साधना में छोटे छोटे विघ्नों से बच जाए तो ईश्वर प्राप्ति सभी को हो सकती है,और ईश्वर प्राप्ति के सिवा जो कुछ प्राप्त किया सब धोखा है.. सब छूट जाएगा, आज तक जो जाना है जो पाया है आज के बाद जो जानेंगे जो पाएंगे वह सब तुम्हारा नहीं है न था न रहेगा.. लेकिन ईश्वर तुम्हारा था है और रहेगा उस ईश्वर को पाने के लिए साधना में रुचि बढ़ानी चाहिए..
कभी रूचि के अनुसार साधन नहीं होता अथवा कभी रूचि के अनुसार साधन मिलता है लेकिन विश्वास कम होता है, जगत का विकारी आकर्षण ज्यादा होता है अथवा काम विकार मे गिर जाने से फिर साधन में रुचि नहीं होती, अथवा तो शरीर बीमार होने से साधन में रुचि नहीं होती या तो प्रमादी बनकर भी साधन से आदमी विमुख हो जाता है याह साधन करने से थोड़ा तेजस्वी होता है तो वाहवाही होने लगती है, वाहवाही के चक्कर में आकर भी साधन छोड़ने लग जाता है,
प्रवचनकार कथाकार भाषणकार बन जाता है.. अपने को कुछ विशेष मानने लग जाता है तो उसका पतन शुरू हो जाता है..
वाहवाही का भोग करना अथवा तो थोड़ा बहुत साधन करे और बहुत बखान करें जितना साधन करते हैं उसकी भी बखान नहीं करनी चाहिए, साधन तो छुपा कर करो अपन जितने ऊंचे हैं लोगों को पता ना चले लेकिन लोग तो जितने ऊंचे हैं उससे 10 गुना ऊंचे हो कर दिखाते हैं.. तो फिर भगवान अंदर जानते हैं इसको तो वाहवाही चाहिए, इसको तो ढोंग चाहिए तो मेरा क्या काम तो फिर भगवान प्रकट नहीं होते...
.. इसलिए जो भी साधन करें उसका प्रदर्शन ना करें और अपने में विशेषता ना लाएं कि मैं विशेष साधन करता हूं मैं कुछ हूं..
.. यह तो भगवान की कृपा है कि भगवान के रास्ते हमको चला रहे हैं.. ईश्वर की कृपा है कि मेरे को सेवा का मौका दिया..
मैं खास प्रेसिडेंट हूं.. मैं खास हूं.. मैं खास हूं.. तो बाहर का खास खास रावण का कैसा था, रेगन का कैसा था, हिटलर का कैसा था.. वह खासपना तो बेखास हो जाता है..
.. खास तो भगवान ही है जिसकी सत्ता से देखते सुनते सोचते उस भगवान को पाए बिना अपने में खास मानना.. यह मन धोखा देता है
भगवत प्राप्ति की तड़प ना होने से भी साधन में रुचि नहीं होती, जैसा तैसा आया खा लिया भोग लिया उससे भी साधन लड़खड़ाने लगता है
अखबार टीवी टेलीफोन यह भी साधन मार्ग में विघ्न हीं है इससे भी बचना चाहिए कम से कम इनका उपयोग करें और बाकी का समय भगवान में मन लगे.. ज्यादा खर्च करना भी साधक के लिए बुरा है, भले धनी हो तो भी अपने लिए ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है, कर कसर का जीवन हो कम बोलने वाला हो, शादीशुदा हो तभी भी पति पत्नी भी एक दूसरे का ओज बड़े इसलिए अलग रहना चाहिए संयम से रहना चाहिए.. तो साधन में बरकत आएगी..
ओज तेज नास जाता है तो फिर भगवान नहीं मिलते..
साधन के नियम नहीं पालते तो भगवान नहीं मिलते, भगवान ने मिलने के लिए तो सद्बुद्धि दिया, मिलने के लिए तो मनुष्य शरीर दिया, मिलने के लिए तो सद्गुरु दिया, कईयों को संयम भी होता है साधना में रुचि भी होती है लेकिन उत्तम सतगुरु के अभाव में उत्तम साधन का पता ही नहीं होता.. फिर जीवन भर बिचारे उसी कुनडाले में घूमते रहते हैं..
.. और कईयों को सतगुरु मिलते हैं तो बेचारे नियम पालने में लापरवाही कर लेते हैं, अथवा वाहवही के भोक्ता बन जाते हैं..
ट्रस्टी बन गए अध्यक्ष बन गए खजांची बन गए.. वाहवाही मिल गई.. बस साधन भजन छूट गया.. नहीं साधन भजन में लगा रहे, जो सेवा कार्य मिला है वह भी साधना बनाकर करें वाहवाही के लिए नहीं करें और सेवा कितना किया है यह ना देखें उससे बढ़िया और कितना कर सकते हैं यह देखें..
ज्यों ज्यों पुण्य होता है और संसार नश्वर लगता है विवेक होता है,लोगों को मरते हुए देखेंगे कि आखिर अपन भी मरेंगे तो फिर भगवान में प्रीति होगी साधन में रुचि होगी...
साधन में रुचि है लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता जो आया खा लिया जो आया भोग लिया तो फिर मन रजोगुण और तमोगुण रहता है तो साधन में रुचि नहीं होती..
आर्त भाव से भगवान को प्रार्थना करें और साधन में रुचि बढ़ाने वाले ग्रंथ महापुरुषों के जीवन चरित्र पड़े सत्संग करें और भगवान को आर्त भाव से प्रार्थना करें कि मेरी तुम्हारे में प्रीति नहीं होती.. अपनी प्रीति का दान दो, साधना में रुचि दो..
कुछ मजहब बोलते हैं कि अल्लाह की मौज गॉड की मौज, किसी को भी बिष्त मे ला दे और किसी को भी दोजक में फेंक दें.. लेकिन शास्त्र कहते हैं कि राष्ट्रपति की मौज किसी को कलेक्टर बना दे और किसी को चपरासी बना दे हैं.. ऐसा राष्ट्रपति नहीं करh सकता..
अनपढ़ को कलेक्टर बना दे और कलेक्टर को चपरासी बना दे , उसको भी नियम निष्ठा में जीना पड़ता है |
प्राइम मिनिस्टर की मौज, राजा की मौज... ऐसा नहीं चलता राजा को भी अपनी मर्यादा से चलना पड़ता है.. अल्लाह की मौज किसी पर भी रहमत कर दिया और किसी को बिस्त दे दे..
इसका मतलब होगा गॉड पक्षपाती है अल्लाह पक्षपाती है.. अथवा तो मुडी है .. मुड़ी आदमी खतरनाक होता है..अल्लाह और गॉड खतरनाक है क्या..
तो शास्त्र कहते हैं कि ऐसे अल्लाह और god को बदनाम मत करो..
जो अल्लाह के लिए भगवान के लिए गॉड के लिए भजन करेगा सुमिरन करेगा संसार की इच्छाएं छोड़ता जाएगा ईश्वर को पाने की इच्छा करेगा तो उधर भगवान उसको मदद करेंगे.. अभी यहां बैठे हैं तुम्हारे मन में जिधर की इच्छा होती है चेतन वहीं मदद करता है, कोई नदी किनारे घूमने जाएगा कोई गुरुकुल में जाएगा तो कोई रसोई में जाएगा तो कोई फुटपाथी लोगों की नाई चाय और पकौड़े खाने जाएगा तो मन में जिधर की रुचि है उधर ही तो मदद करता है चैतन्य इलेक्ट्रिसिटी तुम्हारा जो इंस्ट्रूमेंट लगा दो उधर की मदद करती है.. तो भगवान तो सत्ता मात्र है तठस्त मात्र है.. भगवान तटस्थ और भगवान के पांच भूत भी तटस्थ है.. जैसे गंगा जी है तो यह नहीं सोचती कि गाय को शीतल जल दें और चिता पीता है तो उसको कीचड़ वाला जल दो.. ऐसा गंगाजी नहीं करती
सूरज ऐसा नहीं करता कि धर्मात्मा को प्रकाश मिले और पापी को ना मिले.. बरसात में ऐसा नहीं करती, तो भगवान सत्ता मात्र देते हैं.. तो जिसकी जिधर की रूचि होती है उसको उधर की मदद करते हैं.. गलत रुचि होती है तो उसको रोकते टोकते हैं लेकिन रुकता टूकता नहीं है तो सत्ता देना तो उनका स्वभाव है..
फिर उसको फल देकर दुख पाप नरक दे कर फिर मनुष्य शरीर में लाते हैं..i
अल्लाह की मौज गॉड की मौज.. ऐसा नहीं होता तो सृष्टि चल नहीं सकती प्राइम मिनिस्टर के मौज राज्य नहीं चल सकता.. राष्ट्रपति की मौज से राष्ट्र नहीं चलता, राष्ट्र को चलाने के नियम होते हैं.. ऐसे ही अल्लाह की मौज गाड की मौज तो इसमे पक्षपात हो जाएगा करमदोष जाएगा कर्मों में अनियमितता आ जाएगी.. और पुरुषार्थ का कोई वैल्यू नहीं भक्ति का कोई वैल्यू नहीं.. अगर उसी की मौज पर है तो भक्ति क्यों करें अच्छाई क्यों करें फिर डाका डालो उसकी मौत आए तो बिस्त दे देगा नहीं तो दोजक..
ऐसा नहीं है गॉड को बदनाम मत करो अल्लाह को बदनाम मत करो..
कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करें तैसा फल चाखा |
वाली ने तपस्या करके वरदान मांगा कि मैं किसी से ना मरु.. बोले ऐसा नहीं हो सकता कुछ नियम रखो.. तुम बोले कि जो भी मेरे से लड़ने आए उसकी आधी शक्ति मेरे पास आ जाए और मैं उसी की शक्ति से उसको परास्त कर दूं.. वरदान मिल गbया.. तो सुग्रीव की पत्नी को बुरी नजर से अपने पास रखने लगा और गड़बड़ करने लगा.. सुग्रीव राम जी की शरण गया...तो देखा कि बाली ने तो आतंक मचा रखा है, बाली को मारना जरूरी है उपदेश से सुधरेगा नहीं.. तो सामने जाएंगे तो आधी शक्ति श्री राम जी की उसमें चली जाएगी.. तो श्री राम जी ने छुपके उसको मारा... मरते समय बाली ने कहा कि मैंने क्या बिगाड़ा तो बोले कि तुमने इतना इतना जुलम किया है मेरी तो शत्रुता नहीं थी तुम्हारे साथ लेकिन प्रकृति के नियम के विरुद्ध तुमने यह किया इसलिए मुझे ऐसा करना पड़ा.. बाली ने कहा कि करना पड़ा लेकिन मैंने तुम्हारा दोष नहीं किया तो तुमको ऐसा करना अन्याय होगा तो बोले कि ठीक है तुम भी एक बार मेरे को मार लेना.. तू वही कृष्ण अवतार में बाली ने श्री कृष्ण के पैर में बाण मारा..
तो गाड की मौज कैसे गाड को भी अपने को नियम में रखना पड़ता है...
अपने शास्त्र बोलते हैं भगवान भी अपने नियमों का मर्यादा का पालन करते हैं..
जैसे समाज में प्रेम की रस की कमी दिखती है तो प्रेमावतार धारण करते हैं..बालक बन जाते हैं..भूख लगती है.. ओखली में बंधते हैं.. मां की डांट फटकार और माँ डंडा लेकर पीछे पीछे भागी तो भाग रहे हैं.. दूर-दूर मां पीछे डंडा लेकर.. माँ माँ नहीं करूंगा अब नहीं करूंगा.. मां मेरे को मक्खन दे.. दुनिया को देने वाले को भी मां के आगे मांगना पड़े.. मां मेरे को चांद ला कर दे, मेरे बाप नहीं आएगा.. बाल लीला करनी है प्रेम लीला करनी है तो भगवान को भी बच्चा बनना पड़ता है.. बुधु कि नाई बोलना पड़ता है कि चांद ला कर दो..
प्रेमा अवतार.. स्मृति करने से मजा आता है प्रेम उत्पन्न होता है..
समाज में ज्ञान की जरूरत पड़ी तो भगवान का कपिल के रूप में प्राकट्य हुआ..
मर्यादा की जरूरत पड़ी तो रामावतार में आए..
अल्लाह की मौज... कैसे अल्लाह की मौज?
हमारा उनसे कोई विरोध नहीं है लेकिन ऐसी उनकी मान्यता है विचारों की, लेकिन सनातन धर्म बोलता है कि ईस प्रकार अल्लाह पर भगवान पर दोष हो जाएगा..
साधन भजन करेंगे तो उसमें रुचि पैदा होंगी रुचि के बाद रति पैदा होंगी औ रती पैदा होते ही भगवान भी प्रेम के भूखे होते हैं.. जैसे बच्चों को प्रेम से मां की ओर देखता है तो माँ भी प्रेम से सब काम छोड़ कर गले लगाती है.. ऐसे ही भगवान भी छुपकर नहीं रहते प्रकट हो जाते हैं.. तो अपनी रूचि होनी चाहिए साधन में..
तो साधन में रुचि करते हैं लेकिन साथ साथ में और साधन करते हैं इसलिए सीधा जल्दी गति नहीं होती पुण्य कर्म भी करते रहते हैं और इतना चलेगा इतना चलेगा कर के साधन के प्रभाव को भी मिटाने की गलती करते रहते हैं..
1 साल के लिए बस लग जाए कि ईश्वर के सिवाय कुछ भी नहीं चाहिए..
1 साल नहीं कर सकते ले फिर भी तड़प बढ़ाकर 6 महीने में लग जाए.. 6 महीना नहीं तो 1 महीना भी लग जाए तत्परता से कि ईश्वर के सिवाय और कोई सार नहीं ईश्वर ही चाहिए.. तो भी ईश्वर कृपा कर देते हैं एक महीना नहीं तो एक हफ्ता के लिए भी करो तो भी ईश्वर प्रगट हो सकते हैं..
3 दिन के लिए ईश्वर के सिवाय और कुछ भी नहीं चाहिए ऐसी तड़प से बैठ जाएं तू भी ईश्वर की कृपा और ईश्वर प्रकट हो सकते हैं.. जितना समय कम उतना तड़प ज्यादा चाहिए.. 1 दिन भी तड़प की पराकाष्ठा हो तो भगवान को प्रकट होना पड़ेगा..
बच्चा मां के लिए तड़पे और मां के सिवा और किसी को ना चाहे.. वो माँ ना आए तो वह माँ नहीं है..
गोरखपुर में स्वामी रामसुखदास जी ने अपने प्रवचन में ऐसा कहा ईश्वर के लिए तड़प यदि तीव्र हो 6 महीना साल भर नहीं तो 1 दिन भी... तीव्र तड़प हो तो भगवान मिल जाएंगे,..
एक अधिकारी थे उन्होंने देखा कि मेरे को तड़प तो है लेकिन जब तक ईश्वर ना मिले तब तक उठेंगे नहीं.. 1 दिन में अगर ईश्वर मिल जाते हैं तो मैं तो बैठे ही जाता हूं... पूजा के रूम में बैठकर ईश्वर के लिए तड़प जगाई रोए.. तो कमरे में सुगंध सुगंध कुछ दिव्यता.. लेकिन 24 घंटे तो बीत गए 25 भी बीत गए लेकिन ईश्वर आए नहीं.. न अंतरात्मा में न बाहर से.. साकार रूप में चाहे तो वो साकार रूप में भी प्रकट हो सकते हैं.. और तत्व रूप में चाहे तो तत्वरूप में भी कृपा करते हैं.. तड़प तड़प रहे तो गुरु भी छलक जाते हैं..
तो 24, 25 घंटे हो गए कुछ हुआ नहीं..
.. महाराज मैंने एक दिन तो पूरा लगा दिया ईश्वर की तड़प में लेकिन भगवान तो नहीं आए..
महाराज जी ने कहा कि नहीं कैसे आए... तुम पूरा तड़पे,
तो उन्होंने कहा हां महाराज में पूरा तड़पा..
तुम्हारे मन में यह आया था कि भगवान एक दिन में कैसे आ जाएंगे.. बोले हां महाराज आया था
महाराज ने कहा कि तो फिर साधन में असाधन डाल दिया ना फिर कैसे आएंगे भगवान..
संसय से सबको खात है, संसय सबका पीर..
संशय की जो फांकी करें उसका नाम फकीर |
हम को कैसे मिल सकते हैं भगवान हम तो पापी हैं, हम तो स्त्री हैं हम तो ऐसे हैं.. हमने ऐसी साधना नहीं की..एक जवान था बड़ी तड़प थी कुछ भी हो जाए ईश्वर को पाएंगे, गिरनार चला गया जाकर पत्थर पर बैठ गया, लोगों ने बोला महाराज इधर तो शेर चीते घूमते हैं कहीं खाना जाए... बोले नहीं मेरे को तो भगवान पाना है.. सेर क्या कर लेगा चिता क्या कर लेगा.. ऐसे दम मार के बैठ गए.. कहीं खा ना जाए कहीं खा ना जाए सीताराम सीताराम... आया और खा गया | तो साधन के साथ असाधन हो जाता है..
या तो बोलते हैं हम योग्य नहीं है या तो बोलते हैं संसार का मजा लेना है या तो बोलते हैं कि इतना कर ले फिर से भजन करेंगे..
ऐसा कुछ ना कुछ मन का घुस जाता है इसलिए कठिन हो जाता है.. संसार का सुख ठिकाना असंभव है और भगवान को छोड़ना असंभव है, भले भगवान नहीं मिले फिर भी आप उसको छोड़ नहीं सकते.. शरीर छोड़ देते हैं लेकिन अपनी आत्मा परमात्मा को अपन नहीं छोड़ सकते.. इसको अपन छोड़ नहीं सकते उसका आज तक मुलाकात नहीं है देख लो मन की कैसी बहिरमुखता है..
पहले जप करके फिर धीरे-धीरे होठों में करें फिर कंठ में फिर ह्रदय में जप के के अर्थ में लीन हो जाए.. फिर मन इधर उधर जाए तो जोर से हरि ओम का गुंजन करें..
मन ईश्वर में लीन हो, हिले ना जिह्वा ओठ...
साधन करते-करते ऐसी अवस्था में चला जाए बस.. मन इधर उधर sचला जाए फिर होठों में जप करें.. फिर उधर उधर जाए जोर से पुकारे.. हरि ओम नारायण नारायण प्रभु प्रभु मन भाग रहा है... अरे भाग रहा है तू कहां जा रहा है ओम ओम प्रभु प्रभु.. आनंद आने लगेगा..
एकटक देखता रहे भगवान को गुरु को स्वस्तिक को जिसमें जिसकी श्रद्धा साधन में रुचि होने लगेगी.. फिर रूचि के बाद साधन अपने आप होने लगेगा तो फिर वह साधन रस देगा..
पहले अभ्यास करना पड़ता है मन इधर उधर जाए बार-बार घुमा कर उसको ले आओ.. यह मन की विक्षिप्त अवस्था है..
अभ्यास करना मतलब यह धारणा हो गई धारणा होने के बाद योग की भाषा में रुचि होने लगी तो समझो यह ध्यान होने लगा रुचि यदि परिपक्व होती है तो रत्ती का रूप लेगी तो समझो समाधि हो गए खुली आंख समाधि वह तो ईश्वर मय हो गया..
योग की भाषा में बोलते हैं ऐसा अभ्यास किया तो क्षिप्त फिर अभ्यास बढ़ाया तो एकाग्र..
शुरू में नियम के अनुसार किया तो वेदी भक्ति.. फिर भगवान की महिमा गुण और जहां-तहां भगवान की सत्ता का एहसास महसूस करना गौड़ी भक्ति, गुणों का चिंतन करते करते अनुरागा भक्ति... अनुराग हो गया तो फिर करना नहीं पड़ता जैसे जिसका लव हो जाता है तो घर में काम करते भी अपने लवर को याद करती है लवर भी ऑफिस में दुकान में कहीं भी होते हुए लवरी के चिंतन में खोया रहता है.. लवर लवरी का शरीर तो हाड मास का है और काम विकार में कपट है भगवान तो दिव्य है और निष्कपट है एक बार लग गया तो फिर भक्त और भगवान की प्रीति नित्य नवीन रस देती है.. लवर लवरी तो कहीं दूसरी जगह फंस जाते हैं और मर भी जाते हैं, धोखा भी देते हैं..
भगवान न फंसते हैं न मरते हैं ना धोखा देते हैं, भगवान तो नित्य जीव के सखा है लवर लवरी से प्रीति हो गई तो हाड, मास, नाक थूक.. उसी से मुलाकात होगी और भगवान से प्रीति हो गई तो इसमें रहते हुए भी इससे बार तत्वों में मस्त रहेंगे... वह नकली दांत और लंबे लंबे केश लवरी के पीछे भागा तो क्या हो गया... आखिर मन थका क्या मिला.. असली दांत और केस होते तो भी क्या मिल जाता ..
कबीरा कुत्ते की दोस्ती दो बाजू जंजाल रिझे तो मुह चाटे और खींझे तो पग काटे..
.. संसार का सुख सब ऐसे ही है
धन मे लवर लवरी में.. संसार में अगर सुविधाएं मिली तो आयुष्य खत्म हुआ असुविधा मिली तो दुख हुआ और क्या है संसार में..
.... देख लो हालत सीनियर सिटीजन की जो वृद्ध आश्रम में रहते हैं.. फिर भी वहां पटाखे छोड़ते रहते हैं कि मैं इंजीनियर था मैं यह था में वो था फिर भी मेरे को कोई पूछता नहीं..
बुद्धि में इंजीनियरिंग घुसी वकालत घुसी उसी को मैं मैं मान रहा है तू क्या है तुझे पता ही नहीं बेटे..
अपने को खोजो गे तो भगवान मिल जाएंगे और भगवान को खोजो गे तो अपना आपा मिल जाएगा दोनों एक दूसरे के अविभाज्य अंग है अपने को खोजो तो भी ईश्वर मिल जाएगा.. ऐसा है..
जो कभी नहीं मरता वह ईश्वर है.. खोजो कौन नहीं मरता शरीर मरने के बाद भी कोई मरता नहीं है.. तो कैसा है कहां है खोजो, दुख आया तो खोजो किसको दुख हुआ.. इसने दुख दिया उसने दुख दिया यह अल्प मती के लोग मानते हैं.. अरे पूरा संसार सुख दुख की थप्पड़ खा रहा है.. राग द्वेष से निंदा स्तुति से सारा संसार का खेल है इसी खेल से खिलाड़ी समझ के छक्का मार के अपना पार हो जाओ.. सदा किसी को सुख नहीं मिलता सदा किसी को दुख नहीं मिलता, सदा किसी का कोई शत्रु नहीं रहता सदा किसी का कोई मित्र नहीं आता यह सब चलता रहता है.. बिना तरंग के दरिया होता है क्या.. फिर भी तरंग जहां है है और दरिया गहराई में ज्यों का त्यों है..
ऐसे ही आपका आत्मा ज्यों का त्यों है मन की तरंगों में यह सब संसार की आपाधापी चलती है.. ऐसा हो जाए वैसा हो जाए तो यह सब चलता रहेगा भगवान के पिता श्री भी संसार को ठीक नहीं कर सके भगवान आए उस समय भी संसार तो ऐसा वैसा था..
तू तो तेरे पैर में बस जूती पहन ले सारे जंगल में से कांटे चले जाएं यह संभव नहीं है लेकिन तेरे पैर में जूती पहले तो तेरे को काटा ना लगे ऐसे ही तेरे ह्रदय में ज्ञान का कवर चढ़ा दे तो संसार के कांटे ना चूभे ह बस.