🍂गणधरदेव भी जिनेन्द्र देवकी अष्ट से द्रव्य पूजा करते हैं ।
📕तिलोयपणत्ती
आचार्यश्री यतिवृषभाचार्य विरचित
चतुर्थ अधिकार
गाथा -८८२-८८३
आरुहिवूणं तेसु', 'गणहर देवादि बारस- गणा ते । कादूण 'ति व्यवहणमति मुहं मुहं णाहं ॥८८२॥
थोदूण जुदा साएहिं, असंखगुणसेढि-कम्म-निज्जरणं ।
कादूण पसण्ण मचा, णिय णिय कोट्ठेसु पवइसंतइ ।।८८३।।
🥀अर्थ :- वे गणधरदेवाधिक बारह-गण उन पीठों पर चढ़कर और तीन प्रदक्षिणा देकर बार-बार जिनेन्द्र देवकी पूजा करते हैं, तथा सेंकड़ों स्तुतियों द्वारा कीर्तन कर कर्मोकी असंख्यात- गुणश्रेणीरूपनिर्जरा करके प्रसन्न-चित्त होते हुए अपने-अपने कोठों में प्रवेश करते हैं। अर्थात् अपने- अपने कोठोंमेंबैठ जाते हैं ।।८८२-८८३।।
✋शुभाशीर्वाद
आर्षमार्ग संरक्षक प्रभावना प्रभाकर आचार्य पावनकीर्ति