मध्व प्रयाग मठ, श्री मध्वाचार्य के सेवार्थ, मध्वसिद्धांत तथा धर्म प्रचार और लोक कल्याण के लिए कई वर्षों से हिंदी में मध्व सिद्धांत आधारित शाश्त्रों का हिंदी अनुवाद और शास्त्रों के समन्वय पर आधारित विद्वतपूर्ण विचारों को सुदृढ़, समर्थ, सुन्दर और स्पस्ट शब्दों में “सर्वमूल” नाम की मासिक पत्रिका को भगवत भक्तों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है । इस सर्वमूल मासिक पत्रिका का और अन्य प्रमुख प्रकाशनों का, स्वामी जी की इच्छानुसार और इस आशा के साथ कि पाठक इसका लाभ उठायें, डिजिटल कॉपी यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि वो उत्तर भारत में मध्व सिद्धांत के प्रसार में रत मध्व मठ के धार्मिक और साहित्यिक कार्यों में अपना सहयोग प्रदान करें । [contact].
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ऋग्वेद को भगवान व्यास ने २४ शाखाओं में विभाजित किया, यजुर्वेद को १०१, सामवेद को १००० और अथर्ववेद को १२ शाखाओं में विभाजित किया । इस प्रकार कुल मिला कर वेदों की (२४ + १०१ + १००० + १२) ११३७ उपशाखाएँ थीं । वर्त्तमान समय में ऋग्वेद की केवल ३ शाखाएँ उपलब्ध हैं - सकल, बास्कला, संगख्यायना संहिता । यजुर्वेद के कृष्णयजुर्वेद में से प्राथमिक ८६ उपशाखाओं में से अब केवल ३ शाखा उपलब्ध हैं - तैत्तिरीय, कथा, मैत्रयाणी संहिता । शुक्लयजुर्वेद के प्रारंभिक १५ शाखाओं में से केवल २ उपलब्ध हैं - कणवा, मध्यान्दिना संहिता । सामवेद के १००० शाखाओं में मूल स्तोत्रों में ज्यादा भिन्नता नहीं थी अपितु ये शाखायें भिन्न पाठ विधियों पैर आधारित थीं , उनमे से अब केवल ३ उपशाखायें उपलब्ध हैं - राणयानी, जैमिनीय, कौथुमा । अथर्ववेद के प्रारंभिक १२ शाखाओं में से ११ शाखाएँ लुप्त हो गयीं हैं और केवल एक शाखा उपलब्ध है ।
ऋग्यजुस्सामाथर्वाश्च भारतं पंचरात्रकम्
मूलरामायणं चैव शास्त्रमित्यभिदियते।
यच्चानुकूलमेतस्य तच्च शास्त्रम् प्रकीर्तितम् ।
अतोऽन्यो ग्रन्थविस्तारो नैव शास्त्रं कुवर्त्म।
- स्कन्द पुराण
अर्थ - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वण वेद, महाभारत, पञ्चरात्र आगम, तथा मूलरामायण को ही कुल मिलाकर इन सातों को ही शास्त्र कहा गया है । इन सातों शास्त्रों के विरूद्ध न जाने वाले सन्मार्ग दिखने वाला पौरुषेय ग्रन्थ समूह शास्त्र भी शास्त्र कहा गया है। परन्तु जी ऋगादि शास्त्रों के विरुद्ध बोलने वाले ग्रन्थ हैं, वे अयोग्य मार्ग दिखने वाले ( कुवर्त्म ) हैं - ऐसा स्कन्द पुराण में कहा गया है।