धन्वन्तरि ई-समाचार पत्र

Dhanvantari E-Newsletter

Department of Ayurveda and Holistic Health

Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar

Volume 2, Issue 2, 2020

किचन फार्मेसी/ घरेलू औषधियों का प्रयोग

अदरक

Botanical Name: Gingiber Officenale Roscoe.

Family : ZINGIBERACEAE.

English Name : Zinger Root.

हिन्दी- अदरख/आदी।

गुजराती - आदु

पंजाबी - अदरक

बंगाली - आदी

मराठी - आले

तेलगू - अल्लमू

कन्नड़ - अलल

तामिल - शुक्क

मलयालम - इंची

प्राप्ति स्थान – भारतवर्ष के प्राय: सभी प्रदेशों में अदरक की खेती की जाती है।

पहचान – अदरक का पौधा 3-4 फिट ऊँचा होता है, इसके पत्ते लंबे, बांस के पत्रों जैसे, पर उनसे कुछ छोटे होते है। इसका कांड भूमिगत होते हुए, इसमें पोषण संग्रहित होता है, जो कंद समान होकर अदरक बनता है। इसके फूल पुराने पौधों पर देखे गए हैं, जिनका रंग-जामुनी होता है। इसकी खेती करते समय रेतीली जमीन का चयन करना चाहिए, तथा गोबर की खाद, दुमट मिट्टी में मिलाकर, अदरक की खेती अधिक होती है।

यह अग्निदीपक, रुचिकर, जिह्वा तथा कंठ का शोधन वाला।

प्रयोग-

  1. श्वास रोग, कास एवं कफ रोगों में – अदरक का रस शहद के साथ मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
  2. कंठ शुद्धिकरण तथा भूख उत्तेजित करने के लिए अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसमें सैंधव नमक मिलाकर भोजन से पूर्व सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है।
  3. जलोदर रोग में – अदरक का रस मूत्र नि:सारक होता है, इसलिए धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ाई जाती है, जिससे मूत्र की मात्रा भी बढ़ती है।
  4. शीतपित्त में – अदरक का रस गुड़ के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
  5. कर्णशूल में – अदरक का गुनगुना रस कान में डालने से लाभ होता है।

अदरक गीली गाँठ है, जो जमीकन्द की तरह जमीन के नीचे बढ़ती रहती है। उसमें से जितनी आवश्यकता है, काटकर शेष भाग को फिर जमीन में गाड़ा और भविष्य के लिए बढ़ते रहने दिया जाता है। यही अदरक जब सुखा लिया जाता है, तब सोंठ बन जाता है। बोने के लिए इसके टुकड़े काट–काट कर ही गाड़ दिए जाते हैं। इसमें बीज नहीं होता।

अदरक पाचक है। पेट में कब्ज, गैस बनना, वमन, खाँसी, कफ, जुकाम आदि में इसे काम में लाया जाता है। नमक मिली चटनी बनाकर चाटते रहने, बारीक न पीस सकें तो टुकड़े मुँह में डालकर चूसते रहने से लाभ होता है। बच्चों के लिए रस के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। अदरक का रस और शहद मिलाकर चाटते रहने से दमा, श्वास, खाँसी से लेकर क्षय रोग तक में सुधार होता है। हिचकी, जम्हाई का अनुपात बढ़ जाए, तो भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। दाढ़ के दर्द में भी इसका सेवन उपयोगी है। अदरक और सोंठ के गुण एक जैसे होते है, पर जब चूर्ण में उसका प्रयोग करना हो, तो सोंठ लेना ही उपयुक्त है। उसमें अदरक की तरह बार–बार पीसने का झंझट नहीं रहता।

अदरक भोजन के कुछ पूर्व लेने से अग्नि प्रदीप्त करती है, भूख बढ़ाती है। इसमें दोनों गुण हैं, आँतों की प्रवाही स्थिति में ग्राही भी है एव कब्जियत को भेदने का गुण भी इसमें है। यह आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध योग त्रिकुट (सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली) का एक प्रधान अंग है। अदरक का ताजा रस मूत्र निस्तारक (डायुरेटिक) औषधि माना गया है।

विषम ज्वर में गो दुग्ध के साथ डेढ़ माशे की मात्रा में, हृदय रोग में कुनकुने क्वाथ के रूप में, हिचकी में आँवला व पीपल का चूर्ण शहद के साथ, पक्षाघात में सेंधा नमक के साथ महीन पीस कर सुंघाने के रूप में, अजीर्ण में धनिए के साथ क्वाथ बनाकर, संग्रहणी (डिसेन्ट्री) में कच्चे बेल का गूदा, अदरक एवं गुड़ मिलाकर मट्ठे के साथ पीने से, तथा सोंठ और गोखरू का क्वाथ प्रात: पीने से पीठ व कमर के दर्द में आराम पहुँचता है।

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