आयोजन 

    (5 फरवरी 2016)                           

परिचर्चा - संत साहित्य की प्रासंगकिता  

(2 मार्च 2017 )

गुरुवार 2 मार्च 2017, सोलहवां  "डॉ. विनीता अग्रवाल स्मृति पाठ एवं परिचर्चा" के अंतर्गत डॉ. ललित मोहन द्वारा लिखित पुस्तक 'मध्यकालीन हिंदी कवयित्रियों की सामाजिक चेतना' का लोकार्पण किया गया। इस वर्ष परिचर्चा का विषय "संत साहित्य की प्रासंगिकता" था। मुख्य अतिथि डॉ. रमेश चंद्र मिश्र रहे। यह कार्यक्रम समिति कक्ष, देशबंधु कॉलेज में आयोजित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन, विभाग प्रभारी डॉ. बिक्रम सिंह द्वारा किया गया।

देशबन्धु कॉलेज में महत्वपूर्ण समकालीन कविता पाठ का आयोजन   

          (17.09.2018)             

                देशबन्धु महाविद्यालय के हिन्दी विभाग और लिखावट संस्था के संयुक्त तत्त्वावधान में देशबन्धु महाविद्यालय के गालिब सभागार में कविता पाठ का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता देशबन्धु महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ॰ राजीव अग्रवाल ने की। कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए युवा आलोचक,आलोचना पत्रिका के संपादक और देशबन्धु महाविद्यालय के एसोसियट प्रोफेसर डॉ॰ संजीव कुमार ने स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रश्न किया कि साहित्य में कविता की क्या जरूरत है?उन्होंने समकालीन कविता के संकटों की तरफ भी इशारा किया।इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी कविता के प्रचार-प्रसार में लिखावट संस्था की भूमिका का भी उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से कविता से उनके पाठकों और श्रोताओं के बीच बढ़ रही दूरी को कम किया जा सकता है।महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ॰ राजीव अग्रवाल ने अध्यक्षीय भाषण कहा कि वर्तमान में हिन्दी की स्थिति में सुधार हो रहा है और इस तरह के कार्यक्रम हिन्दी के प्रचार प्रसार में सकारात्मक भूमिका निभाएगें।प्रस्तुत संगोष्ठी में आमंत्रित कवि रहे- मृदुला शुक्ल, डॉ॰ मनोज कुमार सिंह, राकेश रेणु, संजय कुन्दन, मिथिलेश श्रीवास्तव और दिविक रमेश। सभी कवियों ने अपनी अपनी कविताएं पढ़ी।जिससे महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं, उपस्थित विद्वानगण लाभान्वित हुए। कार्यक्रम की शुरूआत में सभी अतिथियों का स्वागत छात्राओं द्वारा फूल भेंट करके किया गया। यह कार्यक्रम हिन्दी विभाग के प्रभारी डॉ॰ विक्रम सिंह के सान्निध्य में आयोजित किया गया। डॉ॰ बिक्रम सिंह ने कविता एवं कविता पाठ पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कविता अभी भी मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है एवं गहन विचारों की वाहिका भी। कार्यक्रम के अन्त में हंस पत्रिका के सहयोगी संपादक और देशबन्धु महाविद्यालय के असिटेंट प्रोफेसर डॉ॰ विभास वर्मा द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं छात्र-छात्राओं को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ॰ नीरज कुमार  मिश्र और कार्यक्रम का संजोजन डॉ॰अभय कुमार के द्वारा किया गया। आयोजित कार्यक्रम में महाविद्यालय के अनेक विभागों के प्रोफेसर, विद्वजगणों जिनमें डॉ॰ एस. एम. झा, डॉ॰ बजरंग बिहारी तिवारी, डॉ॰ छोटूराम मीना, डॉ॰ ललित मोहन, डॉ॰ अनुज कुमार रावत, डॉ॰ प्रेमप्रकाश शर्मा, डॉ॰ नविता चौधरी, डॉ॰ नीलम बोरवांकर ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। इस कार्यक्रम की सफलता यह रही कि इसमें बहुत बड़ी संख्यां में विद्यार्थी और शोधार्थी सम्मिलित रहे।

 ( प्रस्तुति - नीरज कुमार मिश्र)

भक्ति काव्य : अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य 

(13 नवम्बर 2018 )

                                  जब सभी भाषाओं के भक्ति साहित्य को एक साथ लाया जायेगा तभी भक्ति साहित्य को ठीक से समझा जा सकता है।क्योंकि राम के चरित्र का गायन करने के पूर्व तुलसीदास को यह असमंजस था कि 'राम सुकीरत भनित भदेसू' राम की कीर्ति की वजह से तुलसीदास जी को भी उनकी कथा कहने में संकोच था।भक्ति आंदोलन और भक्ति साहित्य एक गहरे सागर की तरह है।जसकी गहराई का सही सही पता लगाना बहुत मुश्किल काम है।अलग अलग क्षेत्रों में भक्ति साहित्य लिखा गया है।जिसकी भाषा,संस्कृति,पद्धति और ढंग अलग है लेकिन भक्ति सबकी एक है।यदि अलग अलग बिखरे भक्ति साहित्य को एक करके उसका संपूर्ण भक्ति साहित्य का इतिहास लिखा जायेगा तो वह सही मायने में संपूर्ण भारत की आवाज होगी।भक्ति आंदोलन का असर,प्रेरणा और चेतना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर रहा।भारत की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर भक्ति साहित्य का व्यापक प्रभाव रहा।" यह बात प्रो गोपेश्वर सिंह ने देशबंधु कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी "भक्ति काव्य:-अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य" पर अपने अध्यक्षीय संबोधित करते हुए रखी।उन्होंने आगे कहा कि "गाँधी के मन निर्माण में,संस्कारों के निर्माण में उनके समूचे व्यक्तित्व के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान भक्ति साहित्य का था।ऐसा लगता है कि भक्ति साहित्य ने जैसे गाँधी को निर्मित किया हो।शब्द और कर्म के अद्वैत को गाँधी ने बार बार देखते हैं।शब्द और कर्म का सबसे बड़ा साहित्य यदि कहीं लिखा गया है तो वह भारत में ही लिखा गया है। शब्द और कर्म की एकता पर बल ही भक्ति साहित्य की बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है।संत कवियों ने इसे स्थापित किया।इसलिए हम जानते हैं कि भक्ति साहित्य का परिदृश्य बहुत व्यापक और बहुत ऊँचे मूल्यों से भरा है।बिना असमन्ना को जाने आप कबीर को नहीं जान सकते।बिना जनाबाई को जाने आप मीराबाई को नहीं जान सकते।                                                                                              

             मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. बासुदेव सुनानी ने उड़िया भक्ति साहित्य को केंद्र में रखते हुए पंच सखा पर अपनी बात रखी।उन्होंने कहा कि इस धरती पर सिर्फ मनुष्य ही समझदार प्राणी नहीं है अन्य प्राणी भी समझदार हैं और भविष्य की योजना बनाकर,आगा-पीछा सोचकर चलते हैं। उड़ीसा जिसे उत्कल, कलिंग या कोशल कहा जाता था, पहले बौद्ध प्रदेश रहा है।मायाधर मानसिंह ने उड़ीसा का सांस्कृतिक इतिहास लिखा। उनके अनुसार जगन्नाथ मंदिर पहले बौद्ध स्थल था।उन्होंने आगे बात जोड़ते हुए कहा कि उड़ीसा का जो भक्ति आंदोलन है उसके नायक सरलादास हैं। सरलादास को शूद्र मुनि कहा जाता है। उन्होंने महाभारत को उड़िया भाषा में लिखा। वे संस्कृत की सामग्री को जनभाषा में लाए। उड़ीसा के भक्ति आंदोलन का नेतृत्व पंच सखाओं ने किया। पंच सखाओं में एक को छोड़कर शेष गैर ब्राह्मण थे। लक्ष्मी पुराण को क्रांतिकारी रचना मान सकते हैं। इसमें लक्ष्मी अपने पति विष्णु या जगन्नाथ से अलग होकर एक चाण्डाल परिवार में रहने चली जाती हैं।कॉलेज के प्राचार्य डॉ राजीव अग्रवाल ने अपने स्वागत वक्तव्य में बोलते हुए कहा कि हमारे कॉलेज का हिंदी विभाग पूरे भारत का सबसे सम्रद्ध विभाग है।जहाँ अनेक प्रसिद्ध लोग इनमें हैं।उन्होंने विज्ञान और भक्ति साहित्य को जोड़ते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण बातें कीं।कार्यक्रम में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ बिक्रम सिंह जी ने कहा कि भक्ति साहित्य को समझने के लिए ऐसे कार्यक्रम होते रहना चाहिए।हमें उड़िया भक्ति साहित्य को जानने समझने का अच्छा अवसर मिला।कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ बजरंग बिहारी तिवारी ने भक्ति साहित्य के अनेक पहलुओं पर बात करते हुए भक्ति साहित्य के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर सबका ध्यान आकर्षित किया।।कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन विभास वर्मा ने किया।कार्यक्रम में हिंदी विभाग के अलावा अनेक विभागों के अध्यापक और छात्र मौजूद रहे।

 ( प्रस्तुति - नीरज कुमार मिश्र)

‘रचना-प्रक्रिया को पूरी तरह समझाया नहीं जा सकता’

       (14 सितंबर 2021)

               हिंदी दिवस के अवसर पर साहित्य परिषद, हिंदी विभाग, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली की तरफ से 14 सितंबर को इक्कीसवें डॉ. विनीता अग्रवाल स्मृति रचना-पाठ एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया| इस कार्यक्रम में प्रख्यात कहानीकार योगेन्द्र आहूजा ने अपनी कहानी ‘खाना’ का पाठ किया| इस कहानी पर सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. शंभु गुप्त और प्रो. संजीव कुमार ने अपने मंतव्य रखे| अतिथियों का स्वागत करते हुए कॉलेज के प्राचार्य प्रो. राजीव अग्रवाल ने स्मृतिशेष विनीता जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला| उन्होंने कहानी विधा की अपील को जनरुचि के परिष्कार से जोड़ते हुए योगेन्द्र आहूजा की कहानी-कला की उचित प्रशंसा की| वक्ताओं का परिचय देते हुए संयोजक बजरंगबिहारी ने बताया कि विनीता अग्रवाल की स्मृति में सन 2001 से हर वर्ष रचना-पाठ और परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है| इस शृंखला में हिंदी के मूर्धन्य कथाकार, कवि और आलोचक जैसे राजेन्द्र यादव, संजीव, अनामिका, असद ज़ैदी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, नामवर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, महेश कटारे, अपूर्वानंद, दिनेशकुमार शुक्ल, ओमप्रकाश वाल्मीकि, सूरजपाल चौहान, सपना चमड़िया, अष्टभुजा शुक्ल, विष्णु नागर, इब्बार रब्बी, मोहनजीत सिंह, महराजदीन पाण्डेय, अभिराज राजेन्द्र मिश्र, अच्युतानंद मिश्र आदि आ चुके हैं| इस बार के वक्ताओं का परिचय कराते हुए उन्होंने कहा कि 1959 में बदायूं (उ.प्र.) में जन्मे योगेन्द्र आहूजा के अब तक तीन कथा संग्रह- ‘अँधेरे में हँसी’, ‘पाँच मिनट और अन्य कहानियाँ’ तथा ‘लफ्फाज और अन्य कहानियाँ’ प्रकाशित हो चुके हैं| अनेक भाषाओँ में अनूदित योगेन्द्र आहूजा की कहानियाँ गंभीर पाठकों व आलोचकों द्वारा खूब सराही गई हैं| करीब चार दशकों तक अध्यापन व शोध-निर्देशन कर चुके कथा आलोचक प्रो. शंभु गुप्त (1953, भरतपुर, राजस्थान) की प्रमुख किताबें हैं- ‘कहानी : समकालीन चुनौतियां’, ‘कहानी : वस्तु एवं अंतर्वस्तु’, ‘कहानी की अंदरूनी सतह’, ‘कहानी : यथार्थवाद से मुक्ति’| पढ़ी गई कहानी ‘खाना’ का परिचय कराते हुए बजरंगबिहारी ने कहा कि इसकी अंतर्वस्तु कई परतों से मिलकर बनी है| यह कहानी हिंदी की दो क्लासिक कहानियों अज्ञेय लिखित ‘रोज’ और शेखर जोशी लिखित ‘बदबू’ की याद कराती है| रूटीन में बंधी जिंदगी कैसे अपनी अर्थवत्ता खो देती है और निपट यांत्रिक हो जाती है, यह ‘रोज’ कहानी में देखा जा सकता है| फिर भी इस अर्थहीन जीवन को कथा-नायिका मालती ढोती जाती है, कुछ वैसे ही जैसे स्वादेंद्रियों के निष्क्रिय होने के बावजूद खाना-समीक्षक रतनलाल खाता और रिव्यू लिखता जाता है| गंध का बोध और विवेक बचा रहे, यह ‘बदबू’ कहानी की केंद्रीय चिंता है जैसे स्वाद का संज्ञान कायम रहे यह ‘खाना’ का मुख्य सरोकार है| 

     कहानी पाठ के पहले अपनी रचना प्रक्रिया पर रोशनी डालते हुए योगेन्द्र आहूजा ने कहा कि इसे पूरी तरह से न समझा जा सकता है, न बताया जा सकता है| रचना प्रक्रिया का एक हिस्सा हमेशा अज्ञात-अनजाना रहेगा| ‘खाना’ कहानी प्रोटेगनिस्ट रतनलाल का सुदीर्घ मोनोलाग़ है| इसमें उसकी जिंदगी की परतें उघरती जाती हैं साथ ही उसके सहकर्मी माधव मुर्मू की गाँव वापसी के दृढ़ निर्णय में छिपी प्रतिबद्धता से हम आलोकित होते जाते हैं| कहानी पर विचार करते हुए प्रो. शंभु गुप्त ने कहा कि योगेन्द्र के सरोकारों में निरंतरता है| उनकी कहानियाँ विचलन की शिकार नहीं होतीं| माधव मुर्मू से परिवर्तनकामी ताकतों को सीखना है कि महज शाब्दिक विमर्श से कुछ नहीं होने वाला| अगर आप चाहते हैं कि बदलाव हो, सार्थक परिवर्तन हो तो आपको भी अपने छूटे, उपेक्षित समाज की तरफ लौटना होगा| लोक से आवयविक संबंध जोड़ना होगा|

     कथालोचक संजीव कुमार ने कहा कि योगेन्द्र आहूजा की एक भी कहानी ऐसी नहीं है जो हल्के में लिखी गयी हो। वे अपनी हर कहानी को इतनी तैयारी और परिश्रम से लिखते हैं जैसे उपन्यास लिख रहे हों। जहाँ तक ‘खाना’ का सवाल है, शंभु गुप्त जी ने उसकी सजग सामाजिक दृष्टि और माधव मुर्मू जैसी प्रतिबद्धता के आह्वान की ओर जो इशारा किया, वह तो है ही, इसके अलावा एक बड़ी विशेषता है कि एक मुकम्मल कहानी का ढाँचा खड़ा करने के बाद कहानीकार अपने ही दूसरे पात्र के ज़रिये उस ढाँचे को ध्वस्त भी कर देता है। ऐसा शायद हिंदी की किसी और कहानी में नहीं है। कहानी के अंदर यह विखंडन हमें यह भी बताता है कि हम आख्यानों के ज़रिए ही सच तक पहुँचने की कोशिश करते हैं। इसलिए रतनलाल जो आख्यान सुना रहा है, उसका संबोध्य जितना उसका बिछुड़ा हुआ साथी है, उतना ही वह स्वयं।

     स्तंभकार-विचारक विभास वर्मा ने अपने वक्तव्य में ध्यान दिलाया कि आख्यान गढ़कर उसे ध्वस्त करने की कला मनोहर श्याम जोशी के ‘हमज़ाद’ में भी है, यह ज़रूर है कि वहाँ गढ़े गए आख्यान को दो-चार लाइनों में प्रश्नांकित किया गया है, इतने व्यवस्थित तरीक़े से उसका विखंडन नहीं हुआ है। योगेंद्र जी की यह कहानी स्वाद के ग़ायब हो जाने की युक्ति को मनुष्यता के क्षरण की ओर संकेत करने के लिए इस्तेमाल करती है। ज़रूरत के विलासिता में तब्दील हो जाने से मनुष्यता क्षरित होती है। आंकड़ों से हम जो कुछ जानते हैं, उसे कहानी में कैसे ढाला जाता है, इसे देखने के लिए भी यह कहानी पढ़ी जानी चाहिए।

     साहित्य परिषद के सचिव विवेकानंद ने ऐसे आयोजनों की आवश्यकता बताते हुए कहा कि उनकी टीम साहित्यिक रचनात्मक माहौल बनाने में निरंतर सक्रिय है| साहित्य परिषद की कोशिश रहेगी कि वह विद्यार्थियों को समकालीन रचनाशीलता से जोड़े रखे| भित्ति पत्रिका का प्रकाशन इसी तरह का एक प्रयास है| ऑनलाइन संपन्न हुए इस कार्यक्रम में इतिहास विभाग के डॉ. शैलेन्द्र मोहन झा, अंग्रेजी विभाग की शरीना जोशी, फिजिक्स विभाग के डॉ. अजयप्रताप गहलोत की विशेष उपस्थिति रही| विभागीय शिक्षकों और विद्यार्थियों के अतिरिक्त अन्य साहित्य प्रेमियों ने कार्यक्रम में शिरकत की| डॉ. विनीता अग्रवाल के परिवार के सदस्य उनकी बहन सुश्री रीता और उद्यमी बेटी किमिको मेहता कार्यक्रम से जुड़ी रहीं| कार्यक्रम का तकनीकी पक्ष कंप्यूटर विभाग की डॉ. मोनिका और हिंदी विभाग की डॉ. रानी कुमारी ने बखूबी संभाला| धन्यवाद ज्ञापन विभाग के प्रभारी प्रो. ललित मोहन ने दिया| 

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(कार्यक्रम की रपट) बजरंगबिहारी तिवारी

        ' द वेस्ट लैंड ' के सौ वर्ष 

                                    ( 20 अप्रैल 2022 )

हिंदी साहित्य परिषद् , हिंदी विभाग, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली के तत्वावधान में 20 अप्रैल 2022 को बाईसवें " विनीता अग्रवाल स्मृति रचना पाठ एवं परिचर्चा " का आयोजन कमेटी रूम में किया गया। इस कार्यक्रम में टी. एस. इलियट की कविता 'द वेस्टलैंड के सौ वर्ष' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। अतिथियों का स्वागत करते हुए कॉलेज के उप-प्राचार्य डॉ. कमल कुमार गुप्ता ने स्मृति शेष विनीता जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के संचालक श्री. विभास चंद्र वर्मा ने वक्ताओं का परिचय दिया। 

'द वेस्टलैंड' (टी.एस. इलियट, 1922) की प्रस्तावना अंग्रेजी विभाग के डॉ. शाश्वत भट्टाचार्य ने प्रस्तुत की। इस कविता के हिंदी अंशों का पाठ श्री विभास चंद्र वर्मा ने किया और डॉ. संचिता खुराना ने अंग्रेजी अंशों का पाठ किया। इस व्याख्यान में कथाकार- आलोचक प्रोफेसर कृष्णन उन्नी. पी. ने अपने विचार व्यक्त किए। विदुषी - अनुवादक डॉ. पारुल भारद्वाज ने टी.एस. इलियट की कविता "द वेस्टलैंड" का अनुवाद करते हुए , उसकी भूमिका पर अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि- आलोचक डॉ. चंचल चौहान ने की। कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर बजरंग बिहारी तिवारी रहे। धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के प्रभारी प्रोफेसर ललित मोहन ने किया।

                                    (21.09.2022)

                                          जेम्स जॉयस कृत 'यूलीसिस' के सौ वर्ष  

                                                                                        (19 अक्टूबर 2022 )

                                                       (27 फरवरी 2023)

    महाकवि दांते : यह संसार और अगला

                                     (22 मार्च 2023)