श्री योगवशिष्ठ महारामायण हमारे सभी आश्रमों का इष्ट ग्रंथ है- पूज्य बापूजी
वसिष्ठ जी कहते हैं- "जिसका अंतःकरण मुक्ति के लिए खूब लालायित हो, सत्कर्म करके खूब शुद्ध हो गया हो तथा ध्यान करके खूब एकाग्र हो गया हो उसे यह उपदेश सुनने मात्र से आत्मसाक्षात्कार हो जायेगा। जिन लोगों को इस ग्रंथ में, इस ज्ञान में प्रीति नहीं है, वे अपरिपक्व हैं। उनको चाहिए कि व्रत, उपवास, तीर्थाटन, दान, यज्ञ, होम, हवन आदि करें। इन्हें करके जब उनका अंतःकरण परिपक्व होगा, तब उनको इसमें रुचि होगी।
श्री योगवशिष्ठ महारामायण पढे, और उसके अर्थ में शांत हो, तो साक्षात्कार अवश्य होगा - स्वामी रामतीर्थ
श्री योगवशिष्ठ महारामायण पढ़कर ही पूज्य बापूजी के मित्र संत घाटवाले बाबा को आत्मसाक्षात्कार हुआ
यह पुस्तक पाठ करते करते बापूजी को साईं लीलाशाह जी ने कृपा बर्षा कर साक्षत्कार करवाए थे |
यह अमूल्य उपदेश घोर रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को देकर आत्मज्ञान में जगाये थे |
जिस उपदेश मात्र से राजर्षि जनक ज्ञात ज्ञेय हुए थे
मेरे श्री गुरु देव का सत्संग वचनामृत का संग्रह -