हिंदी भाषा और साहित्य के अमूल्य खजाना
Common course in Hindi { course No.A 07(1)} PROSE AND DRAMA
1.HARI BINDI by MRIDULA GARG
2.SHAVYATRA by OMPRAKASH VATMIKI
3.NAKHUN KYON BADHTE HAI by HAZARI PRASAD DWIVEDI
4.SONA by MAHADEVI VARMA
5.SADACHAR KAA TAAWEEZ by HARISHANKAR PARSAI
Drama : SAKKUBAI
1.हरी बिंदी -मृदुअल गर्ग
2.शवयात्रा-ओमप्रकाश वाल्मीकि
3.नाख़ून क्यों बढ़ते है -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
4.सोना हिरनी-महादेवी वर्मा
5.सदाचार का ताबीज़ -हरिशंकर परसाई
मुख्य पात्र सुरजा
संतो
कल्लन (कल्लू)
सरोज
सलोनी
चर्चित समस्याएं
दीपशिखा, मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
(Visit the link to view drama)
1. सकुबाई मुंबई कैसे पहुँची ?
2. 'सकुबाई' में चर्चित किन्हीं चार समस्याएँ लिखिए
3 .शहरी जीवन के बारे में सकुबाई की राय क्या है ?
4. रोज़गार के क्षेत्र के बारे में सकुबाई क्या कहती है ?
5."हमारे हाथ में एक गिलास दूध और चार बिस्कुट हों तो हमारे दस बच्चे हमारे पीछे दौड़ेंगे"- यहाँ सकुबाई किस विषय की और ईशार कर रही है ?
6.सकुबाई के परिवार का परिचय दीजिए
7.सकुबाई को शिक्षा न मिलने का कारण क्या थी ?
8.पढ़े लिखे लोग और अनपढ़ लोग किस बात पर बराबर है ?
9."यहाँ के लोग बड़े स्वार्थी है"| कहाँ के ? क्यों ?
10.यशवंत कौन था ? सायली कौन थी ?
11. सकुबाई अपनी लड़की को साइली नाम क्यों रखी ?
12."ज्यादा छुट्टी लेंगे तो दुसरी बाई रख लेंगे"| आशय स्पष्ट कीजिए
13.सरकारी अस्पताल के बारे में सकुबाई क्या कहती है ?
14.सकुबाई की राय में नारी शिक्षा के क्षेत्र में कौनसी परिवर्तन आयी है ?
15.साइली का परिचय दीजिए
16. 'हरिबिन्दी' किसकी रचना है ?किस विधा की रचना है ?
17. राजन कौन है ?वह कहाँ गया है ?
18. 'हरिबिन्दी' की नायिका उस दिन क्या क्या की ?
19. मुंडू कौन है ?
20. 'हरिबिन्दी' की नायिका की राय में रेस्त्रां से मिले व्यक्ति की विशेषता क्या है ?
21 .शब्द छूट नहीं बोलते किसकी रचना है ?
22 . ओमप्रकाश वाल्मीकि की दो रचनाओं के नाम लिखिए
23. सुरजा के परिवार का परिचय दीजिए
24. कल्लू कैसे कल्लन हो गया ?
25 .कल्लन का चरित्र चित्रण कीजिए
26. सुरजा गाँव छोड़ने के लिए तैयार नहीं था | क्यों ?
27.कल्लन के बीबी और बच्चे गाँव आना नहीं चाहता | क्यों ?
28.रामजीलाल कौन था ? उसने सुरजा से क्या कहा ?
29. डॉक्टर कल्लन की बेटी को इलाज करने के लिए तैयार नहीं हुए | क्यों ?
30. सलोनी कौन थी ?
31."इंसान की जात ही सब कुछ है "- आशय स्पष्ट कीजिए
32."तमाम भाषण खोखले और बेहद बनावटी थे "| आशय स्पष्ट कीजिए
33 . सलोनी की शवयात्रा की विशेषता क्या है ?
34. 'हिंदी साहित्य की भूमिका किसकी रचना है ?
35. पुराने ज़माने में लोगों को नाखून की ज़रूरत थी | क्यों ?
36. वज्र आयुध कैसे बनाया था ?
37.अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति --------की विरोधिनी है
38. नाख़ून बढ़ाना और काटना किन किन का प्रतीक है ?
39.स्वाधीनता का अर्थ क्या है /
40. मनुष्य और पशु में अंतर क्या है ?
41 . महाभारत के अनुसार सब वर्णों का सामन्य धर्म क्या है ?
42. नुष्य को सुख कैसे मिलेगा ?
43. प्रेम ही बड़ी चीज़ है | क्यों ?
44. मनुष्य का स्वधर्म क्या है ?
45. नाख़ून बढ़ना किसकी निशानी है ?
46 आधुनिक कल की मीरा कौन है ?
47. साहित्यकार संसद की स्थापना किसने की ?
48. महादेवी वर्मा की कौनसी रचना को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिली /
49. भारत सरका ने महादेवी वर्मा को कौनसी उपाधि से सम्मानित की ?
50. सोना हिंरनी कौन थी ?
51.सोना हिरनी महादेवी वर्मा के पास कैसे पहुँची ?
52. सोना हिरनी का रूप वर्णन
53. मनुष्य किसको असुंदर मानते है ?
54.महादेवी वर्मा हिरन न पालने का निर्णय लेने का कारण क्या थी ?
55. सोना हिरनी और महादेवी वर्मा की रिश्ता
56. सोना हिरनी और और छात्रावास के बच्चे
57. सोना हिरनी का जीवनचर्या
58. कविगुरु कौन है ?
59. सोना हिरनी महादेवी वर्मा से अपनी प्यार कैसे प्रकट करती थी ?
60. सोना हिरनी की अंत कैसे हुई ?
61 .फ़्लोरा और सोना हिरनी की रिश्ता
62. भक्तिन कौन थी ?
63.बद्रीनाथ जाते वक्त महादेवी वर्मा के साथ कौन कौन गए ?
64 .बद्रीनाथ से लौट आयी महादेवी को माली ने कौनसी सूचना दी ?
65.हेमंत -वसंत कौन था ?
66 . 'तिरछी रेखाएं ' किस विधा की रचना है ?
67 . हरिशंकर परसाई द्वारा प्रकाशित पत्रिका का नाम लिखिए
68 . विशेषज्ञ कौन है ?
69. राज्य में कौनसा हल्ला मचा ?
70. ईइश्वर का गन क्या है ?
71 .भ्र्ष्टाचार अब --------- हो गया है |
72 .विशेषज्ञों की राय में भ्र्ष्टाचार कहाँ - कहाँ है
73 .साधू को किसका ढेका दिया ?क्यों ?
74 . किसके पुकार के अनुसार आदमी काम करता है ?
75 . साधु की राय में भ्र्ष्टाचार और सदाचार कहाँ होता है ?
76 . सदाचार का तावीज़ बनाने का कारण क्या था ?
77 . तावीज़ देने से कौनसा परिवर्तन हुआ ?
78 . इकतीस तारीख को तावीज़ से कौनसी आवाज़ आ रही थी ?
79 . राज कर्मचारी नारज क्यों हुए ?
80 "भाग जाओ यहाँ से "| यह वाक्य कौन किससे कहते है ? क्यों ?
81.सदाचार का तावीज़ पहले किस जानवर पर लगाया गया ? उसका नतीजा क्या था ?
82.कळलंन की माँ की मृत्यु के समय कौनसी घटना हुई थी ?
83.सकुबाई की पती कौन थी ? वह कौनसा काम करता था ?
'साइली' कौन थी ? वह नाम कैसे मिली ?
84.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की राय में पशु और जानवर का अंतर क्या है ?
85.राजन कौन था ? राजन घर में नहीं होने पर उसकी पत्नी को ख़ुशी हुई | क्यों ?
हरी बिंदी
"आज वह स्वतंत्र है "
"आज का दिन मेरे लिए काफी कीमती रहा है "
शवयात्रा
"यहाँ न तो इज़्ज़त है ,न रोटी "
"तू सच कहते थे ,यह गाँव रहने लायक न है "
"बेकार यहाँ मकान पर पैसा लगा रहे हो "
"इंसान की जात ही सब कुछ है "
"लेकिन बेबस थी,अपने पाने दायरे में कैद "
"तमाम भाषण खोखले और बेहद बनावटी थे "
नाख़ून क्यों बढ़ते है ?
"नाख़ून क्यों बढ़ते है ?"
"जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे ,वे विजयी हुए "
"तुम्हारे नाखून को भुलाये नहीं जा सकता "
"मनुष्य की पशुता को कितनी बार काट दो,वह मरना नहीं जानती "
"पशु बन कर वह आगे नहीं बढ़ सकता "
"अपनी अपनी रूचि है देश की भी और काल की भी "
"अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता के विरोधिनी है"
"सब पुराने अच्छे नहीं होते ,सब नए खराब ही नहीं होते "
"बाहर नहीं भीतर की और देखो"
"प्रेम ही बड़ी चीज़ है"
"मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है,मैत्री में है,त्याग में है "
सदाचार का तावीज़
"वह सूक्ष्म है,अगोचर है और सर्वव्यापी है "
"अब भ्र्ष्टाचार ईश्वर हो गया है "
"आत्मा की पुकार के अनुसार आदमी काम करता है"
"आज इक्कीस है ,आज तो ले ले "
सोना हिरणी
"मनुष्य मृत्यु को सुन्दर ही नहीं ,अपवित्र भी मानता है "
"बाई रखी है तो हम काम क्यों करें "?
"तू पाठशाला जाएगी तो घर का काम कौन करेगा" ?
"पढ़े-लिखे लोग भी घर -घर घूमते है | और अनपढ़ भी "
"वो प्याला हमारे घर में कोई नहीं पीता बाबा प्रेम का प्याला "
"हम अनपढ़ है तो क्या हुआ ?अक्ल नहीं है क्या?"
"ज़्यादा छुट्टी करेंगे तो दुसरा बाई रखेंगे "
"सरकारी अस्पताल में न कोई किसी की सुनता है और न ही कुछ बताता है "
"गरीब के बीमार होने से अच्छा है उसका मर जाना "
"बुढ़ापे का शरीर है,काम नहीं करेंगे तो बीमार पड जाऊँगी "
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
1. 'हरी बिंदी' किसकी रचना है ? 'हरि बिन्दी' किस विधा की रचना है ?
2. 'शवयात्रा'कहानी के पात्रों के नाम लिखिए
3. नाखून का बढ़ना किसका प्रतीक है ?
4.सोना हिरणी महादेव वर्मा के पास कैसे पहुँची ?
5 राजा ने सदाचार का तावीज़ बनाने के निर्णय क्यों किया ?
6. सकुबाई बुढापे के अवसर में भी काम करना चाही | क्यों ?
7. "आज वह स्वतंत्र है | कौन ?क्यों ?
8. सम्मिलित कीजिए
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी - यामा
महादेवी वर्मा - डेफोडिल जल रहे है
हरिशंकर परसाई - हिंदी साहित्य का इतिहास
मृदुला गर्ग - तिरछी रेखाएँ
9. सकुबाई कैसे मुंबई पहुँच गई ?
10. विशेषज्ञ कौन है ?
11 .महादेवी वर्मा जानवरों न पालने का निर्णय लेने का कारण क्या था ?
12 . मनुष्य की चरितार्थता कहाँ है ?
13. कल्लन की बेटी को इलाज देने के लिए डॉक्टर तैयार नहीं हुआ | क्यों ?
14 सोना हिरणी का परिचय दीजिए
15 आदमी काम कैसे करते है ?
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
16. सकुबाई का चरित्र चित्रण कीजिए
17 . 'सदाचार का तावीज़' का संक्षिप्त वर्णन कीजिए
18 . सप्रसंग व्याख्या कीजिए
"मेरे आई ने पढ़ने के लिए मुझे थपड मारा था | आज मेरी लड़की मुझे पढ़ने के लिए कहती है|"
19.सप्रसंग व्याख्या कीजिए
"अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करते है "
20. 'हरि बिंदी' कहानी की कथावस्तु
21 . सुरजा का चरित्र चित्रण कीजिए
22 . सकुबाई में चित्रित नारी समस्याएं क्या -क्या है ?
23. 'नाख़ून क्यों बढ़ते है ' का संक्षिप्त रूप
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
24.कहानी के तत्वों के आधार पर ‘’शवयात्रा कहानी का मूल्यांकन कीजिए
25. एकांकी के तत्वों के आधार पर 'सकुबाई' का मूल्यांकन कीजिए
26. 'सोनहिरनी' का सारांश
Common course in Hindi { course No.A 08 (1) } GRAMMAR AND TRANSLATION
Correct usages of Hindi –Shabdavichar ,definition and classification of words – noun, gender, number, karak , Pronoun, adjective, tense, voice, 3 Adverb, preposition ,conjunction, interjection Translation
Grammar, &Translation
भाषा के प्रकार - कथित भाषा और लिखित भाषा
भाषा के अंग - वर्ण- शब्द -वाक्य
व्याकरण = वर्ण- शब्द -वाक्य का वैज्ञानिक अध्ययन
वर्ण - दो प्रकार का स्वर और व्यंजन
11 स्वर और 33 व्यंजन
कुल ४४ वर्ण
लिपि - वर्णों के लिखने का क्रम
हिंदी देव नागरी लिपि में लिखी जाती है |
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
शब्द
एक या एक से अधिक अक्षरों का सार्थक समूह है शब्द
शब्दों का वर्गीकरण 1. अर्थ के आधार पर
2.व्युत्पत्ति के आधार पर
3.उत्पत्ति के आधार पर
4.प्रयोग के आधार पर
अर्थ के आधार पर भेद 1.वाचक शब्द
2.लाक्षणिक शब्द
3.व्यंजक शब्द
व्युत्पत्ति के आधार पर भेद - 1. रुढ
2.यौगिक
3. योगरूढ
उत्पत्ति के आधार पर -1.तत्सम
2.तद्भव
3.देशज
4.विदेशी
प्रयोग के आधार पर भेद -1.विकारी -संज्ञा,सर्वनाम ,क्रिया ,विशेषण
2.अविकारी -क्रियाविशेषण ,सम्बन्ध्बोधक ,समुच्चयबोधक विस्म्यादी बोधक
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
विकारी शब्द
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
2.जातिवाचक संज्ञा
3.भाववाचक संज्ञा
==============================================
1.पुरुषवाचक सर्वनाम ( उत्तम पुरुष,मध्यम पुरुष,अन्य पुरुष )
मैं,हम : तू,तुम आप : यह वह
2.निजवाचक सर्वनाम (अपने आप,स्वयं )
3.निश्चयवाचक सर्वनाम (यह,वह,ये,वे )
4.अनिश्चयवाचक सर्वनाम (कोई,कुछ)
5.सम्बन्ध वाचक सर्वनाम (का,के,की )
6.प्रश्नवाचक सर्वनाम (क्या,कब ,क्यों ...)
************************************************
2.अकर्मक क्रिया
3.द्विकर्मक क्रिया
4.प्रेरणार्थक क्रिया
5.नामधातु क्रिया
6.संयुक्त क्रिया
7.सहायक किया
संयुक्त क्रिया : 1. आरम्भबोधक - लगना - वह पढ़ने लगा
2.स्मप्तिबोधक -चु कना वह पढ़ चुका है
3.शक्तिबोधक -सकना वह पढ़ सकता है
4.निश्चयबोधक - गिर पड़ा ,बोल उठा वह बीच ही में बोल उठा
5.अवकाश्बोधक -पाना वह जाने न पाया
6.अनुमातिबोधक -देना - मुझे बोलने दो
7.नित्यता बोधक -बोलता रहा... हवा चल रही है
8.आवश्यकता बोधक-पड़ना,चाहिए - यह काम मुझे करना पड़ता है;
9.इच्छा बोधक -चाहना - मैं खाना चाहता हूँ
10.अभ्यास बोधक- पढ़ा करना,रोया करना
क्रिया के रूपान्तर - काल
क्रिया के जिस रूप से कार्य करने या होने के समय का ज्ञान होता है उसे 'काल' कहते है |
(1)वर्तमान काल (present Tense) - जो समय चल रहा है।
वर्तमान काल के पाँच भेद होते है-
(i)सामान्य वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ता है |
(ii)अपूर्ण वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ रहा है |
(III)संभाव्य वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ता होगा |
(2)भूतकाल(Past Tense) - जो समय बीत चुका है।
(i)सामान्य भूतकाल (Simple Past)- राम ने पुस्तक पढ़ा
(ii)आसन भूतकाल (Recent Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा है |
(iii)पूर्ण भूतकाल (Complete Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा था |
(iv)अपूर्ण भूतकाल (Incomplete Past) -राम पुस्तक पढ़ रहा था |
(v)संदिग्ध भूतकाल (Doubtful Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा होगा
(vi)हेतुहेतुमद् भूत (Conditional Past) -
(3)भविष्यत काल (Future Tense)- आने वाला समय
(i)सामान्य भविष्यत काल - राम पुस्तक पढ़ेगा
(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल-राम पुस्तक पढ़े
==============================================
वाच्य
क्रिया के जिस रूपान्तर से यह ज्ञात हो कि वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का प्रधान विषय कर्ता, कर्म अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं
वाच्य के भेद
(1) कर्तृवाच्य (Active Voice) - क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। जैसे - राम केला खाता है।
(2) कर्मवाच्य (Passive Voice)-क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं राम से केला खाया जाता है |
(3) भाववाच्य (Impersonal Voice)-क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है।
मुझ से बैठा नहीं जाता |
कर्तृवाच्य कर्मवाच्य
(1) गोपाल पत्र लिखता है। गोपाल से पत्र लिखा जाता है।
(2) मैं अख़बार नहीं पढ़ सकता। मुझसे अख़बार पढ़ा नहीं जाता।
(3) लड़कियाँ गीत गा रही हैं। लड़कियों द्वारा गीत गाए जा रहे हैं।
ने का नियम
1. कर्तृवाच्य में यदि कोई सकर्मक क्रिया भूतकाल के सामान्य,आसन्न,पूर्ण अपूर्ण भूतकाल रूपों में आता है तो कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगती है।
2.'ने' विभक्ति लगते समय क्रिया कर्ता के लिंग वचन के अनुसार न बदलकर कर्म के लिंग ,वचन के अनुसार बदलते है |
राम ने पुस्तक पढ़ी , सीता ने कपड़े खरीदे
3.वाक्य में कर्म के न रहने पर क्रिया हमेशा पुल्लिंग एक वचन में रहती है |
सीता ने खाया ,लडकों ने गाया
4.वाक्य में कर्म के साथ 'को विभक्ति लगने से क्रिया हमेशा पुल्लिंग एक वचन में रहती है
माँ ने बच्चों को खिलाया
5.बकना, बोलना, भूलना ,लाना क्रिया आते वक्त कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति नहीं लगती |
visit लिंक https://nroer.gov.in/582e98b916b51c01d821cddf/file/58501ddc472d4a28051cb03f
विशेषण
विकारी शब्द
विशेषता,गुण,धर्म आदि का बोध कराता है व
विशेषण के भेद 1.गुणवाचक विशेषण
2.संख्यावाचक विशेषण
3.परिमाणवाचक विशेषण
4.सार्वनामिक विशेषण
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संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध प्रकट हो उसे कारक कहते है|
कारक विभक्ति चिह्न
कर्ता कारक ने
कर्म कारक को
करण से
अपादान से
संप्रदान को ,के लिए
संबंध का,के,की
अधिकरण में ,पर
संबोधन है,अरे
सर्वनामों की कारक रचना
कारक एक वचन बहु वचन
कर्ता मैं ने हमने
कर्म मुझको /मुझे हमको/हमें
करण मुझसे हमसे
अपादान मुझसे हमसे
संप्रदान मुझको ,मेरे लिए हमें /हमारेलिए
संबंध मेरा/मेरे/मेरी हमारा/हमारे/हमारी
अधिकरण मुझे में /मुझ पर हममें /हम पर
लिंग - स्त्री लिंग और पुल्लिंग
सदा पुल्लिंग रहने वाले शब्द –
सदा स्त्रीलिंग रहने वाले शब्द
पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के कुछ नियम इस प्रकार हैं-
1.शब्दान्त ‘अ’ को ‘आ’ में बदलकर-
छात्र – छात्रा
2.शब्दान्त ‘अ’ को ‘ई’ में बदलकर
दास – दासी
3.शब्दान्त ‘आ’ को ‘ई’ में बदलकर-
बेटा – बेटी
4.शब्दान्त ‘आ’ को ‘इया’ में बदलकर-
बूढ़ा – बुढि़या
5.‘इन’ प्रत्यय लगाकर-
माली – मालिन
6. ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर-
चौधरी – चौधराइन
===========================================
वचन -एकवचन और बहुवचन
एकवचन से बहु वचन बनाने का नियम
1. क्रियाविशेषण -क्रिया की विशेषता प्रकट करता है
2.संबंध बोधक - संज्ञा और सर्वनाम के साथ हो कर संबंध प्रकट करता है
3. समुच्चय बोधक -शब्दों और व्क्यों को मिलाता है
4.विस्मयादिबोधक-विस्मय,दुःख आदि मनोभाव प्रकट करता है
============================================== अनुवाद (Translation)
किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है।
अनुवाद प्रक्रिया में तीन सोपानों का उल्लेख है :
अनुवाद के प्रकार
शब्दानुवाद ,भावानुवाद ,छायानुवाद ,सारानुवाद ,आशु अनुवाद ,व्याख्यानुवाद ,आदर्श अनुवाद ,रूपान्तरण
SECOND SEMESTER B. A/ B.Sc DEGREE EXAMINATION
COMMON COURSE IN HINDI
HIN 2(08)1 Grammer &Translation
MODEL QUESTION
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
26. हिंदी में अनुवाद कीजिए
The Taj Mahal is very famous building. It is one of the wonders of the world. it is situated at Agra on the right bank of the Yamuna. It was built b Shahjahan. He built it in the memory of his dear wife Mumthaz Mahal. People come from far and wide to see this historical building. It is very pleasant to see it in the rainy season when the scenery on all sides is very beautiful. Hundreds of ears have passed but its beauty is the same, as it was, when it was built
THIRD SEMESTER
Common course in Hindi { course No.A 09 (1) } POETRY IN HINDI
1. PADYA VIHAR
1.Kabeer das -5 Dohas 2.Soordas – 3 padas 3.Tulsidas – 3 Dohas For module 2 4.Maithilee sharan gupt – Sakhi ve mujhse kahkar jaate 5.Niraalaa -jaago phir ek baar 6.Naagaarjun – ham bhee saajheedaar the 7.Agyey - maine kaha ped For module 3 8.Arunkamal – putalee mein sansaar 9.Gyanendrapati – beej vyatha 10.Anaamika - bejagah 11.Jayaprakaash kardam - mere adhikaar kahaan hai
2.KANUPRIYA – Dharmaveer bharathi
हिंदी साहित्य - काल विभाजन
1. आदिकाल (वीरगाथा काल) : सन् 1000 से 1325 तक
2. पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) : सन् 1325 से 1650
3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) : सन् 1650 से 1850
4. आधुनिक काल : सन् 1850 से अब तक
भक्ति काल काल विभाजन
रामाश्रयी शाखा -तुलसीदास
कृष्णाश्रयी शाखा-सूरदास
ज्ञानाश्रयी शाखा- कबीरदास
प्रेमाश्रयी शाखा-जायसी
निर्गुण भक्ति के तत्व
कबीर दास
1.साखी -कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण
2.सबद -गेय पद है जिसमें पूरी तरह संगीतात्मकता विद्यमान है
3.रमैनी -कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचार
संत कबीर हिंदी फिल्म देखने के लिए विजिट करें - https://youtu.be/zXdGf9KJ6cY
कबीर बानी सुनने के लिए विज़िट करें
https://youtu.be/scL0hVthDCg
सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपगार।
लोचन अनँत उघारिया, अनँत दिखावनहार ॥
सद्गुरु की महिमा अनन्त और अपार है। उसका उपकार भी अनन्त है। उसने मेरी अनन्त दृष्टि खोल दी जिससे मुझे उस अनन्त प्रभु का दर्शन प्राप्त हो गया। गुरु के प्रति कबीरदास का विचार यहाँ व्यक्त हो रहा है|
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
व्याख्या: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते। गुरु के प्रति कबीरदास का भाव यहाँ सुविदित हो रहा है |
'' जाके मुंह माथा नहीं, न ही रूप सुरूप।
पुहुप बास ते पातरा ऐसा तत्व अनूप।।'‘
परमात्मा मुँह ,माथा नहीं है | न वह कुरूप है | परमात्मा का वास फूल में सुगंध की भाँति है तथापि जीवात्मा अज्ञानान्धकार में भटकता है
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
पूरी दुनिया सुख चाहते है।कबीरदास चेतावनी दे रहा है : खाना, पीना और मौज मस्ती करना सुख का लक्षण नहीं है | सही अर्थ में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
प्रेम ना तो खेत में पैदा होता है और न बाजार में बिकता राजा हो या प्रजा जो भी प्रेम का इच्छुक है ,वह अपने सर्वस्व त्याग करने पर ही प्रेम प्राप्त कर सकता है। गर्व या घमंड का त्याग प्रेम के लिये परम आवश्यक है। परमात्मा से मिलने के लिए जीवात्मा को अहम बोध छोड़ना होगा |
"आजु हौं एक-एक करि टरिहौं ।
कै तुमहीं, कै हमहीं माधौ, अपने भरोसैं लरिहौं ।
हौं पतित सात पीढ़नि कौ, पतितै ह्वै निस्तरिहौं ।
अब हौं उघरि नच्यौ चाहत हौं, तुम्हैं बिरद बिन करिहौं ।
कत अपनी परतीति नसावत , मैं पायौ हरि हीरा ।
सूर पतित तबहीं उठहै, प्रभु जब हँसि दैहौ बीरा"||
सूरदास श्रीकृष्ण से बता रहे है - है भगवान आज हम दोनों में से किसी एक का विजय होगा| कई जन्मों से मैं मुक्त होने की कोशिश कर रहा था|मेरा सातों जन्म हो चुका है| भारतीय विचारधारा के अनुसार सात जन्म लेने पर ही मनुष्य को पित्र ऋण से मुक्ति होती है |इस जन्म में मुझे हरी रूपी हीरा मिल गया है|अर्थात श्रीकृष्ण मिला है | इसलिए सूरदास बता रहे है मुझे मुक्ति मिलना ही चाहिए |जब तक तुम्हारी कृपा मुझ पर पड़ेगी,तब तक मैं तुम्हरे चरणों पर पड़ा रहूँगा|अगर तुम मेरे उद्धर नहीं करोगे तो भक्त गण तुम पर भरोसा नहीं करेंगे|
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"नर तैं जनम पाइ कह कीनो ?
उदर भरयौ कूकर सूकर लौं, प्रभु कौ नाम न लीनौ ।
श्री भागवत सुनी नहिं श्रवननि, गुरु गोबिंद नहिं चीनौ ।
भाव-भक्ति कछु हृदय न उपजी, मन विषया मैं दीनौ ।
झूठौ सुभ अपनौ करि जान्यौ, परस प्रिया कैं भीनी ।
अघ कौ मेरु बढ़ाइ अधम तू, अंत भयौ बलहीनौ ।
लख चौरासी जोनि भरमि कै फिरि वाहीं मन दीनौ ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु ज्यौ अंजलि-जल छीनौ"||
व्याख्या -
सूरदास बता रहे है -नर जन्म तो कई जन्म लेने के बाद ही मिलते है|उस तरह नर जन्म लेकर तुम क्या कर रहे हो ? अन्य जीवों के समान पेट भरने केलिए ही जिया और परमात्मा का नाम लेना भूल गया |गुरु और परमात्मा को पहचानने का कोई भी काम तू ने नहीं किया |परमात्मा से मिलने का रास्ता खोजने के बदले तुम सुख के पीछे चलते रहे |असली सुख तो परमात्मा से मिलने पर ही प्राप्त होंगे |तुम तो प्रियतमा से मिलने से परमात्मा को भूल गया |परमात्मा से दूर दूर जाने के कारण पापों का संचय अब सुमेरु पहाड़ की तरह बढ़ चुका है|चौरासी लाख योनियों से गुजरने के बाद प्राप्त मानव जन्म तुम इस तरह नष्ट मत करो|ईश्वर स्मरण के बिना जीवन पूर्ण नहीं होंगे |इसलिए ईश्वर भजन में डूबने की कोशिश करो |
ईश्वर भजन की आवाश्यकता पर यहाँ प्रकाश डाल रहा है |
പൂന്താനത്തിന്റെ ഈ വരികള് ആശയം വ്യക്തമാക്കാന് സഹായിക്കും
എത്ര ജന്മം പ്രയാസപ്പെട്ടിക്കാലം
അത്ര വന്നു പിറന്നു സുകൃതത്താല്
എത്ര ജന്മം വനത്തില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം ജലത്തില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം മണ്ണില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം മരങ്ങളായി നിന്നതും
എത്ര ജന്മം മരിച്ചു നടന്നതും
എത്ര ജന്മം മൃഗങ്ങള് പശുകളായി
അത് വന്നിട്ടീവണ്ണം ലഭിച്ചൊരു
മര്ത്യ ജന്മത്തില് മുന്പേ കഴിച്ചു നാം
എത്രയും പണിപ്പെട്ടിങ്ങു മാതാവിന്
ഗര്ഭപാത്രത്തില് വീണതറിഞ്ഞാലും
പത്തു മാസം വയറ്റില് കഴിഞ്ഞുപോയി
പത്തു പതിരണ്ടുണ്ണിയായിട്ടുംപോയി
തന്നെ തന്നഭിമാനിച്ചു പിന്നിടും
തന്നെത്താന് അറിയാതെ കഴിയുന്നു
ഇത്ര കാലമിരിക്കുമിനിയെന്നും
സത്യമോ നമുക്കെതുമോന്നില്ലല്ലോ
നീര് പൊള പോലെ ഉള്ളൊരു ദേഹത്തില്
വീര്പ്പു മാത്രമുണ്ടിങ്ങനെ കാണുന്നു
ഓര്ത്തറിയാതെ പാടുപെടുംനേരം
നേര്ത്തു പോകുമാതെന്നെ പറയാവു
അത്ര മാത്രമിരിക്കുന്ന നേരത്ത്
കീര്ത്തിച്ചീടുന്നതില്ല തിരുനാമം
കീര്ത്തിച്ചീടുന്നതില്ല തിരുനാമം
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अपनौं गाउँ लेउ नँदरानी।
बड़े बाप की बेटी, पूतहि भली पढ़ावति बानी।।
सखा-भीर लै पैठत घर मैं, आपु खाइ तौ सहिऐ।
मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ।।
भाजि गए दुरि देखत कतहूँ, मैं घर पौढ़ी आइ।
हरैं-हरैं बेनी गहि पाछै, बाँधी पाटी लाइ
सुनु मैया, याके गुन मोसौं, इन मोहि लयो बुलाई।
दधि मैं पड़ी सेंत की मोपै चींटी सबै कढ़ाई।।
टहल करत मैं या के घर की, यह पति सँग मिलि सोई।
सूर-बचन सुनि हँसी जसोदा, ग्वालि रही मुख गोई।।
एक गोपिका यशोदा मैया से कन्हाई के बारे में शिकायत कर रही है - ‘नन्दरानी! तुम्हारे लाडले के कारण अब यहाँ जीना मुश्किल बन गया है|हम किसी दूसरे गाँव में बसने के बारे में सोचने के लिए विवश हो रहे है । तुम तो नामी पिता की पुत्री हो, सो पुत्र को अच्छी बात बताना चाहिए|इस तरह माखन चोरी करने क्यों सिखा रही हो? वह स्वयं खा ले तो ठीक है |, मगर वह करता क्या है ?सखाओं की भीड़ लेकर घर में घुसता है। जब मैं सामने से पकड़ने चली, उस समय की इसकी चेष्टा क्या कहूँ। मेरे देखने में तो वह कहीं छिप गये|मैं घर लौटकर लेट गयी, तो वह धीरे-धीरे पीछे से मेरी चोटी पकड़कर पलंग की पाटी में बाँध दी!
यह शिकायत सुनकर कन्हैया माँ को समझाने लगे यह औरत झूठ बोल रही है|इसने बड़े प्यार से मुझे अपना घर बुलाई और मुझसे दही में गिरे चींटों को निकालने का काम करवाया और खुद अपनी पती के साथ सो गयी|मुझे इनके घर का भी रखवाली करना पड़ा|सूरदासजी कहते हैं कि कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा हँसने लगी और गोपिका शर्म के कारण मुख छिपाने लगी|
तुलसीदास
रचनाएँ
सुंदर काण्ड सुनने के लिए ------
रामचरित मानस
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस भारतीय संस्कृति मे एक विशेष स्थान रखती है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है| रामचरितमानस को तुलसीदास ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं - बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड।
सुन्दरकाण्ड
सुन्दरकाण्ड रामचरित मानस के सात कांडों में से एक है |सम्पूर्ण मानस में श्री राम के शौर्य और विजय की गाथा लिखी गयी है,मगर सुन्दरकाण्ड में राम के भक्त हनुमान के बल और विजय देख पाएंगे | हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसीका वर्णन इस अध्याय में हुआ है
सुंदर काण्ड के दो प्रधान चरित्र है सीता ओर हनुमान। हनुमान तो भक्त है ओर सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान। श्रीराम और सीता अभिन्न है उन्हे पृथक करके नही देखा गया है सीता ने राम को कबी भी विस्मृत नहीं किया है | तथा हनुमान ने भी जो भी पराक्रम दिखाये, सभी कार्य का श्रेय अपने प्रभु श्रीराम को दिया है,|यही सुंदरकाण्ड की शोभा बढ़ाती है।
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ((1))
सीता से मिलने समुद्र पार करनेवाले हनुमान को आराम करने के लिए समुद्र की आज्ञा से मैनाक पर्वत ऊपर उठ आते है |हनुमान जी मैनाक पर्वत से कहा मै राम की आज्ञा पूर्ती के लिए निकला हूँ|वह काम पूरा करने के पहले आराम कर नहीं पाएँगे |
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥2॥
सुरसा नागमाता का नाम है। उन्हें देवताओं ने हनुमान के शक्ति की परीक्षा लेने के लिये भेजा था। समुद्र पार करते वक्त सुरसा और हनुमान जी के बीच लड़ाई होती है और हनुमान जी का विजय होता है| सुरसा ने हनुमान से कहा तुम श्री रामचंद्र जी का सब कार्य कर पाओगे | क्योंकि तुम बल-बुद्धि के भंडार हो । यह आशीर्वाद देकर वह चली गई, तब हनुमान जी हर्षित होकर आगे निकले |
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार॥3॥
भयंकर शरीर वाले करोड़ों योद्धा सावधानी से लंका नगर की चारों दिशाओं से रखवाली करते हैं। हनुमान जी लंका नगर के बहुसंख्यक रखवालों को देखकर मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप धारण करके रात के समय नगर में प्रवेश करना अच्छा होगा ॥
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।”
https://youtu.be/YI14NrzTy6Y -कविता सुनें
यशोधरा कविता का भाग है -सखि, वे मुझसे कहकर जाते
सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात ।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
- मैथिलीशरण गुप्त
व्याख्या
यशोधरा को यह दुख हुआ कि आत्मा साक्षात्कार के लिए पति को जाना ही था तो उसे बता कर जाना था । यशोधरा कह रही है, अगर पति मुझे कहकर जाते तो मै कभी भी उनकी राह में बाधा नहीं बनती । मेरी पति सिद्धार्थ सिद्धि के लिए गए, यह तो गर्व की बात है परंतु क्यों चोरों के समान गए ?। उन्होंने मुझे माना बहुत परंतु पहचाना नहीं| यशोधरा बार-बार कहती है कि हम नारियां कभी पति की राह में बाधा नहीं बनती।
मैं क्षत्राणी हूँ|क्षत्राणी पत्नी पती को सुसज्जित कर के रण में भेजती हैं। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए हम लोग ही उन्हें युद्ध की मैदान में भेजती हैं |युद्ध की मैदान से ज़िंदा वापस आयेंगे आ नहीं यह बता नहीं पायेंगी |इतना कर पानेवाली क्षत्राणी अपनी पती आत्म साक्षात्कार के लिए निकलनेवाले पती को कैसे रोक पाएँगे ? इसलिए अगर वह मुझको कहकर जाते तो कभी राह में बाधा न पाते। मेरा भाग्य ही अब अभागा बन गया। अब किस पर यह विफल गर्व जागा।
जिसे अपनाया था उन्होंने ही मुझे छोड़ा |बिछुडन के वक्त हमारी आंखों से तब जो आंसू निकलती, सहृदय गौतम उसे सह नहीं पाते |इसीलिए शायद वह मुझ पर तरस खाकर ही चले गए। अब ,वह आत्म साक्षात्कार मिलने के बाद वापस आएँगे तब उनका स्वागत मैं हस्ते हस्ते कर नहीं सकती|क्योंकि वे चोर की तरह रातों -रात भाग गया था|
काव्यसंग्रह:
उपन्यास
कहानी संग्रह
नाटक शकुंतला
जीवन के विषाद, विष, अंधेरे को निराला ने जिस तरह से करुणा और प्रकाश में बदला, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय
(परिमल कविता संग्रह का हिस्सा )
जागो फिर एक बार
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें
अरुण-पंख तरुण-किरण
खड़ी खोलती है द्वार
जागो फिर एक बार
भारत विश्व के नेता थे |लेकिन काल प्रवाह में भारतीय अपनी क्षमता भूल गए |उसी मौके में अंग्रेजी लोग भारत को अपना बनाया|अपनी ताकत भूलकर सोनेवाले भारतीयों को निराला जी जगा रहे है |पूरी पकृति तुम्हें बुला रही है ,जागो ,फिर एक बार |निराला जी बता रहा है रात में तारे तुम्हें जगाने की कोशिश करते रहे,मगर वे असफल रहे |अब सूरज निकल चूका है,नींद से उठने का वक्त आ गया है|
प्रकृति के बिम्बों से भारतीयों को जगाने की कोशिश कर रहा है|
आंखे अलियों-सी
किस मधु की गलियों में फंसी,
बन्द कर पांखें
पी रही हैं मधु मौन
अथवा सोयी कमल-कोरकों में
बन्द हो रहा गुंजार
जागो फिर एक बार!
मधुकर मधु पीकर कमल के फूलों में सो जाते है|कमल के मधु में मुग्ध हो कर मधु कर कमल के दलों के चारों और मंडराते रहते हैं | शाम को कमल के दल बंद हो जाते है और मधुकर उसके अंदर फँस जाते हैं |उसी प्रकार भारतीय विदेशियों के कब्जे में है |इस तरह सुध -बुध छोड़ कर विदेशी राज के अंदर बैठने की गलती मत करो |अपनी ऑंखें खोलो और अपनी जन्म भूमि को विदेशी शक्तियों से मुक्ति दिलाओ |
कर्तव्य निभाने की प्रेरणा भारतीयों को दे रहे है |
अस्ताचल चले रवि,
शशि-छवि विभावरी में
चित्रित हुई है देख
यामिनीगन्धा जगी,
एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय,
आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी
घेर रहा चन्द्र को चाव से
शिशिर-भार-व्याकुल कुल
खुले फूल झूके हुए,
आया कलियों में मधुर
मद-उर यौवन उभार
जागो फिर एक बार!
सूरज अब पश्चिम की ओर जा चुका है |आस्मान में चन्दमा आ चुकी है |रात का सुगन्ध चारों और फ़ैल चुका है|चकोर अपनी प्रिय को मिलने की इच्छा से ,अपनी चाहत को अपने अन्दर समेटे हुए उम्मीद भरी आँखों से चन्दमा को देख रहा है|शिशिर के आगमन से व्याकुल सभी फूल सर झुका रहा है| हर कहीं मस्त वातावरण फ़ैल चुका है|कलियों में मधु भरा हुआ है |पूरी प्रकृति में मादक और प्रेरक वातावरण फ़ैल चुका है|
परतंत्रता से मुक्ति के लिए कर्मवीर होने की प्रेरणा कवि यहाँ दे रहा है|
पिउ-रव पपीहे प्रिय बोल रहे
सेज पर विरह-विदग्धा वधू
याद कर बीती बातें, रातें मन-मिलन की
मूँद रही पलकें चारु
नयन जल ढल गये,
लघुतर कर व्यथा-भार
जागो फिर एक बार!
प्रिय के विरह के कारण पपीहे पिऊ पिऊ रट रहे है|विरहिणी बीते हुए प्रिय के साथ के पलों यानि मिलन के पलों के बारे में सोच कर ,अपने पिय से मिलने की कल्पना कर रही है |उस मिलन के पलों के बारे में सोच कर उसकी आँखों से आँसू निकल रही है | इस तरह उसको तसल्ली मिल रही है|कवि यहाँ भारतवासियों को अपने अतीत से ऊर्जा पाकर उठने की प्रेरणा दे रहे हैं |दुःख से बच कर आगे निकलना है,मोह निद्रा से जागो आज़ादी के लिए आगे आ जाओ |
मोह निद्रा छोड़ कर जागने की प्रेरणा कवी यहाँ दे रहा है |
सहृदय समीर जैसे
पोछों प्रिय, नयन-नीर
शयन-शिथिल बाहें
भर स्वप्निल आवेश में,
आतुर उर वसन-मुक्त कर दो,
सब सुप्ति सुखोन्माद हो,
छूट-छूट अलस
फैल जाने दो पीठ पर
कल्पना से कोमन
ऋतु-कुटिल प्रसार-कामी केश-गुच्छ।
तन-मन थक जायें,
मृदु सरभि-सी समीर में
बुद्धि बुद्धि में हो लीन
मन में मन, जी जी में,
एक अनुभव बहता रहे
उभय आत्माओं मे,
कब से मैं रही पुकार
जागो फिर एक बार
आँखें पोंछ कर ,निद्रा के कारण उत्पन्न आलस्य से जागो ,मन में जोश भरो,आलस्य रुपी वस्त्र को छोड़ो|अपनी कल्पनाओं को मुक्त छोड़ो |तुम्हारी तन और मन थक जाने पर जिस प्रकार सुगंध हवा में विलीन हो जाता है उसी प्रकार तुम्हारी बुध्दी बुद्धि में और मन मन में विलीन होने दें|सभी जन जागृत हो उठें| सभी के दिलों में स्वतन्त्रता का विचार आ जाएँ| सभी लोग जागृत हो जायेंगे तो आज़ादी मिलना कोई मुश्किल काम नहीं रहेगा |
कवि फिर से भारतवासियों को जागृत हो जाने की प्रेरणा देते है |
उगे अरुणाचल में रवि
आयी भारती-रति कवि-कण्ठ में,
क्षण-क्षण में परिवर्तित
होते रहे प्रृकति-पट,
गया दिन, आयी रात,
गयी रात, खुला दिन
ऐसे ही संसार के बीते दिन, पक्ष, मास,
वर्ष कितने ही हजार-
जागो फिर एक बार!
सूर्य पूर्व दिशा से अपनी सैर शुरु कर चूका है |प्रकृति में प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है |दिन और रात आते जाते रहते है |इसी श्रृंखला में पक्ष ,मॉस और वर्ष जुड़ जाते है|संसार चक्र चलता रहता है|वह कभी भी रुकता नहीं |समय की गति पहचानकर स्वतंत्रता के लिए आगे आने की प्रेरणा भारतीयों को कवि दे रहा है |
जागरण की शक्ति में कवि की आस्था इ कविता में प्रकट हो रहे है |
नागार्जुन
मूल नाम वैधनाथ मिश्र
हिंदी/मैथिलि के लेखक
उपनाम - यात्री ,नागर्जुन,वैदेह
मैथिलि में 'यात्री'उपनामसे लेखन
जन कवि,जन तन्त्र के कवि
राजनैतिक कविताओं के कवि
लोकधर्मी जनचेतना के कवि
नामवर सिंह ने उन्हें आधुनिक कबीर कहा है
उन्होंने संस्कृत एवं बाङ्ला में भी मौलिक रचनाएँ कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया ।
उपन्यास
कविता-संग्रह
यह कविता 1979 में लिखी हुई थी |उस जमाने में कवि जो प्रजा तन्त्र का चित्रण किया था,वह आज बहुत कुछ रूप बदल कर विकराल रूप धारण कर चूका है |
प्रजातंत्र आज पटरी से उतर चूका है |सभी राजनैतिक दलों की स्थापना देशवसियों के भलाई के लिए की थी |लेकिन ,बद में ए नेता गण राजनीति को अपने और अपने परिवारवालों के भलाई के लिए इस्तमाल करना शुरू किया तो पूरा दृश्य बदलने लगा |
अपने पुत्र धर्म के मार्ग से दूर हो रहे है,यह जान कर भी 'महाभारत' के पात्र धृतराष्ट्र उसको समझाने के लिए तैयार नहीं हुए |कई ज्ञानी लोग धृतराष्ट्र को समझाने आये| मगर जन्मांधता के साथ अधिकार की चाहत और अपने लोगों की भलाई की कल्पना के कारण वह मौन विलीन रहा|इसका नतीजा क्या था ,हमें मालूम है |
अधिकारी लोग गलत रास्ते से गुज़रते है तो उन्हें सही रास्ते पर लाना ज्ञ्यानी लोगों का काम है|मगर आज वे भी अपने और अपने लोगून के भलाई के लिए अधिकारीयों के साथ रहने लगे है |अधिकारीयों से मिल रहे रोटी के टुकड़ों के लिए वे चुप रह रहे है |
जिसकी बुद्धि स्थिर हुई है और जिसका मन संकल्प विकल्प से रहित होअक्र परमात्मा का प्रत्यक्ष अनुभव कर चूका है उसे 'स्थितप्रज्ञ'कहते है |कवि बता रहा है आज हम 'स्थितप्रज्ञके समान देश में हो रहे दुर्दशा को देखते रहते है |इसलिए कुछ भी करने का साहस नेता गण कर रहे है |
अधिकारी वर्ग के प्रिय जन बनने के लिए उन्हें फुल माल चढाने हम हिचकता नहीं |रराजघाट में महात्मा के वध के बाद जनतन्त्र समस्याओं से जूझने लगे है|आज जन तन्त्र पूर्ण रूप से पटरी से बाहर आ चुके है |पटरी से बाहर आए रेलगाड़ी जिस प्रकार नलायक चीज़ बनते है ,उसी प्रकार जनतंत्र भी आज अपना अस्तित्व खो चुके है|
भारतीय प्रजा तन्त्र की दुर्दशा
प्रजातंत्र का बिगड़ा स्वरुप
प्रजातंत्र को खरीदनेवाले पूंचीवादी
प्रजातंत्र शोषण का नया आयाम बन चूका है
प्रजातंत्र की तीखी आलोचना हम अरुण कमल के रचनाओं में ही देख पाते हैं----
प्रजातंत्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान.
अज्ञेय
'कितनी नावों में कितनी बार' नामक काव्य संग्रह के लिये 1978 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
'कला का जोखिम' में निर्मल वर्मा ने अज्ञेय के प्रकृति-बोध को रेखांकित करते हुए लिखा है : 'वह पहाड़ों को देख कर मुग्ध होते हैं, तो नीचे जंगलों में पेड़ों के कटने का आर्तनाद भी सुनते हैं, बल्कि कहें, यह कटने का बोध उनके प्रकृति के लगाव में 'एंगुइश', एक गहरी दरार पैदा कर जाता है | उनकी कविताएँ अपने प्रतिद्वंद्वी रूपकों के बीच एक तरह से 'क्रॉस रेफरेंस' बन जाती हैं - सचेत अंतर्मुखी आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच |' अज्ञेय के प्रकृति-बोध को निर्मल वर्मा ने 'आधुनिक बोध की पीड़ा' का नाम दिया है |
कवि पेड़ से बता रहा है ,आँधी और बारिश की सामना करते हुए तुम सैकड़ों सालों से यहाँ रह रहे हो|सूरज और चाँद कई बार आते जाते रहे |ऋतू बदले,मौसम बदले |लेकिन तुम अडिग रहे |चारों और हो रहे बदलावों से अपने आप बच कर तुम खड़े हो|सर ऊँचा करके तुम सालों से खडे हुए हो|
पेड़ कवि से बोला -झूठा श्रेय मुहे मत दो|सर झुकाकर और गिर कर ही मै यहाँ जी रहा हूँ|ऊपर ऊपर बढ़ हे मेरे पत्तों को देख कर मेरा बडप्पन को आंकना सही नहीं है |मेरे बडप्पन का मूल कारण तो मेरा जड़ें है |वे मिट्टी के नीचे से नीचे जा कर मुझे मजबूत बना रहे है|आस्मान तक मेरे शिखर पहुँच चुके है |यह सब लोग देखते है |मगर जड़ें कहाँ तक व्याप्त है,यह कोई नहीं जानता |
मेरा श्रेय का आधार तो मेरा जड़ें है|उनके कारण ही उँचे ऊँचे से उठने की क्षमता मुझे मिली|जड़ों से दूर हो कर जीना न मुमकिन बात है|मौसम के बदलाव जैसे सभी कठिनाईयों से मुझे जड़ों ने ही बचाया |उन जड़ों को बसने की जगह तो मिट्टी ने दी |इसलिए मेरा अस्त्तिव का पूरा श्रेय तो मिट्टी को ही है|
आज हम अपनी संस्कृति और परिवार से दूर हो रहे है|ऐसा करने से शायद हमें उन्नति तो मिलेगी,मगर वह स्थाई नही रहेगा|इसलिए अपने जड़ों को पहचानकर जीने की सलाह पेड़ के माध्यम से कवि दे रहा है|
अरुण कमल
अरुण कमल का वास्तविक नाम 'अरुण कुमार' है
समकालीन प्र सहज शैली के प्रख्यात कवि
'महाभारत' क गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के एकाग्रता की परीक्षा करने के लिए एक परीक्षा रखा था|सबसे द्रोणाचार्य पेड़ पर लटके गए मछली के पुतली पर तीर चलाने को कहते है ||तीर चलाने लिए आनेवालों से वह पूछता है ,तू क्या देखता है? अर्जुन को छोड़ बाकी सब इस सवाल का विस्तृत उत्तर देता है| सिर्फ अर्जुन आंख ही देखता है जवाब देता है|इसी घटना को आधार न कर यह कविता लिखा गया है |
कवि कहता है मुझे केवल पुतली ही नही,मछली,खंभे, आकाश,पास ही खड़े हुए धनुरधर आपके साथ साथ ढेर सरे आवाज़ भी सुनने को मिलता है|कवि कहता है मैं अपनी नज़र उस मछली के पुतली पर स्थिर करने की कोशिश करते वक्त ,उस मछली के पुतली में किसी और का छवि दिखाई दे रहा ही|वह मछली किसको देख रहा होगा ? मुझे ऐसा लग रहा है ,उसके अन्दर से कोई मुझे देख रहा है |
मेरे पुतली पर अनगिनत छाया पड रहा है |मैं सब कुछ भूल रहा हूँ|मै अपने आपको असमर्थ पा रहा हूँ|आँख का गोल देखना था मुझे ,लेकिन मुझे पता नही मैं इतना कुछ क्यों देख रहा हूँ |
अरुण कमल पुतली में संसार के कवि हैं. वे एक साथ अनेक चीजों को देखते हैं | कवि बता रहा है ,समग्रता की अनदेखी करते कवि का अस्तित्व ही नहीं होता|संसार को खण्डों और कक्षों में बांटने की बजाय सम्पूर्णता में देखने-दिखाने का भी स्त्री को मिलता नहीं
निजी सोच और आकांक्षाओं के अनुरूप जीना चाह ने वाली नारी
स्वतंत्रचेता स्त्री को उसकी इच्छानुकूल साथी नहीं मिलता
नारी स्वातंत्र्य के प्रश्न
हजारी प्रसाद द्विवेदी
निबन्ध- विचार और वितर्क, कल्पना, अशोक के फूल, कुटज, साहित्य के साथी, कल्पलता विचार-प्रवाह आलोक-पर्व आदि।
उपन्यास- पुनर्पवा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चन्द्रलेख , अनामदास का पोथा, आदि।
आलोचना साहित्य- सूर-साहित्य, कबीर, सूरदास और उनका काव्य, हमारी साहित्यिक समस्याऍं, हिन्दी साहित्य की भुमिका, साहित्य का साथी, साहित्य का धर्म, हिन्दी-साहित्य, समीक्षा-साहित्य नख-दपर्ण में हिन्दी-कविता, साहित्य का मर्म, भारतीय वाड्मय, कालिदास की लालित्य-योजना आदि।
1957 में राष्ट्रपति द्वारा 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किये गये।
नाख़ून क्यों बढ़ते है
नाखून क्यों बढ़ते है एक ललित निबंध है
राष्ट्र ,राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति पर विहंगम रूप से विचार किया गया है |
बच्चे कभी कभी फसानेवाला सवाल पूछता है
पुराने समय में नाख़ून की आवश्यकता
नाख़ून का बढना जैविक कार्य
नाख़ून का बढना मानव के पाशविक वृत्ति का ध्योतक
नाख़ून काटना मानवीयता का ध्योतक
हथियारों की संख्या बढाना पाशविक कार्य
हथियारों की संखया कम करना मानवीय कार्य
अपने ही बंधनों से अपने को बांधना
प्रेम ही बड़ी चीज़ है
अस्त्र शस्त्र पशुता की निशानी
हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है अपने आप पर अपने आपके द्वारा लगाया हुआ बंधन ।
महात्मा गांधी ने समस्त जन समुदाय को हिंसा, क्रोध, मोह और लोभ से दूर रहने की सलाह दी
बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती हैं कि तुम भीतर वाले अस्त्र से अब भी वंचित नहीं हो।
मनुष्य को एक बुद्धिजीवी होने के नाते परिस्थिति के अनुसार साधन का प्रयोग करना चाहिए।
मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है।
नाखून मानव के पाशविक वृत्ति के जीवंत प्रतीक
इंडिपेंडेंस का अर्थ
सब पुराने अच्छे नहीं होते,सब नए खराब नहीं होते
मनुष्य और पशु का अंतर्
मनुष्य और संयम
मनुष्यता मनुष्य को मनुष्य बनाता है
सुख के लिए बाहर नहीं ,अंतर् देखना है
अस्त्र बढ़ाना पशुता का लक्षण
ओमप्रकाश वाल्मीकि
वर्तमान हिंदी दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकार
वाल्मीकि के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है।
कविता संग्रह:-सदियों का संताप, बस्स! बहुत हो चुका, अब और नहीं, शब्द झूठ नहीं बोलते, चयनित कविताएँ (डॉ॰ रामचंद्र)
कहानी संग्रह:- सलाम, घुसपैठिए, अम्मा एंड अदर स्टोरीज, छतरी
आत्मकथा:- जूठन (अनेक भाषाओँ में अनुवाद)
आलोचना:- दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, मुख्यधारा और दलित साहित्य, सफाई देवता
नाटक:- दो चेहरे, उसे वीर चक्र मिला था
अनुवाद:- सायरन का शहर (अरुण काले) कविता-संग्रह का मराठी से हिंदी में अनुवाद, मैं हिन्दू क्यों नहीं (कांचा एलैया) लो अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद, लोकनाथ यशवंत की मराठी कविताओं का हिंदी अनुवाद
शवयात्रा
मुख्य पात्र सुरजा
संतो
कल्लन (कल्लू)
सरोज
सलोनी
चर्चित समस्याएं
चमारों के बीच बल्हार परिवार की समस्या
भारतीय समाज में जातिवाद
भारतीय गाँव का यथार्थ चित्रण
ग्रामीणों पर हो रहे अत्याचार
भारतीय जनतंत्र का यथार्थ स्वरूप
गांवों में दादागिरी
शोषण के विविध रूप
मानव से दूर हो रहे मानवीयता
भारतीय गांवों में अस्पतालों की कमी
सरकारी कर्मचारियों का व्यवहार
दलित विमर्श
दलित का आतंरिक भेदभाव मिटाना है
शहर में नाम खो रहे आम लोग
गाँवों के शोषक
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907 — 11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं।
वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं
मुख्य रचनाएँ
दीपशिखा, मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
सोना हिरनी
https://youtu.be/budE7YKS5ts
संस्मरण
सोना हिरनी और महादेवी वर्मा की रिश्ता
महादेवी वर्मा हिरनी का पालन न करने का निर्णय लेने का कारण
सोना हिरनी का व्यवहार
महादेवी वर्मा की पालतू जानवरों से प्यार
सोना हिरनी और बच्चे
सोना हिरनी और अन्य जीव
सोना हिरनी के आज़ादी की चाह
मानव का क्रूर व्यवहार
भक्तिन और महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा के अन्य पालतू जानवर
मानव का जानवरों पर अत्याचार
सोना हिरनी और छात्रावास के लडकीयाँ
सोनहिरनी की जीवन चर्या
महादेवी वर्मा की सैर
महादेवी वर्मा का नौकरों से व्यवहार
हरिशंकर परसाई
हिंदी साहित्य के मुख्य साहित्यकार
वे हिंदी के पहले रचनाकार है¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया
कहानी-संग्रह-हंसते हैं-रोते हैं, जैसे उसके दिन फिरे, दो नाकवाले लोग, रानी नागफनी की कहानी।
उपन्यास -तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल|
वसुधा’ पत्रिका के संस्थापक सम्पादक
निबंध - तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर, माटी कहे कुम्हार से, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, काग भगोड़ा, माटी कहे कुम्हार से, प्रेमचन्द के फटे जूते, तुलसीदास चंदन घिसैं, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, आदि।
सदाचार का तावीज़
https://youtu.be/2pKdp8MLj_8
भ्रष्टाचार समाज में किस प्रकार व्याप्त है
भ्रष्टाचार अब ईश्वर बन गया है
ईश्वर का गुण
भ्रष्टाचार सूक्ष्म,सर्वव्यापी और अगोचर है
सरकार कर्मचारी का चित्रण
भ्र्ष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है
आत्मा की पुकार के अनुसार आदमी काम करता है
उचित वेतन न मिलने की समस्या
सरकारी कर्मचारी क्यों रिश्वत लेते है ?
सरकारी धन का अपव्यय किस प्रकार होते है
समाज में ठेकेदार बढने का कारण
समाज में अंध विश्वासों की स्थिति
नादिरा जहीर बब्बर
अभिनेत्री, रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक
स्वयं की एक नाट्यशाला है, जिसका नाम है 'एकजुट'।
'दयाशंकर की डायरी', 'शक्कुबाई', 'सुमन और साना', 'जी जैसी आपकी मर्जी' की रचना
नादिरा बब्बर को सन 2001 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित
आथेलो’, ‘तुगलक’, ‘जसमा ओढ़न’, ‘संध्या छाया’, ‘बेगम जान’ आदि नाटकों में केन्द्रीय भूमिकाएं निभाई
सक्कू बाई
https://youtu.be/W_iceU_F1W4
(Visit the link to view drama)
महिला प्रधान नाटक
सक्कूबाई की संघर्ष
शकुन्तला से स्क्कुबाई की और का सैर
गाँव से शहर की और का सैर
शहरीय ज़िन्दगी का यथार्थ चित्रण
सक्कूबाई ऐसी महिला है जो अपने काम से भी मनोरंजन और अानंद के मौके ढुंढ ही लेती है
वह अशिक्षित होते हुए भी बहुत मज़बूत और सुलझी हुई है,
जीवन से लड़नेवाले नारी का प्रतिनिधि
घर और समाज में असुरक्षित नारी का चित्रण
शिक्षित और अशिक्षित एक ही समान नौकरी ढूंडना
पति ,पत्नी और वह
नारी को घर का काम और नर को बाहर का काम
शिक्षा से वंचित होती नारी
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1. सकुबाई मुंबई कैसे पहुँची ?
2. 'सकुबाई' में चर्चित किन्हीं चार समस्याएँ लिखिए
3 .शहरी जीवन के बारे में सकुबाई की राय क्या है ?
4. रोज़गार के क्षेत्र के बारे में सकुबाई क्या कहती है ?
5."हमारे हाथ में एक गिलास दूध और चार बिस्कुट हों तो हमारे दस बच्चे हमारे पीछे दौड़ेंगे"- यहाँ सकुबाई किस विषय की और ईशार कर रही है ?
6.सकुबाई के परिवार का परिचय दीजिए
7.सकुबाई को शिक्षा न मिलने का कारण क्या थी ?
8.पढ़े लिखे लोग और अनपढ़ लोग किस बात पर बराबर है ?
9."यहाँ के लोग बड़े स्वार्थी है"| कहाँ के ? क्यों ?
10.यशवंत कौन था ? सायली कौन थी ?
11. सकुबाई अपनी लड़की को साइली नाम क्यों रखी ?
12."ज्यादा छुट्टी लेंगे तो दुसरी बाई रख लेंगे"| आशय स्पष्ट कीजिए
13.सरकारी अस्पताल के बारे में सकुबाई क्या कहती है ?
14.सकुबाई की राय में नारी शिक्षा के क्षेत्र में कौनसी परिवर्तन आयी है ?
15.साइली का परिचय दीजिए
16. 'हरिबिन्दी' किसकी रचना है ?किस विधा की रचना है ?
17. राजन कौन है ?वह कहाँ गया है ?
18. 'हरिबिन्दी' की नायिका उस दिन क्या क्या की ?
19. मुंडू कौन है ?
20. 'हरिबिन्दी' की नायिका की राय में रेस्त्रां से मिले व्यक्ति की विशेषता क्या है ?
21 .शब्द छूट नहीं बोलते किसकी रचना है ?
22 . ओमप्रकाश वाल्मीकि की दो रचनाओं के नाम लिखिए
23. सुरजा के परिवार का परिचय दीजिए
24. कल्लू कैसे कल्लन हो गया ?
25 .कल्लन का चरित्र चित्रण कीजिए
26. सुरजा गाँव छोड़ने के लिए तैयार नहीं था | क्यों ?
27.कल्लन के बीबी और बच्चे गाँव आना नहीं चाहता | क्यों ?
28.रामजीलाल कौन था ? उसने सुरजा से क्या कहा ?
29. डॉक्टर कल्लन की बेटी को इलाज करने के लिए तैयार नहीं हुए | क्यों ?
30. सलोनी कौन थी ?
31."इंसान की जात ही सब कुछ है "- आशय स्पष्ट कीजिए
32."तमाम भाषण खोखले और बेहद बनावटी थे "| आशय स्पष्ट कीजिए
33 . सलोनी की शवयात्रा की विशेषता क्या है ?
34. 'हिंदी साहित्य की भूमिका किसकी रचना है ?
35. पुराने ज़माने में लोगों को नाखून की ज़रूरत थी | क्यों ?
36. वज्र आयुध कैसे बनाया था ?
37.अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति --------की विरोधिनी है
38. नाख़ून बढ़ाना और काटना किन किन का प्रतीक है ?
39.स्वाधीनता का अर्थ क्या है /
40. मनुष्य और पशु में अंतर क्या है ?
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41 . महाभारत के अनुसार सब वर्णों का सामन्य धर्म क्या है ?
42. नुष्य को सुख कैसे मिलेगा ?
43. प्रेम ही बड़ी चीज़ है | क्यों ?
44. मनुष्य का स्वधर्म क्या है ?
45. नाख़ून बढ़ना किसकी निशानी है ?
46 आधुनिक कल की मीरा कौन है ?
47. साहित्यकार संसद की स्थापना किसने की ?
48. महादेवी वर्मा की कौनसी रचना को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिली /
49. भारत सरका ने महादेवी वर्मा को कौनसी उपाधि से सम्मानित की ?
50. सोना हिंरनी कौन थी ?
51.सोना हिरनी महादेवी वर्मा के पास कैसे पहुँची ?
52. सोना हिरनी का रूप वर्णन
53. मनुष्य किसको असुंदर मानते है ?
54.महादेवी वर्मा हिरन न पालने का निर्णय लेने का कारण क्या थी ?
55. सोना हिरनी और महादेवी वर्मा की रिश्ता
56. सोना हिरनी और और छात्रावास के बच्चे
57. सोना हिरनी का जीवनचर्या
58. कविगुरु कौन है ?
59. सोना हिरनी महादेवी वर्मा से अपनी प्यार कैसे प्रकट करती थी ?
60. सोना हिरनी की अंत कैसे हुई ?
61 .फ़्लोरा और सोना हिरनी की रिश्ता
62. भक्तिन कौन थी ?
63.बद्रीनाथ जाते वक्त महादेवी वर्मा के साथ कौन कौन गए ?
64 .बद्रीनाथ से लौट आयी महादेवी को माली ने कौनसी सूचना दी ?
65.हेमंत -वसंत कौन था ?
66 . 'तिरछी रेखाएं ' किस विधा की रचना है ?
67 . हरिशंकर परसाई द्वारा प्रकाशित पत्रिका का नाम लिखिए
68 . विशेषज्ञ कौन है ?
69. राज्य में कौनसा हल्ला मचा ?
70. ईइश्वर का गन क्या है ?
71 .भ्र्ष्टाचार अब --------- हो गया है |
72 .विशेषज्ञों की राय में भ्र्ष्टाचार कहाँ - कहाँ है
73 .साधू को किसका ढेका दिया ?क्यों ?
74 . किसके पुकार के अनुसार आदमी काम करता है ?
75 . साधु की राय में भ्र्ष्टाचार और सदाचार कहाँ होता है ?
76 . सदाचार का तावीज़ बनाने का कारण क्या था ?
77 . तावीज़ देने से कौनसा परिवर्तन हुआ ?
78 . इकतीस तारीख को तावीज़ से कौनसी आवाज़ आ रही थी ?
79 . राज कर्मचारी नारज क्यों हुए ?
80 "भाग जाओ यहाँ से "| यह वाक्य कौन किससे कहते है ? क्यों ?
81.सदाचार का तावीज़ पहले किस जानवर पर लगाया गया ? उसका नतीजा क्या था ?
82.कळलंन की माँ की मृत्यु के समय कौनसी घटना हुई थी ?
83.सकुबाई की पती कौन थी ? वह कौनसा काम करता था ?
'साइली' कौन थी ? वह नाम कैसे मिली ?
84.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की राय में पशु और जानवर का अंतर क्या है ?
85.राजन कौन था ? राजन घर में नहीं होने पर उसकी पत्नी को ख़ुशी हुई | क्यों ?
अनमोल कथन
हरी बिंदी
"आज वह स्वतंत्र है "
"आज का दिन मेरे लिए काफी कीमती रहा है "
शवयात्रा
"यहाँ न तो इज़्ज़त है ,न रोटी "
"तू सच कहते थे ,यह गाँव रहने लायक न है "
"बेकार यहाँ मकान पर पैसा लगा रहे हो "
"इंसान की जात ही सब कुछ है "
"लेकिन बेबस थी,अपने पाने दायरे में कैद "
"तमाम भाषण खोखले और बेहद बनावटी थे "
नाख़ून क्यों बढ़ते है ?
"नाख़ून क्यों बढ़ते है ?"
"जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे ,वे विजयी हुए "
"तुम्हारे नाखून को भुलाये नहीं जा सकता "
"मनुष्य की पशुता को कितनी बार काट दो,वह मरना नहीं जानती "
"पशु बन कर वह आगे नहीं बढ़ सकता "
"अपनी अपनी रूचि है देश की भी और काल की भी "
"अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता के विरोधिनी है"
"सब पुराने अच्छे नहीं होते ,सब नए खराब ही नहीं होते "
"बाहर नहीं भीतर की और देखो"
"प्रेम ही बड़ी चीज़ है"
"मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है,मैत्री में है,त्याग में है "
सदाचार का तावीज़
"वह सूक्ष्म है,अगोचर है और सर्वव्यापी है "
"अब भ्र्ष्टाचार ईश्वर हो गया है "
"आत्मा की पुकार के अनुसार आदमी काम करता है"
"आज इक्कीस है ,आज तो ले ले "
सोना हिरणी
"मनुष्य मृत्यु को सुन्दर ही नहीं ,अपवित्र भी मानता है "
सक्कू बाई
"बाई रखी है तो हम काम क्यों करें "?
"तू पाठशाला जाएगी तो घर का काम कौन करेगा" ?
"पढ़े-लिखे लोग भी घर -घर घूमते है | और अनपढ़ भी "
"वो प्याला हमारे घर में कोई नहीं पीता बाबा प्रेम का प्याला "
"हम अनपढ़ है तो क्या हुआ ?अक्ल नहीं है क्या?"
"ज़्यादा छुट्टी करेंगे तो दुसरा बाई रखेंगे "
"सरकारी अस्पताल में न कोई किसी की सुनता है और न ही कुछ बताता है "
"गरीब के बीमार होने से अच्छा है उसका मर जाना "
"बुढ़ापे का शरीर है,काम नहीं करेंगे तो बीमार पड जाऊँगी "
प्रश्न पत्र
FIRST SEMESTER B. SC/BA DEGREE EXAMINATION
COMMON COURSE IN HINDI
HIN 1A (07)1 PROSE &DRAMA
MODEL QUESTION
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
1. 'हरी बिंदी' किसकी रचना है ? 'हरि बिन्दी' किस विधा की रचना है ?
2. 'शवयात्रा'कहानी के पात्रों के नाम लिखिए
3. नाखून का बढ़ना किसका प्रतीक है ?
4.सोना हिरणी महादेव वर्मा के पास कैसे पहुँची ?
5 राजा ने सदाचार का तावीज़ बनाने के निर्णय क्यों किया ?
6. सकुबाई बुढापे के अवसर में भी काम करना चाही | क्यों ?
7. "आज वह स्वतंत्र है | कौन ?क्यों ?
8. सम्मिलित कीजिए
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी - यामा
महादेवी वर्मा - डेफोडिल जल रहे है
हरिशंकर परसाई - हिंदी साहित्य का इतिहास
मृदुला गर्ग - तिरछी रेखाएँ
9. सकुबाई कैसे मुंबई पहुँच गई ?
10. विशेषज्ञ कौन है ?
11 .महादेवी वर्मा जानवरों न पालने का निर्णय लेने का कारण क्या था ?
12 . मनुष्य की चरितार्थता कहाँ है ?
13. कल्लन की बेटी को इलाज देने के लिए डॉक्टर तैयार नहीं हुआ | क्यों ?
14 सोना हिरणी का परिचय दीजिए
15 आदमी काम कैसे करते है ?
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
16. सकुबाई का चरित्र चित्रण कीजिए
17 . 'सदाचार का तावीज़' का संक्षिप्त वर्णन कीजिए
18 . सप्रसंग व्याख्या कीजिए
"मेरे आई ने पढ़ने के लिए मुझे थपड मारा था | आज मेरी लड़की मुझे पढ़ने के लिए कहती है|"
19.सप्रसंग व्याख्या कीजिए
"अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करते है "
20. 'हरि बिंदी' कहानी की कथावस्तु
21 . सुरजा का चरित्र चित्रण कीजिए
22 . सकुबाई में चित्रित नारी समस्याएं क्या -क्या है ?
23. 'नाख़ून क्यों बढ़ते है ' का संक्षिप्त रूप
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
24.कहानी के तत्वों के आधार पर ‘’शवयात्रा कहानी का मूल्यांकन कीजिए
25. एकांकी के तत्वों के आधार पर 'सकुबाई' का मूल्यांकन कीजिए
26. 'सोनहिरनी' का सारांश
Common course in Hindi { course No.A 08 (1) } GRAMMAR AND TRANSLATION
Correct usages of Hindi –Shabdavichar ,definition and classification of words – noun, gender, number, karak , Pronoun, adjective, tense, voice, 3 Adverb, preposition ,conjunction, interjection Translation
II SEMESTER BA/B.Sc
Grammar, &Translation
भाषा - भावों और विचारों को प्रकट करने का माध्यम
भाषा के प्रकार - कथित भाषा और लिखित भाषा
भाषा के अंग - वर्ण- शब्द -वाक्य
व्याकरण = वर्ण- शब्द -वाक्य का वैज्ञानिक अध्ययन
वर्ण - दो प्रकार का स्वर और व्यंजन
11 स्वर और 33 व्यंजन
कुल ४४ वर्ण
लिपि - वर्णों के लिखने का क्रम
हिंदी देव नागरी लिपि में लिखी जाती है |
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
शब्द
एक या एक से अधिक अक्षरों का सार्थक समूह है शब्द
शब्दों का वर्गीकरण 1. अर्थ के आधार पर
2.व्युत्पत्ति के आधार पर
3.उत्पत्ति के आधार पर
4.प्रयोग के आधार पर
अर्थ के आधार पर भेद 1.वाचक शब्द
2.लाक्षणिक शब्द
3.व्यंजक शब्द
व्युत्पत्ति के आधार पर भेद - 1. रुढ
2.यौगिक
3. योगरूढ
उत्पत्ति के आधार पर -1.तत्सम
2.तद्भव
3.देशज
4.विदेशी
प्रयोग के आधार पर भेद -1.विकारी -संज्ञा,सर्वनाम ,क्रिया ,विशेषण
2.अविकारी -क्रियाविशेषण ,सम्बन्ध्बोधक ,समुच्चयबोधक विस्म्यादी बोधक
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
विकारी शब्द
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संज्ञा
विकारी शब्द
व्यक्ति,वस्तु,स्थान,भाव या गुण के नाम का बोध
तीन भेद
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
2.जातिवाचक संज्ञा
3.भाववाचक संज्ञा
==============================================
सर्वनाम
विकारी शब्द
संज्ञा के बार बार के प्रयोग को रो कते है
6 भेद
1.पुरुषवाचक सर्वनाम ( उत्तम पुरुष,मध्यम पुरुष,अन्य पुरुष )
मैं,हम : तू,तुम आप : यह वह
2.निजवाचक सर्वनाम (अपने आप,स्वयं )
3.निश्चयवाचक सर्वनाम (यह,वह,ये,वे )
4.अनिश्चयवाचक सर्वनाम (कोई,कुछ)
5.सम्बन्ध वाचक सर्वनाम (का,के,की )
6.प्रश्नवाचक सर्वनाम (क्या,कब ,क्यों ...)
************************************************
क्रिया
विकारी शब्द
किसी कम करना या होना समझ सकता है
क्रिया के भेद 1. सकर्मक क्रिया
2.अकर्मक क्रिया
3.द्विकर्मक क्रिया
4.प्रेरणार्थक क्रिया
5.नामधातु क्रिया
6.संयुक्त क्रिया
7.सहायक किया
संयुक्त क्रिया : 1. आरम्भबोधक - लगना - वह पढ़ने लगा
2.स्मप्तिबोधक -चु कना वह पढ़ चुका है
3.शक्तिबोधक -सकना वह पढ़ सकता है
4.निश्चयबोधक - गिर पड़ा ,बोल उठा वह बीच ही में बोल उठा
5.अवकाश्बोधक -पाना वह जाने न पाया
6.अनुमातिबोधक -देना - मुझे बोलने दो
7.नित्यता बोधक -बोलता रहा... हवा चल रही है
8.आवश्यकता बोधक-पड़ना,चाहिए - यह काम मुझे करना पड़ता है;
9.इच्छा बोधक -चाहना - मैं खाना चाहता हूँ
10.अभ्यास बोधक- पढ़ा करना,रोया करना
क्रिया के रूपान्तर - काल
क्रिया के जिस रूप से कार्य करने या होने के समय का ज्ञान होता है उसे 'काल' कहते है |
(1)वर्तमान काल (present Tense) - जो समय चल रहा है।
वर्तमान काल के पाँच भेद होते है-
(i)सामान्य वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ता है |
(ii)अपूर्ण वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ रहा है |
(III)संभाव्य वर्तमानकाल - राम पुस्तक पढ़ता होगा |
(2)भूतकाल(Past Tense) - जो समय बीत चुका है।
(i)सामान्य भूतकाल (Simple Past)- राम ने पुस्तक पढ़ा
(ii)आसन भूतकाल (Recent Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा है |
(iii)पूर्ण भूतकाल (Complete Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा था |
(iv)अपूर्ण भूतकाल (Incomplete Past) -राम पुस्तक पढ़ रहा था |
(v)संदिग्ध भूतकाल (Doubtful Past) -राम ने पुस्तक पढ़ा होगा
(vi)हेतुहेतुमद् भूत (Conditional Past) -
(3)भविष्यत काल (Future Tense)- आने वाला समय
(i)सामान्य भविष्यत काल - राम पुस्तक पढ़ेगा
(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल-राम पुस्तक पढ़े
==============================================
वाच्य
क्रिया के जिस रूपान्तर से यह ज्ञात हो कि वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का प्रधान विषय कर्ता, कर्म अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं
वाच्य के भेद
(1) कर्तृवाच्य (Active Voice) - क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। जैसे - राम केला खाता है।
(2) कर्मवाच्य (Passive Voice)-क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं राम से केला खाया जाता है |
(3) भाववाच्य (Impersonal Voice)-क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है।
मुझ से बैठा नहीं जाता |
कर्तृवाच्य कर्मवाच्य
(1) गोपाल पत्र लिखता है। गोपाल से पत्र लिखा जाता है।
(2) मैं अख़बार नहीं पढ़ सकता। मुझसे अख़बार पढ़ा नहीं जाता।
(3) लड़कियाँ गीत गा रही हैं। लड़कियों द्वारा गीत गाए जा रहे हैं।
ने का नियम
1. कर्तृवाच्य में यदि कोई सकर्मक क्रिया भूतकाल के सामान्य,आसन्न,पूर्ण अपूर्ण भूतकाल रूपों में आता है तो कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगती है।
2.'ने' विभक्ति लगते समय क्रिया कर्ता के लिंग वचन के अनुसार न बदलकर कर्म के लिंग ,वचन के अनुसार बदलते है |
राम ने पुस्तक पढ़ी , सीता ने कपड़े खरीदे
3.वाक्य में कर्म के न रहने पर क्रिया हमेशा पुल्लिंग एक वचन में रहती है |
सीता ने खाया ,लडकों ने गाया
4.वाक्य में कर्म के साथ 'को विभक्ति लगने से क्रिया हमेशा पुल्लिंग एक वचन में रहती है
माँ ने बच्चों को खिलाया
5.बकना, बोलना, भूलना ,लाना क्रिया आते वक्त कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति नहीं लगती |
visit लिंक https://nroer.gov.in/582e98b916b51c01d821cddf/file/58501ddc472d4a28051cb03f
विशेषण
विकारी शब्द
विशेषता,गुण,धर्म आदि का बोध कराता है व
विशेषण के भेद 1.गुणवाचक विशेषण
2.संख्यावाचक विशेषण
3.परिमाणवाचक विशेषण
4.सार्वनामिक विशेषण
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कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध प्रकट हो उसे कारक कहते है|
कारक विभक्ति चिह्न
कर्ता कारक ने
कर्म कारक को
करण से
अपादान से
संप्रदान को ,के लिए
संबंध का,के,की
अधिकरण में ,पर
संबोधन है,अरे
सर्वनामों की कारक रचना
कारक एक वचन बहु वचन
कर्ता मैं ने हमने
कर्म मुझको /मुझे हमको/हमें
करण मुझसे हमसे
अपादान मुझसे हमसे
संप्रदान मुझको ,मेरे लिए हमें /हमारेलिए
संबंध मेरा/मेरे/मेरी हमारा/हमारे/हमारी
अधिकरण मुझे में /मुझ पर हममें /हम पर
लिंग - स्त्री लिंग और पुल्लिंग
सदा पुल्लिंग रहने वाले शब्द –
दिनों के नाम – सोमवार, मंगलवार, आदि!
महीनों के नाम – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आदि!
समयसूचक नाम – पहर, पल, क्षण, सेकंड, महिना, वर्ष आदि!
फलों के नाम – केला, संतरा, आम, आदि (लीची, खजूर -स्त्रीलिंग)
रत्न और धातुओं के नाम – मूंगा, पुखराज, , हीरा, लोहा, आदि (चाँदी-स्त्रीलिंग)
अनाजों के नाम – चावल, गेहूँ, बाजरा, आदि!
वृक्षों के नाम – अशोक, आम, आदि (इमली – स्त्रीलिंग)
देशों के नाम – वियतनाम, मलेशिया, आदि!
पर्वतों के नाम – अरावली, हिमालय, विंध्य आदि!
समुदों के नाम – हिंद महासागर, अरब सागर
सदा स्त्रीलिंग रहने वाले शब्द
बोलियों के नाम – अंगिका, राजस्थानी, आदि!
भाषाओँ के नाम – हिंदी, संस्कृत, मराठी, आदि!
लिपियों के नाम – देवनागरी, गुरुमुखी, आदि!
झीलों के नाम – नैनी, डल, मानसरोवर आदि!
नदियों के नाम – सतलुज, रावी, ब्यास, आदि (ब्रह्मपुत्र – पुल्लिंग)
आहारों के नाम – खिचड़ी, रोटी, चपाती, आदि!
किराने की वस्तुएँ – चीनी, इलायची, अरहर, आदि!
शरीर के अंगों के नाम – आँख, नाक, आदि!
बर्तनों के नाम – थाली, कटोरी, चम्मच, प्लेट, कढ़ाई आदि!
महीनों के नाम – जनवरी, फरवरी, मई,
लिंग परिवर्तन
पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के कुछ नियम इस प्रकार हैं-
1.शब्दान्त ‘अ’ को ‘आ’ में बदलकर-
छात्र – छात्रा
2.शब्दान्त ‘अ’ को ‘ई’ में बदलकर
दास – दासी
3.शब्दान्त ‘आ’ को ‘ई’ में बदलकर-
बेटा – बेटी
4.शब्दान्त ‘आ’ को ‘इया’ में बदलकर-
बूढ़ा – बुढि़या
5.‘इन’ प्रत्यय लगाकर-
माली – मालिन
6. ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर-
चौधरी – चौधराइन
===========================================
वचन -एकवचन और बहुवचन
एकवचन से बहु वचन बनाने का नियम
@@@@@@@@@@@@@@ अविकारी शब्द
1. क्रियाविशेषण -क्रिया की विशेषता प्रकट करता है
2.संबंध बोधक - संज्ञा और सर्वनाम के साथ हो कर संबंध प्रकट करता है
3. समुच्चय बोधक -शब्दों और व्क्यों को मिलाता है
4.विस्मयादिबोधक-विस्मय,दुःख आदि मनोभाव प्रकट करता है
============================================== अनुवाद (Translation)
किसी भाषा में कही या लिखी गयी बात का किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन अनुवाद (Translation) कहलाता है।
अनुवाद प्रक्रिया में तीन सोपानों का उल्लेख है :
विश्लेषण
अन्तरण
पुनर्गठन
अनुवाद के प्रकार
शब्दानुवाद ,भावानुवाद ,छायानुवाद ,सारानुवाद ,आशु अनुवाद ,व्याख्यानुवाद ,आदर्श अनुवाद ,रूपान्तरण
अनुवादक के गुण
अनुवादक को स्रोत और लक्ष्य दोनों भाषाओं का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए
अनुवादक को बहुआयामी ज्ञान होना चाहिए।
अनुवादक लक्ष्य भाषा के पाठक को ध्यान में रखकर शब्दों/भाषा का प्रयोग करता है।
अनुवादक तटस्थ होना है
SECOND SEMESTER B. A/ B.Sc DEGREE EXAMINATION
COMMON COURSE IN HINDI
HIN 2(08)1 Grammer &Translation
MODEL QUESTION
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
वर्ण किसे कहते है ? हिंदी में कितने वर्ण है ?
वाक्य किसे कहते है ?
शब्द किसे कहते है ?
उत्पती के धार पर शब्दों के कितने भेद है ?
योगरूढ शब्द माने क्या है ?
तदसम शब्द और तद्भव शब्द का अंतर क्या है ?
'अग्नि'शब्द का तद्भव रूप लिखिए
पुस्तक ,राम ,ख़ुशी इनमें से व्यक्तिवाचक शब्द चुनकर लिखिए
जातिवाचक संज्ञा किसे कहते है ?
भाववाचक संज्ञा रूप लिखिए -मनुष्य,लड़ना,चोर,लड़का
शुद्ध कीजिए -दिल्ली हमारा राजधानी है |
स्त्रीलिंग शब्द चुनकर लिखिए -इमली,चन्दमा ,भारत
पुल्लिंग शब्द चुनकर लिखिए -मोती,दया ,सहायता
लिंग बदलिए -नाइ ,मोर,गुरु,बेटा
वचन बदलीए -रात्री ,लड़का ,गुरु,बालक
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
सर्वनाम किसे कहते है ?उसके कितने भेद है ? सोदाहरण समझाईए
'ने'का नियम लिखिए
प्रयोग के आधार पर शब्दों के कितने रूप है ?समझाइए
विशेषण के कितने रूप है ?सोदाह्र्र्ण समझाइए
एक वचन से बहु वचन बनाने का पाँच नियम लिखिए
सर्वनाम के कितने रूप है ?सोदाह्र्र्ण समझाइए
विशेषण के कितने रूप है ?सोदाह्र्र्ण समझाइए
अनुवाद
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
भूतकाल के भेदों को सोदाहरण समझाइए
कारक किसे कहते है?उसके कितने भेद है ?सोदाह्र्र्ण समझाइए
26. हिंदी में अनुवाद कीजिए
The Taj Mahal is very famous building. It is one of the wonders of the world. it is situated at Agra on the right bank of the Yamuna. It was built b Shahjahan. He built it in the memory of his dear wife Mumthaz Mahal. People come from far and wide to see this historical building. It is very pleasant to see it in the rainy season when the scenery on all sides is very beautiful. Hundreds of ears have passed but its beauty is the same, as it was, when it was built
THIRD SEMESTER
Common course in Hindi { course No.A 09 (1) } POETRY IN HINDI
1. PADYA VIHAR
1.Kabeer das -5 Dohas 2.Soordas – 3 padas 3.Tulsidas – 3 Dohas For module 2 4.Maithilee sharan gupt – Sakhi ve mujhse kahkar jaate 5.Niraalaa -jaago phir ek baar 6.Naagaarjun – ham bhee saajheedaar the 7.Agyey - maine kaha ped For module 3 8.Arunkamal – putalee mein sansaar 9.Gyanendrapati – beej vyatha 10.Anaamika - bejagah 11.Jayaprakaash kardam - mere adhikaar kahaan hai
2.KANUPRIYA – Dharmaveer bharathi
हिंदी साहित्य - काल विभाजन
1. आदिकाल (वीरगाथा काल) : सन् 1000 से 1325 तक
2. पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) : सन् 1325 से 1650
3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) : सन् 1650 से 1850
4. आधुनिक काल : सन् 1850 से अब तक
भक्ति काल काल विभाजन
सगुण भक्ति
रामाश्रयी शाखा -तुलसीदास
कृष्णाश्रयी शाखा-सूरदास
निर्गुण भक्ति
ज्ञानाश्रयी शाखा- कबीरदास
प्रेमाश्रयी शाखा-जायसी
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निर्गुण भक्ति के तत्व
निर्गुण साधना का संबंध ज्ञान मार्ग के साथ है |
परमात्मा का निर्गुण रूप में पूजा -पाठ
परमात्मा अमर और अरूप
परमात्मा सर्वव्यापी
गुरु को बहुत सम्मान
कबीर दास
15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे।
ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक कवि
रामानंद का शिष्य
अनपढ़ फकीर
देशाटन और साधुओं की संगति से ज्ञानी
गुरु को प्रमुख स्थान
धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह " बीजक " नाम के ग्रंथ मे किया
1.साखी -कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण
2.सबद -गेय पद है जिसमें पूरी तरह संगीतात्मकता विद्यमान है
3.रमैनी -कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचार
कबीरदास की राम - निर्गुण-निराकार ब्रह्म
कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज तथा असत्य के खंडन में व्यतीत हुआ।
कबीर सन्त , कवि और समाज सुधारक
सधुक्कड़ी या खिचड़ी भाषा
जनभाषा का प्रयोग
कबीरदास वाणी का डिक्टेटर - हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
कबीर भारतीय संस्कृति का हीरा
संत कबीर हिंदी फिल्म देखने के लिए विजिट करें - https://youtu.be/zXdGf9KJ6cY
कबीर बानी सुनने के लिए विज़िट करें
https://youtu.be/scL0hVthDCg
कबीरदास
सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपगार।
लोचन अनँत उघारिया, अनँत दिखावनहार ॥
सद्गुरु की महिमा अनन्त और अपार है। उसका उपकार भी अनन्त है। उसने मेरी अनन्त दृष्टि खोल दी जिससे मुझे उस अनन्त प्रभु का दर्शन प्राप्त हो गया। गुरु के प्रति कबीरदास का विचार यहाँ व्यक्त हो रहा है|
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
व्याख्या: सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते। गुरु के प्रति कबीरदास का भाव यहाँ सुविदित हो रहा है |
'' जाके मुंह माथा नहीं, न ही रूप सुरूप।
पुहुप बास ते पातरा ऐसा तत्व अनूप।।'‘
परमात्मा मुँह ,माथा नहीं है | न वह कुरूप है | परमात्मा का वास फूल में सुगंध की भाँति है तथापि जीवात्मा अज्ञानान्धकार में भटकता है
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
पूरी दुनिया सुख चाहते है।कबीरदास चेतावनी दे रहा है : खाना, पीना और मौज मस्ती करना सुख का लक्षण नहीं है | सही अर्थ में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
प्रेम ना तो खेत में पैदा होता है और न बाजार में बिकता राजा हो या प्रजा जो भी प्रेम का इच्छुक है ,वह अपने सर्वस्व त्याग करने पर ही प्रेम प्राप्त कर सकता है। गर्व या घमंड का त्याग प्रेम के लिये परम आवश्यक है। परमात्मा से मिलने के लिए जीवात्मा को अहम बोध छोड़ना होगा |
सूरदास
सूरदास [हिंदी साहित्य] के [सूर्य]
भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक
वल्लभाचार्य के शिष्य
वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग की दीक्षा
वल्लभाचार्य सूरदास को पुष्टिमार्ग के जहाज़ कहा
रचनाएँ
(१) सूरसागर - सूरदास की कीर्ति का आधार,बाल चेष्टाओं का विश्व कोश
(२) सूरसारावली-कृष्ण विषयक कथात्मक और सेवा परक पदों का गान किया उन्ही के सार रूप में उन्होंने सारावली की रचना की
(३) साहित्य-लहरी - राधा -कृष्ण लीला का वर्णन
सूर के कृष्ण प्रेम और माधुर्य प्रतिमूर्ति है
सूर का भ्रमरगीत वियोग श्रृगार का उत्कृष्ट ग्रंथ
ब्रज भाषा में रचना कार्य
व्रज भाषा कोकिल
क्रृष्ण भक्त कवि
"आजु हौं एक-एक करि टरिहौं ।
कै तुमहीं, कै हमहीं माधौ, अपने भरोसैं लरिहौं ।
हौं पतित सात पीढ़नि कौ, पतितै ह्वै निस्तरिहौं ।
अब हौं उघरि नच्यौ चाहत हौं, तुम्हैं बिरद बिन करिहौं ।
कत अपनी परतीति नसावत , मैं पायौ हरि हीरा ।
सूर पतित तबहीं उठहै, प्रभु जब हँसि दैहौ बीरा"||
सूरदास श्रीकृष्ण से बता रहे है - है भगवान आज हम दोनों में से किसी एक का विजय होगा| कई जन्मों से मैं मुक्त होने की कोशिश कर रहा था|मेरा सातों जन्म हो चुका है| भारतीय विचारधारा के अनुसार सात जन्म लेने पर ही मनुष्य को पित्र ऋण से मुक्ति होती है |इस जन्म में मुझे हरी रूपी हीरा मिल गया है|अर्थात श्रीकृष्ण मिला है | इसलिए सूरदास बता रहे है मुझे मुक्ति मिलना ही चाहिए |जब तक तुम्हारी कृपा मुझ पर पड़ेगी,तब तक मैं तुम्हरे चरणों पर पड़ा रहूँगा|अगर तुम मेरे उद्धर नहीं करोगे तो भक्त गण तुम पर भरोसा नहीं करेंगे|
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"नर तैं जनम पाइ कह कीनो ?
उदर भरयौ कूकर सूकर लौं, प्रभु कौ नाम न लीनौ ।
श्री भागवत सुनी नहिं श्रवननि, गुरु गोबिंद नहिं चीनौ ।
भाव-भक्ति कछु हृदय न उपजी, मन विषया मैं दीनौ ।
झूठौ सुभ अपनौ करि जान्यौ, परस प्रिया कैं भीनी ।
अघ कौ मेरु बढ़ाइ अधम तू, अंत भयौ बलहीनौ ।
लख चौरासी जोनि भरमि कै फिरि वाहीं मन दीनौ ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु ज्यौ अंजलि-जल छीनौ"||
व्याख्या -
सूरदास बता रहे है -नर जन्म तो कई जन्म लेने के बाद ही मिलते है|उस तरह नर जन्म लेकर तुम क्या कर रहे हो ? अन्य जीवों के समान पेट भरने केलिए ही जिया और परमात्मा का नाम लेना भूल गया |गुरु और परमात्मा को पहचानने का कोई भी काम तू ने नहीं किया |परमात्मा से मिलने का रास्ता खोजने के बदले तुम सुख के पीछे चलते रहे |असली सुख तो परमात्मा से मिलने पर ही प्राप्त होंगे |तुम तो प्रियतमा से मिलने से परमात्मा को भूल गया |परमात्मा से दूर दूर जाने के कारण पापों का संचय अब सुमेरु पहाड़ की तरह बढ़ चुका है|चौरासी लाख योनियों से गुजरने के बाद प्राप्त मानव जन्म तुम इस तरह नष्ट मत करो|ईश्वर स्मरण के बिना जीवन पूर्ण नहीं होंगे |इसलिए ईश्वर भजन में डूबने की कोशिश करो |
ईश्वर भजन की आवाश्यकता पर यहाँ प्रकाश डाल रहा है |
പൂന്താനത്തിന്റെ ഈ വരികള് ആശയം വ്യക്തമാക്കാന് സഹായിക്കും
എത്ര ജന്മം പ്രയാസപ്പെട്ടിക്കാലം
അത്ര വന്നു പിറന്നു സുകൃതത്താല്
എത്ര ജന്മം വനത്തില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം ജലത്തില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം മണ്ണില് കഴിഞ്ഞതും
എത്ര ജന്മം മരങ്ങളായി നിന്നതും
എത്ര ജന്മം മരിച്ചു നടന്നതും
എത്ര ജന്മം മൃഗങ്ങള് പശുകളായി
അത് വന്നിട്ടീവണ്ണം ലഭിച്ചൊരു
മര്ത്യ ജന്മത്തില് മുന്പേ കഴിച്ചു നാം
എത്രയും പണിപ്പെട്ടിങ്ങു മാതാവിന്
ഗര്ഭപാത്രത്തില് വീണതറിഞ്ഞാലും
പത്തു മാസം വയറ്റില് കഴിഞ്ഞുപോയി
പത്തു പതിരണ്ടുണ്ണിയായിട്ടുംപോയി
തന്നെ തന്നഭിമാനിച്ചു പിന്നിടും
തന്നെത്താന് അറിയാതെ കഴിയുന്നു
ഇത്ര കാലമിരിക്കുമിനിയെന്നും
സത്യമോ നമുക്കെതുമോന്നില്ലല്ലോ
നീര് പൊള പോലെ ഉള്ളൊരു ദേഹത്തില്
വീര്പ്പു മാത്രമുണ്ടിങ്ങനെ കാണുന്നു
ഓര്ത്തറിയാതെ പാടുപെടുംനേരം
നേര്ത്തു പോകുമാതെന്നെ പറയാവു
അത്ര മാത്രമിരിക്കുന്ന നേരത്ത്
കീര്ത്തിച്ചീടുന്നതില്ല തിരുനാമം
കീര്ത്തിച്ചീടുന്നതില്ല തിരുനാമം
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अपनौं गाउँ लेउ नँदरानी।
बड़े बाप की बेटी, पूतहि भली पढ़ावति बानी।।
सखा-भीर लै पैठत घर मैं, आपु खाइ तौ सहिऐ।
मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ।।
भाजि गए दुरि देखत कतहूँ, मैं घर पौढ़ी आइ।
हरैं-हरैं बेनी गहि पाछै, बाँधी पाटी लाइ
सुनु मैया, याके गुन मोसौं, इन मोहि लयो बुलाई।
दधि मैं पड़ी सेंत की मोपै चींटी सबै कढ़ाई।।
टहल करत मैं या के घर की, यह पति सँग मिलि सोई।
सूर-बचन सुनि हँसी जसोदा, ग्वालि रही मुख गोई।।
एक गोपिका यशोदा मैया से कन्हाई के बारे में शिकायत कर रही है - ‘नन्दरानी! तुम्हारे लाडले के कारण अब यहाँ जीना मुश्किल बन गया है|हम किसी दूसरे गाँव में बसने के बारे में सोचने के लिए विवश हो रहे है । तुम तो नामी पिता की पुत्री हो, सो पुत्र को अच्छी बात बताना चाहिए|इस तरह माखन चोरी करने क्यों सिखा रही हो? वह स्वयं खा ले तो ठीक है |, मगर वह करता क्या है ?सखाओं की भीड़ लेकर घर में घुसता है। जब मैं सामने से पकड़ने चली, उस समय की इसकी चेष्टा क्या कहूँ। मेरे देखने में तो वह कहीं छिप गये|मैं घर लौटकर लेट गयी, तो वह धीरे-धीरे पीछे से मेरी चोटी पकड़कर पलंग की पाटी में बाँध दी!
यह शिकायत सुनकर कन्हैया माँ को समझाने लगे यह औरत झूठ बोल रही है|इसने बड़े प्यार से मुझे अपना घर बुलाई और मुझसे दही में गिरे चींटों को निकालने का काम करवाया और खुद अपनी पती के साथ सो गयी|मुझे इनके घर का भी रखवाली करना पड़ा|सूरदासजी कहते हैं कि कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा हँसने लगी और गोपिका शर्म के कारण मुख छिपाने लगी|
तुलसीदास
तुलसीदास
हिंदी साहित्य के महान कवि
नाभादास की राय में कलिकाल वाल्मीकी
भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि
श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है।
रचनाएँ भारतीय संस्कृति का दस्तावेज़
गुरु- नरहरी
भाषा- अवधी, ब्रज,संस्कृत
रामचरितमानस का अर्थ है “राम के चरित्र का सरोवर”
‘रामचरितमानस’ के लिए अवधी , संस्कृत पदावली का प्रयोग
रचनाएँ
रामललानहछू, वैराग्यसंदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, जानकी-मंगल, रामचरितमानस, सतसई, पार्वती-मंगल, गीतावली, विनय-पत्रिका, कृष्ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली।
दोहा-चैपाई शैली में ‘रामचरितमानस’ व ‘वैराग्य-संदीपनी’
पद शैली में ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली
दोहा शैली में ‘दोहावली’
बरवै शैली में ‘बरवै-रामायण’
‘कवित्त-सवैया शैली में ‘कवितावली’
"तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है। लोक और शास्त्र का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृति का समन्वय, निर्गुण और सगुण का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय है। रामचरितमानस शुरू से अंत तक समन्वय-काव्य है।" -आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
सुंदर काण्ड सुनने के लिए ------
https://youtu.be/Oz8AkIGHVrk
रामचरित मानस
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस भारतीय संस्कृति मे एक विशेष स्थान रखती है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है| रामचरितमानस को तुलसीदास ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं - बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड।
सुन्दरकाण्ड
सुन्दरकाण्ड रामचरित मानस के सात कांडों में से एक है |सम्पूर्ण मानस में श्री राम के शौर्य और विजय की गाथा लिखी गयी है,मगर सुन्दरकाण्ड में राम के भक्त हनुमान के बल और विजय देख पाएंगे | हनुमान जी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसीका वर्णन इस अध्याय में हुआ है
सुंदर काण्ड के दो प्रधान चरित्र है सीता ओर हनुमान। हनुमान तो भक्त है ओर सीता शक्ति है ओर राम शक्तिमान। श्रीराम और सीता अभिन्न है उन्हे पृथक करके नही देखा गया है सीता ने राम को कबी भी विस्मृत नहीं किया है | तथा हनुमान ने भी जो भी पराक्रम दिखाये, सभी कार्य का श्रेय अपने प्रभु श्रीराम को दिया है,|यही सुंदरकाण्ड की शोभा बढ़ाती है।
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ((1))
सीता से मिलने समुद्र पार करनेवाले हनुमान को आराम करने के लिए समुद्र की आज्ञा से मैनाक पर्वत ऊपर उठ आते है |हनुमान जी मैनाक पर्वत से कहा मै राम की आज्ञा पूर्ती के लिए निकला हूँ|वह काम पूरा करने के पहले आराम कर नहीं पाएँगे |
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥2॥
सुरसा नागमाता का नाम है। उन्हें देवताओं ने हनुमान के शक्ति की परीक्षा लेने के लिये भेजा था। समुद्र पार करते वक्त सुरसा और हनुमान जी के बीच लड़ाई होती है और हनुमान जी का विजय होता है| सुरसा ने हनुमान से कहा तुम श्री रामचंद्र जी का सब कार्य कर पाओगे | क्योंकि तुम बल-बुद्धि के भंडार हो । यह आशीर्वाद देकर वह चली गई, तब हनुमान जी हर्षित होकर आगे निकले |
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार॥3॥
भयंकर शरीर वाले करोड़ों योद्धा सावधानी से लंका नगर की चारों दिशाओं से रखवाली करते हैं। हनुमान जी लंका नगर के बहुसंख्यक रखवालों को देखकर मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप धारण करके रात के समय नगर में प्रवेश करना अच्छा होगा ॥
मैथिलिशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त सन् 1886- 12 दिसम्बर 1964) का जन्म चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का अध्ययन
राष्ट्र कवि और दद्दा रूप में विख्यात
कविताओं में बौध्द दर्शन, महाभारत तथा रामायण के कथानक आते हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित 'सरस्वती'पत्रिका के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश
मैथिलीशरण गुप्त को 1930 में महात्मा गांधी ने कवि से राष्ट्रकवि कहा था
महाकाव्य: साकेत
खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम
गुप्त जी ने अपने काव्य में केकई , मंथरा , उर्मिला , यशोधरा जैसेनारियों को स्थान दिया जो काव्य ग्रंथ में सदा के लिए उपेक्षित पात्र बन गई थी।
” अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।”
गुप्त जी ने नारी को ऊंचा उठाने का प्रयास किया है
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
https://youtu.be/YI14NrzTy6Y -कविता सुनें
'यशोधरा' में उन्होंने भगवान बुद्ध की कथा को काव्य-कथा के रूप में प्रस्तुत किया है
‘’ मुझसे कहकर जाते’’ मे यशोधरा के मन पूरा दर्द कवि ने बहुत सादगी के साथ काव्य मे प्रस्तुत दिया है।
यशोधरा कविता का भाग है -सखि, वे मुझसे कहकर जाते
सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात ।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
- मैथिलीशरण गुप्त
छायावादी कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित 'यशोधरा' काव्य की पंक्तियाँ
नवजागरण के आवाज है 'यशोधरा'
यशोधरा के स्वाभिमानी रूप वर्णन 'सखि, वे मुझसे कहकर जाते'कविता में देख पाएँगे |
यशोधरा का मानना है कि सिद्धार्थ ने जो कृत्य किया उससे सभी नारी जाती अपमानित है। उन्होंने रात में सोते बच्चे व पत्नी को छोड़ कर गया ,जो नारी समाज के लिए कलंक है।
व्याख्या
यशोधरा को यह दुख हुआ कि आत्मा साक्षात्कार के लिए पति को जाना ही था तो उसे बता कर जाना था । यशोधरा कह रही है, अगर पति मुझे कहकर जाते तो मै कभी भी उनकी राह में बाधा नहीं बनती । मेरी पति सिद्धार्थ सिद्धि के लिए गए, यह तो गर्व की बात है परंतु क्यों चोरों के समान गए ?। उन्होंने मुझे माना बहुत परंतु पहचाना नहीं| यशोधरा बार-बार कहती है कि हम नारियां कभी पति की राह में बाधा नहीं बनती।
मैं क्षत्राणी हूँ|क्षत्राणी पत्नी पती को सुसज्जित कर के रण में भेजती हैं। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए हम लोग ही उन्हें युद्ध की मैदान में भेजती हैं |युद्ध की मैदान से ज़िंदा वापस आयेंगे आ नहीं यह बता नहीं पायेंगी |इतना कर पानेवाली क्षत्राणी अपनी पती आत्म साक्षात्कार के लिए निकलनेवाले पती को कैसे रोक पाएँगे ? इसलिए अगर वह मुझको कहकर जाते तो कभी राह में बाधा न पाते। मेरा भाग्य ही अब अभागा बन गया। अब किस पर यह विफल गर्व जागा।
जिसे अपनाया था उन्होंने ही मुझे छोड़ा |बिछुडन के वक्त हमारी आंखों से तब जो आंसू निकलती, सहृदय गौतम उसे सह नहीं पाते |इसीलिए शायद वह मुझ पर तरस खाकर ही चले गए। अब ,वह आत्म साक्षात्कार मिलने के बाद वापस आएँगे तब उनका स्वागत मैं हस्ते हस्ते कर नहीं सकती|क्योंकि वे चोर की तरह रातों -रात भाग गया था|
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से थे
विष पीकर अमृत बरसाने वाला कवि
हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक
यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया
दार्शनिक और भक्त कवि
'समन्वय', 'मतवाला 'के संपादक
हिन्दी-साहित्य के प्राण ‘महाप्राण निराला
छायावाद,रहस्यवाद और प्रगतिवाद की रचनाएँ
काव्यसंग्रह:
परिमल
गीतिका
द्वितीय अनामिका
तुलसीदास
कुकुरमुत्ता
अणिमा
बेला
नये पत्ते
अर्चना
आराधना
गीत कुंज
सांध्य काकली
उपन्यास
अप्सरा (1931)
अलका (1933)
प्रभावती (1936)
निरुपमा (1936)
कुल्ली भाट (1938-39) etc
कहानी संग्रह
लिली (1934)
सखी (1935)
सुकुल की बीवी (1941)
चतुरी चमार (1945) ['सखी' संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन।]
देवी
नाटक शकुंतला
निराला ने हिंदी कविता को एक आग दी, जो आज तक जल रही है
जीवन के विषाद, विष, अंधेरे को निराला ने जिस तरह से करुणा और प्रकाश में बदला, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय
जागो ,फिर एक बार
(परिमल कविता संग्रह का हिस्सा )
जागो फिर एक बार
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें
अरुण-पंख तरुण-किरण
खड़ी खोलती है द्वार
जागो फिर एक बार
भारत विश्व के नेता थे |लेकिन काल प्रवाह में भारतीय अपनी क्षमता भूल गए |उसी मौके में अंग्रेजी लोग भारत को अपना बनाया|अपनी ताकत भूलकर सोनेवाले भारतीयों को निराला जी जगा रहे है |पूरी पकृति तुम्हें बुला रही है ,जागो ,फिर एक बार |निराला जी बता रहा है रात में तारे तुम्हें जगाने की कोशिश करते रहे,मगर वे असफल रहे |अब सूरज निकल चूका है,नींद से उठने का वक्त आ गया है|
प्रकृति के बिम्बों से भारतीयों को जगाने की कोशिश कर रहा है|
आंखे अलियों-सी
किस मधु की गलियों में फंसी,
बन्द कर पांखें
पी रही हैं मधु मौन
अथवा सोयी कमल-कोरकों में
बन्द हो रहा गुंजार
जागो फिर एक बार!
मधुकर मधु पीकर कमल के फूलों में सो जाते है|कमल के मधु में मुग्ध हो कर मधु कर कमल के दलों के चारों और मंडराते रहते हैं | शाम को कमल के दल बंद हो जाते है और मधुकर उसके अंदर फँस जाते हैं |उसी प्रकार भारतीय विदेशियों के कब्जे में है |इस तरह सुध -बुध छोड़ कर विदेशी राज के अंदर बैठने की गलती मत करो |अपनी ऑंखें खोलो और अपनी जन्म भूमि को विदेशी शक्तियों से मुक्ति दिलाओ |
कर्तव्य निभाने की प्रेरणा भारतीयों को दे रहे है |
अस्ताचल चले रवि,
शशि-छवि विभावरी में
चित्रित हुई है देख
यामिनीगन्धा जगी,
एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय,
आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी
घेर रहा चन्द्र को चाव से
शिशिर-भार-व्याकुल कुल
खुले फूल झूके हुए,
आया कलियों में मधुर
मद-उर यौवन उभार
जागो फिर एक बार!
सूरज अब पश्चिम की ओर जा चुका है |आस्मान में चन्दमा आ चुकी है |रात का सुगन्ध चारों और फ़ैल चुका है|चकोर अपनी प्रिय को मिलने की इच्छा से ,अपनी चाहत को अपने अन्दर समेटे हुए उम्मीद भरी आँखों से चन्दमा को देख रहा है|शिशिर के आगमन से व्याकुल सभी फूल सर झुका रहा है| हर कहीं मस्त वातावरण फ़ैल चुका है|कलियों में मधु भरा हुआ है |पूरी प्रकृति में मादक और प्रेरक वातावरण फ़ैल चुका है|
परतंत्रता से मुक्ति के लिए कर्मवीर होने की प्रेरणा कवि यहाँ दे रहा है|
पिउ-रव पपीहे प्रिय बोल रहे
सेज पर विरह-विदग्धा वधू
याद कर बीती बातें, रातें मन-मिलन की
मूँद रही पलकें चारु
नयन जल ढल गये,
लघुतर कर व्यथा-भार
जागो फिर एक बार!
प्रिय के विरह के कारण पपीहे पिऊ पिऊ रट रहे है|विरहिणी बीते हुए प्रिय के साथ के पलों यानि मिलन के पलों के बारे में सोच कर ,अपने पिय से मिलने की कल्पना कर रही है |उस मिलन के पलों के बारे में सोच कर उसकी आँखों से आँसू निकल रही है | इस तरह उसको तसल्ली मिल रही है|कवि यहाँ भारतवासियों को अपने अतीत से ऊर्जा पाकर उठने की प्रेरणा दे रहे हैं |दुःख से बच कर आगे निकलना है,मोह निद्रा से जागो आज़ादी के लिए आगे आ जाओ |
मोह निद्रा छोड़ कर जागने की प्रेरणा कवी यहाँ दे रहा है |
सहृदय समीर जैसे
पोछों प्रिय, नयन-नीर
शयन-शिथिल बाहें
भर स्वप्निल आवेश में,
आतुर उर वसन-मुक्त कर दो,
सब सुप्ति सुखोन्माद हो,
छूट-छूट अलस
फैल जाने दो पीठ पर
कल्पना से कोमन
ऋतु-कुटिल प्रसार-कामी केश-गुच्छ।
तन-मन थक जायें,
मृदु सरभि-सी समीर में
बुद्धि बुद्धि में हो लीन
मन में मन, जी जी में,
एक अनुभव बहता रहे
उभय आत्माओं मे,
कब से मैं रही पुकार
जागो फिर एक बार
आँखें पोंछ कर ,निद्रा के कारण उत्पन्न आलस्य से जागो ,मन में जोश भरो,आलस्य रुपी वस्त्र को छोड़ो|अपनी कल्पनाओं को मुक्त छोड़ो |तुम्हारी तन और मन थक जाने पर जिस प्रकार सुगंध हवा में विलीन हो जाता है उसी प्रकार तुम्हारी बुध्दी बुद्धि में और मन मन में विलीन होने दें|सभी जन जागृत हो उठें| सभी के दिलों में स्वतन्त्रता का विचार आ जाएँ| सभी लोग जागृत हो जायेंगे तो आज़ादी मिलना कोई मुश्किल काम नहीं रहेगा |
कवि फिर से भारतवासियों को जागृत हो जाने की प्रेरणा देते है |
उगे अरुणाचल में रवि
आयी भारती-रति कवि-कण्ठ में,
क्षण-क्षण में परिवर्तित
होते रहे प्रृकति-पट,
गया दिन, आयी रात,
गयी रात, खुला दिन
ऐसे ही संसार के बीते दिन, पक्ष, मास,
वर्ष कितने ही हजार-
जागो फिर एक बार!
सूर्य पूर्व दिशा से अपनी सैर शुरु कर चूका है |प्रकृति में प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है |दिन और रात आते जाते रहते है |इसी श्रृंखला में पक्ष ,मॉस और वर्ष जुड़ जाते है|संसार चक्र चलता रहता है|वह कभी भी रुकता नहीं |समय की गति पहचानकर स्वतंत्रता के लिए आगे आने की प्रेरणा भारतीयों को कवि दे रहा है |
जागरण की शक्ति में कवि की आस्था इ कविता में प्रकट हो रहे है |
सुप्त भारतीय जनता को उनके गौरवमयी अतीत की याद दिलाते हुए उन्हें जगाने का आह्वान
भारतीयों के अंदर देशप्रेम की भावना जगाकर जोश भरने का प्रयत्न
प्रकृति की भंगिमा बताते हुए जागरण का शंख कवि फूंक रहे है |
कवि भारतीयों को समझा रहा है तुम्हारी गुलामी का कारण तो तुम्हारा ही आलस्य है
अपनी श्रेष्ठता को पहचान कर आगे जाना है
नागार्जुन
मूल नाम वैधनाथ मिश्र
हिंदी/मैथिलि के लेखक
उपनाम - यात्री ,नागर्जुन,वैदेह
मैथिलि में 'यात्री'उपनामसे लेखन
जन कवि,जन तन्त्र के कवि
राजनैतिक कविताओं के कवि
लोकधर्मी जनचेतना के कवि
नामवर सिंह ने उन्हें आधुनिक कबीर कहा है
उन्होंने संस्कृत एवं बाङ्ला में भी मौलिक रचनाएँ कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया ।
उपन्यास
'रतिनाथ की चाची'
'बलचनमा'
'नयी पौध'
'बाबा बटेसरनाथ'
'दुखमोचन'
'वरुण के बेटे'
उग्रतारा
कुंभीपाक
पारो
आसमान में चाँद ता
कविता-संग्रह
अपने खेत में
युगधारा
सतरंगे पंखों वाली
तालाब की मछलियां
खिचड़ी विपल्व देखा हमने
हजार-हजार बाहों वाली
पुरानी जूतियों का कोरस
तुमने कहा था ..................................
हम भी साझीदार थे
आत्मानुशासित ,जिम्मेदार और ईमानदार व्यक्ति लोकतंत्र का प्रारंभिक इकाई
आत्मानुशासित ,जिम्मेदार और ईमानदार व्यक्ति की प्राप्ति लोकतंत्र का लक्ष्य
आत्मानुशासित ,जिम्मेदार और ईमानदार व्यक्ति की प्राप्ति साहित्य का भी लक्ष्य
स्वतन्त्रता,समानता और भाईचारा जनतंत्र के तीन लक्षण
यह कविता 1979 में लिखी हुई थी |उस जमाने में कवि जो प्रजा तन्त्र का चित्रण किया था,वह आज बहुत कुछ रूप बदल कर विकराल रूप धारण कर चूका है |
प्रजातंत्र आज पटरी से उतर चूका है |सभी राजनैतिक दलों की स्थापना देशवसियों के भलाई के लिए की थी |लेकिन ,बद में ए नेता गण राजनीति को अपने और अपने परिवारवालों के भलाई के लिए इस्तमाल करना शुरू किया तो पूरा दृश्य बदलने लगा |
अपने पुत्र धर्म के मार्ग से दूर हो रहे है,यह जान कर भी 'महाभारत' के पात्र धृतराष्ट्र उसको समझाने के लिए तैयार नहीं हुए |कई ज्ञानी लोग धृतराष्ट्र को समझाने आये| मगर जन्मांधता के साथ अधिकार की चाहत और अपने लोगों की भलाई की कल्पना के कारण वह मौन विलीन रहा|इसका नतीजा क्या था ,हमें मालूम है |
अधिकारी लोग गलत रास्ते से गुज़रते है तो उन्हें सही रास्ते पर लाना ज्ञ्यानी लोगों का काम है|मगर आज वे भी अपने और अपने लोगून के भलाई के लिए अधिकारीयों के साथ रहने लगे है |अधिकारीयों से मिल रहे रोटी के टुकड़ों के लिए वे चुप रह रहे है |
जिसकी बुद्धि स्थिर हुई है और जिसका मन संकल्प विकल्प से रहित होअक्र परमात्मा का प्रत्यक्ष अनुभव कर चूका है उसे 'स्थितप्रज्ञ'कहते है |कवि बता रहा है आज हम 'स्थितप्रज्ञके समान देश में हो रहे दुर्दशा को देखते रहते है |इसलिए कुछ भी करने का साहस नेता गण कर रहे है |
अधिकारी वर्ग के प्रिय जन बनने के लिए उन्हें फुल माल चढाने हम हिचकता नहीं |रराजघाट में महात्मा के वध के बाद जनतन्त्र समस्याओं से जूझने लगे है|आज जन तन्त्र पूर्ण रूप से पटरी से बाहर आ चुके है |पटरी से बाहर आए रेलगाड़ी जिस प्रकार नलायक चीज़ बनते है ,उसी प्रकार जनतंत्र भी आज अपना अस्तित्व खो चुके है|
भारतीय प्रजा तन्त्र की दुर्दशा
प्रजातंत्र का बिगड़ा स्वरुप
प्रजातंत्र को खरीदनेवाले पूंचीवादी
प्रजातंत्र शोषण का नया आयाम बन चूका है
प्रजातंत्र की तीखी आलोचना हम अरुण कमल के रचनाओं में ही देख पाते हैं----
प्रजातंत्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर माँस का उनको मगही पान.
अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
कहानिकार, उपन्यासकार ,ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक
तारसप्तक, दूसरा सप्तक और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का संपादन
सैनिक ,दिनमान,विशाल भारत ,बिजली का सम्पादक
कहानियाँ:-विपथगा , परम्परा, कोठरीकी बात, शरणार्थी , जयदोल
उपन्यास:-शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग(उत्थान), द्वितीय भाग(संघर्ष)1,नदीके द्वीप , अपने अपने अजनबी ।
यात्रा वृतान्त:- अरे यायावर रहेगा याद? ,एक बूँद सहसा उछली
निबंध संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मनेपद, आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल।
आलोचना:- त्रिशंकु , आत्मनेपद , भवन्ती , अद्यतन ।
संस्मरण: स्मृति लेखा
डायरियां: भवंती, अंतरा और शाश्वती।
विचार गद्य: संवत्सर
नाटक: उत्तरप्रियदर्शी
जीवनी: रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक
विविध
'कितनी नावों में कितनी बार' नामक काव्य संग्रह के लिये 1978 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।
'कला का जोखिम' में निर्मल वर्मा ने अज्ञेय के प्रकृति-बोध को रेखांकित करते हुए लिखा है : 'वह पहाड़ों को देख कर मुग्ध होते हैं, तो नीचे जंगलों में पेड़ों के कटने का आर्तनाद भी सुनते हैं, बल्कि कहें, यह कटने का बोध उनके प्रकृति के लगाव में 'एंगुइश', एक गहरी दरार पैदा कर जाता है | उनकी कविताएँ अपने प्रतिद्वंद्वी रूपकों के बीच एक तरह से 'क्रॉस रेफरेंस' बन जाती हैं - सचेत अंतर्मुखी आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच |' अज्ञेय के प्रकृति-बोध को निर्मल वर्मा ने 'आधुनिक बोध की पीड़ा' का नाम दिया है |
मैं ने कहा ,पेड़
कवि अज्ञेय मूलतः प्रकृति प्रेमी हैं
कवि पेड़ से बता रहा है ,आँधी और बारिश की सामना करते हुए तुम सैकड़ों सालों से यहाँ रह रहे हो|सूरज और चाँद कई बार आते जाते रहे |ऋतू बदले,मौसम बदले |लेकिन तुम अडिग रहे |चारों और हो रहे बदलावों से अपने आप बच कर तुम खड़े हो|सर ऊँचा करके तुम सालों से खडे हुए हो|
पेड़ कवि से बोला -झूठा श्रेय मुहे मत दो|सर झुकाकर और गिर कर ही मै यहाँ जी रहा हूँ|ऊपर ऊपर बढ़ हे मेरे पत्तों को देख कर मेरा बडप्पन को आंकना सही नहीं है |मेरे बडप्पन का मूल कारण तो मेरा जड़ें है |वे मिट्टी के नीचे से नीचे जा कर मुझे मजबूत बना रहे है|आस्मान तक मेरे शिखर पहुँच चुके है |यह सब लोग देखते है |मगर जड़ें कहाँ तक व्याप्त है,यह कोई नहीं जानता |
मेरा श्रेय का आधार तो मेरा जड़ें है|उनके कारण ही उँचे ऊँचे से उठने की क्षमता मुझे मिली|जड़ों से दूर हो कर जीना न मुमकिन बात है|मौसम के बदलाव जैसे सभी कठिनाईयों से मुझे जड़ों ने ही बचाया |उन जड़ों को बसने की जगह तो मिट्टी ने दी |इसलिए मेरा अस्त्तिव का पूरा श्रेय तो मिट्टी को ही है|
आज हम अपनी संस्कृति और परिवार से दूर हो रहे है|ऐसा करने से शायद हमें उन्नति तो मिलेगी,मगर वह स्थाई नही रहेगा|इसलिए अपने जड़ों को पहचानकर जीने की सलाह पेड़ के माध्यम से कवि दे रहा है|
THIRD SEMESTER B. A/B.Sc DEGREE EXAMINATION
COMMON COURSE IN HINDI
HIN A (09) 1 POETRY IN HINDI
MODEL QUESTION
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
1.कबीरदास की भाषा ---- थी | कबीरदास के गुरु कौन थे
2.सूरदास किस के उपासक थे ?आपके कीर्ति का अधर ग्रन्थ ---- है |
3.निराला का पूरा नाम लिखिए|’मैंने कहा पेड़’ किसकी रचना है
4.’रामचरित मानस’ के रचयिता कौन है ?सुंदर काण्ड में किसको प्रधानता है ?
5.नागार्जुन का असली नाम क्या था ?’पुतली में संसार’के रचयिता कौन है ?
6.यशोधरा कौन थी ?’साकेत’ किसकी रचना है ?
7.’जागो फिर एक बार’कविता में कवि किसको जगा रहे है ?’लिली’किस विधा की रचना है ?
8.’हम भी साझीदार थे’ कविता किस विषय पर चर्चा कर रहे है ?तुलसीदास के गुरु कौन थे ?
9.’भिनसार’किसकी रचना है ? ‘नागमंडल’ का अनुवाद किसने किया था ?
10.’मेरे अधिकार कहाँ है ‘ किसकी रचना है ?’करुणा’ किस विधा की रचना है ?
11.’कनुप्रिया’किसकी रचना है ? 'कनुप्रिया', किसकी की अनुभूतियों की गाथा है?
12.’कवितावली’किसकी रचना है ?’बीजक’के कितने भाग है ?
13.सात समुद्रों की पानी से कबीरदास किसके बारे में लिखना चाहते है?हनुमान कहाँ जा रहे है
14.सूरदास किसको हीरा मान रहे है? सुरसा कौन थी ?
15.”जाएँ,सिद्धि पावें वे सुख से”| आशय स्पष्ट कीजिए
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
16.’जागो फिर एक बार ’कविता का सारांश लिखिए
17.’पुतली में संसार ’ कविता पर अपना विचार स्पष्ट कीजिए
18.’बीज व्यथा ’ कविता पर चर्चा कीजिए
19’.मेरे अधिकार कहाँ है ’ कविता कौनसी विषय पर चर्चा कर रहे है ?
20. सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
“मै पगडंडी के कठिनतम मोड़ पर
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अडिग खड़ी हूँ ,कनू मेरे”
21. कबीरदास
22. सूरदास
23. ‘मैं ने कहा,पेड़’ कविता का सारांश |
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
24.’कनुप्रिया’ कविता की प्रासंगिकता
25.तुलसीदास
26.’हम भी साझीदार थे’ कविता का मूल्यांकन
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मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त सन् 1886- 12 दिसम्बर 1964) का जन्म चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का अध्ययन |
कविताओं में बौध्द दर्शन, महाभारत तथा रामायण के कथानक आते हैं।
मैथिलीशरण गुप्त को 1930 में महात्मा गांधी ने कवि से राष्ट्रकवि कहा था
महाकाव्य: साकेत
खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम
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THIRD SEMESTER B. A/B.Sc DEGREE EXAMINATION
COMMON COURSE IN HINDI
HIN A (09) 1 POETRY IN HINDI
MODEL QUESTION
TIME 2.5 Hrs MAX MARKS 80
PART A 25 MARKS
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 2 है | आप अधिकतम 25 अंक प्राप्त कर सकते है |
1.कबीरदास की भाषा ---- थी | कबीरदास के गुरु कौन थे
2.सूरदास किस के उपासक थे ?आपके कीर्ति का अधर ग्रन्थ ---- है |
3.निराला का पूरा नाम लिखिए|’मैंने कहा पेड़’ किसकी रचना है
4.’रामचरित मानस’ के रचयिता कौन है ?सुंदर काण्ड में किसको प्रधानता है ?
5.नागार्जुन का असली नाम क्या था ?’पुतली में संसार’के रचयिता कौन है ?
6.यशोधरा कौन थी ?’साकेत’ किसकी रचना है ?
7.’जागो फिर एक बार’कविता में कवि किसको जगा रहे है ?’लिली’किस विधा की रचना है ?
8.’हम भी साझीदार थे’ कविता किस विषय पर चर्चा कर रहे है ?तुलसीदास के गुरु कौन थे ?
9.’भिनसार’किसकी रचना है ? ‘नागमंडल’ का अनुवाद किसने किया था ?
10.’मेरे अधिकार कहाँ है ‘ किसकी रचना है ?’करुणा’ किस विधा की रचना है ?
11.’कनुप्रिया’किसकी रचना है ? 'कनुप्रिया', किसकी की अनुभूतियों की गाथा है?
12.’कवितावली’किसकी रचना है ?’बीजक’के कितने भाग है ?
13.सात समुद्रों की पानी से कबीरदास किसके बारे में लिखना चाहते है?हनुमान कहाँ जा रहे है
14.सूरदास किसको हीरा मान रहे है? सुरसा कौन थी ?
15.”जाएँ,सिद्धि पावें वे सुख से”| आशय स्पष्ट कीजिए
PART B 7 x 5 =35
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं सात प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 5 है | आपको अधिकतम 35 अंक प्राप्त कर सकते है |
16.’जागो फिर एक बार ’कविता का सारांश लिखिए
17.’पुतली में संसार ’ कविता पर अपना विचार स्पष्ट कीजिए
18.’बीज व्यथा ’ कविता पर चर्चा कीजिए
19’.मेरे अधिकार कहाँ है ’ कविता कौनसी विषय पर चर्चा कर रहे है ?
20. सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
“मै पगडंडी के कठिनतम मोड़ पर
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अडिग खड़ी हूँ ,कनू मेरे”
21. कबीरदास
22. सूरदास
23. ‘मैं ने कहा,पेड़’ कविता का सारांश |
PART C 2 X 10 = 20
निम्न लिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए | प्रत्येक प्रश्न का अंक 10 है |
24.’कनुप्रिया’ कविता की प्रासंगिकता
25.तुलसीदास
26.’हम भी साझीदार थे’ कविता का मूल्यांकन