🍁 अभिषेक पूजन का अंग है - इसलिए महिलाओं के लिए भी भगवान का पंचामृत अभिषेक करनाआवश्यक क्रिया है।
📕महापुराण/38/27-33
आष्टाह्निको महः सार्वजनिको रूढ एव सः। महानैंद्रध्वजोऽंयस्तु सुरराजैः कृतो महः। 32।बलिस्नपनमित्यन्यः त्रिसंध्यासेवया समम्। उक्तेष्वेव विकल्पेषु ज्ञेयमन्यच्च तादृशम्। 33।
🌹अर्थ-चौथा अष्टाह्निक यज्ञ है जिसे सब लोग करते हैं और जो जगत् में अत्यंत प्रसिद्ध है। इनके सिवाय एकऐंद्रध्वज महायज्ञ भी है जिसे इंद्र किया करता है। बलि अर्थात् नैवेद्य चढ़ाना, अभिषेक करना, तीनसंध्याओं में उपासना करना तथा इनके समान और भी जो पूजा के प्रकार हैं वे उन्हीं भेदों में अंतर्भूत हैं।32-33।
📙वसुनंदी श्रावकाचार/453-455
गब्भावयार-जम्माहिसेय-णिक्खमण णाण-णिव्वाणं। जम्हि दिणे संजादं जिणण्हवणं तद्दिणे कुज्जा।453। णंदीसरट्ठदिवसेसु तहा अण्णेसु उचियपव्वेसु। जं कीरइ जिणमहिमा विण्णेया कालपूजा सा।455।
🌹अर्थ-जिस दिन तीर्थंकरों के गर्भावतार, जन्माभिषेक, निष्क्रमणकल्याणक, ज्ञानकल्याणक औरनिर्वाणकल्याणक हुए हैं, उस दिन भगवान् का अभिषेक करें। तथा इस प्रकार नंदीश्वर पर्व के आठदिनों में तथा अन्य भी उचित पर्वों में जो जिन महिमा की जाती है, वह कालपूजा जानना चाहिए।455।
📕कषाय पाहुड (जयधवला)
आचार्य गुणधर
पेज -१००
८२. चउवीस वि तित्थयरा सावज्जा; छज्जीवविराहण हेउसावयधम्मोवएसका- रितादो । तं जहा, दाणंपूजा सीलमुववासो चेदि चउव्विहो सावयधम्मो । एसो चउव्विहो वि छज्जीवविराहओ; पयण-पायणग्गिसंधुकण- जालण-दि-सूदाणादिवावारेहि जीव- विराहणाए विणा दाणाणुववत्तीदो ।तरुवरछिंदण-छिंदावणिट्टपादण-पादावण-तद्दहण- दहावणादिवावारेण छज्जीवविराहणहेउणा विणाजिणभवणकरणकररावणण्णहाणुव- वत्तदो । ण्हवणोवलेवण-संमज्जण छुहावण-पु(फु)ल्लारोवण-धूवदहणादिवावारेहि जीव- बहाविणाभावीहि विणा पूजकरणाणुववत्तीदो च ।
🌹अर्थ-🥀शंका- छह काय के जीवोंकी विराधनाके कारणभूत श्रावकधर्मका उपदेश करने- वाले होनेसेचौबीसों ही तीर्थकर सावय अर्थात् सदोष हैं। आगे इसी विषयका स्पष्टीकरण करते हैं-दान, पूजा, शील और उपवास ये चार श्रावकोंके धर्म हैं । यह चारों ही प्रकारका श्रावकधर्म छह कायके जीवोंकीविराधनाका कारण है, क्योंकि भोजनका पकाना, दूसरेसे पकवाना, अग्निका सुलगाना, अग्निकाजलाना, अग्निका खूतना और खुतवाना आदि व्यापारोंसे होनेवाली जीवविराधनाके बिना दान नहीं बनसकता है। उसीप्रकार वृक्षका काटना और कटवाना, ईंटका गिराना और गिरवाना, तथा उनको पकानाऔर पकवाना आदि छह कायके जीवोंकी विराधना के कारणभूत व्यापारके बिना जिनभवनका निर्माणकरना अथवा करवाना नहीं बन सकता है । तथा अभिषेक करना, अवलेप करना, संमार्जन करना, चन्दन लगाना, फूल चढ़ाना और धूपका जलाना आदि जीवबधके अविनाभावी व्यापारोंके बिना पूजाकरना नहीं बन सकता है ।
✋शुभाशीर्वाद
आर्षमार्ग संरक्षक प्रभावना प्रभाकर आचार्य पावनकीर्ति