🍁 पुष्पमाला-अरिहंत और आचार्यकी पूजा का उपकरण हैं ।
📕सर्वार्थ सिद्धि - (तत्त्वार्थसूत्र)
अध्याय -७, सुत्र-३४
अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणा
नादरस्मृत्यनुप-स्थानानि।।३४।।
टीका - आचार्य पुज्यपाद
अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितस्यार्हदाचार्यपूजोपकरणस्य गंधमाल्यधूपारात्मपरिधानाद्यर्थस्य चवस्त्रादेरादानमप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितादानम् ।
अर्थ - अरहंत और आचार्यकी पूजाके उपकरण, गन्ध, पूष्पमाला और धूप आदिको तथा अपने ओढ़नेआदिके वस्त्रादि पदार्थोंको बिना देखे और बिना परिमार्जन किये हुए ले लेना अप्रत्यवेक्षिता- प्रमार्जितादान है।
✋शुभाशीर्वाद
आर्षमार्ग संरक्षक प्रभावना प्रभाकर आचार्य पावनकीर्ति
💐 भगवान के चरणों पर पुष्पमाला:-
📙 शास्त्र :- षट्खण्डागम ( धवला )
आचार्य :- पुष्पदंत/भूतबली
पुस्तक -16 मोक्षानुयोगव्दार ( मंगलाचरण )
अर्थ:- मधु को करने वाले भ्रमरों से व्याकुल ऐसे विकसित धवल और सुगन्धित पुष्पमालाओं के व्दारा मल्लि जिनेन्द्रकी पूजा करके मोक्ष अनुयोगव्दार की प्ररुपणा करते हैं ।
📙 शास्त्र-उत्तरपुराण
🌻आचार्य :- भगवदगुणभद्रार्य
पद्य :-जयसेनापि सध्दर्म्म तत्रादायंकदा मुदा ।
पर्वोवासपरिम्लानतनुरभ्यर्च्य साअर्हतः ।
तत्पादपड्कजाश्लेष पवित्रां पापहां स्त्रजम ।
चित्रां पिचेअदित व्दाभ्यां हस्ताभ्यां विनयानता ।।
➡ अर्थ :- किसी समय पवित्र धर्म को स्वीकार करके, अष्टान्हिका पर्व सम्बन्धी उपवासों से खेद खिन्न शरीर को धारण करने वाली जयसेना जिन भगवान की पूजन करके भगवान के चरण कमलों पर चढणे से पवित्र और पापों के नाश करने वाली पुष्पमाला को विनय पूर्वक अपने दोनों हाथों से पिता के लिये देती है l
📓तिलोय पण्णत्ति /५/१०७,
🌻आचार्य श्री यति वृषभाचार्य
सयवंतगा य चंपयमाला पुण्णायणायपहुदीहिं। अच्चंति ताओ देवा सुरहीहिं कुसुममालाहिं। १०७।
🍍अर्थ:- वे देव सेवन्ती, चम्पकमाला, पुंनाग और नाग प्रभृति सुगन्धित पुष्पमालाओं से उन प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। १०७।
📙राजवार्तिक./६/२/१/५३१/३३
🌻आचार्य :-भट्ट अकलकं
देवतानिवेद्यानिवेद्यग्रहण (अन्तरायस्यास्रवः)। 🌹अर्थ:-मन्दिर के गन्ध माल्य धूपादि का चुराना, अशुभ नामकर्म के आस्रव का कारण है।देवता के लिए निवेदित किये या अनिवेदित किये गये द्रव्य का ग्रहण अन्तराय कर्म के आस्रव का कारण है। (त.सा./४/५६)।
📔 शास्त्र:- त्रिवर्णाचार
🍁आचार्य सोमदेव
जिनाड्घि स्पर्शितां मालां निर्मले कंठदेशके ।
➡ अर्थ:- जिन भगवान के चरणों पर चढी हुई पुष्पमाला को अपने कंठ में धारण करना चाहिये ।
📔 शास्त्र:- मूलाचार भाग-1
🍂आचार्य :- श्रीमद् वट्टकेर
गाथा नं-578; पेज नं- 429
💐पूजा कर्म- जिन अक्षर आदिकों के व्दारा अरिहंत देव आदि पूजे जाते हैं - अर्चेजाते है ऐसा बहुवचन से उच्चारण कर उनको जो पुष्पमाला चंदन आदि चढाये जाते हैं वह पूजा कर्म कहलाता है ।
📙 आदिपुराण
🥀आचार्य:- जिनसेन
यथाहिकुलपुत्राणां माल्यं गुरुशिरोघृतम् ।
मान्यमिव जिनेन्द्राड्घि स्पर्शान्माल्यादिभूषतम् ।
💐 अर्थ:- जिस तरह पवित्र कुल के बालकों को अपने बडे जनों के मस्तक पर की पुष्पमाला स्वीकार करने योग्य है उसी तरह जिन भगवान के चरणों पर चढे हुए पुष्पमाल्य तथा चन्दनादि तुम्हे स्वीकार करने योग्य है ।
🍍शास्त्र:-उमास्वामी श्रावकाचार
🌷आचार्य :-उमास्वामी
माल्यगंधप्रधूपाद्यै:, सचित्तै: कोऽर्चयेज्जिनम्।
सावद्यसंभवं वक्ति य:, स एवं प्रबोध्यते।।१४०।।
जिनार्चानेकजन्मोत्थं, किल्विषं हंति यत्कृतम्।
सा किंचिद् यजनाचारभवं सावद्यमंगिनाम्।।१४१।।
🍁अर्थ-कोई कोई लोग यह कहते हैं कि पुष्पमाला आदि सचित्त पदार्थों से भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सचित्त पदार्थों से पूजा करने में सावद्य जन्य पाप (सचित्त के आरंभ से उत्पन्न हुआ पाप) उत्पन्न होता है। उनके लिए आचार्य समझाते हैं कि भगवान की पूजा करने से अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं फिर क्या उसी पूजा से उसी पूजा में होने वाला आंरभ जनित वा सचित्तजन्य थोड़ा सा पाप नष्ट नहीं होगा ? अवश्य होगा।
✋शुभाशीर्वाद
आर्षमार्ग संरक्षक प्रभावना प्रभाकर आचार्य पावनकीर्ति