ज्योतिष शास्त्र में शनि को कर्मफल दाता माना गया है और जातक की कुंडली में जब शनि की साढ़ेसाती लगती है, तो हमारे समाज में लोग शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही घबरा जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। पहले यह देखा जाता है कि कुंडली में ग्रहों की दशा कैसी है शुभ या अशुभ उसी के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। अगर जातक की कुंडली में शनिदेव की स्थिति मजबूत होती है, तो शनि की साढ़ेसाती में शुभ फलों की प्राप्ति होगीं।
हमारे ज्योतिषियों का मानना है कि शनि का गोचर हमेशा हर किसी के लिए अशुभ नहीं होता है, कुंडली में ग्रहों की दशा के अनुसार और ग्रहों की शुभ स्थिति होने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है। जब शनि की साढ़ेसाती में स्थिति अच्छी होती है तो जातक को अपार-धन, समृद्धि, मान-सम्मान, विवाह, भवन, वाहन, संतान-सुख आदि की प्राप्ति होती हैं।
अब हम आगे चर्चा करेंगे कि कुंडली में किस भाव या स्थान में होने पर शनि का फल शुभ और अशुभ होता है। ज्योतिष के अनुसार जिस राशि में शनि स्थित होता है, उससे तीसरी,सातवीं, दसवीं राशि पर पूर्ण दृष्टि बनाए रखता है और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की साढ़ेसाती सात वर्ष और ढैय्या ढाई वर्ष की होती है। जब गोचर में शनि किसी राशि से चतुर्थ, अष्टम भाव में होता है, तो यह स्थिति ढैय्या कहलाती है। जब शनि तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में हो तो साढ़ेसाती और ढैय्या से हमें चमत्कारी फल व जीवन में सफलता हासिल होती हैं। हमारे ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़ेसाती हर 30 वर्ष में आती है और शनि की महादशा 19 वर्ष की होती हैं।
ज्योतिषी के अनुसार अगर जातक की कुंडली में शुभ ग्रह की दशा या महादशा चल रही हो और उस समय शनि की साढ़ेसाती भी है तो ऐसी स्थिति में शनि की टेढ़ी दृष्टि कम होती है और जातक अपने कार्यों में सफलता जरूर हासिल करते हैं, लेकिन मेहनत थोड़ी ज्यादा कराता है।
अगर सनी जातक की कुंडली में तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें घर में उच्च के होते हैं तो जातक पर शनि की साढ़ेसाती होने पर भी शुभ फल मिलते हैं।
शनि की साढ़ेसाती का चन्द्रमा से सम्बंध
जातक की कुंडली में चंद्र राशि से शनि की साढ़ेसाती चल रही है और जन्म लग्न में इस प्रकार का कोई योग ना बन रहा हो, तो ऐसी स्थिति में शुभ फल की प्राप्ति होती हैं। *शनि की साढ़ेसाती के बारे