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पर्यावरण / Environment

भूमिका : इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना बहुत जरूरी है कि पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष का संपूर्ण योग है। जो हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखता है तथा उसे प्रभावित करता है वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरूप मिलों, कारखानों तथा वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि आजकल पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई है।

मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अगर हमारी जलवायु में थोडा-सा भी परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर दिखने लगता है। अगर ठंड ज्यादा पडती है तो हमें सर्दी हो जाती है लेकिन अगर गर्मी ज्यादा पडती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं।

पर्यावरण प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढने, पोषण और नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों से अपने पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं।

पर्यावरण का अर्थ : पर्यावरण का तात्पर्य हमारे चारों ओर के वातावरण और उसमें निहित तत्वों और उसमें रहने वाले प्राणियों से है। हम अपने चारों ओर उपस्थित वायु, भूमि, जल, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी को अपने पर्यावरण में शामिल करते हैं। जिस तरह से हम अपने पर्यावरण से प्रभावित होते हैं उसी तरह से हमारा पर्यावरण हमारे द्वारा किए गए कृत्यों से प्रभावित होता है।

लकड़ी के लिए काटे गए पेड़ों से जंगल समाप्त हो रहे हैं और जंगलों के समाप्त होने का असर जंगल में रहने वाले प्राणियों के जीवन पर पड़ रहा है। जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त हो गई है और बहुत सी जातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज के समय में शेर अथवा चीतों के द्वारा गाँव में घुसने और वहाँ पर रहने वाले मनुष्यों को हानि पहुँचाने की बात बहुत आम हो गई है।

लेकिन ऐसा क्यूँ हो रहा है? यह इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने इन प्राणियों से इनका घर छीन लिया है और अब ये प्राणी गांवों और शहरों की तरफ जाने के लिए मजबूर हो गए हैं और अपने जीवन यापन के लिए मनुष्यों को हानि पहुँचाने लगे हैं। पर्यावरण से तात्पर्य केवल हमारे आस-पास के वातावरण से नहीं है बल्कि हमारा सामाजिक और व्यवहारिक वातावरण भी इसमें शामिल है। मानव के आस-पास उपस्थित सोश्ल, कल्चरल, एकोनोमिकल, बायोलॉजिकल और फिजिकल आदि सभी तत्व जो मानव को प्रभावित करते हैं वे सभी वातावरण में शामिल होते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण : पर्यावरण प्रदूषण के बहुत से कारण है जिससे हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें।

हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है। आज के समय में घर में इतने सदस्य नहीं होते हैं जितने अधिक वाहन होते हैं। घर का छोटा बच्चा भी साइकिल की जगह पर गाड़ी चलाना पसंद करता है।

मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों से बाहर निकलने वाले धुएं तथा विषैली गैसों ने पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न कर दिया है। बसों, करों, ट्रकों, टंपुओं से इतना अधिक धुआं और विषैली गैसी निकलती है जिससे प्रदूषण की समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है।

बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता, बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है।

शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक बहुत ही आम बात हो गई है। मनुष्य बिना कुछ सोचे समझे पेड़ों को काटता जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता है कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है।

बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदूषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।

पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम : हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित होता जा रहा है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे पूर्वजों ने विभिन्न जीवों को देवी-देवताओं की सवारी मानकर और विभिन्न वृक्षों में देवी देवताओं का निवास मानकर उनका संरक्षण किया है।

पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है जिसके दो उद्देश्य होते हैं। पहला उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है। दूसरा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाना जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके।

कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए। प्रदूषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। सभी मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों में अभिलंब प्रदूषण नियंत्रण के लिए संयत्र लगाए जाने चाहिएँ।

इन संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्काषित किया जाना चाहिए। बड़े नगरों में बसों, कारों, ट्रकों, स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग भी करवानी चाहिए। हरे पौधों का रोपण किया जाना चाहिए तथा बड़े-बड़े पेड़ों की सुरक्षा की जानी चाहिए।

शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए। संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जनजागरण किया जाना चाहिए।

कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में वृद्धि करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरंभ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन कर लेना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से इस समस्या को कम करने की कोशिश करनी चाहिये।

जो कारखाने स्थापित हो चुके हैं उन्हें तो दूसरे स्थान पर स्थापित नहीं किया जा सकता है लेकिन अब सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो भी नए कारखाने खुलें वो शहर से दूर हो। कारखानों द्वारा किया गया प्रदूषण शहर की जनता को प्रभावित न करे। मनुष्य को अपने द्वारा किए गए प्रदूषण को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

जितना हो सके वाहनों का कम प्रयोग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करके भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों द्वारा भी धुएं को काबू करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ। जंगलों की कटाई पर सख्त सजा सुनाई जानी चाहिए तथा नए पेड़ लगाए जाने चाहिएँ।

विश्व पर्यावरण दिवस : विश्व पर्यावरण दिवस को 5 जून से 16 जून के बीच मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण के दिन हर जगह पर पेड़-पौधे लगाए जाते हैं और पर्यावरण से संबंधित बहुत से कार्य किए जाते हैं जिसमें 5 जून का विशेष महत्व होता है। आज के समय में मनुष्य को अपने स्तर पर पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।

पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त होना किसी भी एक समूह की कोशिश की बात नहीं है। इस समस्या पर कोई भी नियम या कानून लागू करके काबू नहीं पाया जा सकता है। अगर प्रत्येक मनुष्य इसके दुष्प्रभाव के बारे में सोचे और आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचे तो शायद इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।

उपसंहार : कुछ राज्य सरकारों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून भी पास किए हैं। केंद्रीय सरकार के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक मंत्रालय कार्यरत है। इस समस्या के समाधान के लिए जन साधारण का सहयोग बहुत ही सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विकास की कमी और विकास प्रक्रियाओं से भी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। अधिक व्यवहार्य भविष्य की खोज केवल उन्मूलन के साधनों के विकास को खत्म करने के बहुत जोरदार प्रयास के संदर्भ में सार्थक हो सकती है।

Source- www.hindimeaning.com