग करना बंद नहीं करेगी। लेकिन अंजली भी अपने पापा की बेटी थी। उसने कभी मीनू पर पलटकर गुस्सा नहीं किया और अपने दोस्तों को भी हमेशा ऐसा करने से रोका।
पापा कहते हैं कि हम जितना मीनू की बातों पर ध्यान देंगे वो हमें उतना ही चढ़ाएगी और उसे मारकर या जवाब देकर हम उसके जैसे ही बन जाएंगे। हमें उस जैसा नहीं बनना छुटकी चलो क्लास का टाइम होने वाला है। ठीक है तुम मेरे टिफिन में से खा लो। मीनू अंजली को रोज परेशान करती थी और अंजली को इस तरह सहते रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। एक दिन अंजली ने सोचा कि क्या पापा की बात मानकर वो सही कर रही है। इतने में सीमा टीचर की क्लास शुरू हुई। शायद उस दिन स्कूल जाने की सबसे अच्छी बात सीमा टीचर की वो क्लास ही थी जिसने अंजली के लिए सब कुछ बदल दिया। बच्चों कल की क्लास में हम सब कुछ खास सीखेंगे। उसके लिए आप सभी को कल अपने अपने खिलौने लाने होंगे। अगर कोई चाहे तो क्लास में छोटे पौधे भी ला सकता है। ऐसा करके हम सब एक दूसरे को और भी अच्छे से जान पाएंगे। उस दिन अंजली ने घर जाने पर सोचा कि आज वह पापा से साफ साफ कह देगी कि अब उससे मीनू का व्यवहार बिल्कुल सहनीय ज्यादा। अंजली, तुम्हारे घुटने पर चोट कैसे आई? मीनू की वजह से आज उसने सुबह ज़ोर से धक्का दिया और मुझे चोट लग गई। लेकिन जैसा आपने कहा था मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। वरुण कह रहा था कि मुझे भी उसे धक्का देना चाहिए था। तुमने बिल्कुल ठीक किया। मुझे अपनी प्यारी सी बेटी पर गर्व है। तुम्हें मीनू नहीं पसंद, क्योंकि वह तुम्हें मारती है, तंग करती है और हमेशा खुद का सोचती है। तुम्हारे उसे मार देने पर भी यह समस्या नहीं सुलझेगी, क्योंकि वह मीनू है और तुम अंजली। तुम लकी हो कि तुम्हें इतने प्यारे दोस्त और प्यार करने वाले मम्मी पापा मिले हैं। हो सकता है मीनू के साथ ऐसा न हो, इसलिए वह कभी मीनू पर हाथ नहीं उठाना। अंजली को पापा की बात भी गलत नहीं लगी।
उसने सोचा कि हो सकता है मीनू के ऐसे व्यवहार के पीछे सच में कोई कारण हो। मुझे इस बारे में अंजली की मां और सीमा टीचर से बात करनी चाहिए। अगले दिन का सब बच्चों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था। सब बच्चे अपने अपने खिलौने स्कूल लेकर आने वाले थे। अंजली ने एक रात पहले ही अपने अब्बू गप्पू को तैयार कर लिया था और जब अंजली स्कूल गई तो देखा कि पूरी क्लास मानो ज़ू बनी हुई है।
कोई अपना हाथी लाया था तो कोई शेर और कोई कोई तो अपना कछुआ लाया था। क्लास में बच्चों के अलावा बंदर, भालू, शेर और कछुआ भी एक दूसरे के दोस्त बन रहे थे। सब बच्चे अपना अपना खिलौना लेकर उस दिन क्लास में पहुंचे सिवाय मीनू के। सिवाय मीनू के मेरी प्यारी बिल्ली तुम्हारे अब्बू गप्पू से मिलना चाहती है। इसका नाम बिल्लू है बहुत भूख लगी है इसे हो सकता है। अब अब्बू गप्पू को खाकर बिल्लू का पेट भर जाए। अंजली को लगा कि आज तो मीनू का बिल्लू उसके अब्बू गप्पू को खाकर ही दम लेगा तभी वरुण जोर से चीखा बिल्ली हटाओ इसे मुझे बिल्ली से डर लगता है हटाओ। कोई मेरी बिल्ली की मदद करो प्लीज़ उसे नीचे उतारो नीचे आ जाओ बिल्लू प्लीज़ नीचे आ जाओ। कोई मीनू की मदद के लिए आगे नहीं आया और आता भी कैसे बिल्लू इतना ऊपर चढ़कर बैठ गया था। किसी बच्चे को पेड़ पर चढ़ना आता ही नहीं था। अंजली को मीनू को दुखी देखकर बड़ा दुख हुआ। चिन्ता मत करो मीनू। बिल्लू वरुण की आवाज सुनकर और हम सबको देखकर केवल डर गया है। बिल्लू की म्याऊँ सुनकर अंजली का दिमाग दौड़ने लगा। मुझे एक तरकीब सूझी है जिससे बिल्लू अभी नीचे आ जाएगा। सच, अंजली दौड़कर सीमा टीचर के पास गई। टीचर टीचर क्या मुझे स्कूल के किचन से थोड़ा दूध मिल सकता है? मुझे मीनू के बिल्लू को पेड़ से उतारना है। सीमा टीचर को अंजलि ने सारी बात बताई और उन्होंने काका से कहकर अंजलि के लिए थोड़ा सा दूध मंगवाया। देखो बिल्लू मैं तुम्हारे लिए क्या लाई टेस्टी मलाई वाला दूध। दूध को देखकर बिल्लू तुरंत पेड़ से नीचे आ गया। मैंने हमेशा तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, तुम्हें तंग किया, तुम्हें चोट पहुंचाई। मुझे। प्लीज़ माफ कर दो। कोई बात नहीं तो क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी? और उस दिन के बाद से अंजली और मीनू बेस्ट फ्रेंड्स हैं। मीनू अंजली की ही नहीं अब सब की अच्छी दोस्त है और इनकी दोस्ती पूरे स्कूल में मशहूर है। उस दिन अंजली को एहसास हुआ कि उसके पापा सही कहते थे। बुरे व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार करने से कभी प्रॉब्लम सॉल्व नहीं होती। हमारे द्वारा किया अच्छा व्यवहार एक बुरे व्यक्ति को भी उसकी बुराई का अहसास करा सकता है।
7) Baaton Ki Value | Value Of Speaking Wisely | Hindi Moral Stories For Kids
https://www.youtube.com/watch?v=wa35CtOObp0
बातों की वैल्यू। बहुत समय पहले किसी शहर में एक परिवार रहता था। परिवार में मम्मी पापा के अलावा सात साल की अदिति और आठ साल का आदित्य भी रहते थे। दोनों बच्चे वैसे तो भाई बहन थे, लेकिन दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग थे। जहां आदित्य बहुत कम बोलता था, वहीं अदिति बहुत ज्यादा बोलती थी। वह हर बात पर और कभी कभी तो बिना बात के भी बोला करती थी। मम्मी आज स्कूल में टीचर एक एक करके सभी बच्चों से सवाल पूछ रही थी और जब मेरी बारी आई तो मैने टीचर का सवाल पूरा होने से पहले ही सवाल का सही जवाब दे दिया। फिर भी पता नहीं टीचर ने मुझे 10 से सिर्फ पाँच नंबर ही क्यों दिए। उसकी मम्मी उसे बहुत समझाती थी कि उसे कम बोलना चाहिए। अदिति बेटी हमें कम और मीठा बोलना चाहिए। अगर हम ज्यादा बोलते हैं तो लोग हमारी बातों पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। लेकिन वह हमेशा मम्मी से कहती कि मम्मी मैं तो बहुत कम बोलती हूं, बल्कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि ज्यादा बोलना क्या होता है। एक दिन अदिति की बुआ उनके घर रहने आई और अपने साथ दोनों बच्चों के लिए खिलौने भी लाई। आदित्य यह लो तुम्हारे लिए रोबोट और अदिति, ये लो तुम्हारी गुड़िया। आदित्य ने रोबोट चुपचाप रख लिया। थैंक यू बुआजी। लेकिन अदिति हमेशा की तरह बोल पड़ी, बुआजी। आप ये वाली गुड़िया क्यों लाए? ये वाली गुड़िया तो मेरे पास है। अगर आप मुझसे पूछ लेती तो मैं आपको पहले ही बता देती कि मुझे कौन सी गुड़िया चाहिए। ठीक है अदिति, अगली बार मैं तुम से पूछ लूंगी। पूछने की क्या ज़रूरत है? आप मुझे अपने साथ बाजार ले जाना। मैं अपने आप एक अच्छी सी गुड़िया पसंद करूंगी और फिर आप उसे खरीद लेना। ठीक है, ठीक है, तो फिर चलो चलते हैं। अभी तो मैं बहुत थकी हुई हूं। हां, अभी तो आप थके हुए हो तो बताओ आप मुझे कब बाजार लेकर जाओगी? क्या अदिति बुआ को तंग मत करो।
आइए दीदी। मैं तंग थोड़ी कर रही हूं। मैं तो बस बुआ जी से बात कर रही हूं। अगले दिन बुआ और मम्मी बात कर रहे थे। बुआ जी, हम इस बार गर्मियों की छुट्टियों में नैनीताल जाएंगे। तभी अदिति वहां आई और हमेशा की तरह बोलने लगी। नैनीताल तो हम पिछले साल ही गए थे और उससे पिछले साल हम नानी के घर देहरादून भी गए थे। आप कभी देहरादून गए हो? हां। एक बार हम तो वहां हर बार गए हैं। हम तो वहां बहुत बार गए हैं। आप भी ज़रूर जाना। गर्मियों में तो वो जगह और भी अच्छी लगती है। आपको वो ज्यादा पसंद आएगी। आइए दीदी। हम अंदर रसोई में चलते हैं। और उसके बाद आप नैनीताल भी ज़रूर जाना। आपको वहां भी बहुत अच्छा लगेगा। उसी रात अदिति के पापा भी बुआजी के साथ बात कर रहे थे। दीदी अच्छा हुआ आप आ गई मुझे तो आप के पास आने का समय ही नहीं मिल पाता। कोई बात नहीं, मैं जानती थी तुम काम से समय नहीं निकाल पाओगे, इसलिए मैं ही चली आई। तभी अदिति वहां आई और बोली। पापा, मुझे आपसे कुछ बात करनी है। अभी नहीं अदिति, अभी मैं बुआजी से बात कर रहा हूं। ठीक है, पहले आप बुआजी से बात कर लो। ये कहकर अदिति वहीं बैठ गई और उनकी बात खत्म होने का इंतजार करने लगी। पापा और बुआ जी बात करने लगे। मैंने सुना आप बच्चों के लिए गिफ्ट लाई थी तो क्या मेरे लिए कुछ भी नहीं लाई? मैं तुम्हारे लिए भी गिफ्ट लाई हूं। ये लो तुम्हारा गिफ्ट। अरे ये शर्ट तो बहुत अच्छी है। ये देख कर अदिति से चुप नहीं रह गया और वो बीच में ही बोल पड़ी वाह। पापा आपका गिफ्ट तो सच में बहुत अच्छा है। बुआजी आप तो पापा के लिए बहुत अच्छा गिफ्ट रही हो। इसका मतलब ये हुआ कि आपको अच्छे गिफ्ट खरीदने आते हैं। हां, तुम्हारी बुआ बहुत अच्छे गिफ्ट खरीदती हैं।
लेकिन पता नहीं बुआजी मेरे लिए ही क्यों वो छोटी सी गुड़िया लेकर आई। पापा आपको पता है बुआजी मेरे लिए एक गुड़िया लेकर आई। वैसे गुड़िया मेरे पास पहले से ही थी, इसलिए मैंने बुआजी से कहा कि वो मुझे कुछ और गिफ्ट लाकर दे। और बुआजी ने मुझसे कहा है कि अगली बार वो मुझसे पूछकर ही मेरे लिए गिफ्ट लाएंगी। अगले कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। अपनी आदत से मजबूर अदिति बिना वजह हर बात पर बोलती है। आप अभी खाना खा रहे हो। मैंने तो पहले ही खाना खा लिया था। आप अभी से सो रहे हो। मैं तो बहुत देर से सोती हूँ। आप अब सोकर जाग रहे हो। मैं तो सुबह सुबह ही जाग जाती हूं। बुआजी को उसकी बातों पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा। फिर जब तीन दिन बाद बुआजी के जाने का समय आया तो उन्होंने बच्चों से पूछा। बताओ बच्चों, अगली बार मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आओ अदिति बुआजी, आप आ जाना। फिर हम दोनों साथ में बाजार जाकर मेरी पसंद के बहुत सारे खिलौने खरीदेंगे। आदित्य, बुआजी आप हमारे लिए मिठाई लेकर आना। ठीक है आदित्य मैं तुम्हारे लिए मिठाई लेकर आउंगी। यह कहकर बुआजी चली गई। लेकिन अदिति को बुआजी की यह बात बहुत बुरी लगी। उसने उदास मन से मम्मी से कहा मम्मी! बुआजी ने मेरी बात नहीं मानी और भैया की बात झट से मान ली। मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा, अदिति इसीलिए मैं तुम्हें कम बोलने के लिए कहती थी कम और मीठा बोलने से हमारी बातों की वैल्यू बनी रहती है और अगर हम ज्यादा बोलते हैं तो कोई हमारी बातों पर ध्यान नहीं देता। अदिति मम्मी की बात समझ गई उसने कहा आप ठीक कह रहे हो मम्मी, आज से मैं कभी बेवजह नहीं बोलूंगी। इस तरह अदिति की बेवजह बोलने की आदत छूट गई और वह कम बोलने लगी। तो बच्चों इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें कम और मीठा बोलना चाहिए। इससे हमारी बातों की वैल्यू बनी रहती है।