women empowerment

महिला सशक्तिकरण

प्रस्तावना

आज के समय में महिला सशक्तिकरण एक चर्चा का विषय है, खासतौर से पिछड़े और प्रगतिशील देशों में क्योंकि उन्हें इस बात का काफी बाद में ज्ञान हुआ कि बिना महिलाओं तरक्की और सशक्तिकरण के देश की तरक्की संभव नही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को उंचा कर सकती है।

महिला सशक्तिकरण क्या है?

महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएं भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता

प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी, हालांकि आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएं कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएं आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नही है।

शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। भारत में पुरुषों की शिक्षा दर 81.3 प्रतिशत है जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 60.6 प्रतिशत ही है। हमारे देश में कई सारी महिलाओं को शिक्षा की सुविधा नही उपलब्ध है और अगर वह पढ़ती भी हैं तो कुछ ही कक्षाओं के बाद ही अपनी पढ़ाई को छोड़ देती है। भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के अपेक्षा अधिक रोजगारशील है, आकड़ो के अनुसार भारत के शहरों में साफ्टवेयर इंडस्ट्री में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं कार्य करती है, वही ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी महिलाएं मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक दूसरा मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है। भारत में कई सारे कार्य क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है। एक अध्ययन में सामने आया है कि समान अनुभव और योग्यता के बावजूद भी भारत में महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा 20 प्रतिशत कम भुगतान दिया जाता है।

अब वर्ष 2019 के आगमन में काफी कम समय बचा हुआ है और इसी के साथ भारत को सबसे तेजी से तरक्की करने वाले देश का दर्जा मिला हुआ। जिससे हमारा देश इस रास्ते पर काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है और हो सकता है हम जल्द ही इस लक्ष्य को पा भी लें, लेकिन इसे हम तभी बरकरार रख सकते है, जब हम लैंगिग असमानता को दूर कर पाये और महिलाओं के लिए भी पुरुषों के तरह समान शिक्षा, तरक्की और भुगतान सुनिश्चित कर सके।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं

भारतीय समाज एक अलग तरह का समाज है, जिसमें कई तरह के रिवाज, मान्यताएं और परंपराएं शामिल है। कई बार यह पुरानी मान्यताएं और परंपराए भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए बाधा सिद्ध होती है। महिलाओं के रास्ते में आने वाली इसी तरह की कई सारी बाधाओं के विषय में नीचे समझाया गया है।

1) सामाजिक मापदंड

पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएं खुद को पुरुषों से कमतर समझने लगती है और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती है।

2) कार्यक्षेत्र में शारीरिक शोषण

कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादे प्रभावित होते है। यह समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और भी समस्याएं उत्पन्न करता है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

3) लैंगिग भेदभाव

भारत में अभी भी कार्यस्थलों महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैलसे लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है। इस प्रकार के भेदभावों के कारण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और इसके साथ ही यह महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बुरे तरह से प्रभावित करता है।

4) भुगतान में असमानता

भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादे दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है। समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है।

5) अशिक्षा

महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएं भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएं है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़किया शिक्षा के मामले में लड़को के बराबर है पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियां जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती है।

6) बाल विवाह

हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गये प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती है।

7) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध

भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं। यहां तक कि कामकाजी महिलाएं भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें।

8) कन्या भ्रूणहत्या

कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्तें में आने वाले सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे जबतक हम कन्या भ्रूण हत्या के समस्या को मिटा नही पायेंगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका

भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती है। इनमें से कई सारी योजनाएं रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों के लिए चलायीं जाती है। इन योजनाएं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएं मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं।

महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जा रही है। इन्हीं में से कुछ मुख्य योजनाओं के विषय में नीचे बताया गया है।

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना

यह योजना कन्या भ्रूणहत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर लोगों के सोच को बदलने का कार्य किया जा रहा है।

2) महिला हेल्पलाइन योजना

इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, महिलाएं अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस नंबर पर कर सकती है। इस योजना के तरत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके महिलाएं अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती है।

3) उज्जवला योजना

यह योजना महिलाओं को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए की जाती है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।

4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप)

स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वंय का रोजगार शुरु कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्घत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछलीपालन आदि के विषयों में महिलाओं को शिक्षित किया जाता है।

5) महिला शक्ति केंद्र

यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।

6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण

2009 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायती राज संस्थानों में 50 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की, सरकार के इस कार्य के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया। जिसके द्वारा बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के साथ ही दूसरे अन्य प्रदेशों में भी भारी मात्रा में महिलाएं ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गयीं।

निष्कर्ष

जिस तरह से भारत सबसे तेजी आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हमें महिला सशक्तिकरण के इस कार्य को समझने की आवश्यकता है क्योंकि इसी के द्वारा ही देश में लैंगिग समानता और आर्थिक तरक्की को प्राप्त किया जा सकता है।

भले ही आज के समाज में कई भारतीय महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, वकील आदि बन चुकी हो लेकिन फिर भी काफी सारी महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और सहयोग की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण का यह कार्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति उसके महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर ही निर्भर करती है।

Source-www.hindikiduniya.com