प्राचीन गुरुकुल

प्राचीन काल के कुछ मुख्य गुरुकुलों का नाम संक्षिप्त में निम्न वर्णित हैं

1) वाल्मीकि आश्रम - महर्षि वाल्मीकि आदिवासियों और वनवासियों के गुरु थे । इनका आश्रम वर्तमान के तुरतुरिया स्थान पर था । तुरतुरिया जिला रायपुर, छत्तीसगढ़ से लगभग 150 कि.मी. दूर वारंगा की पहाड़ियों के बीच बहनेवाली बालमदेई नदी के किनारे पर स्थित है । यह सिरपुर से 15 मील घोर वन प्रदेश के अंतर्गत स्थित है । यहीं पर मातागढ़ में एक स्थान पर वाल्मीकि आश्रम तथा आश्रम जाने के मार्ग में जानकी कुटिया है ।


2) विश्वामित्र का आश्रम - विश्वामित्र गायत्री के बहुत बड़े उपासक थे । माना जाता है कि महर्षि विश्वामित्र का आश्रम बक्सर (बिहार) में स्थित था । इस स्थान को गंगा-सरयू संगम के निकट बताया गया है । विश्वामित्र के आश्रम को 'सिद्धाश्रम' भी कहा जाता था ।


3) वशिष्ठ आश्रम - राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता? ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे । इनका आश्रम अयोध्या में ही स्थित था ।


4) भारद्वाज मुनि का आश्रम - वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का अति उच्च स्थान है । भारद्वाज मुनि का आश्रम प्रयाग में था । ये विमान शास्त्र में प्रवीण थे । इसके अलावा यहाँ वैदिक ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती थी । रामायण के एक प्रसंग के अनुसार उनका आश्रम गंगा-यमुना के संगम प्रयाग में था । राम, लक्ष्मण और सीता गंगा पार करने के उपरांत चलते-चलते गंगा-यमुना के संगम स्थल पर श्री भारद्वाज के आश्रम में पहुँचे थे ।


5) गुरु धौम्य का आश्रम - गुरु धौम्य का आश्रम सेवा, तितिक्षा और संयम के लिए प्रख्यात था । ये अपने शिष्यों को सुयोग्य बनाने के लिए उनको तप व योग साधना में लगाते थे । स्वयं गुरु महर्षि धौम्य की तपःशक्ति केवल आशीर्वाद से शिष्य को शास्त्रज्ञ बनाने में समर्थ थी । आरुणि, उपमन्यु और वेद (उत्तंक)- ये 3 शास्त्रकार ऋषि महर्षि धौम्य के शिष्य थे ।


6) कपिल मुनि का आश्रम - कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक थे । इनकी माता का नाम देवहुति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था । कपिल ने अपनी माता को जो ज्ञान दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाया । महाभारत में ये सांख्य के वक्ता कहे गए हैं । कपिलवस्तु, जहाँ बुद्ध पैदा हुए थे, कपिल मुनि के नाम पर बसा नगर था । सगर के पुत्र ने सागर के किनारे कपिल मुनि को देखा था । बाद में वहीं गंगा का सागर के साथ संगम हुआ । इससे मालूम होता है कि कपिल का जन्मस्थान संभवत: कपिलवस्तु और तपस्या क्षेत्र गंगासागर था ।


7) कण्व मुनि का आश्रम - इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया था । महाभारत के आदिपर्व में वर्णित है कि कण्व ऋषि के आश्रम में अनेक नैयायिक रहा करते थे, जो न्याय तत्वों के कार्यकारण-भाव, कथा संबंधी स्थापना, आक्षेप और सिद्धांत आदि के ज्ञाता थे । सोनभद्र में जिला मुख्यालय से 8 कि.मी. की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर कण्व ऋषि की तपस्थली है, जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है ।


8 ) अत्रि ऋषि आश्रम - अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था । अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था । तदनंतर वे सिंधु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया ।


9) गौतम ऋषि आश्रम - गौतम ऋषि न्याय दर्शन के प्रवर्तक थे । महर्षि गौतम बाण विद्या में अत्यंत निपुण थे । महर्षि गौतम न्यायशास्त्र के अतिरिक्त स्मृतिकार भी थे तथा उनका धनुर्वेद पर भी कोई ग्रंथ था, ऐसा विद्वानों का मत है । श्रीरामजी महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुँचे थे तो वहाँ उन्होंने गौतम ऋषि का आश्रम भी देखा था, वहीं राम के चरण स्पर्श से अहिल्या शापमुक्त होकर पुनः मानवी बन गईं । इसका मतलब उनका आश्रम जनकपुरी में था । जनकपुरी का वास्तविक नाम मिथिला था ।


10) ऋषि वामदेव आश्रम - वामदेव ने इस देश को सामगान अर्थात् संगीत दिया । वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूक्तदृष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं । भरत मुनि द्वारा रचित भरतनाट्यम शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है । हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है ।


11) शौनक मुनि आश्रम - शौनक ने 10 हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया था । किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया था । उस समय अनेक वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ऋषि के पुत्र (शिष्य) थे ।


12) ऋषि परशुराम का आश्रम - प्रारंभ में परशुराम का आश्रम नर्मदा नदी के तट पर स्थित था । बाद में वे अगत्स्य मुनि की तरह दक्षिण प्रदेश चले गए थे, जहाँ ‍उन्होंने नया आश्रम स्थापित कर शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दी ।


13) महर्षि वेदव्यास आश्रम - महर्षि वेदव्यासजी का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है । उन्होंने वेदों का विभाग किया इसलिए उन्हें व्यास या वेदव्यास कहा जाता है । उनके पिता महर्षि पराशर तथा माता सत्यवती था । भारत भर में गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि वेदव्यास की पूजा भी की जाती है । द्वापर युग के अंतिम भाग में व्यासजी प्रकट हुए थे । उन्होंने महाभारत सहित सैकड़ों ग्रंथों की रचना की जिनमें से 4 पुराण भी थे ।


कृष्ण द्वैपायन वेदव्यासजी ने ब्रह्मा की प्रेरणा से 4 शिष्यों को 4 वेद पढ़ाए:-

* मुनि पैल को ऋग्वेद

* वैशंपायन को यजुर्वेद

* जैमिनी को सामवेद तथा

* सुमंतु को अथर्व वेद पढ़ाया ।


उक्त 4 शिष्यों ने दुनियाभर में अपने-अपने आश्रम खोलकर वेदों की शिक्षा दी । इस तरह वैदिक ज्ञान का व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार हुआ और संपूर्ण धरती फिर से वेदमय बन गई ।


14) सांदीपनि ऋषि का आश्रम - सांदीपनि ने भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी । इनका आश्रम आज भी मध्यप्रदेश के उज्जैन में है । सांदीपनि के गुरुकुल में कई महान राजाओं के पुत्र पढ़ते थे । श्रीकृष्णजी की आयु उस समय 18 वर्ष की थी और वे उज्जयिनी के सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर उनसे शिक्षा प्राप्त कर चुके थे ।


15) गुरु द्रोण का आश्रम - द्रोणाचार्य भारद्वाज मुनि के पुत्र थे । ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे । गुरु द्रोण का आश्रम हस्तिनापुर में था । उन्होंने हजारों शिष्यों को शिक्षा दी । उन शिष्यों में पांडु पुत्र पांडवों का नाम विशेष रूप से लिया जाता है । गुरु द्रोण युद्ध से जुड़ी सभी तरह की शिक्षा देने में पारंगत थे ।


इसके अलावा अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन और ऐतरेय आदि ऋषियों के भी गुरुकुल थे।