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नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत् ।
तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ॥ ४॥
अन्वयः-
अनेजत् एकम् मनसो जवीयः एनत् देवाः न आप्नुवन् तत् पूर्वम् अर्षत् तत् तिष्ठत् धावतः अन्यान् अत्येति तस्मिन् मातरिश्वा अपः दधाति ॥
अनुवादः-
मराठी हिन्दी English टीका/भाष्यम्
वह (आत्मतत्त्व) विचलित न होनेवाला, एक, तथा मनसे भी तीव्र गतिवाला है | यह सबसे पहले (आगे) गया हुआ है | इसे देव (इन्द्रियाँ) प्राप्त नहीं कर सकी | वह स्थिर होने परभी एनी सभी गतिशीलों का अतिक्रमण करता है | उसकी सत्तामें वायु प्राणियोंके चेष्टारूप कर्म विभक्त करता है |