अतिलघु-रामायणम्

अतिलघु-रामायणम्

हम्. क. रामप्रियः

नवेम्बर् २८, २००७

रघु-वर तव पद-कमलम्-अति मृदुल-

मिति मधुर-कवि-वचनम्-इति स वदति ॥१॥

दशरथ-सु-तनय कुशिक-तनय-मख-

विदलक-विदलन जनक-पुर-गमन ॥२॥

विभजित-शिव-धनुर्-अधिकृत-परिणय ।

जनक-दुहितृ-युत-निज-पितृ-पुर-गत ॥३॥

जनक-वचन-धृत वन-चरित-चरण ।

पद-कमल-पतित-भरत-तद्-अवन-द ॥४॥

हरिण-तनु-दितिज-यम-सदन-गमित ।

अपहृत-जनक-दुहितृ-विषय-विदित ॥५॥

पवन-तनय-नुत रवि-सुत-सुहृदय ।

शर-विभजित-तद्-अहित-कर-कपिवर ॥६॥

पवन-सुत-विदित-सुख-विषय-मुदित ।

कपि-जन-विरचित-पथि जलधि-तरण ॥७॥

असुर-गण-हनन दश-वदन-दमन

नत-तदनुज-दितिज-पति-पद-नयन ॥८॥

धन-पति-गगन-गमन-गत-निज-पुर ।

तुषित-भरत-गुरु-जन-पुर-जन-गण ॥९॥

अधिगत-नृप-पद जनपद-नत-पद ।

नत-गुरु-जन-पद सरसिज-सम-पद ॥१०॥

अघ-हरण-निपुण सरसिज-सुनयन ।

पितृ-वचन-धरण सकल-रिपु-दमन ॥११॥

अपरिमित-सुगुण रघु-कुल-सुतिलक ।

तव चरण-कमलम्-इह शरणमिति च ॥१२॥

रघु-वर तव पद-कमलम्-अति मृदुल- ।

मिति मधुर-कवि-वचनम्-इति स वदति ॥१३॥

गुरु-रहित-दशरथ-तनय-नुतिर्-इह

लघु-लिखितमपि च रघु-वर अवतु ॥१४॥