आगरानामा के सम्मान में दो शब्द
श्री एसपी गौड़ आईएएस Retd
पूर्व मंडल आयुक्त आगरा
मई 2021
पूर्व मंडल आयुक्त आगरा
मई 2021
आगरा के मंडल आयुक्त के रूप में 1997-99 के दौरान तैनाती मुझे अपने सेवाकाल में सदैव एक सुखद यादगार के रूप में रहेगी। इसका कारण आगरा क्षेत्र का प्राचीन इतिहास गौरव और ऐतिहासिक स्मारक तो है ही, शहर की विभिन्न विभूतिया भी अपनी छाप छोडती हैं ।
आगरा प्रांत और अवध प्रांतों को मिलाकर वर्ष 1902 में संयुक्त प्रांत (यू पी) बनाया गया जो अब उत्तर प्रदेश कहलाता है। अविभाजित आगरा मंडल सात ज़िलों का एक पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण मंडल था। इन जिलों मेंआगरा का महत्व विशेष है। दिल्ली और जयपुर के साथ यह पर्यटन का त्रिकोण बनाता है। यमुना नदी के किनारे बसा यह शहर अपने आंचल में आगरा दुर्ग, ताजमहल, अकबर का मकबरा, और ऐतमाउददौला का मकबरा जैसी ऐतिहासिक इमारतें समेटे हुए है। तथापि आगरा का इतिहास मुगल काल से कहीं बहुत प्राचीन था जिस पर शोध करने वालों में सिरमौर थे श्री सतीश चंद्र चतुर्वेदी। उन्होंने सैकड़ों ग्रंथों और गजट इयर्स का अध्ययन कर 1994 में आगरा नामा का प्रकाशन कराया। इसमें आगरा के इतिहास के नए-नए तथ्य उजागर किए। इस नगर का संबंध रेणुका आश्रम एवं अन्य स्रोतों के माध्यम से महाभारत काल और पौराणिक काल से स्थापित किया। बाद मे यह भी उल्लेख आता है कि (सोमनाथ मंदिर के विध्वंसक) महमूद गजनवी ने आगरा दुर्ग को भी पूरी तरह बर्बाद किया था। मुगल काल के वर्णन को उन्होने बाबरनामा अकबरनामा और शाहनामा आदि के ऐतिहासिक तत्वों से प्रामाणिक बनाया है। दोनो अध्याय "अकबर और आगरा", "शाहजहां और आगरा" को उन्होंने शोध के आधार पर खूब मन लगाकर लिखा। ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजी राज में आगरा अध्यायों में शहर की इमारतों के निर्माण और अन्य गतिविधियों के बारे में खूब लिखा है। अंग्रेज लेखकों ने उत्तर भारत के इतिहास में मुगल काल के बाद सीधे ईस्ट इंडिया कंपनी को लाकर मराठा काल के साथ भारी अन्याय किया है। यहीं शिकायत चतुर्वेदी जी से भी रहेगी। उन के आगरानामा में भी मराठा काल का अध्याय छोटा रहा। आगरा पर मराठों का अधिकार वर्ष 1785-1803 के दौरान रहा। इस दौरान महादजी सिंधिया ने हिंदू तीर्थ स्थानों को मुस्लिम सत्ता से मुक्त कराने का भरसक प्रयास किया। कैलाश, रेणुका आदि स्थानों का जीर्णोद्धार और बलकेश्वर राजेश्वर कथा पृथ्वीनाथ महादेव मंदिरों का जीर्णोद्धार इसी काल का बताते हैं।
किनारी बाजार में स्थित उनका घर साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। इसी आकर्षण में मैं भी चतुर्वेदी जी के निवास स्थान में उनके दर्शन के लिए पहुंच गया। साहित्यिक आनंद तो मिला ही उन्होंने मुझे "आगरा नामा" की एक दुर्लभ प्रति भी भेंट की। पढ़कर समझ में आया कि कितने इतिहास ग्रंथों और गजटइयर्स की खाक छान कर उन्होंने आगरा के प्राचीन इतिहास को लिपिबद्ध किया है।
मुझे खुशी है कि नेशनल बुक ट्रस्ट आगरा नामा का तीसरा संस्करण प्रकाशित कर रहा है। ऐसा करके बुक ट्रस्ट न केवल आगरा क्षेत्र के निवासियों की सेवा कर रहा है बल्कि उन सब को सलाम कर रहा है जो इतिहास को साहित्य और शोध का अद्वितीय मिश्रण मानते हैं। श्री चतुर्वेदी जी जीवन पर्यंत ऐतिहासिक शोध और साहित्य लेखन में लगे रहे। उदीयमान लेखकों और कवियों को प्रोत्साहन स्वरूप पत्र-पत्रिकाओं और साहित्य प्रदर्शनों के मंच प्रदान किए। आगरा नामा हमेशा उनकी साहित्य सेवा की धरोहर के रूप में जाना जाएगा।