जीवन में कुण्डली सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। इसके द्वारा आप अपनी वास्तविक क्षमताओं को पहचान पाते हैं
जन्म कुंडली से आप अपनी रुचिकर क्षेत्र को बेहतर तरीके से जान पाते हैं इसलिए इस दिशा में आप सही निर्णय लेते में सक्षम होते हैं
कुंडली मिलान के द्वारा आप अपने ऐसे जीवनसाथी को पा सकते हैं जो आपके लिए अनुकूल हो
जन्मपत्रिका से आप अपने मंगल दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष या अन्य दोषों के बारे में भी जान सकते हैं
कुंडली के द्वारा आप अपनी शारीरिक पीड़ा, रोग आदि के बारे में जान सकते हैं
कुंडली के द्वारा आप अपनी प्रकृति को जानकर उसी के अनुसार भोजन ग्रहण कर सकते हैं
कुण्डली आपको सही करियर, व्यवसाय, नौकरी को चुनने में मदद करती है
कुंडली के द्वारा आप शिक्षा क्षेत्र में सही निर्णय लेते हैं
कुंडली के द्वारा आप अपनी समस्याओं का भी समाधान जान सकते हैं
कुण्डली के द्वारा आप स्वयं का अच्छी तरह से आंकलन कर सकते हैं
कुंडली की सहायता से आप अपने अच्छे बुरे के बारे में जान सकते हैं
जन्मपत्रिका के माध्यम से आत्मज्ञान को प्राप्त करना संभव है
कुंडली में योग
कुंडली में योग होना जातक के लिये बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है। वैसे तो योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के माने जाते हैं लेकिन अशुभ योगों को दोष की संज्ञा दी जाती है। इसलिये योग से तात्पर्य यहां शुभ फलदायी संयोगों से है।
किसी भी जातक की कुंडली में जन्म के समय ग्रहों की जो स्थिति होती है। उनमें भावानुसार ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, एक दूसरे के भावों पर पड़ने वाली दृष्टि से योगों का सृजन होता है। जातक की जन्मकुंडली में योगों को भाग्योदय का कारण माना जाता है।
आप अपने आस पास देखते होंगे, महसूस भी करते होंगे कि कोई अचानक रातों रात ख्याति प्राप्त कर लेता है। कोई अचानक से धनवान बन जाता है, किसी को उम्मीद नहीं होती लेकिन वह व्यक्ति सत्ता पर काबिज़ हो जाता है। कोई अपनी एक साहित्यिक कृति से साहित्य जगत में अमर हो जाता है तो कोई सिनेमाई पर्दे पर अपनी एक झलक से भी लोगों को अपना मुरीद बना लेता है और रातों रात एक बड़ा सितारा बन जाता है। यह सब जातक की कुंडली में बनने वाले योगों व कारक ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है।
कुंडली में प्रचलित योगों के नाम
जातक की कुंडली में अनेक योग बन सकते हैं वैसे तो प्रत्येक ग्रह की दशा, स्थिति, गोचर, ग्रहों की युति एक प्रकार से योग का निर्माण करती है लेकिन कुछ योग जो काफी प्रचलित हैं उनमें से प्रमुख योगों के नाम इस प्रकार हैं।
गजकेसरी योग - यह योग चंद्रमा व गुरु से बनता है। जब चंद्रमा और गुरु किसी जातक की कुंडली में केंद्र में हो तो गजकेसरी योग का निर्माण करते हैं। चंद्रमा और शुक्र के केंद्र में होने पर भी कुछ विद्वान गेजकेसरी योग बताते हैं। यह बहुत ही शुभ योग माना जाता है।
बुधादित्य योग - यह योग सूर्य और बुध की युति पर बनता है जो कि सूर्य व बुध के लगभग साथ-साथ रहने से बना ही रहता है। बुधादित्य योग भी एक शुभ योग माना जाता है।
राज योग - यह योग तब बनता है जब बृहस्पति कर्क राशि में हो व कुंडली के भाग्य स्थान में शुक्र व सप्तम में शनि व मंगल विराजमान हों। ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि ऐसा जातक राजाओं की भांति सुखी जीवन व्यतीत करता है।
हंस योग, केदार योग, चक्र योग, एकावली योग, कारिका योग आदि अनेक प्रकार के योगों का निर्माण ग्रहों की स्थिति करती है।
कुंडली में दोष
कुंडली में ग्रहों की कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें ग्रह योग बना रहे हैं या दोष इसे लेकर विभिन्न विद्वानों की राय एक नहीं है। लेकिन अधिकतर इसी बात पर सहमत होते हैं कि एक योग कुछ विशेष परिस्थितियों में दोष बन जाता है (पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ने से) तो उसी प्रकार विशेष ग्रह दशा में अभिशाप भी वरदान साबित हो जाता है। नीच भंग राजयोग उन्हीं में से एक है। केमद्रुम योग की गिनती भी ऐसे ही योगों में होती है जो शुभ और अशुभ दोनों तरह से प्रभावी हो सकता है।
कुंडली दोष क्या है? कुंडली में कितने प्रकार के दोष होते हैं? कुंडली में दोष कैसे बनते हैं? क्या कुंडली में मौजूद दोषों का निवारण किया जा सकता है? जो भी जातक अपनी कुंडली दिखाना चाहता है उसका वास्ता इन सवालों से जरूर पड़ता होगा। असल में कुंडली बताती क्या है? आपका भविष्य! और आपका भविष्य कैसे निर्धारित होता है? वह होता है आपकी कुंडली में ग्रहों की दशा व दिशा से ग्रहों की यही दशा, स्थिति आपकी कुंडली में योग व दोष बनने का कारण बनती हैं। योग शुभ भी होते हैं और अशुभ भी जो अशुभ योग होते हैं उन्हें दोष भी कहते हैं? काल सर्प दोष, नाड़ी दोष, पितृदोष, श्रापित दोष आदि अनेक प्रकार के दोष कुंडली में देखे जाते हैं।
कैसे बनते हैं कुंडली में दोष?
कुंडली में दोष बनने का कारण ग्रहों की नकारात्मक स्थिति होती है। जब कोई ग्रह नीच भाव में हो या फिर आपके लग्न, राशि को पाप ग्रह सीधे देख रहे हों तो इस प्रकार की स्थितियां कुंडली में दोष उत्पन्न करती हैं। मान्यतानुसार यह दोष इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म से भी जुड़े हो सकते हैं। जब जातक की कुंडली में कोई दोष उत्पन्न हो रहा हो तो उक्त अवस्था में संबंधित ग्रह के शुभ फलमिलने की बजाय वह ग्रह नेगेटिव परिणाम देने लगता है।
कुंडली में दोष का समय कितना होता है?
यह कुंडली में बन रहे दोष की स्थिति पर निर्भर करता है। यह दोष अल्पकाल के लिये भी बन सकते हैं और दीर्घकाल के लिये भी। जो दोष जातक की जन्मकुंडली में बनते हैं यदि उनका उपाय न किया जाये तो ज्योतिषशास्त्र की मान्यताओं के अनुसार जातक के जीवन पर इन दोषों का प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहता है। मसलन मांगलिक दोष से मुक्ति पाने के लिये जातक को किसी मांगलिक से ही विवाह करना पड़ता है या फिर अन्य ज्योतिषीय उपाय करने पड़ते हैं। इसी प्रकार कालसर्प दोष से मुक्ति भी तभी मिलती है जब इस दोष का उपाय कर लिया जाये। इसी प्रकार यदि शनि से संबंधित दोष है तो इसकी अवधि भी लंबी होती है। साढ़े सात साल तक तो शनि की साढ़े साती प्रभावित करती है। जन्म के समय यदि कुंडली के किसी भाव में कोई ग्रह नीच अवस्था में है तो उस ग्रह का उस भाव में शुभ फल मिलता। श्रापित दोष किसी भी जातक की कुंडली में राहु और शनि की युति होने से बनता है। मान्यता है कि यह दोष जातक के पूर्वजन्मों के फल से बनता है।
क्या दोष के उपाय से मुक्ति मिल जाती है?
कहते हैं सवाल हैं तो जवाब भी जरूर होंगे, उसी प्रकार समस्या है तो समाधान भी जरूर मिलेंगें। कुंडली में मौजूद दोषों के निवारण के लिये भी ज्योतिषशास्त्र में अनेक विकल्प बताये जाते हैं। ग्रह विशेष की पूजा, ग्रह शांति पूजा, व्रत, स्नान, दान आदि के जरिये दोषों से मुक्ति के मार्ग बताये जाते हैं। लेकिन कुंडली में मौजूद दोष पूर्णत: समाप्त नहीं किये जा सकते हां कमजोर ग्रहों को बल देकर उन्हें निष्प्रभावी अवश्य बनाया जा सकता है।
कुंडली में दोष कैसे पता करें?
आपकी कुंडली में दोष हैं या नहीं यदि आपको कुंडली के विभिन्न पक्षों की गहनता से जानकारी है तो आप स्वयं भी तकनीकी लाभ लेकर अपनी कुंडली का आकलन कर सकते हैं लेकिन हमारी सलाह है कि जो गाइडेंस आपको ज्योतिषाचार्यों से मिल सकती है