लेख

नारी सम्मान: घर से बाहर तक सपने उड़ान के

लेखक- सत्यम सौरभ

नारी समाज के लिए पुस्तक में लिखे अक्षर, माला में गुथे मोती तथा खेतों में हरियाली के समकक्ष है। इसकी महत्ता गुणवत्ता व विशिष्टता की प्रगल्भता का अंत नहीं है। स्त्री और पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिए है, यदि इस गाड़ी को समाज के प्रगति एवं तरक्की के पथ पर अग्रसर होना है तो दोनों पहिए को निरंतर समानांतर रूप से कार्य करने की अति आवश्यकता है। वर्तमान काल में महिलाएं समाज की सारी रूढ़िवादी परंपराओं तथा प्रथाओं को तोड़कर बेड़ियों से स्वतंत्र हो चुकी है और हर क्षेत्र में कदम रखकर जुझारूपन का लोहा मनवायी‌। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे पुरुष रूपी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है, वह शिक्षित, सजग व जागरूक के साथ अपने सामर्थ्य एवं अधिकार में पूर्ण ज्ञानी है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने के अलावा वह कई क्षेत्रों में आगे निकल चुकी है जहां व्यक्तित्व का निर्माण तथा प्रतिभा का पहचान करा रही है। शायद ही ऐसा कोई लोक रहा हो जहां स्त्रियों ने अपने अस्त्र-शस्त्र से विजय का परचम न लहराया हो।


औरतें घर के अंदर, चारदीवारी में बंद कई समस्याओं और मुसीबतों का सामना किया। पर्दा-प्रथा जैसी कुप्रथा लड़कियों को मानसिक रूप से शक्तिहीन तथा उनकी शिक्षा में विघ्न पैदा कर दिया था। कन्या-भ्रूण, बाल विवाह, बलात्कार, दहेज प्रथा जैसी समस्याओं ने लड़कियों के सपनों के पंख तोड़ दिए थे तथा जिंदगी को विध्वस्त कर दिया था। धर्मग्रंथ में अंकित है "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता:" आशय है जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है, किंतु दुर्भाग्यता तो यह है कि इतिहास में नारी शोषण कर उसे हाशिये पर ढकेल दिया गया था और कुछ मिथकों में अशुभ के रूप में दिखाया गया था।


कहते हैं "मन के हारे हार है मन के जीते जीत" यही मन की जीत लेकर सदियों से दास्तां की जंजीरों वाली मानसिकता से बाहर निकल चुकी है। आधुनिकतावाद के आगमन एवं शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं की स्थिति में हर संभव सुधार हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्र के समुचित उत्थान में उत्कृष्ट योगदान है। चिकित्सा हो या इंजीनियरिंग, सिविल सेवा हो या बैंक, पुलिस हो या फौज, वैज्ञानिक हो या व्यवसायी प्रत्येक क्षेत्र में अनेक पदों पर सम्मान के साथ विराजमान है एवं भागीदारी भी चरमोत्कर्ष पर है।

"मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है

पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है ।”

इन हौसलों से किरण बेदी, कल्पना चावला, मीरा कुमार, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, बचेंद्री पाल, संतोष यादव, सानिया मिर्ज़ा, साइना नेहवाल, पी.टी उषा, लता मंगेशकर आदि ने उड़ान भरी एवं क्षमता का प्रदर्शन किया। आज की 'स्त्री' में छटपटाहट है आगे बढ़ने की, जीवन एवं समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की, अपने अविराम अथक परिश्रम से पूरी दुनिया में नया सवेरा लाने की और एक ऐसी सशक्त इबारत लिखने की, जिसमें महिला को अबला के रूप में ना देखा जाए। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, न्यायिक, वैज्ञानिक आदि में भी अपना आधिकारिक रूप से पैर जमा चुकी है तथा नयी इबादत के साथ तत्परता से ऊंचाई की सीमा को चूमने में अग्रसर है।


"नारी का हर संभव सम्मान करो

उसकी उपलब्धियों का मान करो,

घर से बाहर तक कभी ना अपमान करो

सपने की उड़ान में हनुमान बनो।”


उनके दृढ़ शक्ति एवं संकल्प शक्ति इतनी प्रभावी हो चुकी है कि पुरुष प्रधान समाज कितना भी रोड़ा डाल दें ये मुकाम को हासिल करने में अड़िग तथा सफलता का तिरंगा फतह करने में आत्मनिर्भर हो चुकी है। घर से बाहर तक, श्रम से कौशल एवं भूतल से लेकर अनन्त तक हर कार्यों में निपुण हो चुकी है। अंततः यह कहना उचित होगा कि महिलाएं सपनों को साकार करने के लिए धधकती आग की लपटों से निकलकर सारे बाधाओं को तोड़कर जटायु रूपी विमान पर सवार होकर अलौकिक शक्ति के साथ विजयी मार्ग पर प्रशस्त है।


हमारी हिन्दी

लेखक- प्रणव माहेश्वरी

सिर्फ भाषा ही नहीं, यह एक पहचान है।

हिंदी से सिर्फ हम ही नहीं, पूरा हिंदुस्तान है।।

भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा “हिंदी” विश्व की भी चौथी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है। हिंदी हिंदुस्तान की संस्कृति का प्रतीक है। सम्पूर्ण राष्ट्र को एक साथ जोड़ती है हिंदी। हमारी हिंदी, हमें हमारे हिंदुस्तानी होने का एहसास कराती है।

हिंदी का इतिहास भी स्वयं में बहुत बड़ा है। पुरातन काल से चली आ रही वैदिक संस्कृत से प्राकृत व पाली भाषा का जन्म हुआ, जिनसे जन्मी अपभ्रंश 1000 ईस्वी तक भारत में अत्यधिक बोली जाने वाली भाषा रही। 900 से 1200 ईस्वी तक में खड़ी बोली का विकास हुआ जिससे उपजी हिंदुस्तानी भाषा। हिंदुस्तानी भाषा उर्दू और हिंदी का ही एक मेल है। 19वीं शताब्दी में हिंदुस्तानी भाषा से उर्दू और हिंदी अलग अलग हो गए और अस्तित्व में आई आज की मॉडर्न डे हिंदी।

विश्व भर में 32.2 करोड़ से अधिक लोग हिंदी व उससे संबंधित भाषाएं बोलते हैं। 2011 की मतगणना के अनुसार भारत में 24 करोड़ लोग जहां खड़ी बोली को मातृभाषा का दर्जा देते हैं, वहीं 1.6 करोड़ लोग छत्तीसगढ़ी, 98 लाख हरियाणवी, 95 लाख कन्नौजी, 56 लाख बुंदेली, 45 लाख अवधी व 43 लाख बघेली और सरगुजिया को और 15 लाख लोग ब्रजभाषा को मातृभाषा कहते हैं। यह सभी भाषाएं हिंदी की ही देन हैं।

हिंदी ने भारत की परंपरा को सदा से बांधकर रखा है। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकारा। ब्रिटिश राज में प्रयोग की जाने वाली भाषा से हिंदी को अपनाने तक का पथ सरल नहीं रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर जी, भारत के राष्ट्रीय कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त जी, श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी जी, श्री सेठ गोविंद दास जी आदि साहित्यकारों को साथ लेकर श्री व्यौहार राजेंद्र सिंह जी ने अथक प्रयास किए। 14 सितंबर को श्री व्यौहार राजेंद्र सिंह जी के जन्मदिन के अवसर पर ही संविधान सभा ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया और आज हम सभी 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं।

हिंदी भारत में ही बोली जाने वाली भाषा नहीं है बल्कि कई अन्य देशों में भी बोली जाती है। मॉरीशस में भोजपुरी आधारित व फ्रेंच प्रभाव से उपजी मॉरीशियन हिंदी बोली जाती है तो भारतीय सूरीनामी लोग सूरीनामी का प्रयोग करते हैं जो अवधि के प्रभाव से बनी है। फिजी में फिजी हिंदी का प्रयोग है जिसमें अवधी, भोजपुरी तथा इंग्लिश भाषा के शब्दों का मिश्रण है। वहीं त्रिनिदाद और टोबैगो में भी हिंदुस्तानी व गुजानी भाषा का प्रयोग है जो हिंदी से ही बनी है। भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोग भी दक्षिण अफ्रीकी हिंदी का प्रयोग करते हैं। कहने को तो कई विविध रूप है परंतु सब की जननी एक अर्थात हिंदी ही है। इसी विश्वव्यापी हिंदी के विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ। तब से इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

गर्व हमें है हिंदी पर, शान हमारी हिंदी है।

कहते सुनते हिंदी हम, पहचान हमारी हिंदी है।।

परंतु आज की हिंदी की स्थिति अत्यंत दुःखदायक है। हिंदी बोलने वाले तो कई हैं परंतु शुद्ध हिंदी तो विद्यालयों के हिंदी शिक्षक तक नहीं जानते। हम सभी ने हिंदी को उर्दू, अंग्रेजी, ऐसी ही कई अन्य भाषाओं के साथ जोड़ दिया है। आज के युवा को हिंदी बोलना शर्मसार करने लगा है। आज जो लोग हिंदी को मातृभाषा कहते हैं वे भी अंग्रेजी को अधिक महत्व देते हैं। कुछ लोग तो हिंदी बोलने वालों को गंवार तक समझते हैं। क्या हिंदी का कोई सम्मान नहीं है? हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाना चाहता है, उनमें भी द्वितीय भाषा कभी फ्रेंच चयनित की जाती है, कभी स्पेनिश तो कभी जर्मन, परंतु हिंदी को बहुत कम जगह मिलती है। भारत का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन आकाशवाणी कभी सभी की जुबान पर होता था पर आज इस हिंदी रेडियो स्टेशन की लोकप्रियता गुम हो चुकी है, दूरदर्शन जैसे हिंदी मनोरंजन के माध्यम भी अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं।

जैसे-जैसे हिंदी अपनी पहचान खोती जा रही है, हिंदुस्तानियों की पहचान भी जा रही है। यदि हम अपनी ही संस्कृति व भाषा को नहीं बचाएंगे तो ज्यादा समय नहीं लगेगा कि भारत इंग्लिस्तान बन जाएगा और भारतीय अपना इतिहास, समाज व पहचान भूल जाएंगे। विश्व में भारत को सर्वोपरि बनाना है तो पहले स्वयं की भाषा व अपने आदर्शों को उत्कृष्ट बनाना होगा क्योंकि हिंदी से हैं हिंदुस्तानी और हिंदुस्तानियों से है हिंदुस्तान।

न जिद छोड़ेंगे न जज़्बात,

हिंदी हैं हम हिंदी में करेंगे बात।।

पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान

लेखक - दीपक कुमार चौबे

प्रस्तावना (Introduction)-

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा| पंच रचित अति अधम सरीरा।।


अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु के सम्मिश्रण से यह अधम शरीर बनता है| जब भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान शब्द विचार में आता है, उपर्युक्त चौपाई (रामचरितमानस से) अनायास ही स्मरण आता है क्योंकि इसमें पृथ्वी, जल और वायु तीन तत्त्व तो प्रत्यक्ष रूप से निहित हैं लेकिन जब हम विज्ञान शब्द इसमें जोड़ देते हैं तो बाकी के दो तत्त्व आकाश और अग्नि भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान में ही समाहित हो जाते हैं| इसकी शाखाओं और उनके संक्षिप्त वर्णन से पहले "विज्ञान" शब्द पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं| "विज्ञान" दो शब्दों से मिलकर बना है, वि + ज्ञान अर्थात विशेष ज्ञान| वह सूचना या ज्ञान जिसे पांच शोध पद्धतियों (समस्या, परिकल्पना, प्रयोगीकरण, प्रेक्षण और निष्कर्ष) से परखा और समझा जाता है, उसे विज्ञान कहा जाता है| आज के युग में विज्ञान की शाखाओं के भी कई उपशाखाएं विकसित हो चुकी हैं और प्रत्येक पर अनेकानेक पुस्तकें लिखी जा रही हैं लेकिन ये लेख मुख्यतः पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान पर केंद्रित है|


पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान (Earth and Climate Science) -

पृथ्वी के भीतर के गहरे उपसतहोँ या परतों (Layers) जिसमें भूपर्पटी (Crust), आवरण (Mantle) और मूल भाग (Core) का अध्ययन भूगर्भ विज्ञान (Geology), गवेषणात्मक भूभौतिकी (Exploration Geophysics) और भूकंप विज्ञान (Seismology) द्वारा किया जाता है| गवेषणात्मक भूभौतिकी और भूकंप विज्ञान के अंतर्गत नियंत्रित (सक्रिय) ऊर्जा स्त्रोतों (controlled energy sources) या अनियंत्रित (अप्रतिरोधी) ऊर्जा स्त्रोतों (uncontrolled energy sources) का उपयोग किया जाता है जिससे उत्पन्न भूकम्पीय तरंगें पृथ्वी के विभिन्न भागों और अलग अलग गहराइयों से होकर पृथ्वी सतह पर मौजूद ग्राहक यन्त्र (Receiver or Geophone) या भूकंपमापी (Seismometer) पर अभिलेखित (record) किया जाता है और उनका विभिन्न स्तरों पर सत्यता का विश्लेषण करके परिणामस्वरूप पृथ्वी के विभिन्न परतों और गहराइयों के स्वरुप (Structure), प्रकृति (Nature) और संयोजन (Composition) निकाला जाता है| ऊर्जा स्त्रोतों में मुख्यतः प्राकृतिक भूकंप, कृत्रिम विस्फोट से उत्पन्न भूतरंग, मानव और महासागर इत्यादि द्वारा उत्पन्न शोर तरंगों से अध्ययन होता है| आज के प्रौद्योगिकी के समय में संगणकीय चित्रांकन (Computed Tomography), पृथ्वी अग्रेषित प्रतिरूपण (Forward Modelling) और व्युत्क्रम विधि (Inverse method) द्वारा पृथ्वी का उच्च गुणवत्ता युक्त (High quality) अध्ययन किया जाता है| भूगर्भ के पर्पटी से हमें जल, खनिज (Minerals), जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) प्राप्त होता है और इसी पर्पटी पर सभी जीव जंतु रहते और निर्माण कार्य करते हैं इसलिए वाह्य आवरण का अध्ययन आवश्यक हो जाता है और अगर अन्य गहरे परतों की बात करें तो तप्त ज्वालामुखी लावा (Volcanic eruption) भी निकलता है और इस ताप का प्रमुख कारण रेडियोधर्मी तत्त्व और उनके यौगिक हैं| इन आधुनिक और कृत्रिम विधियों द्वारा पृथ्वी के पुरा महाद्वीपीय निर्माण, आतंरिक ढांचा से लेकर अपेक्षाकृत नए महाद्वीपीय और महासागरीय निर्माण, आतंरिक ढांचा इत्यादि का अध्ययन किया जाता है| क्योंकि पृथ्वी का आतंरिक ढांचा जटिल है इसलिए त्रुटियां (सीमा के भीतर) (error within bounds) आना स्वाभाविक है जोकि विज्ञान के किसी भी शाखा के अध्ययन में होता है|

पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान वास्तव में अंतर्विषयी (interdisciplinary) विज्ञान है जो भौतिकी, रासायनिकी, जैविकी और गणित का एकीकृत रूप है| पृथ्वी के सतह पर सागर, महासागर, शैल या चट्टान, हिमनद, नदियाँ और उनके द्वारा काटे और लाये गए तलछट या अवसाद, पर्वत इत्यादि प्राकृतिक कृतियाँ हैं जिनके विस्तृत अध्ययन के लिए पृथक-पृथक विषय हैं| चट्टान या शैल की बात करें तो शैल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं: आग्नेय, अवसादी और कायांतरित शैल जिनके अध्ययन के लिए शैल विज्ञान (Petrology) है| हिमनद के उद्गम (Origin), बनावट (structure), उत्क्रांति (evolution) इत्यादि का अध्ययन हिमानिकी (Glaciology) में करते हैं| सौरमंडल के सभी ग्रह जिसका एक हिस्सा पृथ्वी है, भी अन्य पदार्थों की तरह रासायनिक तत्वों से मिलकर बना है| सौरमंडल के उद्भव, विभिन्न तत्वों की प्रचुरता और पृथ्वी के विभिन्न परतों में मौजूद तत्वों के उद्भव, प्रचुरता, भूगर्भीय प्रक्रियाएं, उनसे बनने वाले पदार्थों में मौजूद विभिन्न तत्वों की प्रचुरता, चट्टानों के अपक्षय (Weathering) और अपरदन (Erosion) इत्यादि का अध्ययन भूरासायनिकी (Geochemistry) में करते हैं जिसके लिए तत्वों के स्थिर (Stable) और अस्थिर (Unstable) समस्थानिकों (Isotopes), भूतैथिकी (भूकालानुक्रम) (Geochronology) इत्यादि साधनों के प्रयोग करते हैं| आधुनिक प्रौद्योगिकी (Modern Technology) के समय में अनुगम युग्मित प्लाज्मा द्रव्यमान वर्णमापी (ICP MS - Inductively coupled plasma mass spectrometer) का प्रयोग करते हैं जिसके प्रयोग से पदार्थों में स्थित निम्न से अतिनिम्न सांद्र तत्वों (less to ultra concentrated elements) का भी अध्ययन संभव हो सका है|

पृथ्वी का लगभग 70% भाग समुद्र और महासागरों से और 30% भाग भूमि से ढका है| अतः महासागरों के उद्गम, उनकी वर्तमान और भविष्य स्थिति, महासागरों में स्थित जीव जंतु, वनस्पतियों के भौतिक, रासायनिक, जैविक और गणितीय अध्ययन आवश्यक हो जाता है| महासागर विज्ञान (Oceanography) भूभौतिकीय द्रव गतिकी (Geophysical Fluid Dynamics), पारिस्थितिकी तंत्र (Eco system), प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate tectonics) जैसे विषयों का समायोजन है| महासागरीय पदार्थों का आज के प्रौद्योगिकी के विकास के दौर में संगणकीय प्रतिरूपण और व्युक्रमण सिद्धांतों के माध्यम से चित्रांकन करते हैं|

पृथ्वी के चारों तरफ विभिन्न तरह के वाष्प रुपी द्रव्य (Gas) का आवरण है जिसे वायुमंडल कहते हैं| वायुमंडल में विभिन्न परतें हैं: क्षोभ मंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल, आयन मंडल, वाह्य मंडल| वायुमंडल नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%) और अन्य वाष्प द्रव्य से मिलकर बना है| जलवायु विज्ञान के अंतर्गत वायुमंडल, मौसम, जलवायु इत्यादि के उद्भव (Origin), ढाँचे (Structure), गतिकी और उनके भविष्यवाणी आते हैं| वायुमंडल के अल्पकालिक (दैनिक,साप्ताहिक इत्यादि) और दीर्घकालिक (बहुवार्षिक) परिवर्तनशीलता को क्रमशः मौसम और जलवायु कहते हैं| इसके लिए अंकगणितीय संगणकीय प्रतिरूपण (Numerical computational modelling) और व्युत्क्रम सिद्धांत का प्रयोग करके मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणियां की जाती हैं| जलवायु विज्ञान (Climate Science) में वायुमंडल-जलमंडल, वायुमंडल-भूमण्डल के परस्पर क्रिया (interaction), जलवायु गतिकी (climate dynamics), उष्णकटिबंधीय संवहन (Tropical convection) और परिवर्तनशीलता (variability) का अध्ययन किया जाता है| पृथ्वी और जलवायु विज्ञान या और भी विज्ञान के शाखाओं में वैज्ञानिक समस्याएं अरेखीय (non linear) और जटिल (complex) होती हैं उनके हल सटीक (exact) और अद्वितीय (unique) नहीं होते लेकिन कालानुक्रम के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसन्धान उन्नत होते जा रहे हैं और ऐसे सिद्धांत और विधियां विकसित की जा रही हैं जिनकी गुणवत्ता और सटीकता दिनों-दिन बढ़ रही है|

क्योंकि पृथ्वी और जलवायु करीब 4.5 अरब वर्ष आयु के हैं और समय के साथ पृथ्वी के ताप गतिकी, महासागर-महाद्वीप स्थिति परिवर्तन, जीवों के लिए अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियां उत्पन्न होती रही हैं और उनके मूलभूत ढाँचे और संयोजन में परिवर्तन होता रहा है| इसलिए पृथ्वी और जलवायु विज्ञान का एक प्रमुख आधार ये भी है के वर्तमान काल को भूत काल से जोड़ने का प्रयास किया जाये| चाहे वो वर्तमान जीव-जंतु, वनस्पति को भूत काल के जीव-जंतु, वनस्पति से जोड़ने का हो या पृथ्वी और जलवायु के ढाँचे और संयोजन को भूत काल से जोड़ना हो, पृथ्वी और जलवायु विज्ञान इस दिशा में सदैव प्रयासरत रहता है| वर्तमान जीव-जंतु, वनस्पति को भूत काल के जीव-जंतु, वनस्पति से जोड़ने के विज्ञान को पुराजैविकी (Paleobiology) कहते हैं| इसमें पुराने काल के जीवों के मूल (Origin), ढांचा (Structure) और उत्क्रांति (Evolution) का अध्ययन होता है और उसके माध्यम से पृथ्वी के अतीत को समझने का प्रयास किया जाता है|


उपसंहार (Conclusion) -

पृथ्वी और जलवायु विज्ञान एक उभरता हुआ विज्ञान है जो पृथ्वी, वायुमंडल, जलमंडल और जीवमंडल इत्यादि के संतुलन के अध्ययन का अवसर देता है| इसके लिए भौतिकी, रासायनिकी, जैविकी, गणित और उन्नत संगणकीय कूट-संकेतन (advanced computational coding), कार्यक्रम-निर्माण (programming) की आवश्यकता होती है| चाहे वो भूजल, खनिज और जीवाश्म ईंधन हो या क्षेत्रीय-सुदूर (local-regional) और अल्प-अति भूकम्पीय जोखिम क्षेत्रों (Hazard areas) के निर्धारण निर्माण कार्य हेतु हो, पृथ्वी और जलवायु विज्ञान ने सदैव एक आदर्श पथप्रदर्शन का प्रयास किया है| जलवायु परिवर्तन आम जनता और वैज्ञानिकों के लिए एक ज्वलंत और मुख्य विषय रहा है| वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण से उत्पन्न विभिन्न प्रभावों जैसे की महासागरों के जलस्तर, उनके संयोजन और प्रकृति में परिवर्तन, हिमनद का पिघलना, ताप वृद्धि, प्राणवायु ऑक्सीजन के स्तर में परिवर्तन इत्यादि का अध्ययन पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान से ही संभव है| अन्य प्रभाव भूस्खलन, बाढ़ प्रबंधन, सुनामी, मृदा विघटन इत्यादि भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान के अध्ययन में निहित हैं| विज्ञान की भी कोई सीमा नहीं है और यह मानवता के मूल संस्कार और आधार (वसुधैव कुटुम्बकम - पूरी पृथ्वी ही हमारा परिवार है) का अक्षरशः पालन करने की दिशा में सदैव अग्रसर है|

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

(महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१)


नोट - क्योंकि ये एक लघु लेख है, विस्तृत वर्णन नहीं हो सका है और पृथ्वी और जलवायु विज्ञान के कई अन्य उपशाखाएं हैं जिनका यहां वर्णन नहीं किया गया है, मुख्य शाखाओं के वर्णन का प्रयास किया गया है| कुछ हिंदी शब्द क्लिष्ट हैं लेकिन कोशिश किया गया है विज्ञान को हिंदी में परिवर्तित किया जाए ताकि अंग्रेजी न जानने वाले आम हिंदी भाषी भी इसे यथा सामर्थ्य समझ सकें| किसी भी त्रुटि और कमी के लिए लेखक क्षमा प्रार्थी है|

सम्मान : विज्ञान और महिलाएं

लेखक- अनुराधा मीना

तू ही धरा, तू ही सर्वथा।

तू बेटी है, तू ही आस्था।

तू नारी है, मन की व्यथा।

तू ही परंपरा, तू ही प्रथा।

आज के युग में नारी घर के साथ सभी क्षेत्रों में अपना स्थान बना चुकी है। दुनिया का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं ने खुद को साबित नहीं किया हो, महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा हर क्षेत्र में शक्ति की तरह स्थापित किया हैं । महिलाएं , देश, समाज, और परिवार का मुख्य आधार होती हैं । महिलाएं समाज को सभ्य बनाने से लेकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । आज महिलाओं का योगदान सभी क्षेत्र में अहम हैं ।

आज पहले की तुलना में महिलाएं आत्मनिर्भर और सक्षम हैं एवं पुरुषों की तरह राजनीति, विज्ञान, आर्थिक, सामाजिक सभी क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण निभा रही हैं। इस बात को नहीं नकारा जा सकता आज महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आया हैं । लोग अपनी घर की बेटियों और बहुओं की शिक्षा के लिए आगे बढ़ रहें है। आज देश के उच्च पदों पर महिलाएं शोभायमान हैं।

हमारी भारतीय संस्कृति में महिलों के महत्व को बताया गया हैं एवं उन्हे देवी का रूप बताया गया हैं। हिन्दू शास्त्रों में और पुराणों में महिलाओं को अदम्य शक्ति का वर्णन किया गया हैं । महिला, एक माँ , बहन, बेटी, बहु कई रूपों मे अपना कर्तव्य निभाती है और संस्कारी एवं सभ्य समाज की निर्माण करती है। वास्तव में नारी सूरज की सुनहरी किरण और प्रेम का आगार है।

हम सभी को महिलों के महत्व को समझना चाहिए एवं उन्हे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। प्रत्येक देश के दो पंख होते है एक स्त्री और दूसरा पुरुष । देश की उन्नति एक पंख के उड़ान भरने से नहीं हो सकती है। लेकिन अभी भी दुनिया के उन्नत देशों में भी महिला सशक्तिकरण की स्वीकृति पर सवाल है , जबकि राजनीतिक दबाव में विकासशील देशों और राष्ट्रों तो महिला समानता के अधिकार को पूर्ण रूप से स्वकारने से काफी दूर हैं। लेकिन अब बीते कुछ सालों से इसमें थोड़ा - थोड़ा बदलाव आ रहा है। इसलिए महिलाओं के सम्मान के प्रति सभी को जागरूक होने की जरूरत हैं ।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। यू . आइ . एस के आकड़ों के अनुसार, विश्व के कुल शोधकर्ता का ३० % शोधकार्ताएं महिलाएं हैं । और भारत में कुल शोधकर्ताओं का १४ % महिलाएं हैं। नेशनल साइंस फ़ाउंडेशन के २०१५ के आकड़ों के अनुसार ६० % महिलाएं स्नातक स्तर की डिग्री और ४६ % महिलाएं डॉक्टरेट डिग्री करती हैं। अभी महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं । १९०१ -२०१० के बीच विश्व की ४० महिलाओं को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका हैं । अभी महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र मे प्रगति कर रही हैं ।

शोध-विकास में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

  • कुल २.८ लाख वैज्ञानिक, इंजीनियर व तकनीकी शोधकर्ताओं में १४ फीसदी महिलाएं हैं।

  • महिलाओं की भागीदारी का वैज्ञानिक संस्थानों में २८.४ फीसदी वैश्विक औसत है।

  • देश के वैज्ञानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में २५ फीसदी महिला कर्मी हैं।

  • ८ फीसदी महिलाएं इसरो के वैज्ञानिक और तकनीकी स्टॉफ में महज हैं ।

विज्ञान मे महिलाओं की बढ़ती भागीदारी----

  • ४९ फीसदी तक पहुंची बीएससी में लड़कियों की संख्या

  • २९ फीसदी तक पहुंची बीटेक में लड़कियों की भागीदारी

  • ४५ फीसदी महिलाएं गणित में पीएचडी करने वालों में

  • ३६ फीसदी भागीदारी महिलाओं की विज्ञान की पीएचडी में

२०१७ में आइ. आइ . टी के कुल छात्रों में १० फीसदी के करीब लड़कियाँ थी। लड़कियों की तकनीकी और विज्ञान में भागीदारी बड़ाने के लिए आइ. आइ . टीज में लड़कियों के लिए ७८० बढ़ाई गई हैं।

आपने हमेशा ही विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी मशहूर भारतीय हस्तियों के बारे में सुना होगा। लेकिन कुछ ऐसी भारतीय महिलाएं हैं, जिनका काम ही उनकी पहचान है, जैसे :- एडा लवलेस टेसी थॉमस , असीम चटर्जी (कार्बोनिक रासायनिक वैज्ञानिक), डॉ इंद्रा (गायंकॉलोगीस्ट), शुभा टोल(न्यूरोसाइंस), दर्शन रंगनाथ( जैव कार्बोनिक रसायन विज्ञान) आदि । देश - विदेश की अनेक महिलाओं ने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है जिसका शायद हमे अंदाजा भी नहीं हैं।

रितु करिधल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो : इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत रितु करिदल चंद्रयान -२ की मिशन निदेशक रही हैं। वह मार्स ऑर्बिटर मिशन की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर भी रही हैं। करिधल ने चंद्रयान-२ की शुरुआत करने वाली महिला के रूप में प्रसिद्धि पाई। भारतीय विज्ञान संस्थान से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री करने वाली करिधल भारत के मंगल मिशन को डिज़ाइन करने के लिए काफी सराहना पा चुकी हैं। २००७ में इसरो का यंग साइंटिस्ट अवार्ड जीत चुकीं करिधल इसरो में २२ साल से सेवाएं दे रही हैं।

नंदिनी हरिनाथ, रॉकेट वैज्ञानिक, इसरो : बेंगलुरु में इसरो सैटेलाइट सेंटर के एक रॉकेट वैज्ञानिक, नंदिनी ने २० वर्ष पहले यहां अपनी पहली नौकरी शुरू की थी। इस दौरान वह १४ मिशनों पर काम कर चुकी हैं। वह मंगल यान मिशन के लिए डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर थी।

डॉ. गगनदीप कांग, एफआरएस : रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ माइक्रोबॉयोलॉजी की फेलो बनने वाली पहली भारतीय महिला डॉ. कांग, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की कार्यकारी निदेशक हैं। देश में डायरिया रोकने के लिए भारतीय बच्चों के हिसाब से रोटावायरस वैक्सीन विकसित करने का श्रेय डॉ. गगनदीप कांग को जाता है। डॉ. कांग टाइफाइड निगरानी नेटवर्क और हैजा के लिए एक रोडमैप तैयार कर रही हैं। कांग अब दशकों से बच्चों में आंत के संक्रमण का अध्ययन कर रही है।

डॉ. टेसी थॉमस, विशिष्ट वैज्ञानिक, डीआरडीओ : टेसी थॉमस हाल ही में तब चर्चा में आई जब उन्हें १६ आईआईटी की बॉडी में बतौर डायरेक्टर नियुक्त किया गया। टेसी, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के लिए मिसाल हैं। टेसी के जीवन का शुरुआती हिस्सा एक रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन के करीब गुजरा। बचपन से ही टेसी को रॉकेट और मिसाइल में दिलचस्पी थी, बाद में यही उनके करियर का लक्ष्य बन गया। जाहिर तौर पर डीआरडीओ के अग्नि-४ मिसाइल परियोजना की डायरेक्टर बनना उनके इसी सपने और मेहनत का नतीजा था। वैसे टेसी ने अपना करियर बतौर वैज्ञानिक १९८८ में शुरू किया था। टेसी ने अग्नि ३ के सफल परियोजना में बतौर एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम किया। मिसाइल के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें 'अग्निपुत्री' के नाम से भी जाना जाता हैं । टेसी उन भारतीय छात्राओं के लिए मिसाल हैं, जो 'त्रिशूर' जैसे छोटे से शहर से निकलकर अपने सपनों की मंज़िल हासिल कर लेती हैं। मिसाइल क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए टेसी को लालबहादुर शास्त्री नेशनल अवॉर्ड प्रदान किया गया है।

डॉ. चंद्रिमा शाह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी : डॉ. चंद्रिमा शाह को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। चंद्रिमा राष्ट्रीय इम्यूनोलोजी संस्थान, दिल्ली में प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस हैं और वे इस संस्थान की निदेशक भी रह चुकी हैं। उन्होंने १९८० में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बॉयोलॉजी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में स्टाफ साइंटिस्ट के रूप में शामिल हुईं। उन्होंने ८० से अधिक शोध पत्र भी लिखे। उन्होंने भ्रूण प्रत्यारोपण के तंत्र पर काफी काम किया है।

डॉ. अनुराधा टीके, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो : इसरो सैटेलाइट सेंटर में जियोसैट कार्यक्रम निदेशक डॉ. अनुराधा टीके उपग्रहों की निगरानी का काम करती हैं। वह १९८२ से इसरो को सेवाएं दे रही हैं और सबसे वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक हैं। उन्होंने इसरो संचार उपग्रह जीसैट-१२ को विकसित करने और लांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुराधा ने सितंबर २०१२ में जीसैट -१० के लॉन्च का नेतृत्व किया। इसरो में परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने जीसैट-९ , जीसैट-१७ और जीसैट-१८ संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण की सफलता में योगदान रहा।

डॉ. एन. कालीसल्ल्वी, निदेशक, सीएसआईआर-सीईसीआरआई : सीएसआईआर-केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीईसीआरआई) की निदेशक डॉ. एन. कालीसल्ल्वी इस पदभार को संभालने वाली पहली महिला हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी के २५ से अधिक वर्षों के अनुसंधान कार्य मुख्य रूप से विद्युत ऊर्जा प्रणालियों और विशेष रूप से केंद्रित हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी अब तक १२५ से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी हैं और उनके पास छह पेटेंट हैं। वह कोरिया के ब्रेन पूल फेलोशिप और मोस्ट इंस्पायरिंग वुमन साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजी जा चुकी हैं।

एडा लवलेस, डीआरडीओ के अग्नि- मिसाइल परियोजना की डायरेक्टर: एडा लवलेस एक ऐसी वैज्ञानिक महिला थीं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में काफी काम किया। उनके काम को याद करते हुए १४ अक्टूबर को संसार भर में इस दिन को साइंस, इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी और गणित में महिलाओं के योगदान के लिए याद किया जाता है।

यह तो सिर्फ कुछ ही उदारण हैं । रिपोर्ट बताती हैं कि देश के वैज्ञानिक संस्थानों में महिलों की भागीदारी दुनिया में औसत हिस्सेदारी आधी हैं। हालांकि, तमाम ऐसे महिला वैज्ञानिक है जो भिविन्न संस्थानों में नेतृत्त्व की भूमिका संभाल कर देश का माँ बड़ा रही हैं। और यह उम्मीद की जा रही है की आने वाले समय में उनकी भागीदारी विज्ञान में बड़ेगी

प्रेमचंद

लेखक- मोहित सिंह व सचिन बतर

"सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है " ~ प्रेमचंद

अगर बात हिन्दी गद्य की होती है तो मुंशी प्रेमचंद जी उसमें शीर्ष स्थान पर विराजते हैं। दिनांक ३१ जुलाई १८८० को बनारस, उत्तरप्रदेश में जन्मे हिंदी भाषा के इस पुजारी को जीवन ने समाज के सभी विषयों पर लिखने की एक अनोखी प्रतिभा के साथ इस जगत में विख्यात किया है। हिंदी लेखन को पसंद करने वालों ने इनकी कहानी ना पढ़ी हो ऐसा असम्भव ही है। गोदान जैसे उपन्यास का शीर्षक सुनते ही जीवन के कष्टों का सिनेमा सामने चलने लगता है। हर मनुष्य के जीवन में कष्ट हैं मगर गरीबी का अभिशाप भी हो तो दुख जीवन का एक हिस्सा बन जाता है। उस सदैव चलने वाले दुख के प्रवाह में चार बूंद खुशियों की खोज निकालने की कला थी प्रेमचंद जी में। प्रेमचंद जी समाज के हर पहलू का आइना देख सकते हैं और उसमें बहते हुए आपकी (प्रेमचंद जी की) आंखों के अश्रु को भी देखा जा सकता है ।

"संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता जितना दबो उतना सब दबाते हैं" ~ प्रेमचन्द

'नमक का दरोगा' कहानी जो मुंशी प्रेमचंद जी के द्वारा लिखी गई है उसका उद्देश्य है ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना, जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आज तक अपना समाज संघर्ष कर रहा है। १०० से भी ज्यादा कहानियां लिखकर हिंदी जगत को अमर कर जाने वाले प्रेमचंद जी का लेखन और संपादन काफी उल्लेखनीय रहा है। मानवतावादी लेखक प्रेमचंद जी को फिल्म नगरी रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबंध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए

"अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।" ~ प्रेमचंद

लिखना एक कला है और जब समाज में पढ़ना कुछ वर्गों तक ही सीमित हो, तब गरीब और दुखियारे की आवाज़ बन, साहित्य के माध्यम से उसके विचारों और व्यथाओं को इतिहास में दर्ज करना एक लेखक का कर्तव्य है। पेशे से अध्यापक रहे मुंशी प्रेमचंद के जीवन में लिखना कुछ ऐसा ही था और उनकी प्रगतिशील सोच ने गरीब के दुखों और कष्टों को अच्छी तरह शब्दों मे उकेरा है ।

"मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।" ~ प्रेमचंद

प्रेमचंद जी जीवन भर हर पहलू पर प्रकाश डालने की कोशिश करते रहे और उन्होंने मानव संबंधों पर बहुत ही उत्तम लेखन कार्य किया है इसीलिए उन्हें अपने जीवन काल में ही कथासाम्राट कहा जाने लगा था। उनके विचार आज तक समाज का मार्गदर्शन कर रहे हैं। हिंदी के इस महान लेखक को हम अपने ह्रदय से नमन करते हैं।

जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्‍जत ढोंग है।" ~ प्रेमचंद

सम्मान: बेटियां भविष्य हैं

लेखक- दीपक कुमार चौबे

प्रस्तावना - बहुत ही प्राचीन काल से हमारा समाज पुरुषप्रधान रहा है। पुरुषों को बलशाली और श्रेष्ठ माना गया। उन्हें परिवार का भविष्य, वंश का उत्थान और आगे बढ़ाने वाला माना गया। इन्हीं कारणों की वजह से लडकियों को पैदायशी कमजोर माना गया। हमारे देश भारत में तो इसका सबसे ज़्यादा प्रभाब देखा गया है। महिलाओं को परंपरा और समाज की ज़ंजीरों में जकड़ कर रखा। पुरुषों को विशेष सम्मान, घर के मुखिया और नायक के तौर पर समाज में जगह मिली। देखते ही देखते पुरुष-प्रधान समाज अपनी श्रेष्ठता और महानता के कारण महिलाओं पर हावी होने लगा। अब इसे समाज की मानसिकता कह सकते है की महिलाओं को सिर्फ भौतिक भोग विलास की वस्तु माना गया और उन्हें अपने आपको उभरने के ज़्यादा मौके नहीं दिए गए। लेकिन अब समाज में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है, महिलाए आगे बड़ रही है । और हम कह सकते हैं की इसमें भी महिलाओं का ही योगदान है जिन्होंने खुद को हर मुकाम पर साबित किया है ।

समाज के दो मुख्य स्तम्भ - पुरुष और स्त्री किसी भी परिवार और समाज के मौलिक इकाई हैं। ये दो स्तम्भ प्रकृति द्वारा निर्मित है लेकिन इसमें प्राचीन काल से ही छेड़-छाड़ करने की कोशिश की गई। हम सब लोगो ने प्राचीन पुस्तकों, पुराणों में माँ शक्ति, दुर्गा, काली के बारे में पढ़ा है और उन्हें पूजते आये हैं लेकिन कुछ ऐसे काल-खंड आये जहाँ महिलाओं की सहनशीलता और उनके त्याग भावना का फायदा उठाया गया और उन्हें नियंत्रण और दबाके रखने के लिए पुरुषों द्वारा समय समय पर अनावश्यक नियम बनाये गए। अग्नि परीक्षा, सती-प्रथा, विधवा प्रथा, तीन-तलाक, एक से ज़्यादा पत्नी रखने, भ्रूण हत्या जैसे कुरीतियों का जन्म हुआ और उन्हें इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी। कुछ ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई जिसमें महिलाओं के साथ दुराचार, बलात्कार हुए जिससे महिलाओं पर समय के साथ और कई तरह की पाबंदियां लगाई गई। हम कह सकते हैं इसमें पुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और धर्म गुरुओं और मौलानाओं ने तो बड़ी चालाकी से इसमें हेर फेर किया है। ये दो स्तम्भ व्यक्तिरुपी समाज के दो पैर की समान हैं और दोनों का बराबर और मजबूत रहना बहुत आवश्यक है, नहीं तो हमारा समाज अपंग हो जाएगा। लेकिन हमें गर्व है कुछ वीरांगनाओं, समाज सेविकाओं और समाज सुधारकों के अमिट और अतुलनीय कार्यों से महिलाओ को उभरने का मोका मिल रहा है। प्राचीन कालखंड में माता सती, लक्ष्मी बाई हों या फिर नए समय में मदर टेरेसा, कल्पना चावला, सौम्या स्वामीनाथन हों, सभी ने समाज को अपंग होने से बचाया है और नया आइना दिखाया है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा था -

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत।

अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजाम्यहम।।

इसका अर्थ है की जब जब धर्म की हानि होगी, तब-तब इस समाज को अधर्म से उभरने के लिए मै जन्म लूँगा। ठीक ऐसे ही समय समय पर ऐसे महान महिला व्यक्तित्वों ने जन्म लिया।

बेटियां-सुनहरे भविष्य के बीज ------

मैंने किसी भी बड़ी और कठिन राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में महिलाओं को सर्वोच्च स्थान पाते देखा है। उदाहरण के तौर पर पिछले कुछ वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग परीक्षाओं में महिला टॉपर रही है। टीना डाबी, अर्तिका शुक्ला टॉपर थी और काफी चर्चाओं में हैं । इस वर्ष जो संघ लोक सेवा आयोग के परिणाम आये हैं या फिर अभी एक हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (पी सी एस ) में प्रथम पांच में से तीन स्थानों पर महिलाओं ने सफलता पायी है जो की आज के समाज के लिए मिसाल हैं। खेल कूद में भी मेरीकॉम, साक्षी मलिक, गीता फोगाट, बबिता फोगाट, दीपिका पल्लीकल, ज्वाला गट्टा, अंजू बॉबी जॉर्ज और भी कई सारे महिलाओं ने भारत का नाम खेलकूद में रोशन किया है और भारत की मान रखा है, इनके जीवन संघर्ष और सफलता पर चलचित्र भी बनाए गए हैं। विज्ञानं-तकनीकी, शोध कार्य में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। मंगल मिशन की कामयाबी में परियोजना और क्रियान्वयन प्रमुख महिला ही थी, जिन पर मिशन मंगल नाम का चलचित्र भी निर्मित किया गया है। हवाई जहाज परिचारिका (एयर होस्टेस) में महिलाएं होती हैं जिन पर नीरजा नाम का चलचित्र का निर्माण किया गया है। बातों ही बातों में चलचित्र की बात छिड़ गई है । पहले के समय पुरुष प्रधान (नायक रुपी) चलचित्र बनाए जाते थे और आज महिला प्रधान अनगिनत चलचित्र बन रहे है और सफल हो रहे है। उनके चित्रण को जीवंत करने वाली आज कई प्रतिभाशाली महिला-अभिनेत्रियाँ और निर्देशिकायें हैं। आज का दौर ऐसा है की जीवन के विभिन्न आयामों और दिशाओं में देखने पर महिलाएं ही सबसे आगे दिखती हैं। उनके बारे में बात किये बिना समाज के बारे में चर्चा अधूरी से लगती है। कोरोना संक्रमण में महिला चिकितसकों और उपचारिकाओं ने अपने आरामदायक जीवन को जोखिम में डालकर, मरीजों की सेवा की और कुछ महिलाओं अपनी जान से भी हाथ धो बैठी । ज़रूरत है तो हमे अपनी सोच बदलने की, आज भी कुछ कुरीतियां हमारे समाज में बची हुई हैं जैसे लिंग के आधार पर भेद भाव करना, हमें इसे जड़ से उखाड़ फेकना है, और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। बेटियां हमारा भविष्य हैं उनके पैदा होने पर खुशियां मनाएं और उन्हें इस काबिल बनाएं की उन्हें किसी और के सहारे की ज़रूरत न पड़े और किसी के सामने आंसू न बहाने पड़े क्योंकी आज का माहौल ऐसा है की -

आंसू आते हैं तो खुद से पोंछ लो, लोग आंसू पोछेंगे तो सौदा करेंगे।।

कहने का तात्पर्य है की उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए, बराबर का दर्जा दिया जाए और सम्मान की दृष्टि से देखा जाए।

सम्मान: घर से बाहर तक सपने उड़ान के

लेखक- हितेश कुमार

महिलाओं के संदर्भ में पुराने जमाने की घर की परिभाषा को देखा जाए तो वह एक काले तहखाने के समान है जिसके बाहर कदम रखने की चाह-चाह में ही उनकी सारी जिंदगी गुजर जाती थी। उस दौर में चौबीसों घंटे एक चारदिवारी व हर वक्त पर्दे के पीछे रहना किसी पिंजरे में कैद भूखे पशु से कम नहीं था, जो हर वक्त आजाद होने का ख्वाब देखता रहता है।


महिलाओं के प्रति ऐसी रूढ़िवादी धारणा धीरे-धीरे बदली जरूर है पर महिलाओं को आदमी के जितना समान दर्जा मिलने में बहुत समय लग गया, और इसी परिवर्तन का नतीजा है की आज महिलाओं को हर समाज हर चित्तार में महिलाओं को भी वही दर्जा दिया जाता है जो पुरुषों को दिया जाता है। वह भी पुरुषों की तरह आजाद जिंदगी जी सकती है, अपना लक्ष्य अपनी इच्छा अनुसार चुन सकती है और किसी भी चित्तार में अपना लोहा मनवा सकती है। इस बदलाव का कुछ श्रेय उन महिलाओं को भी जाता है जिन्होंने अपने समय में कठिन परिस्थितियों का सामना किया और आगे चलकर देश का नाम रोशन किया और ऐसी ही हजारों लाखों लड़कियों के अंदर एक ज्वाला उत्पन्न करी। ऐसी प्रेरणादायक महिलाओं के नाम से आज हर व्यक्ति वाकिफ है।

शिक्षा जगत में सावित्रीबाई फुले एक ऐसा नाम है जिसने देश की पहली पढ़ी-लिखी महिला होने का दर्जा हासिल किया तो अनेकों महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बनी। विज्ञान में मैडम क्यूरी ,राजनीति में सुषमा स्वराज खेल जगत में पीटी उषा और हिमा दास जैसी महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है।

हिंदी में एक कहावत है कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ सकता। इस कहावत के विपरीत चलते हुए इन महिलाओं ने दिखा दिया है कि‌ अगर आपने कुछ कर दिखाने का हौसला व शक्ति है तो आप वो हर मुकाम हासिल कर सकती है, और अकेले ही 100 के बराबर हो जाती है, और ऐसी ही 100 महिलाओं को जीवन जीने का जरिया प्रदान करती है।

पिछले कुछ 10-20 सालों में देखा जाए तो हर चितार में महिलाओं का योगदान बढ़ा है, चाहे वह शिक्षा दर में देखा जाए या उद्योगी करण में। समाज की खुली धारणाओं के मद्देनजर ही आज ‌लड़की बड़े शहरों में जाकर पढ़ पा रही है और अपने परिवार, समाज का नाम रोशन करने के साथ-साथ एक मिसाल भी कायम कर रही है। बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाकर देखा जाए जहां ब्वॉय-गर्ल रेश्यो काफी कम रहता था वहां आज की तारीख में बहुत बढ़ गया है। अब वह छोटे सपने कहीं कोने में ख्वाब बनकर नहीं मर रहे हैं अब उन्हें पंख देने की धारणा ने एक बाद में बदलाव कायम किया है जो भविष्य में और आगे बढ़ेगा और देश को आगे बढ़ाने में जरूर कहीं ना कहीं मददगार होगा। आज महिला कहीं पायलट बनकर आसमान छू रही है तो कहीं बॉर्डर पर देश की रक्षा में अपना योगदान दे रही है।

आज के इस आधुनिक युग ने हर दर्जे की महिलाओं के लिए खजाने का पिटारा खोल दिया है। महिलाएं अपनी इच्छा अनुसार अपना एक छोटा बिजनेस तक चला सकती है और अपने कौशल को मजबूत बनाकर समाज में नाम कमा सकती है। और आज भी कईं ऐसे उदाहरण मिल सकते हैं जहां पर अभी तक यह तुच्छ धारणा अपने ‌कदम जमाए खड़ी है और कुछ महिलाएं और लड़कियां अभी तक देश आजाद दुनिया में जीने का सपना देख रही है। ऐसा है कि यह अवधारणा जल्द ही अपना रुख बदलेगी और हर घर की बहू बेटी को एक स्वतंत्र दुनिया में जीने का अवसर प्रदान होगा।

बकवास

लेखक- विक्रम अय्यर


एक दिन मन में ख्याल आया कि चलो कथा लिखेंसर्वप्रथम सोचा पुराने अंदाज़ में लिखूं, पुस्तक-कलम सहित। पर आधुनिकता के रोग ने हमारे संसार को (और मुझे) अपनी जटाओं में बांध रखा है, और कुछ ही शब्दों के बाद मेरा दिमाग मेरे हाथ से अधिक शीघ्रता से दौड़ने लगा। अब मेरे लैपटॉप पर हिन्दी कीबोर्ड तो उपलब्ध नहीं है, तो फ़ोन पर लिखने लगा। और तैसे हस्थ लघुता से मानसिक लघुता अड़चनीय कारण बन गई। आसान शब्दों में - मेरे दिमाग ने काम नहीं किया। मैं एक लाचार रोते शिशु के समान फोन को हाथ में पकड़े खड़ा था। एक कल्पना आई, पर मैं उसे लिखित रूप में स्पष्ट कर पाता उससे पहले ही गायब हो गई। अब क्या करूं? मुझे लेखक के रूप में सफलता और ख्याति चाहिए थी, पर लेखक लायक कृत्य करने में मैं असमर्थ था। और दो तीन दिन सोच विचार में लगाए, किन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं आए। मैं हार मानने को तैयार नहीं था। मैं किसी भी विषय पर लिखने के लिए राज़ी था, बस मुझे लिखना था

आखिरकार मेरे साधरणीय कल्पना पूर्ण मन में एक कल्पना आई; क्यों न एक पहचान से प्रेरणा लें, और खड़ी बकवास पर लिखें? परिणामस्वरूप जन्म हुआ इस लेख का। मैं लिख तो रहा हूं, पर किस विषय पर? मैं इसी लेख को लिखने की क्रिया-कल्पना पर लेख लिख रहा हूं, बिल्कुल उस मशीन जैसा जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद को बंद करने का है। यह लेख एकदम फ़ालतू है। अगर इसका जन्म न हुआ होता, तो न हिंदी साहित्य को कोई अमूल्य हानि होती, और न आपके समय का दुरुपयोग। इसका एकमात्र संभव फ़ायदा आपको शायद कुछ नए काल्पनिक शब्द सिखाने का हो सकता है, यदि आप उनके शोधन का कष्ट उठाएं तो

बिना उद्देश्य के बोलना-लिखना भी एक कला है (जिसमें हमारे देश के मनोरंजन व राजनीति विभाग ने खुद को निपुण बना लिया है) दो अनुच्छेद लिख डालने के बावजूद, मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, कुछ ज्ञान नहीं बांटा। हां, शायद आपको थोड़ा मनोरंजन दिया हो और आपके मुख पर मुस्कान लाई हो। अगर ऐसा हुआ है तो कदाचित यह लेख पूर्णतया व्यर्थ नहीं है।एक

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