यह मातृ भूमि मेरी, यह पितृ भूमि मेरी
पावन परम जहां की मंजुल महात्म धारा
पहले ही पहले देखा जिसने प्रभात प्यारा
सुरलोक से भी अनुपम ऋषियों ने जिसको गाया
देवेश को जहां पर अवतार लेन भाया
वह मातृ - भूमि मेरी, यह पितृ - भूमि मेरी
यह मातृ - भूमि मेरी …………………………।१
उंचा ललाट जिसका हिमगिरि चमक रहा है
सुवरण किरीट जिस पर आदित्य रख रहा है
साक्षात् शिव की मूरत जो सब प्रकार उज्वल
बहता है जिसके सर से गंगा का नीर निर्मल
वह मातृ - भूमि मेरी वह पितृ - भूमि मेरी
यह मातृ - भूमि मेरी ……………।……………२
सर्वापकार जिसके जीवन का व्रत रहा है
पकृति पुनीत जिसकी निर्भय मृदुल महा है
जहां शांती अपना करतब करना न चूकती थी
कोमल कलाप कोकिल कमनीय कूकती थी
वह मातृ - भूमि मेरी वह पितृ - भूमि मेरी
यह मातृ - भूमि मेरी ……………………………३
वह वीरता का वैभव छाया जहां घना था
छिटका हुआ जहां पर विद्या का चांदना था
पूरी हुई सदा से जहां धर्म की पिपासा
सत् संस्कृत ही प्यारी जहां की थी मातृ भाषा
वह मातृ - भूमि मेरी वह पितृ - भूमि मेरी
यह मातृ - भूमि मेरी………………।……………४
माननीय श्री अशोक सिंहल जी द्वारा रचित