कर्नाटक प्रान्त में, हुबली-धारवाड़ जिले बड़े जमींदार घर और संस्कृत भाषी परिवार में १५ अक्टूबर १९३० में श्री विद्यात्म तीर्थ स्वामी जी का जन्म हुआ | सदैव सम्पूर्ण समर्पण भाव से समाजिक सेवा कार्यों में रत अपने प्राथमिक जीवनकाल मे विश्व हिंदु परिषद से सन्लगन रहे । इन्होने अपने गुरु श्री श्री १००८ विद्याधीश तीर्थ स्वामी जी की आज्ञा शिरोधार्य कर ७२ वर्ष की आयु में सन्यास आश्रम धारण कर उत्तर प्रदेश राज्य के तीर्थराज प्रयाग क्षेत्र के मध्व मठ का कार्यभार संभाला । कई वर्षों तक साहित्यिक हिंदी का अध्यन कर हिंदी सीखकर उन्होंने हिंदी में कई मध्व सिद्धांत आधारित पुस्तकों का स्तुत्य प्रकाशन किया है । कठिन व्रत का पालन करने वाले वे ८९ वर्ष की आयु में भी, मध्व सिद्धांतों का हिंदी में प्रकाशन करने में, बिना किसी परिश्रम का आभास दिखाते हुए, स्वामी जी नित्य संलग्न हैं । उन्होने मध्वसिद्धांत अनुसार ब्रह्मसूत्र, भागवतम, भगवतगीता, रामायण पात्र चित्रण, सुन्दरकाण्ड, गजेन्द्र मोक्ष, रूप-नाम-गुण-चिंतन इत्यादि का समर्थ सुन्दर और सबके मन को मिले ऐसी सुन्दर हिंदी में अनुवाद व प्रकाशन कर साधक सज्जनों पर बड़ा परोपकार है । परमेश्वर उनकी छत्रछाया और अनुग्रह हम हिंदी भाषियों पर सदैव बनाय रखें ।
स्वामी जी ने सन १९९२ में पेजावर स्वामी जी से बद्रीविशाल के समक्ष ब्रह्मसूत्र का दो महीनों तक अध्ययन किया था उसके चरमोत्कर्ष इस वर्ष २०१९ में, श्री श्री १००८ विद्याधीश स्वामी जी के पर्याय के मध्यांतर, उन्होंने आचार्य के ब्रह्मसूत्र भास्य का हिन्दी अनुवाद पूर्ण संपन्न कर पेजावर स्वामी जी को समर्पित किया है |
स्वामी जी, मठाधीश मध्व प्रयाग मठ, श्री मध्वाचार्य के सेवार्थ, मध्वसिद्धांत तथा धर्म प्रचार और लोक कल्याण के लिए कई वर्षों से हिंदी में शास्त्रों के समन्वय पर आधारित विद्वतपूर्ण विचारों को सुदृढ़, समर्थ, सुन्दर और स्पस्ट शब्दों में “सर्वमूल” नाम की मासिक पत्रिका को भगवत भक्तों के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं । श्री विध्यात्मतीर्थ स्वामी जी ने पूर्व पीठाधिपति श्री विद्यावल्लभ स्वामी जी के कार्य को कर्मठ योगदान से सशक्त किया है । स्वामी जी ने अनेकों मध्व सिद्धांत आधारित पुस्तकों की संरचना की है -
प्रयाग मध्वमठ के प्रथम पीठाधिपति श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामी जी ने मध्वसिद्धांत का उत्तर भारत में प्रचार के लिए महत्वपूर्ण प्रयत्न किया है । अपने पूर्वाश्रम में वे IPS अफसर थे । वैराग्य प्राप्त बद्री में रह कर योग्य गुरु को प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे थे, तदन्तर उन्हें यात्रियों ने श्री विद्यामान्य स्वामी जी से मिलने को कहा । उन्होंने १९६५-१९६६ में श्री विद्यामान्य स्वामी जी से सन्यास दीक्षा ली । प्रायः १९७०-१९७१ से प्रतिवर्ष प्रयाग माघ मेले में वे आते रहते थे । श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामजी, १-२ महीने उत्तरादि मठ में, श्री नारायणाचार्य के साथ रहते और गंगा तीर पर कल्पवास कर प्रवचन देते रहते थे, अनन्तर वे बद्री को चले जाते थे । श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामजी ने ही बद्रीविशाल क्षेत्र में अनन्ता मठ की नीव रखी । श्री सत्य प्रकाश मालवीय जी ने स्वामी जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर उन्हें गीता प्रसाशन पण्डाल में प्रवचन के लिए आग्रह किया । उनके प्रभावशाली प्रवचनों से प्रभावित होकर कई लोगों ने मध्व सिद्धांत को अपनाया । उनके प्रवचनों को सुनने के लिए सदा भीड़ लगती थी । श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामजी ने १९८१ कशी में ३ दिन का शास्त्रार्थ का कार्यक्रम कराया इसमें श्री विद्यामानय स्वामजी जी ने भी भाग लिया।
वे प्रायः कलकत्ता में गीता प्रेस वालों के साथ में प्रवचन करने जाया करते थे, उनके इस प्रवास के अंतर्गत ही उनकी भेंट काली कमली वालों के साथ हुई । काली कमली वालों से जमीन खरीद कर १९८६-१९८७ में प्रयाग क्षेत्र में, उत्तर भारत में मध्व मत के प्रचार के उद्देश्य से, केंद्र की नीव रखने हेतु, अपने गुरु की आज्ञा से मध्व मठ की स्थापना करने को सिद्ध हुए । इस कार्य में उनके प्रमुख शिष्यों, श्री गिरधारी लाल मिश्रा, श्री मानसिंह, श्री बी० न० वर्मा, श्री लाल प्रताप सिंह, श्री कृष्णराव, इत्यादियों ने योगदान दिया । स्वामी जी ने स्वयं शारीरिक श्रम कर इस मठ के निर्माण को बढ़ाया ।
श्री विद्यावल्लभ तीर्थ स्वामी जी ने अपने पीठाधिपत्य के दौरान मध्वाचार्य के कई ग्रंथों का हिंदी अनुवाद किया -