[बच्चे के पैदा होने के बाद] अब छटी की रात है। ज़च्चा के तारे देखने की रस्म अदा होगी। ज़च्चा और बच्चा दोनों का बनाओ सिंघार किया गया है। ज़च्चा बच्चे को गोद में लेकर सहन में आई। चौकी पर खड़ी हुई, इस शान से कि सर पर क़ुरआन धरा है, गोद में बच्चा है। दाएँ बाएँ दो औरतें नंगी तलवारें लिए खड़ी हैं। दाई आटे की चौ-मक उठाए आगे आगे चलती हुई चौकी तक आई थी। अब अलग खड़ी है। ज़च्चा ने आसमान की तरफ़ निगाह की और सात सितारों की गिनती की। दाएँ बाएँ खड़ी ओरतों ने तलवारों की नोक से नोक मिला कर ज़च्चा के सर पर क़ौस बनाई। इस का क्या मतलब है? मतलब यह कि अब कोई जिन्न, कोई परी ऊपर से नहीं गुज़र सकेगी। तलवारों का साया है। अब जिन्न-ओ-परी का साया नहीं पड़ सकता।
इस रस्म से अंदाज़ा लगा लीजिए कि इस तहज़ीब में जिन्न-ओ-परी का कितना चर्चा था। उनके साये से बचने के लिए कैसे कैसे जतन किए जाते थे। मगर यह साया फिर भी तआक़ुब करता रहता था। कुछ पता नहीं होता था कि किस पर कब कोई जिन्न आ जाये और कब किसी परी का साया पड़ जाये।
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जिन्नात का भी यहाँ बहुत चर्चा था। और लाज़िम नहीं था कि जिन्न हमेशा सताने ही के लिए आए। भले जिन्नात भी तो होते थे। एक मुग़लानी बी ने कि सीने पिरोने में बहुत महारत रखती थीं अपनी वारदात यूँ सुनाई कि “ऐ बी मुझ काल खाती को क्या पता था कि कौन लोग मुझे लेने के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे घर शादी हो रही है। दुल्हन के जोड़े सिलने हैं। डोली लेके आए हैं। हमारे साथ चलो। मैं ऐसी बिलल्ली कि पूछा ही नहीं कि ऐ भया तुम कौन हो, कहाँ से आए हो। बे पूछे गछे डोली में सवार हो गई। सवार होने को तो हो गई। इस के बाद मुझपे वहम सवार हो गया कि जाने ये कौन हैं और मुझे कहाँ लिए जा रहे हैं। पर्दे में से बाहर झाँका तो चारों तरफ़ घना जंगल। दिल धक से रह गया। सौ तरह के वहम। फिर जो मेरी नज़र कहारों के पैरों पे गई तो मेरी तो जान निकल गई। ऐ बी उनके तो पाँव उल्टे थे। एड़ी आगे नीचे पीछे। मुए कम्बख़्त ये तो जिन्नात हैं। दिल में हौलें उठने लगीं। ऐ लो डोली ड्योढ़ी में दाख़िल हो गई। अरे वह घर था, महल था महल। रेशमीं कपड़े के थान मेरे सामने डाल दिए कि कपड़ा यह है। दुल्हन के जोड़े तैयार होने हैं। मगर इन्साफ़ की कहूँगी। उन्होंने ज़रा जो सताया हो। बड़े शरीफ़ जिन्न थे। चलते वक़्त जोड़ा बेड़ा दिया, अशरफ़ियाँ दीं। जिस डोली में आई थी उसी डोली से साथ इज़्ज़त के वापस किया। डोली से मैं उतरी हूँ कि डोली ग़ायब। कहार भी उड़न छू हो गए। या अल्लाह उन्हें आसमान ने निगल लिया या ज़मीन खा गई।”