बिन प्रेरणा के कोई भी मनुष्य महान उच्चाई को प्राप्त करना असंभव है | और हमारे पूर्व जीवन की संस्कार ही हमें अच्छे या बुरे कर्म करने की प्रेरणा देती है| जैसे हम संग करेंगे ऐसे ही हमें संस्कार मिलेगा | हमें भी ऐसे ही हुआ था | आप भी उसे वच कैसे सकते हैं | बिन पुण्य संस्कार आप इस साईट पे आ नहीं सकते | जिज्ञासु ही यहाँ आकर लाभान्वित हो सकता है अन्य नहीं |
वृत्तयः पंचस्तस्य क्लिष्टाक्लिष्टाः
( पतंजलि योग दर्शन॥ १.५ ॥ )
वृत्तियाँ पांच प्रकार की होती है - क्लेश कारक और अक्लेश कारक |
भौतिक जगत में जिन जिन स्रोत से वृत्तिओं में इश्वर अनुराग उत्पन्न होता है उसको ही सत-प्रेरणा कहा जाता है |
हर एक के जीवन में न्यूनाधिक भूमिका इसका रहता है |
हमे भी इसका अनुपम लाभ मिला --
जैसे श्रीमद भगवत गीता --
मेरे आश्रम जीवन में हम प्रत्येक दिन त्रिकाल संध्या में जब बैठते हैं उसमे से प्रातः संध्या में गुरूजी ने एक गुरुवन्दना नियम में समाविष्ट किए है | जो शुरू से लेकर आज तक जितना जितना उसको सुनता हूँ गा'ता हूँ उतना उतना अथ्यात्मिकता के गहराई में डूब जाता हूँ | मानो यह ज्ञान के सम्पूर्ण महा सागर इसमें समाया है | यह है तो मात्र एक पद्यवली है, पर ये सामान्य नहीं है , इसको जितना जितना विश्लेषण करेंगे उतना ही उतना इसके गहराई को समझ पाएंगे गुरूजी के साथ एकाकार होते जाएँगे इसके आगे कुछ कह नहीं सकता स्वयं ही गोता लगाएं यही आप से बिनती है .....|
गुरु वन्दना
जय सदगुरु देवन देव वरं, निज भक्तन रक्षण देह धरम।
पर दुःख हरम सुख शांति करं निरुपधि निरामय दिव्य परम ।।1।।
जय काल अबाधित शांति मयं, जन पोषक शोषक ताप त्रयं।
भय भंजन देत परम अभयं , मन रंजन भाविक भाव प्रियं।।2।।
ममतादिक दोष नशावत है, शम आदिक भाव सिखावत है ।
जग जीवन पाप निवारत है, भव सागर पार उतारत है ।।3।।
कहूँ धर्म बतावत ध्यान कहीं, कहूँ भक्ति सिखावत ज्ञान कहीं।
उपदेशत नेम अरु प्रेम तुम्ही, करते प्रभु योग और क्षेम तुम्ही।।4।।
मन इन्द्रिय जाहिं न जान सके, नहीं बुद्धि जिसे पहचान सके।
नहीं शब्द जहां पर जाय सके , बिनु सद्गुरु को पहुँचाय सके।।5।।
नहीं ध्यान न ध्यातृ न ध्येय जहाँ, नहीं ज्ञातृ न ज्ञान न ज्ञेय जहाँ।
नहीं देश न काल न वस्तु तहाँ, विनु सद्गुरु को पहुँचाय वहाँ।।6।।
नहीं रूप न लक्षण ही जिसका , नहीं नाम न धाम कहीं जिसका ।
नहीं सत्य असत्य कहाय सके , गुरुदेव ही ताहि जनाय सके ।।7।।
गुरु किन कृपा भव त्रास गयी, मिट भूख गयी छूट प्यास गयी।
नहीं काम रहा नहीं कर्म रहा , नहीं मृत्यु रहा नहीं जन्म रहा।।8।।
भग राग गया हट द्वेष गया , अघ चूर्ण भया अणु पूर्ण भया
नहीं द्वेत रहा सम एक भया, भ्रम भेद मिटा मम तोर गया।।9।।
नहीं मैं नहीं तू नहीं अन्य रहा , गुरु शास्वत आप अनन्य रहा।
गुरु सेवत ते नर धन्य यहाँ, तिनको नहीं दुःख यहाँ न वहाँ।।10।।
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श्री योग वाशिष्ट महारामायण ग्रन्थ
सद्गुरु सेवा
सत्संग श्रवण
पतंजलि योग दर्शन ग्रन्थ
परमहंस योगानंद (जीवनी)
बास्तविक जीवन में एक भौतिक विज्ञानं की विद्यार्थी होने के कारण एक समय जब में भगवत सत्ता पर शंका में घेरा हुआ था तब अचानक यही तस्वीर एक कैलेंडर के रूप में मेरे सामने आया था | और इसी से मुझे बहुत बल मिला था | और आज भी मिलता है आप भी यदि इन में लिखी हुई वचनों का मनन करेंगे आप को भी बहुत बल मिलेगा | यह केवल एक ही मत पंथ के लिए नहीं है | अपितु यह सभी के लिए सामान रूप से प्रेरणा दायी है | वह प्रतिज्ञा है -
मेरे मार्ग पर पैर रख कर तो देख ,
तेरे सब मार्ग न खोल दूँ तो कहना !
मेरे लिए खर्च करके तो देख ,
कुबेर के भंडार न खोल दूँ तो कहना !
मेरे तरफ आ के तो देख ,
तेरा ध्यान न रखूं तो कहना !
मेरी बात लोगो से कर के तो देख ,
तुझे मुल्यवान न बना दूँ तो कहना !
मेरे चरित्रों का मनन करके तो देख ,
ज्ञान के मोती तुझ में न भर दूँ तो कहना !
मुझे अपना मददगार बना के तो देख ,
तुमसे सब की गुलामी न छुड़ा दूँ तो कहना !
मेरे लिए आँसू बहा के तो देख ,
तेरे जीवन में आनंद के सागर न बहा दूँ तो कहना !
मेरे मार्ग पर निकल के तो देख ,
तुझे मशहूर न करा दूँ तो कहना !
तु मेरा बन के तो देख ,
हर एक को तेरा न बना दूँ तो कहना !
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