आधुनिक भौतिक विज्ञान ( science ) के अनुसार मृत्यु केवल स्वास (breathe ), हृदयगति (heart beat) और मानसिक चेतना (sense ) का अभाव है | परन्तु यह ज्ञान अपूर्ण है | इन सब के अभाव होने के बाद भी हम रहते हैं | यह हमारे मनीषीयों ने सिद्ध करके दिखाया है | हम जैसे कपडे पुराने होने के बाद बदलते हैं | ऐसे ही यह शरीर जीर्ण होने के बाद हम फिर नया शरीर प्रकृति अनुसार धारण करते हैं |
मृत्यु के बाद क्या होता है ?
प्रकृति के सृजन में तीन गुण होते हैं | इसकी न्यूनाधिक संयोग से सृष्टि क्रम चलता है । मनुष्य के स्वाभाव भी इन तीनो गुणों द्वारा प्रभावित होते हैं | ये हैं सात्विक, राजसी और तामसी स्वभाव ।
जो आया वो खा लिया, जो आया वो बोल दिया, जो दिल में आया कर डाला कुछ सोचा नहीं । जिसकी तामसी आदत है आलस्य,निद्रा, झूठ, कपट तो ये तामसी, राजसी स्वभाव के लोग हैं । तामसी स्वभाव अगर छुपा-छुपा के करते गये तो मरेगा तो तिर्यक योनि में जायेगा, साँप, मेंढ़क, पतंगिया, छछूंदर, दूसरी ऐसी तमस प्रधान योनि होती हैं ।
जिनका राजसी स्वभाव बन जाता है, राजसी स्वभाव का बहलिया होता है और पाप ज्यादा नहीं करते तो मरने के बाद मनुष्य योनि में आते हैं । राजसी स्वभाव में लोभ, काम, क्रोध होता है लेकिन साथ-साथ में पाप से बचता रहता है । जब भूल कर लेता है तो पश्चयताप कर लेता है । ऐसे जमा-उधर गाड़ी चलती है वो राजसी स्वभाव के होते हैं । राजसी स्वभाव में भी सात्विक का अंश ज्यादा है तो ऊँचे कुल का होगा । और तामसी स्वभाव ज्यादा है तो नीच योनि का मनुष्य होगा । कहीं अनपढ़ वातावरण में, झोपड़-पटी में, शराबी-कबाबी के घर में । अथवा तो राजसी है लेकिन कुछ शुभ कर्म ज्यादा हैं तो किसी संत के, भक्त के, अच्छे कुल के संस्कार वाले में जन्म लेगा ।
अगर सात्विक स्वभाव ज्यादा बन गया, जप, ध्यान, परोपकार, सेवा की आदत पड़ गयी, सादगी से रहने की पवित्र आदत पड़ गयी, सत्य बोलने की आदत पड़ गयी, सयंमी रहने की आदत पड़ गयी तो वो सात्विक हो गया । तो मरने के बाद देव लोक में दिव्य भोग भोगेगा खूब सुख भोगेगा बाद में या तो श्रीमान, पवित्र कुल में जन्म लेगा या तो किसी योगी के घर जन्म लेगा । और बचपन से ही उसको ऐसे संस्कार, वातावरण मिल जायेगा की वो भगवान को पा लेगा । लेकिन जो सात्विक स्वभाव के हैं, और स्वर्ग नहीं चाहते हैं, ईश्वर ही चाहते हैं, मुक्ति ही चाहते हैं तो फिर वे देवताओं के भोगों को तुच्छ समझने वाले, सात्विक स्वभाव वाले खोजते हैं के मुक्ति कैसे मिले, भगवान कैसे मिलें ?
भगवत प्राप्ति की इच्छा वाले दो प्रकार के होते हैं । एक तो सगुण, साकार भगवान को पाना चाहें,कृष्ण, राम, शिव, गणपति भगवान । तो उन्हीं की पूजा करते-करते मर जायेंगें तो उन्ही के लोक में जायेंगे । दूसरे वो होते हैं भगवान जिससे भगवान हैं, शिव जिससे शिव हैं, गुरु जिससे गुरु हैं, वो महान तत्व क्या है ? उसकी जिज्ञासा होती है । तो फिर ब्रह्मज्ञानी के सम्पर्क में उनकी रूचि होंगी, वो खोज लेंगें, वहाँ पहुँच जायेंगें । फिर ब्रह्मज्ञान का विचार करेंगें । कृष्णजी का, रामजी का नहीं, ब्रह्मज्ञानी गुरु ने जैसा उपदेश दिया है उसी प्रकार ब्रह्म परमात्मा की उपासना, आराधना करेंगें ।
ब्रह्म परमात्मा की उपासना, आराधना करने वालों में भी २ प्रकार के लोग होते हैं । एक तीव्र साधन करता है, दूसरा मंद करता है । तीव्र साधन वाला तो जल्दी ब्रह्म परमात्मा को पा लेगा, और जिसका ढीला साधन है तो मरते दम तक परमात्मा का साक्षात्कार तो नहीं कर सकेगा, लेकिन साक्षात्कार की इच्छा है । तो मरने के बाद अगर उसकी साधना एकदम मंद है, तो स्वर्ग का सुख भोगकर फिर आकर किसी अच्छे वातावरण में यात्रा करेगा ।
अगर उसकी तीव्र साधना है, तर-तीव्र नहीं तीव्र तो मरने के बाद ब्रह्म लोक में जायेगा । जैसे गुरु को आश्रम में रहने का वातावरण मिलता है वैसे ही शिष्यों को मिल जाता है, जिस धरती पे गुरु रहते हैं,उस धरती पे शिष्य रहते हैं । तो ऐसे ही जैसे ब्रह्माजी को मिलता है ऐसे ही बरह्मलोक का वातावरण,सुख सामग्री वहाँ रहने वालों को भी मिल जाता है । लेकिन ब्रह्माजी के अधिकार अपने रहते हैं, ब्रह्म लोक निवासी के अपने रहते हैं । जब प्रलय होता है, तब ब्रह्म लोक निवासी, ब्रह्माजी का तत्व ज्ञान का उपदेश सुनके उस ब्रह्म परमात्मा में लीन हो जाते हैं । जिसकी सत्ता से तमाम सूरज, आकाश गंगाएं और पुरे ब्रह्माण्ड चलते हैं, उस परब्रह्म का आखरी उपदेश, क्योंकि पहले तो सुन के आया धरती पर से,लेकिन कच्चा रह गया । तो आखरी उपदेश ब्रह्माजी का सुनके ब्रह्म लोक को, ब्रह्म परमात्मा को पा लेगा ।