अजब सी ऊब शामिल हो गयी है रोज़ जीने में
पलों को दिन में, दिन को काट कर जीना महीने में
महज मायूसियाँ जगती हैं अब कैसी भी आहट पर
हज़ारों उलझनों के घोंसले लटके हैं चैखट पर
अचानक सब की सब ये चुप्पियाँ इक साथ पिघली हैं
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को मचली हैं
मेरे कमरे के सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है
मेरी ख़ामोशियों ने एक नग़मा गुनगुनाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है
सती का चैतरा दिख जाए जैसे रूप-बाड़ी में
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए गाड़ी में
मेरी आवाज़ से जागे तुम्हारे बाम-ओ-दर जैसे
ये नामुमकिन सी हसरत है, ख़्याली है, मगर जैसे
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे
बड़ी बेचैनियों के बाद राहत का पहर जैसे
बड़ी ग़ुमनामियों के बाद शोहरत की मेहर जैसे
सुबह और शाम को साधे हुए इक दोपहर जैसे
बड़े उन्वान को बाँधे हुए छोटी बहर जैसे
नई दुल्हन के शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे
हथेली पर रची मेहँदी अचानक मुस्कुराई है
मेरी आँखों में आँसू का सितारा जगमगाया है
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है
कुमार विश्वास
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
कुमार विश्वास
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले
कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले
हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्ध स्वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म कृपाएँ
हमने सेहरे के संग बाँधी
अपनी सब मासूम खताएँ
हमने कभी न रखा स्वयं को
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर
कुमार विश्वास
ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही!
ओ अमलताश की अमलकली!
धरती के आतप से जलते...
मन पर छाई निर्मल बदली...
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साधू
सुर श्रृंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|
तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||
कुमार विश्वास
मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।
कल कोई अल्हड़ अयाना बाबरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितों पर गन्ध भर देगा चमन में
या कोई चंदा धरा का रूप का मारा वेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड देगा गगन पर
तब यही विछुये, महावर, चुडियां, गजरे कहेंगे,
इस अमर सौभाग्य के श्रंगार का अधिकार क्या है।
मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।
कल कोई दिनकर विजय का सेहरा सर पर सजाये,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छांव में सोने चलेगा
या कोई हारा थका व्याकुल सिपाही तुम्हारे,
वक्ष पर धर सीस हिचकियां रोने लगेगा
तब किसी तन पर कसीं दो बांह जुड कर पूछ लेंगी,
इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है।
मॉग की सिन्दूर रेखा तुमसे ये पूछेगी कल,
यूं मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है।
तुम कहोगी वो समर्पण बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था तो कहो फिर प्यार क्या है।
कुमार विश्वास