उत्तर भारत में मध्व सिद्धांत का ज्ञान सीमित ही रहा है । बाहर से आये, युद्धप्रेमी, उग्र एकेश्वरवादी आक्रमणकारी धर्म से हिन्दू-बौद्ध-जैन मंदिरों, आश्रम इत्यादियों के नाश और बलात्कृत मतान्तर में उद्यत शाशको के कारण तथा अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के सांस्कृतिक विरासत की विकृति के सक्रिय प्रयास का प्रभाव उत्तर भारत में विशेषकर प्रतयक्ष है । वर्तमान समय में धर्म निरपेक्षता नीति का उत्तर भारत में प्रभाव, अनन्य शास्त्र असम्मत दुष्ट मतों का हिन्दू धर्म के आड़ में प्रचार, अंधविश्वास, ढोंग, सामाजिक, धार्मिक और वैचारिक अस्वच्छता, हिन्दू धर्म के सुन्दर तत्वों को ढक उसे विकृत कर, लोगों की हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा को प्रभावित कर सांस्कृतिक धरोहर की नीव को दुर्बल कर रहा है । धर्म सम्मत सांस्कृतिक धरोहर ही राष्ट्र को प्रबल और प्रभावशाली बना सकता है । आज़ादी के ७१ वर्ष उपरांत भी, देश में असमाजिक्ता, नैतिक और नैतिक मूल्यों की कमी रही है । ऐसी परिस्थितियों में उत्तर भारत में, हिन्दू धर्म के मूल स्फूर्ति दायक, कर्मिष्ठ, सामाजिक जागरण के लिए, श्री मध्वाचार्य के सिद्धांत को सशक्ति से पुनः स्थापित और प्रचार प्रसार की आवश्यकता है इस कार्य में मध्व मठ, प्रयाग प्रयासरत है।
श्रीमान आनन्दतीर्थ, जो सुखतीर्थ, पूर्णबोध, मध्वाचार्य और पूर्णप्रज्ञ इत्यादि नामों से भी विख्यात हैं, तत्ववाद सिद्धांत (मध्वसिद्धांत) के प्रवर्तक हैं । श्रीमान आनन्दतीर्थ जी के सिद्धांत के अनुसार इस सत्यभूत जगत में जीव, ईश्वर और जड़ में अनादिकाल से नित्य भेद है और सभी शास्त्रों में भगवान विष्णु के महिमाओं का ही गुणगान है।
टीकाचार्य के नाम से प्रसिद्ध, श्री जयतीर्थ मुनि की "न्याय सुधा" , मध्वाचार्य जी के ब्रह्मसूत्र पर आधारित अनुव्याख्यान नामक ग्रन्थ पर प्रसिद्ध कृति लिखी है। श्री जयतीर्थ मुनि जी ने ४० वर्ष की कम उम्र में ही आचार्य के १८ से ज्यादा ग्रन्थों पर टीका लिखा है।
श्री व्यास तीर्थ स्वामी जी (सन् १४६० - १५३९) ने संक्षेप में मध्वसिद्धांत के प्रमेयों को सूत्रबद्ध किया है -
श्रीमन्मध्वमते हरि: परतर: | सत्यम् जगत् तत्वतो भिन्ना जीवगणा: हरेरनुचरा नीचोच्चभावंगता: | मुक्तिर्नैजसुखानुभूतिरमला भक्तिश्च तत् साधनम् | ह्यक्षादि तृतीयं प्रमाणम् अखिलाम्नायैक वेद्यो हरिः ||
श्री श्री १००८ विद्यात्मतीर्थ स्वामी जी, मठाधीश मध्व प्रयाग मठ, श्री मध्वाचार्य के सेवार्थ, मध्वसिद्धांत तथा धर्म प्रचार और लोक कल्याण के लिए कई वर्षों से हिंदी में शास्त्रों के समन्वय पर आधारित विद्वतपूर्ण विचारों को सुदृढ़, समर्थ, सुन्दर और स्पस्ट शब्दों में “सर्वमूल” नाम की मासिक पत्रिका को भगवत भक्तों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं । इसी सर्वमूल मासिक पत्रिका का, स्वामी जी की इच्छानुसार और इस आशा के साथ कि पाठक इसका लाभ उठायें, डिजिटल कॉपी यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । इसके अतिरिक्त प्रयाग मठ के पूर्व पीठाधिपति श्री श्री १००८ विद्यावल्लभ स्वामी जी महाराज जी द्वारा रचित ग्रंथों तथा अन्य हिंदी भाषा में मध्वसिद्धांत पर आधारित ग्रंथों के प्रकाशन करने प्रयास किया जायेगा ।
श्री विद्यात्मतीर्थ स्वामी जी श्रीराम जी की मद्यान्ह पूजा में (प्रयाग २०१४ अक्टूबर)
कर्नाटक प्रान्त में, हुबली-धारवाड़ जिले बड़े जमींदार घर और संस्कृत भाषी परिवार में जन्मे, सदैव सम्पूर्ण समर्पण भाव से समाजिक सेवा कार्यों में रत, इन्होने ७४ वर्ष की आयु में, अपने गुरु श्री श्री १००८ विद्याधीश तीर्थ स्वामी जी की आज्ञा शिरोधार्य कर सन्यास आश्रम धारण कर उत्तर प्रदेश राज्य के तीर्थराज प्रयाग क्षेत्र के मध्व मठ का कार्यभार संभाला । कई वर्षों तक साहित्यिक हिंदी का अध्यन कर हिंदी सीखकर उन्होंने हिंदी में कई मध्व सिद्धांत आधारित पुस्तकों का स्तुत्य प्रकाशन किया है । कठिन व्रत का पालन करने वाले वे ८९ वर्ष की आयु में भी, मध्व सिद्धांतों का हिंदी में प्रकाशन करने में, बिना किसी परिश्रम का आभास दिखाते हुए, नित्य संलग्न हैं । उनहोने मध्वसिद्धांत अनुसार भागवतम, भगवतगीता, रामायण पात्र चित्रण, सुन्दरकाण्ड, गजेन्द्र मोक्ष, रूप-नाम-गुण-चिंतन इत्यादि का समर्थ सुन्दर और सबके मन को मिले ऐसी सुन्दर हिंदी में अनुवाद व प्रकाशन कर साधक सज्जनों पर बड़ा परोपकार है ।
श्री विद्यात्म तीर्थ स्वामी जी, जिनमे भगवान की विशेष सन्निधि है उत्तर भारत में माधव सिद्धांत का सूर्य की भांति प्रकाश फैला रहें हैं ।