अजीब-ओ-ग़रीब तावीज़ों आमाल और शोबदात का मज्मूआ
यानी
चीन और बंगाल का जादू
उर्फ़
लौह-ए तिलिस्म
मुरत्तबा-ओ-मुअल्लफ़ा-ए
हकीम अज़हर साहिब देहलवी
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आदमी बंदर मालूम
मुर्दा बंदर का सर तलाश करके लाए। और इस के मुँह में भादों के महीने में भरणी छत्र [नक्षत्र] में सफ़द चर मिट्टी स्याह मिट्टी के साथ बोए। और इस में फल भी लग आएँ तब उन्हें इतवार के रोज़ तोड़े और एहतियात से रख ले बल्कि उनका गंडा यानी तस्बीह बना ले बस यह गंडा जिस आदमी के गले में डाला जाएगा वह बंदर नज़र आएगा। मगर उतार लेने के बाद आदमी मालूम होगा।
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अंधेरे में देखना
ऐसी जगह जाये जहाँ दरया-ए जमुना बहता हो। पस दरिया के किनारे जा कर एलिया मेंडक ले आए जो मेंडकी पर चढ़ा हो। उसे ला कर साये में ख़ुश्क कर ले और इस की ख़ाक आँखों में लगाए तो अंधेरे में भी नज़र आएगा।
बिच्छू पैदा करना
एक मिट्टी के बर्तन में भैंस का गोबर भर दें। और इस में गधे का पेशाब भी डालें। और बर्तन का मुँह मुँद कर के उसे धूप में रख दें। एक आध घंटे ही में बिच्छू पैदा हो जाएगा।
आम पैदा करना
आम की गुठली थूहर के दूध में इक्कीस बार तर करके साये में ख़ुश्क करें पस तैयार है। इस गुठली को जब दिल करे खेत की मिट्टी में गाड़ दें। और इस पर मीठे पानी का छींटा देवें। मगर उस के ऊपर कपड़ा ढाँक दें। पस दो घड़ी बाद दरख़्त पूरा हो जाएगा। और इस पर फल आ जाऐंगे।
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काँच का चबाना
टूटी हुई बोतल का टुकड़ा लेकर आग में डाल कर ख़ूब गर्म करें पस जब वह सुर्ख़ हो जाये तब उसे निकाल कर अदरक के अरक़ में बुझाएँ। मुतवातिर सात बार यही अमल करें। पस उसे चबाएँ। मुँह में ज़ख़्म नहीं होगा। मगर उसे मुँह में रखना चाहिए वर्ना कलेजा कट जाएगा। और आदमी मर जाएगा। हलक़ से नीचे नहीं उतारना चाहिए।
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नक़्श बराए ज़बान-बंदी-ए दुश्मन
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1657 1655 1653
1652 1659 1654
यह नक़्श लिख कर और इस के नीचे अपना नाम मा वलदीयत और अपने दुश्मन का नाम मा वलदीयत लिख कर उसे भारी पत्थर के नीचे दबाएँ हासिदों की ज़बान बंद होगी।
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नासूर दफ़ा हो
जिस शख़्स की नाक में नासूर हो। उसे दिन में सुला दें। फिर साँप की कांचुली लेकर उसे पानी में डाल कर पीस कर नासूर पर लगा दें। और मरीज़ को दवा के ख़ुश्क होने तक सोने की हिदायत करें। पाँच सात रोज़ तक यह अमल करने से नासूर फिर जाएगा।
आसेब उतर जाये
सनीचर की शाम को कुम्हार के घर जा कर एक कूंडा और ६४ दिये यानी मिट्टी के चिराग़ ले आएँ अब कूंडे में चावल दूध और शक्कर भरें। और तमाम चिराग़ों में तेल और बत्ती डाल कर उन्हें रोशन करें। और उनको मा
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कूँडे के आसेब-ज़दा के सर से उतार कर शाम के वक़्त चौराहे में रख आएँ। पस भूत प्रेत आसेब वग़ैरह जिसका साया होगा। वह जाता रहेगा।
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दाफ़े-ए ज़हर-ए धतूरा
पंवाड़ का मग़्ज़ पानी में पीस कर मस्मूम कर दें ज़हर उतर जाएगा।
शराब का नशा उतर जाये
मूली और फिटकिरी पानी में पीस कर मदहोश को बुलाऐं। फ़ौरन नशा उतर जाएगा।
हाज़िरी अर्वाह
फ़ौत-शुदा इन्सानों की रूह को बुलाना। और उन से बातें करना अब इल्मी दुनिया भी तस्लीम कर चुकी है चुनांचे उस की ताईद अक्सर अंग्रेज़ी अख़बारात करते रहते हैं। रूहों के बुलाने का तरीक़ा हस्ब-ए ज़ैल है। इन तमाम उमूर का ख़्याल रखना लाज़िमी है वर्ना कामयाबी नहीं होगी।
एक ऐसी गोल मेज़ लो जो निहायत हल्की हो। और जिसमें लोहा बिलकुल ना लगाया गया हो हत्ता कि इस में लोहे की कीलें भी ना लगी हों।
मेज़ के चारों तरफ़ बहुत सी कुर्सियाँ बिछाओ। अगर बेत की ना मिल सकें तो लकड़ी की सही मगर
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इन पर गद्दी वग़ैरह नहीं होनी चाहिए। ये कुर्सियाँ दस तक हों। और उनसे कम ना हों उन पर आदमी बैठें। बेहतर यह है कि चार पाँच आदमी हलक़ा करें।
हलक़े में अपने दोनों हाथ मेज़ पर रखें यानी फैलाएँ। हर शख़्स अपना दाहिना हाथ दूसरे के बाएँ हाथ से मिलाए रखे। हलक़े के सब आदमियों को मिल-जुल कर बैठना चाहिए। औरतों को भी शामिल कर सकता है। मगर ख़्याल रखो कि ये लोग एक दूसरे को हक़ारत की नज़र से ना देखें। ये लोग अपने ज़हन और दिल को हर क़िस्म के दुनियावी ख़्याल से ख़ाली रखें। और हमख़याल लोगों की कोशिश यकसूई पैदा करें। इस ग़रज़ के वास्ते कोई रुहानी चीज़ गाना मुनासिब है।
बशर्तिके गाने वाला ख़ुश-इल्हान हो। बाक़ी आदमी ग़ौर से सुनें।
याद रहे कि हलक़े में ऐसे लोगों को शामिल नहीं करना चाहिए जिनमें हसद-कीना हो। बल्कि हम-ख़याल और दिली दोस्तों का हलक़ा करना चाहिए। वर्ना काम ख़राब हो जाएगा।
अश्ख़ास-ए हलक़ा नेक-चलन और परहेज़गार होने चाहिऐं। और मुनकिर-ए अर्वाह को भी नहीं शामिल करना चाहिए। वर्ना नाकामी होगी। यानी रूह नहीं आएगी। मश्क़ के हल हो जाने के बाद भी जब अर्वाह से कामिल ताल्लुक़ हो जाये। तब बाअक़ीदा अश्ख़ास और हुजूम की मौजूदगी चंदाँ मुज़िर नहीं। मगर इब्तिदा-ए हलक़ा अलैहिदगी में करना चाहिए। बल्कि मेज़ कुर्सियाँ भी वहीं पड़ी रहनी चाहिएँ। मुनासिब है कि यह मकान सिर्फ़ हलक़ा करने के वास्ते खोला जाये। और बाक़ी वक़्त बंद रहे। हर शख़्स के वास्ते उस की कुर्सी हमेशा के लिए मख़सूस होनी चाहिए। अगर किसी ख़ास अर्वाह को तलब करना मक़सूद हो तो हलक़े के सब मेम्बर आँखें बंद करके इस का तसव्वुर करें। लेकिन यह अमल बाद-ए मश्क़ करना चाहिए। इब्तिदा-ए मश्क़ में किसी ख़ास रूह को ना बुलाऐं बल्कि जो आए उसे आने दें। फिर उस के ज़रीये से किसी ख़ास शख़्स की रूह को तलब करें।
हलक़े के पहले ही दिन कामयाबी लाज़िमी नहीं है। यूँ मुम्किन है कि पहले दिन ही और मक़सद हासिल हो जाये। वर्ना दो दो हफ़्ते इंतिज़ार करना पड़ता है। बहर हाल कोशिश-ए मुस्तक़िल-मिज़ाजी
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के साथ रखनी चाहिए। कामयाबी ज़रूर होगी। अगर कामयाबी में ज़्यादा देर लगे। तो हलक़े के आदमी अपनी अपनी जगह बदल दें। मगर जब कामयाबी हो जाये तो अपनी अपनी नशिस्तों को अपने लिए मख़सूस करें।
हलक़े के मामूल का मुँह शुमाल की तरफ़ और पुश्त जुनूब की तरफ़ होनी चाहिए। यह लाज़िमी है कि हलक़े के एक मेम्बर को सरदार बनाया जाये। यानी बाक़ी मेम्बर उस के अहकाम मानें। यही सरदार मामूल सवाल करे। यानी और लोग अपने सवाल उसे बता दिया करें। सरदार को मामूल के सामने बैठना चाहिए।
हलक़ा मोतदिल मौसम में करना चाहिए। यानी ऐसे वक़्त जब आफ़ताब निकला हुआ हो और अब्र या सर्दी गर्मी की ज़्यादती ना हो। आंधी या बारिश ना हो। तेज़ और सख़्त मौसमों में कामयाबी मुश्तबा है जिस मकान में रोशनी धीमी होनी चाहिए। बल्कि तारीकी बेहतर है।
हलक़े में कुछ देर के बाद अगर मेज़ का पाया उठे या खट-खट की आवाज़ आए तो इस का यह मतलब [illegible] कि रूह आ गई है। मेज़ पर हाथों से ज़ोर नहीं करना चाहिए बल्कि हाथ बहुत नरम रखने चाहिऐं उस वक़्त हलक़े का सरदार अपना इतमीनान करने के लिए कि रूह वाक़ई आ गई है। यह आवाज़ कहे कि अगर कोई रूह आ गई तो वह उठेंगे पस अगर रूह आ गई तो दो पाए उट्ठेंगे।
बाज़ वक़्त पाए उठने के बजाय खटका होना या किसी मेम्बर के हाथ काँपने लगते और उँगलियाँ हिलने लगती हैं। पस यही मामूल की शाख़्ता है। पस उस के हाथ में पेंसिल काग़ज़ दे दो और लिखने दो कि क्या लिखता है। और उसी ज़बान में लिखेगा जो आने वाली रूह की ज़बान होगी। अगरचे वह मेम्बर वह ज़बान ना जानता हो यही रूह के आएगा बड़ा सबूत है पस अब उस से ज़रूरी सवाल करने चाहें। इम्तिहानी सवालात भी किए जा सकते हैं। और उनके जवाब सही होंगे।
बाज़ वक़्त मामूल पर ख़्वाब तारी हो जाता है। और उस के मुँह से बेमानी से अलफ़ाज़ निकलते हैं। गोया वह ख़्वाब में बड़बड़ा रहा है। ऐसा मामूल जल्द बातें करता है। और इस वक़्त उस की ज़बान के सिवा बाक़ी आज़ा मुअत्तल हो जाते हैं। वह रूह की ज़बान
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में गुफ़्तगु करता है। और इस तरह से बिलकुल नाख़्वान्दा अश्ख़ास को अरबी। फ़ारसी। अंग्रेज़ी जर्मनी और फ़्रांसीसी बोलते देखा गया है। बाज़ औक़ात मामूल को रूहें नज़र आती हैं। और इसी हालत में उसे दूर दीवार या आसमान में सुनहरी तहरीर नज़र आती है जिसे वह पढ़ता और इस का मतलब बयान करता है ऐसे मामूल इस क़दर तरक़्क़ी कर जाते हैं। कि उनके पास रूहें मा जिस्म के आने लगती हैं। और उन्हें ना सिर्फ़ मामूल और सरदार-ए हलक़ा बल्कि हलक़े के तमाम मेम्बर देख सकते हैं।
ये रूहें बातें करतीं। गातीं और लैक्चर देती हैं। अगर यह सूरत हो। तो मामूल को आला दर्जे का मामूल समझना चाहिऐं। बाज़ औक़ात हलक़े के मकान की चीज़ें बाहर चली जाती हैं। और बाहर की अंदर आ जाती हैं। हालाँकि दरवाज़ा बंद होता है पस ये तमाम काम रूहों का समझना चाहिए। हर जानदार बल्कि ग़ैर-जानदार के बदन से भी एक क़िस्म का नूर निकलता है। और मस्मरीज़म [mesmerism] का उसूल उसे बख़ूबी देखता है। इस नूर को अंग्रेज़ी में ओडालल [ओडाइल = odyle] कहते हैं। पस जिस आदमी के बदन से ओडालल ज़्यादा निकले वह अच्छा मामूल बन सकता है।
अगर कोई ख़ास रूह बुलाई जाये तो हलक़े के मेम्बरों में से किसी एक के फ़ौत-शूदा रिश्तेदार की रूह आ जाएगी।
अगर बद-रूहें हलक़े में आ जाती हैं तो वे हलक़ा-वालों को दक़ करती हैं। पस उनके दफ़ीया की तदबीर यह है कि ख़ुदाई हम्द और गो चन्दी ग़ज़लें और गाने गाएँ ताकि अर्वाह हलक़े में ना आ सकें। और दुआ करते हैं। कि ख़ुदा किसी बुज़ुर्ग रूह को उनके हलक़े में भेजीए।