ब्रह्मज्ञानी की महिमा
ब्रह्मज्ञानी की महिमा
‘श्री सुखमनी साहिब’ में ब्रह्मज्ञानी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया हैः
ब्रह्म गिआनी का कथिआ न जाइ अधाख्यरु।। ब्रह्म गिआनी सरब का ठाकुरु।।
ब्रह्म गिआनी कि मिति कउनु बखानै।। ब्रह्म गिआनी की गति ब्रह्म गिआनी जानै।।
‘ब्रह्मज्ञानी के बारे में आधा अक्षर भी नहीं कहा जा सकता है। वे सभी के ठाकुर हैं। उनकी मति का कौन बखान करे? ब्रह्मज्ञानी की गति को केवल ब्रह्मज्ञानी ही जान सकते हैं।’ऐसे ब्रह्म ज्ञानी के, ऐसे अनंत-अनंत ब्रह्माण्डों के शाह के व्यवहार की तुलना किस प्रकार, किसके साथ की जाय?
शुकः त्यागी कृष्ण भोगी जनक राघव नरेन्द्राः।
वशिष्ठ कर्मनिष्ठश्च सर्वेषां ज्ञानीनां समानमुक्ताः।।
‘शुकदेव जी त्यागी हैं, श्री कृष्ण भोगी हैं, जनक और श्रीराम राजा हैं, वशिष्ठजी महाराज कर्मनिष्ठावाले हैं फिर भी सभी ज्ञानियों का अनुभव समान है।’
‘श्री योग वाशिष्ठ महारामायण’ में वशिष्ठजी महाराज कहते हैं-
‘ज्ञानवान आत्मपद को पाकर आनंदित होता है और वह आनंद कभी दूर नहीं होता, क्योंकि उसको उस आनंद के आगे अष्टसिद्धियाँ तृण के समान लगती हैं। हे राम ! ऐसे पुरुषों का आचार तथा जिन स्थानों में वे रहते हैं, वह भी सुनो। कई तो एकांत में जा बैठते हैं, कई शुभ स्थानों में रहते हैं, कई गृहस्थी में ही रहते हैं, कई अवधूत होकर सबको दुर्वचन कहते हैं, कई तपस्या करते हैं, कई परम ध्यान लगाकर बैठते हैं, कई नंगे फिरते हैं, कई बैठे राज्य करते हैं, कई पण्डित होकर उपदेश करते हैं, कई परम मौन धारे हैं, कई पहाड़ की कन्दराओं में जा बैठते हैं, कई ब्राह्मण हैं, कई संन्यासी हैं, कई अज्ञानी की नाईंविचरते हैं, कई नीच पामर की नाईं होते हैं, कई आकाश में उड़ते हैं और नाना प्रकार की क्रिया करते दिखते हैं परन्तु सदा अपने स्वरूप में स्थित हैं।’
“ज्ञानवान बाहर से अज्ञानी की नाईं व्यवहार करते हैं, परंतु निश्चय में जगत को भ्रांति मात्र जानते हैं अथवा सब ब्रह्म जानते हैं। वे सदा स्वभाव में स्थित रहते हैं और अनिच्छित प्रारब्ध को भोगते हैं, परंतु जाग्रत में सुषुप्ति की नाईं स्थित रहते हैं।”
ज्ञानवान को कैसे पहचाना जाय? तस्य तुलना केन जायते? उनकी तुलना किससे करें? इसीलिए नानकजी ने कहाः
ब्रह्म गिआनी की गति ब्रह्म गिआनी जाने।
‘ब्रह्मज्ञानी की गति को तो केवल ब्रह्मज्ञानी ही जान सकते हैं।’