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पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान

लेखक - दीपक कुमार चौबे

प्रस्तावना (Introduction)-

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा| पंच रचित अति अधम सरीरा।।


अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु के सम्मिश्रण से यह अधम शरीर बनता है| जब भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान शब्द विचार में आता है, उपर्युक्त चौपाई (रामचरितमानस से) अनायास ही स्मरण आता है क्योंकि इसमें पृथ्वी, जल और वायु तीन तत्त्व तो प्रत्यक्ष रूप से निहित हैं लेकिन जब हम विज्ञान शब्द इसमें जोड़ देते हैं तो बाकी के दो तत्त्व आकाश और अग्नि भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान में ही समाहित हो जाते हैं| इसकी शाखाओं और उनके संक्षिप्त वर्णन से पहले "विज्ञान" शब्द पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं| "विज्ञान" दो शब्दों से मिलकर बना है, वि + ज्ञान अर्थात विशेष ज्ञान| वह सूचना या ज्ञान जिसे पांच शोध पद्धतियों (समस्या, परिकल्पना, प्रयोगीकरण, प्रेक्षण और निष्कर्ष) से परखा और समझा जाता है, उसे विज्ञान कहा जाता है| आज के युग में विज्ञान की शाखाओं के भी कई उपशाखाएं विकसित हो चुकी हैं और प्रत्येक पर अनेकानेक पुस्तकें लिखी जा रही हैं लेकिन ये लेख मुख्यतः पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान पर केंद्रित है|


पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान (Earth and Climate Science) -

पृथ्वी के भीतर के गहरे उपसतहोँ या परतों (Layers) जिसमें भूपर्पटी (Crust), आवरण (Mantle) और मूल भाग (Core) का अध्ययन भूगर्भ विज्ञान (Geology), गवेषणात्मक भूभौतिकी (Exploration Geophysics) और भूकंप विज्ञान (Seismology) द्वारा किया जाता है| गवेषणात्मक भूभौतिकी और भूकंप विज्ञान के अंतर्गत नियंत्रित (सक्रिय) ऊर्जा स्त्रोतों (controlled energy sources) या अनियंत्रित (अप्रतिरोधी) ऊर्जा स्त्रोतों (uncontrolled energy sources) का उपयोग किया जाता है जिससे उत्पन्न भूकम्पीय तरंगें पृथ्वी के विभिन्न भागों और अलग अलग गहराइयों से होकर पृथ्वी सतह पर मौजूद ग्राहक यन्त्र (Receiver or Geophone) या भूकंपमापी (Seismometer) पर अभिलेखित (record) किया जाता है और उनका विभिन्न स्तरों पर सत्यता का विश्लेषण करके परिणामस्वरूप पृथ्वी के विभिन्न परतों और गहराइयों के स्वरुप (Structure), प्रकृति (Nature) और संयोजन (Composition) निकाला जाता है| ऊर्जा स्त्रोतों में मुख्यतः प्राकृतिक भूकंप, कृत्रिम विस्फोट से उत्पन्न भूतरंग, मानव और महासागर इत्यादि द्वारा उत्पन्न शोर तरंगों से अध्ययन होता है| आज के प्रौद्योगिकी के समय में संगणकीय चित्रांकन (Computed Tomography), पृथ्वी अग्रेषित प्रतिरूपण (Forward Modelling) और व्युत्क्रम विधि (Inverse method) द्वारा पृथ्वी का उच्च गुणवत्ता युक्त (High quality) अध्ययन किया जाता है| भूगर्भ के पर्पटी से हमें जल, खनिज (Minerals), जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) प्राप्त होता है और इसी पर्पटी पर सभी जीव जंतु रहते और निर्माण कार्य करते हैं इसलिए वाह्य आवरण का अध्ययन आवश्यक हो जाता है और अगर अन्य गहरे परतों की बात करें तो तप्त ज्वालामुखी लावा (Volcanic eruption) भी निकलता है और इस ताप का प्रमुख कारण रेडियोधर्मी तत्त्व और उनके यौगिक हैं| इन आधुनिक और कृत्रिम विधियों द्वारा पृथ्वी के पुरा महाद्वीपीय निर्माण, आतंरिक ढांचा से लेकर अपेक्षाकृत नए महाद्वीपीय और महासागरीय निर्माण, आतंरिक ढांचा इत्यादि का अध्ययन किया जाता है| क्योंकि पृथ्वी का आतंरिक ढांचा जटिल है इसलिए त्रुटियां (सीमा के भीतर) (error within bounds) आना स्वाभाविक है जोकि विज्ञान के किसी भी शाखा के अध्ययन में होता है|

पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान वास्तव में अंतर्विषयी (interdisciplinary) विज्ञान है जो भौतिकी, रासायनिकी, जैविकी और गणित का एकीकृत रूप है| पृथ्वी के सतह पर सागर, महासागर, शैल या चट्टान, हिमनद, नदियाँ और उनके द्वारा काटे और लाये गए तलछट या अवसाद, पर्वत इत्यादि प्राकृतिक कृतियाँ हैं जिनके विस्तृत अध्ययन के लिए पृथक-पृथक विषय हैं| चट्टान या शैल की बात करें तो शैल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं: आग्नेय, अवसादी और कायांतरित शैल जिनके अध्ययन के लिए शैल विज्ञान (Petrology) है| हिमनद के उद्गम (Origin), बनावट (structure), उत्क्रांति (evolution) इत्यादि का अध्ययन हिमानिकी (Glaciology) में करते हैं| सौरमंडल के सभी ग्रह जिसका एक हिस्सा पृथ्वी है, भी अन्य पदार्थों की तरह रासायनिक तत्वों से मिलकर बना है| सौरमंडल के उद्भव, विभिन्न तत्वों की प्रचुरता और पृथ्वी के विभिन्न परतों में मौजूद तत्वों के उद्भव, प्रचुरता, भूगर्भीय प्रक्रियाएं, उनसे बनने वाले पदार्थों में मौजूद विभिन्न तत्वों की प्रचुरता, चट्टानों के अपक्षय (Weathering) और अपरदन (Erosion) इत्यादि का अध्ययन भूरासायनिकी (Geochemistry) में करते हैं जिसके लिए तत्वों के स्थिर (Stable) और अस्थिर (Unstable) समस्थानिकों (Isotopes), भूतैथिकी (भूकालानुक्रम) (Geochronology) इत्यादि साधनों के प्रयोग करते हैं| आधुनिक प्रौद्योगिकी (Modern Technology) के समय में अनुगम युग्मित प्लाज्मा द्रव्यमान वर्णमापी (ICP MS - Inductively coupled plasma mass spectrometer) का प्रयोग करते हैं जिसके प्रयोग से पदार्थों में स्थित निम्न से अतिनिम्न सांद्र तत्वों (less to ultra concentrated elements) का भी अध्ययन संभव हो सका है|

पृथ्वी का लगभग 70% भाग समुद्र और महासागरों से और 30% भाग भूमि से ढका है| अतः महासागरों के उद्गम, उनकी वर्तमान और भविष्य स्थिति, महासागरों में स्थित जीव जंतु, वनस्पतियों के भौतिक, रासायनिक, जैविक और गणितीय अध्ययन आवश्यक हो जाता है| महासागर विज्ञान (Oceanography) भूभौतिकीय द्रव गतिकी (Geophysical Fluid Dynamics), पारिस्थितिकी तंत्र (Eco system), प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate tectonics) जैसे विषयों का समायोजन है| महासागरीय पदार्थों का आज के प्रौद्योगिकी के विकास के दौर में संगणकीय प्रतिरूपण और व्युक्रमण सिद्धांतों के माध्यम से चित्रांकन करते हैं|

पृथ्वी के चारों तरफ विभिन्न तरह के वाष्प रुपी द्रव्य (Gas) का आवरण है जिसे वायुमंडल कहते हैं| वायुमंडल में विभिन्न परतें हैं: क्षोभ मंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल, आयन मंडल, वाह्य मंडल| वायुमंडल नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%) और अन्य वाष्प द्रव्य से मिलकर बना है| जलवायु विज्ञान के अंतर्गत वायुमंडल, मौसम, जलवायु इत्यादि के उद्भव (Origin), ढाँचे (Structure), गतिकी और उनके भविष्यवाणी आते हैं| वायुमंडल के अल्पकालिक (दैनिक,साप्ताहिक इत्यादि) और दीर्घकालिक (बहुवार्षिक) परिवर्तनशीलता को क्रमशः मौसम और जलवायु कहते हैं| इसके लिए अंकगणितीय संगणकीय प्रतिरूपण (Numerical computational modelling) और व्युत्क्रम सिद्धांत का प्रयोग करके मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणियां की जाती हैं| जलवायु विज्ञान (Climate Science) में वायुमंडल-जलमंडल, वायुमंडल-भूमण्डल के परस्पर क्रिया (interaction), जलवायु गतिकी (climate dynamics), उष्णकटिबंधीय संवहन (Tropical convection) और परिवर्तनशीलता (variability) का अध्ययन किया जाता है| पृथ्वी और जलवायु विज्ञान या और भी विज्ञान के शाखाओं में वैज्ञानिक समस्याएं अरेखीय (non linear) और जटिल (complex) होती हैं उनके हल सटीक (exact) और अद्वितीय (unique) नहीं होते लेकिन कालानुक्रम के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसन्धान उन्नत होते जा रहे हैं और ऐसे सिद्धांत और विधियां विकसित की जा रही हैं जिनकी गुणवत्ता और सटीकता दिनों-दिन बढ़ रही है|

क्योंकि पृथ्वी और जलवायु करीब 4.5 अरब वर्ष आयु के हैं और समय के साथ पृथ्वी के ताप गतिकी, महासागर-महाद्वीप स्थिति परिवर्तन, जीवों के लिए अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियां उत्पन्न होती रही हैं और उनके मूलभूत ढाँचे और संयोजन में परिवर्तन होता रहा है| इसलिए पृथ्वी और जलवायु विज्ञान का एक प्रमुख आधार ये भी है के वर्तमान काल को भूत काल से जोड़ने का प्रयास किया जाये| चाहे वो वर्तमान जीव-जंतु, वनस्पति को भूत काल के जीव-जंतु, वनस्पति से जोड़ने का हो या पृथ्वी और जलवायु के ढाँचे और संयोजन को भूत काल से जोड़ना हो, पृथ्वी और जलवायु विज्ञान इस दिशा में सदैव प्रयासरत रहता है| वर्तमान जीव-जंतु, वनस्पति को भूत काल के जीव-जंतु, वनस्पति से जोड़ने के विज्ञान को पुराजैविकी (Paleobiology) कहते हैं| इसमें पुराने काल के जीवों के मूल (Origin), ढांचा (Structure) और उत्क्रांति (Evolution) का अध्ययन होता है और उसके माध्यम से पृथ्वी के अतीत को समझने का प्रयास किया जाता है|


उपसंहार (Conclusion) -

पृथ्वी और जलवायु विज्ञान एक उभरता हुआ विज्ञान है जो पृथ्वी, वायुमंडल, जलमंडल और जीवमंडल इत्यादि के संतुलन के अध्ययन का अवसर देता है| इसके लिए भौतिकी, रासायनिकी, जैविकी, गणित और उन्नत संगणकीय कूट-संकेतन (advanced computational coding), कार्यक्रम-निर्माण (programming) की आवश्यकता होती है| चाहे वो भूजल, खनिज और जीवाश्म ईंधन हो या क्षेत्रीय-सुदूर (local-regional) और अल्प-अति भूकम्पीय जोखिम क्षेत्रों (Hazard areas) के निर्धारण निर्माण कार्य हेतु हो, पृथ्वी और जलवायु विज्ञान ने सदैव एक आदर्श पथप्रदर्शन का प्रयास किया है| जलवायु परिवर्तन आम जनता और वैज्ञानिकों के लिए एक ज्वलंत और मुख्य विषय रहा है| वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण से उत्पन्न विभिन्न प्रभावों जैसे की महासागरों के जलस्तर, उनके संयोजन और प्रकृति में परिवर्तन, हिमनद का पिघलना, ताप वृद्धि, प्राणवायु ऑक्सीजन के स्तर में परिवर्तन इत्यादि का अध्ययन पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान से ही संभव है| अन्य प्रभाव भूस्खलन, बाढ़ प्रबंधन, सुनामी, मृदा विघटन इत्यादि भी पृथ्वी एवं जलवायु विज्ञान के अध्ययन में निहित हैं| विज्ञान की भी कोई सीमा नहीं है और यह मानवता के मूल संस्कार और आधार (वसुधैव कुटुम्बकम - पूरी पृथ्वी ही हमारा परिवार है) का अक्षरशः पालन करने की दिशा में सदैव अग्रसर है|

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

(महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१)


नोट - क्योंकि ये एक लघु लेख है, विस्तृत वर्णन नहीं हो सका है और पृथ्वी और जलवायु विज्ञान के कई अन्य उपशाखाएं हैं जिनका यहां वर्णन नहीं किया गया है, मुख्य शाखाओं के वर्णन का प्रयास किया गया है| कुछ हिंदी शब्द क्लिष्ट हैं लेकिन कोशिश किया गया है विज्ञान को हिंदी में परिवर्तित किया जाए ताकि अंग्रेजी न जानने वाले आम हिंदी भाषी भी इसे यथा सामर्थ्य समझ सकें| किसी भी त्रुटि और कमी के लिए लेखक क्षमा प्रार्थी है|

सम्मान : विज्ञान और महिलाएं

लेखिका- अनुराधा मीना (सम्मान-प्रथम )

तू ही धरा, तू ही सर्वथा।

तू बेटी है, तू ही आस्था।

तू नारी है , मन की व्यथा।

तू ही परंपरा, तू ही प्रथा।


आज के युग में नारी घर के साथ सभी क्षेत्रों में अपना स्थान बना चुकी है। दुनिया का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं ने खुद को साबित नहीं किया हो, महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा हर क्षेत्र में शक्ति की तरह स्थापित किया हैं । महिलाएं , देश, समाज, और परिवार का मुख्य आधार होती हैं । महिलाएं समाज को सभ्य बनाने से लेकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । आज महिलाओं का योगदान सभी क्षेत्र में अहम हैं ।

आज पहले की तुलना में महिलाएं आत्मनिर्भर और सक्षम हैं एवं पुरुषों की तरह राजनीति, विज्ञान, आर्थिक, सामाजिक सभी क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण निभा रही हैं। इस बात को नहीं नकारा जा सकता आज महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आया हैं । लोग अपनी घर की बेटियों और बहुओं की शिक्षा के लिए आगे बढ़ रहें है। आज देश के उच्च पदों पर महिलाएं शोभायमान हैं।

हमारी भारतीय संस्कृति में महिलों के महत्व को बताया गया हैं एवं उन्हे देवी का रूप बताया गया हैं। हिन्दू शास्त्रों में और पुराणों में महिलाओं को अदम्य शक्ति का वर्णन किया गया हैं । महिला, एक माँ , बहन, बेटी, बहु कई रूपों मे अपना कर्तव्य निभाती है और संस्कारी एवं सभ्य समाज की निर्माण करती है। वास्तव में नारी सूरज की सुनहरी किरण और प्रेम का आगार है।

हम सभी को महिलों के महत्व को समझना चाहिए एवं उन्हे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। प्रत्येक देश के दो पंख होते है एक स्त्री और दूसरा पुरुष । देश की उन्नति एक पंख के उड़ान भरने से नहीं हो सकती है। लेकिन अभी भी दुनिया के उन्नत देशों में भी महिला सशक्तिकरण की स्वीकृति पर सवाल है , जबकि राजनीतिक दबाव में विकासशील देशों और राष्ट्रों तो महिला समानता के अधिकार को पूर्ण रूप से स्वकारने से काफी दूर हैं। लेकिन अब बीते कुछ सालों से इसमें थोड़ा - थोड़ा बदलाव आ रहा है। इसलिए महिलाओं के सम्मान के प्रति सभी को जागरूक होने की जरूरत हैं ।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। यू . आइ . एस के आकड़ों के अनुसार, विश्व के कुल शोधकर्ता का ३० % शोधकार्ताएं महिलाएं हैं । और भारत में कुल शोधकर्ताओं का १४ % महिलाएं हैं। नेशनल साइंस फ़ाउंडेशन के २०१५ के आकड़ों के अनुसार ६० % महिलाएं स्नातक स्तर की डिग्री और ४६ % महिलाएं डॉक्टरेट डिग्री करती हैं। अभी महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं । १९०१ -२०१० के बीच विश्व की ४० महिलाओं को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका हैं । अभी महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र मे प्रगति कर रही हैं ।

शोध-विकास में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

  • कुल २.८ लाख वैज्ञानिक, इंजीनियर व तकनीकी शोधकर्ताओं में १४ फीसदी महिलाएं हैं।

  • महिलाओं की भागीदारी का वैज्ञानिक संस्थानों में २८.४ फीसदी वैश्विक औसत है।

  • देश के वैज्ञानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में २५ फीसदी महिला कर्मी हैं।

  • ८ फीसदी महिलाएं इसरो के वैज्ञानिक और तकनीकी स्टॉफ में महज हैं ।

विज्ञान मे महिलाओं की बढ़ती भागीदारी----

  • ४९ फीसदी तक पहुंची बीएससी में लड़कियों की संख्या

  • २९ फीसदी तक पहुंची बीटेक में लड़कियों की भागीदारी

  • ४५ फीसदी महिलाएं गणित में पीएचडी करने वालों में

  • ३६ फीसदी भागीदारी महिलाओं की विज्ञान की पीएचडी में

२०१७ में आइ. आइ . टी के कुल छात्रों में १० फीसदी के करीब लड़कियाँ थी। लड़कियों की तकनीकी और विज्ञान में भागीदारी बड़ाने के लिए आइ. आइ . टीज में लड़कियों के लिए ७८० बढ़ाई गई हैं।

आपने हमेशा ही विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी मशहूर भारतीय हस्तियों के बारे में सुना होगा। लेकिन कुछ ऐसी भारतीय महिलाएं हैं, जिनका काम ही उनकी पहचान है, जैसे :- एडा लवलेस टेसी थॉमस , असीम चटर्जी (कार्बोनिक रासायनिक वैज्ञानिक), डॉ इंद्रा (गायंकॉलोगीस्ट), शुभा टोल(न्यूरोसाइंस), दर्शन रंगनाथ( जैव कार्बोनिक रसायन विज्ञान) आदि । देश - विदेश की अनेक महिलाओं ने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है जिसका शायद हमे अंदाजा भी नहीं हैं।

रितु करिधल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो : इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत रितु करिदल चंद्रयान -२ की मिशन निदेशक रही हैं। वह मार्स ऑर्बिटर मिशन की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर भी रही हैं। करिधल ने चंद्रयान-२ की शुरुआत करने वाली महिला के रूप में प्रसिद्धि पाई। भारतीय विज्ञान संस्थान से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री करने वाली करिधल भारत के मंगल मिशन को डिज़ाइन करने के लिए काफी सराहना पा चुकी हैं। २००७ में इसरो का यंग साइंटिस्ट अवार्ड जीत चुकीं करिधल इसरो में २२ साल से सेवाएं दे रही हैं।

नंदिनी हरिनाथ, रॉकेट वैज्ञानिक, इसरो : बेंगलुरु में इसरो सैटेलाइट सेंटर के एक रॉकेट वैज्ञानिक, नंदिनी ने २० वर्ष पहले यहां अपनी पहली नौकरी शुरू की थी। इस दौरान वह १४ मिशनों पर काम कर चुकी हैं। वह मंगल यान मिशन के लिए डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर थी।

डॉ. गगनदीप कांग, एफआरएस : रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ माइक्रोबॉयोलॉजी की फेलो बनने वाली पहली भारतीय महिला डॉ. कांग, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की कार्यकारी निदेशक हैं। देश में डायरिया रोकने के लिए भारतीय बच्चों के हिसाब से रोटावायरस वैक्सीन विकसित करने का श्रेय डॉ. गगनदीप कांग को जाता है। डॉ. कांग टाइफाइड निगरानी नेटवर्क और हैजा के लिए एक रोडमैप तैयार कर रही हैं। कांग अब दशकों से बच्चों में आंत के संक्रमण का अध्ययन कर रही है।

डॉ. टेसी थॉमस, विशिष्ट वैज्ञानिक, डीआरडीओ : टेसी थॉमस हाल ही में तब चर्चा में आई जब उन्हें १६ आईआईटी की बॉडी में बतौर डायरेक्टर नियुक्त किया गया। टेसी, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के लिए मिसाल हैं। टेसी के जीवन का शुरुआती हिस्सा एक रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन के करीब गुजरा। बचपन से ही टेसी को रॉकेट और मिसाइल में दिलचस्पी थी, बाद में यही उनके करियर का लक्ष्य बन गया। जाहिर तौर पर डीआरडीओ के अग्नि-४ मिसाइल परियोजना की डायरेक्टर बनना उनके इसी सपने और मेहनत का नतीजा था। वैसे टेसी ने अपना करियर बतौर वैज्ञानिक १९८८ में शुरू किया था। टेसी ने अग्नि ३ के सफल परियोजना में बतौर एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम किया। मिसाइल के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें 'अग्निपुत्री' के नाम से भी जाना जाता हैं । टेसी उन भारतीय छात्राओं के लिए मिसाल हैं, जो 'त्रिशूर' जैसे छोटे से शहर से निकलकर अपने सपनों की मंज़िल हासिल कर लेती हैं। मिसाइल क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए टेसी को लालबहादुर शास्त्री नेशनल अवॉर्ड प्रदान किया गया है।

डॉ. चंद्रिमा शाह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी : डॉ. चंद्रिमा शाह को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। चंद्रिमा राष्ट्रीय इम्यूनोलोजी संस्थान, दिल्ली में प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस हैं और वे इस संस्थान की निदेशक भी रह चुकी हैं। उन्होंने १९८० में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बॉयोलॉजी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में स्टाफ साइंटिस्ट के रूप में शामिल हुईं। उन्होंने ८० से अधिक शोध पत्र भी लिखे। उन्होंने भ्रूण प्रत्यारोपण के तंत्र पर काफी काम किया है।

डॉ. अनुराधा टीके, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो : इसरो सैटेलाइट सेंटर में जियोसैट कार्यक्रम निदेशक डॉ. अनुराधा टीके उपग्रहों की निगरानी का काम करती हैं। वह १९८२ से इसरो को सेवाएं दे रही हैं और सबसे वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक हैं। उन्होंने इसरो संचार उपग्रह जीसैट-१२ को विकसित करने और लांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुराधा ने सितंबर २०१२ में जीसैट -१० के लॉन्च का नेतृत्व किया। इसरो में परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने जीसैट-९ , जीसैट-१७ और जीसैट-१८ संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण की सफलता में योगदान रहा।

डॉ. एन. कालीसल्ल्वी, निदेशक, सीएसआईआर-सीईसीआरआई : सीएसआईआर-केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीईसीआरआई) की निदेशक डॉ. एन. कालीसल्ल्वी इस पदभार को संभालने वाली पहली महिला हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी के २५ से अधिक वर्षों के अनुसंधान कार्य मुख्य रूप से विद्युत ऊर्जा प्रणालियों और विशेष रूप से केंद्रित हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी अब तक १२५ से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी हैं और उनके पास छह पेटेंट हैं। वह कोरिया के ब्रेन पूल फेलोशिप और मोस्ट इंस्पायरिंग वुमन साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजी जा चुकी हैं।

एडा लवलेस, डीआरडीओ के अग्नि- मिसाइल परियोजना की डायरेक्टर: एडा लवलेस एक ऐसी वैज्ञानिक महिला थीं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में काफी काम किया। उनके काम को याद करते हुए १४ अक्टूबर को संसार भर में इस दिन को साइंस, इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी और गणित में महिलाओं के योगदान के लिए याद किया जाता है।

यह तो सिर्फ कुछ ही उदारण हैं । रिपोर्ट बताती हैं कि देश के वैज्ञानिक संस्थानों में महिलों की भागीदारी दुनिया में औसत हिस्सेदारी आधी हैं। हालांकि, तमाम ऐसे महिला वैज्ञानिक है जो भिविन्न संस्थानों में नेतृत्त्व की भूमिका संभाल कर देश का माँ बड़ा रही हैं। और यह उम्मीद की जा रही है की आने वाले समय में उनकी भागीदारी विज्ञान में बड़ेगी ।





गुरु

लेखिका- हीना अग्रवाल

राष्ट्र का निर्माणकर्ता है गुरु

भविष्य का नींवधर्ता है गुरु

पढ़ाई तो किताबों से हो जाती है।

सच्ची शिक्षा, तो देता है गुरु

नैतिक मूल्यों को सिखाता है गुरु

संस्कार सभी अच्छे देता है गुरु


सोते - जागते उसे शिष्य के हित का ही ध्यान है

शिष्य के लिए करता अपना सर्वस्व बलिदान है

इतने पर उसको अपने शिष्य का ही अभिमान है

इसीलिए तो गुरु भगवान से भी महान है।


अंधियारे जीवन में ज्ञान का आलोक है गुरु

हम सब भी गुरु महिमा को अंगीकार करें

गुरु को हम सब भी कोटि कोटि प्रणाम करें


गुरु से सच्चा मार्गदर्शक कोई नहीं

गुरु बिन शिष्य का अस्तित्व नहीं

एक शिष्य का अस्तित्व है गुरु

धनक

लेखक- दीपक कुमार चौबे

धनक- इंद्रधनुष, धन इच्छा, धनुष

चाहे इच्छा कहो य़ा मुझे वरदान।

चाहे मुझे आर्द्र कहो य़ा संघर्ष का सोपान।

मैं हूँ धनक! ज़िसे चाहिए अभयदान।।


कभी झुरमुटों से घिरता, तो कभी पक्षियों सा विचरता।

कभी शीशे सा टूटता, तो कभी वज्र सा तोडता।

मैं हूँ धनक! इस समाज की परिभाषा बदलता।।


कभी अर्जुन सा धनुर्धर, कभी युधिष्ठीर सा धर्म राज।

कभी कृष्ण सा सारथी, जो थे पांडवों के सरताज।

मैं हूँ धनक! प्रय़त्नशील! बन जाऊँ सुखराज।।


क्यों तेरी ये मानसिकता? जब मैं करूँ अभिव्यंजना।

मांगा गया मुझसे कवच, जब न किया पूजा-अर्चना।

मैं हूँ धनक! कहीं पहुँच न जाऊँ श्मशाना।।


क्यों तुझे है पीडा? जब रहूँ एकांतवासी।

सारी मोह-माया तोडके, कहलाऊँ अहंकारवासी।

मैं हूँ धनक! बन न जाऊँ विरागवासी।।


है एक ही इच्छा, जुड जाऊँ मुख्यधारा से।

न ड़ूबूँ, न टूटूँ भ्रांति के इस सैलाब से।

मैं हूँ धनक! है निवेदन इस समुदाय से।।

जीवन

लेखिका- भावना प्रियदर्शिनी

हकीकत बहुत कड़वी होती जा रही है

शायद इसीलिए लोग झूठ पसंद करते हैं

मानो सवेरा होने पर सूरज न उगे

और हमें काले बादलों से प्यार हो जाए

थोड़ा झूठ भी सही है यारों !

वरना सच पे कौन अश्क बहाता है।

जीवन तो उस पत्ते पर लटकी

पानी की बूंद की तरह है

जो कुछ समय बाद टपककर

मिट्टी में समा जाता है।

क्या करोगे?

क्या करोगे जीवन का सच जान कर?

जब इसका सार ही कल्पित कथा सा है

बस आईनो में ही छुपी रह गई हैं बातें

जुबां का क्या है!?

मैं मजदूर हूँ

लेखक- हितेन्द्र कुमार (काव्यहार-प्रथम)

कुछ मज़बूरी में कहते हैं कि मैं देश की आँखों का नूर हूँ,

पर सच में मेरे हालात कुछ और हैं, जी हाँ मैं मज़दूर हूँ।

अपनी माँ के आँचल को छोड़ जाने का मुझे शौक नहीं है,

मेरी मजबूरियां कुछ नहीं समझते हैं, जी हाँ मैं मजबूर हूँ।


कुछ का पैसों से बड़ा नाम है, मेहनत मेरा दूसरा नाम है,

मेहनत से ही मेरी आन बान शान है, जी हाँ मैं मशहूर हूँ।

मैं एक क़दम पीछे कर दूं तो यह दुनिया रुक सकती है,

स्वार्थी होना मेरी पहचान नहीं है, जी हाँ मैं अकरूर हूँ |


मैं मेरे मालिक का गुलाम हूँ, मेरी सांस उनकी जागीर है।

उनके इशारों में नाचना मजबूरी है, जी हाँ मैं लंगूर हूँ।

मेरे दिन-रात काम करने से यह दुनिया बेहतर हो रही है,

पर मेरे हाथ पैर और सिर दुखते हैं, जी हाँ मैं रंजूर हूँ।


कष्ट और पीड़ाओं के संग मेरी जिंदगी चलती रहती है,

पर हर हाल में मुस्कुराना आता है, जी हाँ मैं मसरूर हूँ।

कुछ मज़बूरी में कहते हैं कि मैं देश की आँखों का नूर हूँ,

पर सच में मेरे हालात कुछ और हैं, जी हाँ मैं मज़दूर हूँ।

वर्ष-सप्तकम्

लेखक- शुभम् जयस्वाल (काव्यहार-द्वितीय)

कृषाण-कर्ण बूंद-गूंज हेतु ही तरस् रहे,

निदाध से निराश वन्ध्य-भू सुधा-सुधा जपे,

घटा घिरे घने व घोर, चन्द्र से छिपे चकोर, मारि-मेघनाद-लोल, टर्र-टर्र शल्लशोर् ,

घुमड् घुमड् घुमण्ड मण्डराए मेघमण्डली, अनन्त अन्ध यामिनी, अभीक भीम दामिनी,

सुशंस है सुरेन्द्र का, वसुन्धरा सुगन्धिता, विशुद्ध-वर्ष-घोषणा, शुभा-विभा दसों-दिशा,

तधित् तधा तधित् तधा, मयूर नाट-नाटिका सुगात्र-नेत्रमुष् , प्रसून-पात्र-पुष्प-वाटिका

विहार वारिधार, खेत-खात-जाह्नवी रमे, फुहार-सार मेघराग, बाल-बालिका रमे

किशोर-रश्मि, धूमरी, महेन्द्रचाप वे स्वयं, प्रणाम सोम-चक्र को व दण्डवत् करे शुभम्

मैं खड़ा हूँ

लेखक- प्रणव माहेश्वरी (काव्यहार-तृतीय)

मैं खड़ा हूं,

बीमार हूं, ठंड कुछ अधिक है

तन कपकपा रहा है

बर्फ की सफेद चादर है

और चारों ओर बस छोटी-बड़ी पहाड़िया

जहां तक नज़र जाती है

बस बर्फ ही बर्फ है।

कोई जीव नहीं है

शायद मैं भी निर्जीव हूं

पर मैं खड़ा हूं।

गला सूख रहा है

हाथ शिथिल हैं

पैर मानो बर्फ़ में धस रहे हों

संभवतः मैं सांस ले रहा हूं

पर मैं सीधे खड़ा हूं।

किंचित कोई तूफ़ान आने वाला है

या शायद हमला हुआ है

ये आवाज़ कहीं गोलियां चलने की तो नहीं

या कहीं भूस्खलन हुआ है

पर मैं तो खड़ा हूं।

मुझे यह तो ज्ञात नहीं कि

मै जीवित हूं या मृत हूं

मैं धरती पर हूं या आकाश में हूं

परन्तु यह ज्ञान जरूर है कि भारत की सीमा

पर मैं अभी भी खड़ा हूं।

(देश के जवानों को समर्पित)

गाथा

लेखक- विक्रम अय्यर (काव्यहार-सांत्वना)

डाली से वह उग आता है

हवा में ध्वजा सा लेहराता है

केंद्र बसी है शांत व धीरज

मोती हो जो सीप भीतर


दृश्य होता क्षणभर हेतु

दिखता जैसे धूमकेतु

रेशमी डोर हैं कोमल नूतन

सजें हैं उस पर बूंद हैं शबनम


सृष्टि द्वारा बना यह जाल

प्रगति कारण वह बेहाल

युग-युग आशा में बैठी

कब आनी है मक्खी- चींटी?


आखिरकार आता एक निर्दोष

चलता - उड़ता नि:संकोच

एक पाँव स्पर्षता रेशम से

तुरंत फसता नूतन डोर से


भोजन पूजा अब प्रारंभिक

चरखे - चक्रण से समर्पित

आवरण करते उस लाचार का

डोर जो प्राण खींचते उसका


यमराज होता हाज़िर द्वार पर

आहे करते बुलावा पुकारकर

मकड़ी अवतार धारण करके

श्वास खींचता चलते - चलते


आखरी सांस से जैव निकलती

स्वर्ग में रब से मिलने जाती

कोश में बंधा शव है समान

मकबरे में जो सिपाही महान


सृष्टि की एक गाथा अद्वितीय

अविस्मरणीय कथा हुई दृश्य

डायरी २०१९

लेखक- जितेश सेठ (कथाकार-प्रथम)

नमस्ते मित्रों मेरा नाम डायरी है। मैं किसी भी सामान्य कॉपी कि तरह हूँ, पर मेरी खासियत यह है कि मैं लोगों के दिलों के ज्यादा करीब रहती हैं। मेरा नाता किसी एक इंसान से जुड़ जाता है और फिर में उनके सीने से चिपका रहता है। कई बार तो बाकी दुनिया को मेरे वजूद कि खबर ही नहीं होती और कई बार, मेरे मालिक के कुछ निजी रिश्तेदार मुझसे हूबहू होना अपना अधिकार समझते हैं, और मेरे मालिक की अनुमति के बिना ही मुझे पढ़ लेते हैं। यह तो था मेरी प्रजाति का परिचय। चलिए मैं अब अपने बारे में कुछ बता दें। मेरा जन्म अगस्त 2018 में


हुआ था। मैंने अपने जीवन के पहले चार मास एक दुकान में बिता दिए, एक इंसान की चाह में जिसकी वेशभूषा का मुझे कोई अनुमान न था। दिसंबर आले आते मेरे सारे भाई-बहन मुझे अलविदा कह चुके थे मैंने एक घर मिलने की उम्मीद छोड ही दी थी, जब मेरी मुलाक़ात उस से हुई। श्री मान का नाम तो मुझे अभी ज्ञात नहीं था, परंतु उस की आँखो में एक चमक दिखाई पड़ी। वह अपने मन में अपनी अगली डायरी की एक पूर्ण छवि लाया था। उसने मुझे परखा, मेरे पन्ने पलट पलट कर जांच करी, और उस के मुख पर एक मीठी मुस्कान रूप लेने लगी। मुझे अपनी बढाई करने में कोई शर्म नहीं। मेरे पास वे सब खूबियाँ थी जिस की तलाश में वह व्यक्ति दुकान में आया था - रविवार के लिए पूरे पन्ने, बुकमॉर्क के लिए एक सुंदर गुलाबी रस्सी, चमड़े की चादर और हर महीने से पहले एक विस्तृत प्लैनर। मुझे विश्वास था कि आज मैं अपने नए घर की ओर सफर तय करूंगा ही। इस सब के बाद भी उसने मुझे वापिस रख दिया। मेरा दिल घबराया, और मुझे लगा कि मेरे साथ छल हुआ है। मैं उस को देखता रहा। उसने एक एक कर के पाँच और हायरियों से आँखे लड़ाई। सच कहूँ तो वह मुस्कान मुझे फिर से नजर नहीं आई। मैं दिल थाम के बैठा रहा, उस का पीछा करता रहा। अचानक से उस के चेहरे पर एक बदलाव आया, जैसे कि उसने निर्णय ले लिया हो। वह मेरी ओर एक बार फिर आया, और इस बार मेरी भावनाओं के साथ खेल नहीं खेला। मुझे उठाया, और दुकानदार को मेरी कीमत दे कर घर की ओर बढ़ गया।


मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उस के हाथों में मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी अनुभवी व्यक्ति के पास जा रहा हूँ, जो मझ से रोज़ बातें करेगा, मुझे अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाएगा। मेरी भविष्यवाणी सही निकली, क्योंकि घर पहुँचते ही उसने एक पेन निकाला, और मुझे अपना परिचय दियाः "प्रिय डायरी मेरा नाम अशोक है। मैं एबीसीडी कॉलेज में बी टेक डिग्री के तीसरे वर्ष का छात्र हूँ। मेरी जिंदगी में


तुम्हारा स्वागत है। अशोक जी। मुझे भी आप से भेंट कर के अच्छा लगा।



अशोक जैसा दोस्त सारी डायरिया को मिले। उस के अनुशासन का कोई जवाब नहीं। पिछले तीन महीनों में २-३ दिन से ज्यादा दिन नहीं होंगे, जब मेरी उस से बात न हुई हो। रोज रात खाने के बाद वह मेरे पास बैठता है, और मुझे अपने दिन की द्वार्तान बनाता है। उस के जीवन मैं इतने सारे शौक है कि एक एक की खबर रखना हम दोनों के लिए मुश्किल पड़ जाता है, पर मेरी याददाश्त के कारण वो भी सारी चीज़ों का ख्याल रख पाता है। वह पढ़ाई में अव्वल है. फुटबॉल टीम का कप्तान है, और कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की, कामिनी, उसकी प्रेमिका है।

अशोक प्रातः ६ बजे मैदान पहुंच जाता है। वह ही तो अपनी टीम का मार्गदर्शक है, उसके बिना तो उन सब के पास कोई दिशा नहीं। उसके बाद वह नाश्ता कर के कक्षा में जाता है। अशोक अपने खाने का पूरा ध्यान रखता है, और आज कल के बच्चों की तरह "बैंक" में पैसे बर्बाद नहीं करता। उसे गणित का खूब धाव है. और गणित के अध्यापक को उससे। अशोक से जलते है बाकी सब विद्यार्थी, क्योंकि वे अशोक को मात नहीं दे सकते। अशोक उनके बारे में तो सोचता भी नहीं - वह अपना ध्यान अपने मित्रों पर देता है, जो खुशी-खुशी उससे पढ़ने आते हैं। वह सप्ताह में दो दिन पास कि बस्ती में जाकर बच्चों को भी पढाता जीवन के पल पल का सही उपयोग तो कोई उससे सीखे।


सब अशोक से बहुत प्रेम करते हैं, खास कर के कामिनी। वह रोज़ उसके फेसबुक पर आयी तस्वीरों की व्याख्या मुझे देता है। मैं कामिनी की सुंदरता से अपरिचित नहीं - अशोक ने उसकी एक तस्वीर मुझे दी हुई है संभालने के लिए। कामिनी जीव विज्ञान की छात्रा है, और इस लिए अशोक और वह कक्षा में साथ नहीं रह पाते, मगर अशोक उसके लिए दिन में समय जरूर निकलता है। अशोक खुद को शाहरुख और कामिनी को काजोल बोलता है! मुझे लगता है कि उनकी जोड़ी को कोई कठिनाई नहीं आ सकती।



जून एक को पहली बार मैंने एक नया शब्द मुना 'डोटा', और तब से लगता है कि कुछ और बचा ही नहीं है। जिस तरह से वह डोटा की बात करता है. लगता है वह नया खिलाड़ी तो नहीं है इस खेल का। अब तो मैं अशोक के कण कण को समझ चुका हूँ। आज कल उसकी जिंदगी में कुछ रोमांचक चल भी नहीं रहा। कभी-कभी ऐसा लगता है कि एक लेखक के जीवन में काफी ऊँच-नीच होती रहती है। कहाँ तो कई दिनों अशोक कलम से कामिनी के राजा रवि वर्मा जैसे चित्र बना देता था, और कहाँ कई हफ्त बीत गए उसके एक भी जिक्र के बिना।


कई दिनों तो अशोक ने डोटा के बारे में ही मेरा पूरा पन्ना भर दिया। कुछ दिन ऐसे भी बीते हैं जब अशोक ने लिखा, 'कल डोटा खेलने के कारण डायरी नहीं लिख पाया।" अशोक, यह तो ठीक बात नहीं हुई। मुझे अशोक की जुबान के बारे में भी सब पता चल गया है। पिछले 30 दिनों में उसने १५ पिज्जा, १३ पास्ता, २८ बोतल कोका कोला और ३५ आलू के पराठे खाए। खाने का इतना शौकीन है, पर फिर मुझे दुख से बताता है कि उसे कुछ पकाना नहीं आता। उसके पेट में बाए सारे पकवान का श्रेय जोमाटो और बॉक्स-एट को जाता है। अशोक ने ने सिर्फ यह सब खाया, पर आश्चर्य की बात यह है कि उसने मुझे एक-एक चीज़ का हिसाब भी दिया। वह नियमित तौर पर मुझे कहानियाँ तो सुनाता है, पर सच कहा जाए तो मैं अब थोड़ा ऊब चुका हूँ। रोमांच और रोमांस की कमि लगने लगी है।


लो, रोमांच की कमी का उदधारण क्या दे दिया, अशोक लो मेरे पास एक तूफान ले आया। कामिनी और अशोक के रिश्ते में भेद आ गए हैं। कामिनी ने अशोक को, "मेरा पीछा छोड़ दो कहा! कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? यह सब क्या हो रहा है? अशोक को संदेह है कि कामिनी और सारे अध्यापक उसके खिलाफ़ एक षडयंत्र रच रहे हैं, और बदले की भूख में वह उसको फेल करने का भी प्रयास करेंगे। अशोक को कामिनी ने फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया, और मुझ से भी कामिनी की तस्वीर छीन ली गई! क्या इस दुनिया में याे रखना भी एक गुनाह है?


यह सब मेरी समझ से बाहर है। मैं दावा करता हूँ कि अशोक से अधिक रहस्यमय व्यक्ति कोई नहीं। मेरा सफर लगभग खत्म होने वाला है, और मैं अशोक को गहराई से समझ नहीं पाया। कहा गया वह अशोक जो रोज़ दस नई चीजों में भा लेता था?



मुझे आज एक चिट्ठी मिली, जो कि अशोक को कॉलेज से मिला है। मैं क्या ही बताऊँ, आप खुद देख लीजिए

अशोक सिंह कमरा १९०, होस्टल १


दिनांक: नवंबर २०, २०१५


अशोक जी.


आपके खिलाफ कंप्लेंट जारी की गई है। आप पर आरोप है कि आपने अपनी सहपाठी मिस कामिनी को उत्पीडित किया है। उनकी जानकारी और अनुमति के बिना आपने उन की तस्वीरों को छापा। आपने उनका हर कक्षा में पीछा किया, और उन्हें असभ्य नामों से पुकारा। आप के गणित अध्यापक ने आपको क्षमा मांगने के लिए कहा तो आप ने उन पर भी अप शब्दों का प्रयोग किया। कृपया यह समझ लें कि हम इस कॉलेज में औरतों के साय हिंसा को बहुत गंभीरता से लेते हैं। इस पत्र को अपनी आखिरी चेतावनी समझिए। आपका शैक्षिक रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है, और आप पहले ही ३ विषयों में असफल हो चुके हैं। आपका मामला देखते हुए हम ने नीचे दिए गए निर्णय लिए हैं: १. यदि आप मिस कामिनी के २०० मी से ज्यादा करीब आए २. यदि आप आगे और किसी भी विषय में असफल हुए, तथा ३. इस साल के अंत तक पिछले विषयों में सफल न हुए तो आप को कॉलेज से निष्कासित कर दिया जाएगा। आप से अनुरोध है कि २ दिन में मिस कामिनी के लिए एक क्षमा पत्र लिखे, तथा उनकी कोई भी वस्तु, फोटो आदि कॉलेज के कार्यालय में यह सब जमा कर दें।


सुरेंद्र शर्मा,


डीन एबीसीडी कॉलेज, नई दिल्ली


मुझे लो विश्वास ही नहीं हो रहा। क्या में ठीक पढ़ रहा हूँ? क्या यह चिट्ठी मेरे मित्र अशोक को ही लिखी गई है? किस पर भरोसा करे मै? क्या अशोक मुझ से झूठ बोल रहा था अभी तक? क्या कामिनी उसे पसंद भी करती थी? अगर यह झूठ है. तो क्या अशोक ने कभी मुझे कोई सत्य भी बोला है? यदि मेरे पास अशोक से बात करने का कोई तरीका होता, तो मैं उससे यह सब सवाल पुछ्ता। पर, मैं सिर्फ उम्मीद कर सकता हूँ कि वह अपनी सफाई मुझे खुद देगा। मुझे जान ने का हक है, कि क्या मेरे साथ धोखा हुआ?


पर लगता है मेरी आशाओं को उनकी मंजिल नहीं मिलेगी। सफाई तो छोड़ो, जब से यह पत्र मुझे दिया गया. अशोक ने मुझ से बात करना ही छोड़ दिया। कहाँ हो तुम, अशोक? आज दिसंबर ३१ है। क्या तुम मुझे आज भी नहीं मिलोगे?

अबोली

लेखक- यशवंत कुमार(कथाकार-द्वितीय)

मोहल्ले में मैंने उसे पहले कभी देखा नहीं था | ऐसे तो पान और अखबार की खातिर, गिरधारी की दुकान में लोगों का मजमा लगा ही रहता था, पर इस आदमी की अजीब हरकतें बरबस ही ध्यान खींच ले रही थी| मैले- कुैले कपड़े, बिखरे और गंदे यान, बड़ी-बड़ी दादी और उसका झगड़ा कर लेते हुए रोज़ पान की दुकान के पास आना और करौब वाले बिजली के खम्भ के सहारे घंटों खड़े होकर सिगरेट पीना - पता नहीं क्यों मुझे खटक रहा था। इस आदमी की नियत सही नहीं है. इस बात को मेरी निगाहो ने कुछ दिनों में ही ताइ लिया | आदमी शक्ल से ही एक नंबर का लड़की-बाज़ लगता था। इस तरह के ही लोग अपनी हवस का शिकार मासूम लड़कियों को बनाते ठीक उसी तरह जैसे कुछ अनजान दरिंदों ने तीन महीने पहले अबोली को बनाया था। इस साल की सबसे सनसनीखेज खयर थी अबोली की, क्योंकि अब तक अपराधियों की शिनाख्त नहीं हो पायी थी. और उस पर से कभी लोगो का मोमबत्ती मार्ग तो कभी मीडिया वालों की सियासत-परस्त पेशगी। कोई बड़ी हस्ती का हाय लगता था इस बलात्कार और हत्या के पीछे तभी तो कोई पकड़ में नहीं आया अब तक।


अपने ही शहर में घटी इस घटना ने मन को क्षु्ध कर दिया था, आखिर में भी तो लड़की का बाप हूँ। शायद यही कारण है की इस लगड़े को मोहल्ले में देख कर बड़ा गुस्सा आ रहा था | एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता या की ये लगा हमारे मौसी दरोगा अवनीश सिंह की बहन अनुराधा पर आ जाए बैठा था, जिसे कॉलेज छोडने अवनीश रोज इस रास्ते से गुजरता या। हालांकि ताज्जुब मुझे इस बात का या कि ये आदमी अनुराधा पर गलत निगाह डाल कर के छते में हाथ डाल रहा था | अवनीश ने जिन्दा नहीं जाएगा |


फिर कुछ दिनों बाद वही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था। उस लंग ने अतनीश के सामने अनुराधा पर फब्तियां कस दी- 'साहन्द। तेरी बहन बड़ी कड़क है साहब । कुछ-कुछ हो रिया है अपुन को। बेशर्मियत अपनी सारी हदों को लांध कर उसके चेहरे से लक रही थी। अवनीश की आँखें गुस्से से लाल हो उठी । उसने अपनी बुलेट रोक दी और उस लंगड़े को बीच सड़क पर घसीटते हुए लाकर लात और घूंसे बरसाने लगा | भीड़ जमा हो गयी सबकी आँखों में आक्रोश के अंगारे फूट रहे थें मानो लोगों को अबोली का कातिल मिल गया हो "मारो। और मारो ! जिंदा मत छोड़ो इस हैवान को। तरह-तरह के शोर वातावरण गुंजायमान हो उठे।


बंगाल लहूलुहान हो चुका था | उसने लंगड़ाते हुए भागने की कोशिश की, पर कोशिश नाकाम रही। जमीन पर गिर घायल लगड़े पर अवनीश ने बेल्ट के बार की बौछार कर दी| बाल ! और बोल ! बाल के दिखा साले मेरी बहन के बारे में पर लंग तो जैस बेशर्मी का पुतला बना हुआ था | अधमरा होने के बावजूद उसकी उंगलिया अद्दै इशारे कर के अवनीश को भिका रही थी| अवनीश के जूते के प्रहार अब उसके चेहरे की एक- एक रैखा को छिन्न-भिन्न कर रहे थे। लंगड़े के मुंह से खून की धार फूट पड़ी और वो अचेत हो गया | उसकी कारगुजारियों की ये मजा काफी थी अनुराधा और भीड़ के चेहरों पर एक विजयी मुस्कान व्याप्त थी | ऐसा रक्षक भाई भगवान सबको दे । अवनीश ने भी अपने कपड़े दुरूस्त किये और वापस जाने लगा | समाज के एक नासूर को उसने धूल चटाई थी | भड़ भी अब छंटने लगी। आक्रोशित जनता के चेहरे पर संतोच था| साहन। होली का भाई साहब पहचाना मुझे ?


जमीन पर पड़े लंगड़े की दर्द भरी पुकार हवा में गूज उठी लोग जहाँ पर ये, वही पर ठिठक कर रुक गप, जइवत हो गए। सुन कर ही खून में उबाल आ गया न साहब।' लंगडे की दर्द से भरी हँसी दूर-दूर तक हवाओं घुलने लगी | लोग अवाक थे। समझना मुश्किल था कि लंगडा हँस रहा था या जार-जार रो रहा था। तूने तो सिर्फ सुना साहब। मैंने तो अपनी आँखों के सामने उसे लुटते हुए देखा। दर्द हुआ ना साहब! अरे साहब यह दर्द तो कब से दिल में दबाये बैठ हैं, जिसे आपने कानून की फाइलों में दबा दिया। আ हूँ


भीड को जैसे काटो , तो खून नहीं । यहाँ तो रक्षक ही असली भक्षक निकला अवनीश, अनुराधा से नज़रे चुरा रहा था । सत्य के बीज को सदा गया , भ्रष्टाचार के दलदल में पाया गया, पर ये मत्य के पौधे की जिजीविधा यी कि उसका बीज प्रस्फुटित हुआ। लंगवा अचेत हो चुका था पर उसके बोले एक- एक शब्द कर्णपटल पर मानौ विस्फोट कर रहें थें। अबोली पहले भी अबोली थी साहब। और कानून की फाइलों में भी अबोली बन कर रह गयीं।'

समीर- एक कृतज्ञ जीवन कथा

लेखक- दीपक कुमार चौबे (कथाकार-तृतीय)

सांप सीढ़ी का खेल हर कोई अपने बचपन या बड़े होने पे ज़रूर खेला होता है । समीर (काल्पनिक नाम) का जीवन भी कुछ इसी से मिलता जुलता था। इस खेल की तरह ही उसका जीवन कभी ऊपर तो कभी नीचे, कभी आगे तो कभी पीछे होता रहता था। उसके जीवन के हर भाग का विस्तृत वर्णन तो मुश्किल है लेकिन उसके जीवन का प्रमुख भाग ज़रूर बताया जा सकता है। समीर चेन्नई में एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुआ लेकिन उसकी परवरिश उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े छोटे से गाँव गोरखा में हुई क्युकी पिताजी भी किसी कारणवश छोटी सी नौकरी थी, छोड़कर गाँव खेती करने आ गए। उस गाँव को लोग "रर्रा का पूरा" कहते थे। ठेठ भोजपुरी में रर्रा का मतलब "गंवार" या "अशिष्ट" होता है। समीर उन सब माहौल से बिलकुल अलग था, गोरा-चिट्टा, बेहद सुन्दर, और आकर्षक था। बचपन से ही उसे भारत के सफल और नायक जैसे लोगों के व्यक्तित्व को जानने और पढ़ने का शौक था, पढाई में मेधावी, सर्वोच्च स्थान पाने वाला छात्र था। बस एक कमी थी की वो एक छोटे किसान का बेटा था जहाँ आमदनी न के बराबर थी। कुल मिलकर पूरा माहौल उसके विकास के प्रतिकूल था। गाँवों में प्रथा होती है की किसी वरिष्ठ उत्तीर्ण छात्र की किताब कनिष्ठ को दी जाती है या विद्यालय से भी मेधावी को किताबें दी जाती हैं और फीस भी सरकारी विद्यालयों के माफ़ थे या बहुत कम थे। उसके घर पर सिर्फ शुरुआत में उसके माँ को उसके प्रतिभा पर भरोसा था लेकिन जैसे जैसे वो बड़ा होता गया, वैसे वैसे उसके मेधाविता के चर्चे आस पास के क्षेत्रों में होने लगे और उसके पिता को भी अपने बच्चे के वजह से खूब सम्मान मिलने लगा। उसे विश्वास होने लगा की ये अन्य से थोड़ा हटके है। हर परीक्षा में अव्वल और विद्यालय का दुलारा प्यारा छात्र बन चुका था। बारहवीं कक्षा तो इस गरीबी में किसी तरह उत्तीर्ण हो गया, अब उसे उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक और नैतिक सहायता की आवश्यकता थी क्युकी उसे अब शहर जाना था और उसका भारत के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में दाखिला हो गया था। नैतिक सहायता तो परिवार से थी लेकिन आर्थिक असुरक्षा अब भी थी। माँ के कुछ जेवर बेचकर किसी तरह उसने उच्च शिक्षा में प्रवेश लिया। माहौल बिलकुल अलग, खुला, गाँव से बिलकुल अलग था। गाँव के विद्यालय में लड़कियों की तरफ ऊँगली से इशारे करने पर सजा मिलती थी और यहां बाँहों में बाहें डालके घूमना आम बात। पढाई में तो एक से एक धुरंधर देश के कोने से आये थे। खैर पढाई की शुरुआत आर्थिक तंगी से हुई, धीरे धीरे दोस्त बने, लोगों से पहचान बनाई और उसे कुछ जगह पर निजी आंशिक समय के लिए शिक्षण कार्य मिल गया। संघर्ष, प्रेम और जीवन में मोड़ यहीं से शुरू होते है।सुबह दो वक़्त का (सुबह और दोपहर) खाना बनाके, सुबह खाके जाना, विश्वविद्यालय के भाषण (लेक्चर्स) सुनना, उसे दोहराना (नोट्स बनाना), शाम को शिक्षण और फिर रात में खाना बनाना और हर रोज़ यही करना।पढाई में मेहनती, शिक्षण में उसके छात्र और छात्रों के अभिभावक उससे प्रसन्न रहते थे, उनमे से एक छात्र (रमेश) मध्यम वर्गीय परिवार से था जिसके पिता एक चपरासी और माता गृहणी थी और एक बड़ी बहन (आरती) जो की बारहवीं उत्तीर्ण करके एक रिसेप्शनिस्ट के रूप में अल्प आय की नौकरी करती थी। आरती के आगे बढ़ने के सपने असहायता के मारे घुटने टेक चुके थे, बस एक लक्श्य था की भाई को पढ़ाना और पिता को सहारा देना। इसी बीच समीर का भी उनके घर पढ़ाने आना जाना लगा रहता था। घर की माली हालत देखकर समीर रमेश को निःशुल्क पढ़ाता था और दूसरी तरफ उसका खिचाव उसकी बहन आरती की तरफ होने लगा, आरती की सादगी और परिवार के प्रति समर्पण समीर को आकर्षित किया। समीर की सरलता, सुंदरता और उसका संघर्ष ने भी आरती को आकर्षित किया। जल्द दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे और समीर के प्रेम प्रस्ताव को आरती ने स्वीकार कर लिया। दोनों एक दूसरे को समय देते और एक दूसरे को समझने लगे। समीर अब कुछ समय बाद अपने संघर्ष और दैनिक जीवन से ऊबता जा रहा था और अपने आई ऐ एस बनने के लक्श्य से दूर होता जा रहा था, वजह थी उसको पढाई के लिए समय कम मिलना और अधिक पैसों का बचत न होना। समीर ने स्नातक उत्तीर्ण क्र ली और अब तयारी की बारी थी। आरती ने उसकी परेशानी समझी और उसे सब छोड़कर अपने लक्श्य आई ऐ एस की तयारी की सलाह दी। आरती इसके लिए एक के बजाय दो जगह ज़्यादा समय क़ाम करने लगी और पैसों से न सिर्फ अपने परिवार बल्कि समीर के भी खर्चे देने लगी। कसम से अपने काम और रिश्तों के प्रति बहुत ईमानदार और मेहनती थी। समीर के मेहनत और आरती के साथ से समीर ने आई ऐ एस उत्तीर्ण कर ली और एक साल की ट्रेनिंग के लिए देहरादून चला गया और इस बीच उसने आरती और अन्य से कोई संपर्क नहीं रखा और एक साल बाद जब घर आया तो उसका घर और गाँव में धूम धाम से स्वागत किया गया। हर जगह सम्मान का माहौल था। उसके रिश्ते के लिए उच्च वर्गीय सम्पन्न घराने से रिश्ते आने लगे। न ही समीर ने आरती के बारे में घर वालों को कुछ बताया था और न ही आने के बाद आरती की कोई खबर ली थी। कुछ दिनों बाद जब समीर आरती के पते पर गया तो पता चला की वो और उसका परिवार गाँव चला गया। समीर ने आरती के गाँव का पता लगाकर जब घर पंहुचा तो सन्न रह गया, आरती बैसाखी के सहारे चल रही थी और उसका एक पैर कट चुका था। समीर ने इसका कारण जाना तो ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। आरती ने समीर को बताया की उसके तयारी की खातिर आरती ने एक बड़ी रकम उधार ली थी जिसके क़िस्त चुकाने के लिए उसे दूर लोकल ट्रैन से सफर करके क़ाम पर जाना पड़ता था, उसी भागा दौड़ी में एक दिन उसका ट्रैन से संतुलन बिगड़ गया, गिर गई और हादसे में उसका पैर कट गया और आमदनी बंद होने की वजह से पूरा परिवार गाँव आ गया और बहुत गरीबी में जीवन यापन किया। समीर को ये सब सुनने के बाद पछतावा हुआ और उसने तुरंत आरती को विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे थोड़ी हिचकिचाहट के बाद आरती मान गई। समीर के परिवार को सब बताने के बाद परिवार ने दोनों की शादी करा दी और दोनों बहुत खुश हैं। इसके बाद समीर ने आरती को न सिर्फ स्नातक परास्नातक कराया बल्कि आरती को प्रतियोगी परीक्षा की तयारी में भी साथ दिया और आज समीर आई ऐ एस तो आरती ब्लॉक एजुकेशन अफसर है।

छक्का

लेखक- हितेन्द्र कुमार (कथाकार-सांत्वना)

संभवतः आपको धोनी का वह वर्ल्डकप वाला छक्का याद होगा | युवराज के वो छह छक्के अब भी आपके जेहन में ताजे होंगे । पर मैं उन छक्कों में से नहीं हूँ। मैं वह छक्का हूँ जिससे आपकी मुलाक़ात ट्रेनों में होती हैं। कुछ लोग तो उस विचित्र प्रकार की ताली को मेरी पहचान बताते हैं। जी हाँ मैं वही छक्का हूँ, जिसे आप कभी हिजड़ा, खुसरा, कोज्जा,यूनक्स, किन्नर और कई अजीबो-गरीब नाम से सम्बोधित करते हैं।


मैं एक दिन ईश्वर के भवन में कुछ काम करने गयी थी तभी मेरे कानों में बहस होने की आवाज़ सुनायी दी। मैं चुपके से सभा में हो रही बातों को सुनने लगी । स्त्री जाति और पुरुष जाति में बहस छिड़ी हुई थी कि कौन श्रेष्ठ हैं। बात बढ़ती ही जा रही थी तभी ईश्वर ने मुझे आवाज़ लगायी। मैं ईश्वर के चरण स्पर्श करके स्त्री और पुरुष के मध्य वाली कुर्सी में बैठ गयी।


"आप इन्हे जानते हैं?" ईश्वर ने मेरी ओर इशारा करते हुये स्त्री और पुरुष से पूछा।


"इन्हे कौन नहीं जानता ! यह पुरुष जाति के नाम में एक कलंक हैं। पुरुष ने जवाब दिया | 'ये तो वही हैं, जो पुरुष तो हैं, परन्तु स्त्रियों जैसा बर्ताव करती हैं।" स्त्री ने कहा।


"हाँ यह वही हैं, जिसका उपहास करने में आपकों थोड़ी भी झिझक नहीं होती। स्त्री और पुरुष में लड़ाई इसी वजह से होती हैं क्योंकि वे एक दूसरे के भावनाओं को नहीं समझते । यह स्त्री और पुरुष के मध्य की स्तिथि से सम्बन्ध रखती हैं। यह पुरुषों के समान कठोर भी हैं वही स्त्रियों के समान सहनशील और कोमल भी है। स्त्री! तुम इनकी स्त्रीत्व प्रकृति का उपहास कर स्वयं की कोमलता का उपहास करती हो मैंने पुरुष और स्त्री को प्रजनन के लिये ही अलग अंग प्रदान किये है. इसके अलावा स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं है। हर इंसान के अंदर स्त्रीत्व और पुरुषत्व का गुण होता है। पुरुष लोक लज्जा के भय से अपने अंदर के स्त्रीत्व को दबाने का प्रयास करता है। स्त्री चाहकर भी पुरुषत्व के गुण को प्रकट नहीं करती, क्योंकि उसे समाज में सुशील स्त्री की छवि बरकरार रखनी होती है। स्त्री और पुरुष सदियों से अपने आपकों श्रेष्ठ बताने के लिये लड़ते आये है, परन्तु वास्तव में श्रेष्ठ तो यह है। भगवान भोलेनाथ ने अर्धनारीश्वर का रूप इसलिये धारण किया ताकि इंसान समझ सके कि जिसमें स्त्री और पुरुष, दोनों के गुण हैं, वही पूर्ण हैं।" ईश्वर ने कहा।


ईश्वर के यह कहने पर स्त्री और पुरुष अपना सिर झुकाये बैठे हुये थे मैं मौन बैठे हुये यही सोचती रही कि अंततः मुझे न्याय मिल गया।

सम्मान: बेटियां भविष्य हैं

लेखक- दीपक कुमार चौबे (सम्मान-द्वितीय)

प्रस्तावना - बहुत ही प्राचीन काल से हमारा समाज पुरुषप्रधान रहा है। पुरुषों को बलशाली, श्रेष्ठ माना गया। उन्हें परिवार के भविष्य और वंश का उत्थान और आगे बढ़ाने वाला माना गया। इसके कारण यह माना गया की लडकियां पैदायशी कमजोर होती हैं । हमारे भारत में तो इसका ज़्यादा ही प्रभाव देखा गया । लड़कियों और महिलाओं को परंपरा और समाज के ज़ंजीरों में जकड़के रखा गया और उन्हें घूँघट और बुर्के में तो चूल्हे-चौके-रसोई और घरके के काम में ही रखा गया। पुरुषों को विशेष सम्मान और घर के मुखिया और नायक के तौर पर समाज में जगह मिली और उन्होंने औरतों पर श्रेष्ठता (हावी होना) पाने की कोशिश की और सफल हुए। अब इसे समाज की मानसिकता कहें की महिलाओं को सिर्फ भौतिक भोग विलास की वस्तु माना गया और उन्हें सही और ज़्यादा मौके नहीं मिले लेकिन अबके समाज में मुक्त विचार लगातार आ रहा है और हम कह सकते हैं इसमें महिलाओं का खुद का योगदान है जिन्होंने खुद को हर छोर और मुकाम पर साबित किया है और पुरुषों से ऊपर और आगे रहने लगी हैं।

समाज के दो मुख्य स्तम्भ - पुरुष और स्त्री किसी भी परिवार और समाज के मौलिक इकाई हैं। ये दो स्तम्भ प्रकृति द्वारा निर्मित है लेकिन इसमें प्राचीन काल से ही छेड़-छड़ करने की कोशिश की गई। हम सब लोगो ने प्राचीन पुस्तकों, पुराणों में माँ शक्ति, दुर्गा, काली के बारे में पढ़ा है और उन्हें पूजते आये हैं लेकिन कुछ ऐसे काल-खंड आये जहाँ महिलाओं की सहनशीलता और उनके त्याग भावना का फायदा उठाया गया और उन्हें नियंत्रण और दबाके रखने के लिए पुरुषों द्वारा समय समय पर अनावश्यक नियम बनाये गए। अग्नि परीक्षा, सती-प्रथा, विधवा प्रथा, ट्रिपल-तलाक़, एक से ज़्यादा पत्नी रखने, भ्रूण हत्या जैसे कुरीतियों का जन्म हुआ और उन्हें इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी। कुछ ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई जिसमे महिलाओं के साथ दुराचार, बलात्कार हुए जिससे इन पर समय के साथ और कई पाबंदियां लगाई गई। हम कह सकते हैं इसमें पुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और धर्म गुरुओं और मौलानाओं ने तो बड़ी चालाकी से इसमें हेर फेर किया है। ये दो स्तम्भ व्यक्तिरुपी समाज के दो पैर की तरह हैं और दोनों का बराबर और मजबूत रहना परम आवश्यक है नहीं तो हमारा समाज पंगु होता है जो समय समय पर होता भी रहा है लेकिन हमें गर्व है कुछ वीरांगनाओं, समाज सेवियों और समाज सुधारकों के अमिट और अतुलनीय कार्य से, जैसे प्राचीन कालखंड में माता सती, लक्ष्मी बाई हों या फिर नए समय में मदर टेरेसा, कल्पना चावला, सौम्या स्वामीनाथन हों, सबने इस समाज को पंगु से बचाया है और नया आइना दिखाया है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा था -

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत।

अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजाम्यहम।।

इसका अर्थ है की जब जब धर्म की हानि होगी, तब तब इस समाज को अधर्म से उबारने के लिए मै जन्म लूँगा। ठीक ऐसे ही समय समय पर ऐसे महान महिला व्यक्तित्वों ने जन्म लिया।

बेटियां-सुनहरे भविष्य के बीज ------

मैंने किसी भी बड़ी और कठिन राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में महिलाओं को सर्वोच्च स्थान पाते देखा है। उदाहरण के तौर पर पिछले कुछ वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग परीक्षाओं में महिला टॉपर रही है। टीना डाबी, अर्तिका शुक्ला टॉपर थी और काफी चर्चाओं में थी। इस वर्ष जो संघ लोक सेवा आयोग के परिणाम आये हैं या फिर अभी एक हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (पी सी एस ) में प्रथम पांच में से तीन स्थानों पर महिलाओं ने सफलता पाया जो की आज के समाज के लिए मिसाल हैं। खेल कूद में भी मेरीकाम, साक्षी मलिक, गीता फोगाट, बबिता फोगाट, दीपिका पल्लीकल, ज्वाला गट्टा, अंजू बॉबी जॉर्ज और भी कई सारे महिलाओं ने भारत का नाम खेलकूद में रोशन किया है और भारत की नाक रखी है, इनके जीवन संघर्ष और सफलता पर चलचित्र भी बन रहे हैं। विज्ञानं-तकनीकी, शोध कार्य में भी महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। मंगल मिशन की कामयाबी में परियोजना और क्रियान्वयन प्रमुख महिला ही थी जिन पर मिशन मंगल नाम का चलचित्र भी निर्मित हुआ। हवाई जहाज परिचारिका (एयर होस्टेस) में महिलाएं होती हैं जिन पर नीरजा नाम का चलचित्र का निर्माण हुआ। बातों ही बातों में चलचित्र की बात छिड़ गई। पहले के समय पुरुष प्रधान (नायक रुपी) चलचित्र बनते थे और आज महिला प्रधान अनगिनत चलचित्र बन रहे और सफल हो रहे और उनके चित्रण को जीवंत करने वाली आज कई प्रतिभाशाली महिला अभिनेत्रियां और निर्देशिकायें हैं। आज का दौर ऐसा है की जीवन के विभिन्न आयामों और दिशाओं में देखने पर महिलाएं ही सबसे आगे दिखती हैं। उनके बारे में बात किये बिना समाज के बारे में चर्चा अधूरी है। कोरोना संक्रमण में महिला चिकितसकों और उपचारिकाओं ने अपने आरामदायक जीवन को जोखिम में डाला और मरीजों की सेवा की और अपनी जान भी गवाई। ज़रूरत है तो बस हमे अपनी सोच बदलने की। आज भी कुछ कुरीतियां बची हुई हैं लिंग के आधार पर भेद भाव करने की जिसे हमें जड़ से उखाड़ फेकना है और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। बेटियां हमारा भविष्य हैं उनके पैदा होने पे खुशियां मनाएं और उन्हें इस काबिल बनाएं की उन्हें किसी सहारे की ज़रूरत न पड़े और किसी के सामने आंसू न बहाना पड़े क्युकी आज का माहौल ऐसा की -----

आंसू आते हैं तो खुद से पोछ लो, लोग आंसू पोछेंगे तो सौदा करेंगे।।

कहने का तात्पर्य है की उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए और उन्हें बराबर का दर्जा और सम्मान की दृष्टि से देखा जाए।

नारी सम्मान: घर से बाहर तक सपने उड़ान के

लेखक- सत्यम सौरभ (सम्मान-तृतीय)

नारी समाज के लिए पुस्तक में लिखे अक्षर, माला में गुथे मोती तथा खेतों में हरियाली के समकक्ष है। इसकी महत्ता गुणवत्ता व विशिष्टता की प्रगल्भता का अंत नहीं है। स्त्री और पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिए है, यदि इस गाड़ी को समाज के प्रगति एवं तरक्की के पथ पर अग्रसर होना है तो दोनों पहिए को निरंतर समानांतर रूप से कार्य करने की अति आवश्यकता है। वर्तमान काल में महिलाएं समाज की सारी रूढ़िवादी परंपराओं तथा प्रथाओं को तोड़कर बेड़ियों से स्वतंत्र हो चुकी है और हर क्षेत्र में कदम रखकर जुझारूपन का लोहा मनवायी‌। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उसे पुरुष रूपी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है, वह शिक्षित, सजग व जागरूक के साथ अपने सामर्थ्य एवं अधिकार में पूर्ण ज्ञानी है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने के अलावा वह कई क्षेत्रों में आगे निकल चुकी है जहां व्यक्तित्व का निर्माण तथा प्रतिभा का पहचान करा रही है। शायद ही ऐसा कोई लोक रहा हो जहां स्त्रियों ने अपने अस्त्र-शस्त्र से विजय का परचम न लहराया हो।


औरतें घर के अंदर, चारदीवारी में बंद कई समस्याओं और मुसीबतों का सामना किया। पर्दा-प्रथा जैसी कुप्रथा लड़कियों को मानसिक रूप से शक्तिहीन तथा उनकी शिक्षा में विघ्न पैदा कर दिया था। कन्या-भ्रूण, बाल विवाह, बलात्कार, दहेज प्रथा जैसी समस्याओं ने लड़कियों के सपनों के पंख तोड़ दिए थे तथा जिंदगी को विध्वस्त कर दिया था। धर्मग्रंथ में अंकित है "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता:" आशय है जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है, किंतु दुर्भाग्यता तो यह है कि इतिहास में नारी शोषण कर उसे हाशिये पर ढकेल दिया गया था और कुछ मिथकों में अशुभ के रूप में दिखाया गया था।


कहते हैं "मन के हारे हार है मन के जीते जीत" यही मन की जीत लेकर सदियों से दास्तां की जंजीरों वाली मानसिकता से बाहर निकल चुकी है। आधुनिकतावाद के आगमन एवं शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं की स्थिति में हर संभव सुधार हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्र के समुचित उत्थान में उत्कृष्ट योगदान है। चिकित्सा हो या इंजीनियरिंग, सिविल सेवा हो या बैंक, पुलिस हो या फौज, वैज्ञानिक हो या व्यवसायी प्रत्येक क्षेत्र में अनेक पदों पर सम्मान के साथ विराजमान है एवं भागीदारी भी चरमोत्कर्ष पर है।

"मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है

पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है ।”

इन हौसलों से किरण बेदी, कल्पना चावला, मीरा कुमार, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, बचेंद्री पाल, संतोष यादव, सानिया मिर्ज़ा, साइना नेहवाल, पी.टी उषा, लता मंगेशकर आदि ने उड़ान भरी एवं क्षमता का प्रदर्शन किया। आज की 'स्त्री' में छटपटाहट है आगे बढ़ने की, जीवन एवं समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की, अपने अविराम अथक परिश्रम से पूरी दुनिया में नया सवेरा लाने की और एक ऐसी सशक्त इबारत लिखने की, जिसमें महिला को अबला के रूप में ना देखा जाए। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, न्यायिक, वैज्ञानिक आदि में भी अपना आधिकारिक रूप से पैर जमा चुकी है तथा नयी इबादत के साथ तत्परता से ऊंचाई की सीमा को चूमने में अग्रसर है।


"नारी का हर संभव सम्मान करो

उसकी उपलब्धियों का मान करो,

घर से बाहर तक कभी ना अपमान करो

सपने की उड़ान में हनुमान बनो।”


उनके दृढ़ शक्ति एवं संकल्प शक्ति इतनी प्रभावी हो चुकी है कि पुरुष प्रधान समाज कितना भी रोड़ा डाल दें ये मुकाम को हासिल करने में अड़िग तथा सफलता का तिरंगा फतह करने में आत्मनिर्भर हो चुकी है। घर से बाहर तक, श्रम से कौशल एवं भूतल से लेकर अनन्त तक हर कार्यों में निपुण हो चुकी है। अंततः यह कहना उचित होगा कि महिलाएं सपनों को साकार करने के लिए धधकती आग की लपटों से निकलकर सारे बाधाओं को तोड़कर जटायु रूपी विमान पर सवार होकर अलौकिक शक्ति के साथ विजयी मार्ग पर प्रशस्त है।

हमारी हिन्दी

लेखक- प्रणव माहेश्वरी

सिर्फ भाषा ही नहीं, यह एक पहचान है।

हिंदी से सिर्फ हम ही नहीं, पूरा हिंदुस्तान है।।

भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा “हिंदी” विश्व की भी चौथी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है। हिंदी हिंदुस्तान की संस्कृति का प्रतीक है। सम्पूर्ण राष्ट्र को एक साथ जोड़ती है हिंदी। हमारी हिंदी, हमें हमारे हिंदुस्तानी होने का एहसास कराती है।

हिंदी का इतिहास भी स्वयं में बहुत बड़ा है। पुरातन काल से चली आ रही वैदिक संस्कृत से प्राकृत व पाली भाषा का जन्म हुआ, जिनसे जन्मी अपभ्रंश 1000 ईस्वी तक भारत में अत्यधिक बोली जाने वाली भाषा रही। 900 से 1200 ईस्वी तक में खड़ी बोली का विकास हुआ जिससे उपजी हिंदुस्तानी भाषा। हिंदुस्तानी भाषा उर्दू और हिंदी का ही एक मेल है। 19वीं शताब्दी में हिंदुस्तानी भाषा से उर्दू और हिंदी अलग अलग हो गए और अस्तित्व में आई आज की मॉडर्न डे हिंदी।

विश्व भर में 32.2 करोड़ से अधिक लोग हिंदी व उससे संबंधित भाषाएं बोलते हैं। 2011 की मतगणना के अनुसार भारत में 24 करोड़ लोग जहां खड़ी बोली को मातृभाषा का दर्जा देते हैं, वहीं 1.6 करोड़ लोग छत्तीसगढ़ी, 98 लाख हरियाणवी, 95 लाख कन्नौजी, 56 लाख बुंदेली, 45 लाख अवधी व 43 लाख बघेली और सरगुजिया को और 15 लाख लोग ब्रजभाषा को मातृभाषा कहते हैं। यह सभी भाषाएं हिंदी की ही देन हैं।

हिंदी ने भारत की परंपरा को सदा से बांधकर रखा है। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकारा। ब्रिटिश राज में प्रयोग की जाने वाली भाषा से हिंदी को अपनाने तक का पथ सरल नहीं रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर जी, भारत के राष्ट्रीय कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त जी, श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी जी, श्री सेठ गोविंद दास जी आदि साहित्यकारों को साथ लेकर श्री व्यौहार राजेंद्र सिंह जी ने अथक प्रयास किए। 14 सितंबर को श्री व्यौहार राजेंद्र सिंह जी के जन्मदिन के अवसर पर ही संविधान सभा ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया और आज हम सभी 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं।

हिंदी भारत में ही बोली जाने वाली भाषा नहीं है बल्कि कई अन्य देशों में भी बोली जाती है। मॉरीशस में भोजपुरी आधारित व फ्रेंच प्रभाव से उपजी मॉरीशियन हिंदी बोली जाती है तो भारतीय सूरीनामी लोग सूरीनामी का प्रयोग करते हैं जो अवधि के प्रभाव से बनी है। फिजी में फिजी हिंदी का प्रयोग है जिसमें अवधी, भोजपुरी तथा इंग्लिश भाषा के शब्दों का मिश्रण है। वहीं त्रिनिदाद और टोबैगो में भी हिंदुस्तानी व गुजानी भाषा का प्रयोग है जो हिंदी से ही बनी है। भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोग भी दक्षिण अफ्रीकी हिंदी का प्रयोग करते हैं। कहने को तो कई विविध रूप है परंतु सब की जननी एक अर्थात हिंदी ही है। इसी विश्वव्यापी हिंदी के विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ। तब से इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

गर्व हमें है हिंदी पर, शान हमारी हिंदी है।

कहते सुनते हिंदी हम, पहचान हमारी हिंदी है।।

परंतु आज की हिंदी की स्थिति अत्यंत दुःखदायक है। हिंदी बोलने वाले तो कई हैं परंतु शुद्ध हिंदी तो विद्यालयों के हिंदी शिक्षक तक नहीं जानते। हम सभी ने हिंदी को उर्दू, अंग्रेजी, ऐसी ही कई अन्य भाषाओं के साथ जोड़ दिया है। आज के युवा को हिंदी बोलना शर्मसार करने लगा है। आज जो लोग हिंदी को मातृभाषा कहते हैं वे भी अंग्रेजी को अधिक महत्व देते हैं। कुछ लोग तो हिंदी बोलने वालों को गंवार तक समझते हैं। क्या हिंदी का कोई सम्मान नहीं है? हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाना चाहता है, उनमें भी द्वितीय भाषा कभी फ्रेंच चयनित की जाती है, कभी स्पेनिश तो कभी जर्मन, परंतु हिंदी को बहुत कम जगह मिलती है। भारत का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन आकाशवाणी कभी सभी की जुबान पर होता था पर आज इस हिंदी रेडियो स्टेशन की लोकप्रियता गुम हो चुकी है, दूरदर्शन जैसे हिंदी मनोरंजन के माध्यम भी अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं।

जैसे-जैसे हिंदी अपनी पहचान खोती जा रही है, हिंदुस्तानियों की पहचान भी जा रही है। यदि हम अपनी ही संस्कृति व भाषा को नहीं बचाएंगे तो ज्यादा समय नहीं लगेगा कि भारत इंग्लिस्तान बन जाएगा और भारतीय अपना इतिहास, समाज व पहचान भूल जाएंगे। विश्व में भारत को सर्वोपरि बनाना है तो पहले स्वयं की भाषा व अपने आदर्शों को उत्कृष्ट बनाना होगा क्योंकि हिंदी से हैं हिंदुस्तानी और हिंदुस्तानियों से है हिंदुस्तान।

न जिद छोड़ेंगे न जज़्बात,

हिंदी हैं हम हिंदी में करेंगे बात।।

चल उठ जा मेरी जान

लेखक- गितेश मसराम

चमक देखकर हिंद की

नूर भी सिर झुकाया है ,

लहर देखकर सिंध की

हिमालय भी इतराया है ,

देख तो , बसंती हुआ है आसमान ।

चल उठ जा मेरी जान ।।१।।


लाल रंग में मेरे लाल को

माँ से लिपटा पाया है ,

मजनू रांझे की बात छोड़ो

भगत दुल्हन घर लाया है ,

सुन तो , रुला रही आखरी अजान ।

चल उठ जा मेरी जान ।।२।।


चुनती दीवारों में साहब के

जुबाँ पे सोनिहाल आया है ,

आज़ाद वतन हाथों में लिए

बंदूक का पेड़ लगाया है ,

सोच तो , वह ख्वाब था क्यों महान ।

चल उठ जा मेरी जान ।।३।।


पैडल को लात मारते

कलाम हैं निकल पड़े ,

आंधी भी औकात न भूले

ध्रुव हैं ऐसे खड़े ,

स्वराज की तलवार लिए

महाराज हैं चल पड़े ,

काली के समक्ष विवेका

हाथ हैं जोड़े खड़े ,

बैरागी का वेश लिए

सिद्धार्थ हैं ढ़ल पड़े ,

दीया बुझ दीपिका पूर्णकर

ज्ञाना हैं हुए खड़े ,

पूछ तो, इतिहास बदलना था आसान ?

चल उठ जा मेरी जान ।।४।।


अपनी जान को सुलाकर वो

कल रात देर से सोया था ,

जाम के साथ उन छल्लों में

वतन ने बहुत कुछ खोया था ,

दफ़ना दो इतिहास बदलने का अरमान

क्योंकि सो रही है मेरी जान ।।५।।

प्रेमचंद

लेखक- मोहित सिंह व सचिन बतर

"सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है " ~ प्रेमचंद

अगर बात हिन्दी गद्य की होती है तो मुंशी प्रेमचंद जी उसमें शीर्ष स्थान पर विराजते हैं। दिनांक ३१ जुलाई १८८० को बनारस, उत्तरप्रदेश में जन्मे हिंदी भाषा के इस पुजारी को जीवन ने समाज के सभी विषयों पर लिखने की एक अनोखी प्रतिभा के साथ इस जगत में विख्यात किया है। हिंदी लेखन को पसंद करने वालों ने इनकी कहानी ना पढ़ी हो ऐसा असम्भव ही है। गोदान जैसे उपन्यास का शीर्षक सुनते ही जीवन के कष्टों का सिनेमा सामने चलने लगता है। हर मनुष्य के जीवन में कष्ट हैं मगर गरीबी का अभिशाप भी हो तो दुख जीवन का एक हिस्सा बन जाता है। उस सदैव चलने वाले दुख के प्रवाह में चार बूंद खुशियों की खोज निकालने की कला थी प्रेमचंद जी में। प्रेमचंद जी समाज के हर पहलू का आइना देख सकते हैं और उसमें बहते हुए आपकी (प्रेमचंद जी की) आंखों के अश्रु को भी देखा जा सकता है ।

"संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता जितना दबो उतना सब दबाते हैं" ~ प्रेमचन्द

'नमक का दरोगा' कहानी जो मुंशी प्रेमचंद जी के द्वारा लिखी गई है उसका उद्देश्य है ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना, जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आज तक अपना समाज संघर्ष कर रहा है। १०० से भी ज्यादा कहानियां लिखकर हिंदी जगत को अमर कर जाने वाले प्रेमचंद जी का लेखन और संपादन काफी उल्लेखनीय रहा है। मानवतावादी लेखक प्रेमचंद जी को फिल्म नगरी रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबंध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए

"अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे।" ~ प्रेमचंद

लिखना एक कला है और जब समाज में पढ़ना कुछ वर्गों तक ही सीमित हो, तब गरीब और दुखियारे की आवाज़ बन, साहित्य के माध्यम से उसके विचारों और व्यथाओं को इतिहास में दर्ज करना एक लेखक का कर्तव्य है। पेशे से अध्यापक रहे मुंशी प्रेमचंद के जीवन में लिखना कुछ ऐसा ही था और उनकी प्रगतिशील सोच ने गरीब के दुखों और कष्टों को अच्छी तरह शब्दों मे उकेरा है ।

"मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।" ~ प्रेमचंद

प्रेमचंद जी जीवन भर हर पहलू पर प्रकाश डालने की कोशिश करते रहे और उन्होंने मानव संबंधों पर बहुत ही उत्तम लेखन कार्य किया है इसीलिए उन्हें अपने जीवन काल में ही कथासाम्राट कहा जाने लगा था। उनके विचार आज तक समाज का मार्गदर्शन कर रहे हैं। हिंदी के इस महान लेखक को हम अपने ह्रदय से नमन करते हैं।

जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्‍जत ढोंग है।" ~ प्रेमचंद

राहत इंदौरी

लेखक- हितेन्द्र कुमार

ऐ वफ़ात, मैं देख रहा हूँ तू मेरे दरवाजें में कब से खड़ी हैं,

लगता हैं इंद्र को भी मेरी शायरी सुनने की सुध चढ़ी हैं |


ऐ वफ़ात, चलो मैं तुम्हारी भी एक ख्वाहिश पूरी कर दूँ ,

ताउम्र वैसे भी लोगों की फरमाइश में शायरियाँ पढ़ी हैं |


शायद जन्नत के लोगों के मन में हैं मुझे सुनने की बेक़रारी,

तभी मुझे ले जाने जो गाड़ी भेजी वो सितारों से जड़ी हैं|


दुनियावालों, चलता हूँ, तुम्हे मेरी नज्मों के साथ छोड़कर,

क्या करुँ,मेरी मौत के लिए मुकम्मल पहले से यही घड़ी हैं|


मेरी मौत पर हिन्दू भी रोता हैं और मुसलमान भी रोता हैं,

समझ गया की मज़हब-ए-इश्क़ सब मज़हबो से बड़ी हैं |


'राहत' की शायरियों से मिलते रहें तुम्हारे दिल को राहत,

मैं हँसते-हँसते जा रहा हूँ और तुम्हे मेरी मौत की पड़ी हैं |

'हरिया, चाय पियेगा?'

लेखक- मोहित सिंह

"हरिया, चाय पियेगा?" सोफे पर बैठे बैठे राजेश ने गाँव से आये मजदूर से पूँछा। राजेश सरकारी वन विभाग में क्लर्क है। भगवान की कृपा दूसरे रास्ते से इतनी बरसती है कि कोई कमी नहीं है। गाँव में कुछ जमीन है जिसे गाँव के ही कुछ भूमिहीन लोग खेती के लिए इस्तेमाल करते हैं। उससे भी कुछ आमदनी हो जाती है। हरिया वही "आमदनी" देने आया था।

"हाँ मालिक, पी लेंगे" हरिया ने भी जवाब दिया, वह कमरे के दरवाजे के पास उकडू मारे बैठा था।

"वो तिखाल में गिलास रखा है, उसे पानी से ऐसे ही धो ले" राजेश ने इशारे से दरवाज़े के ही पास बने तिखाल में रखे स्टील के गिलास की तरफ ऊँगली दिखाते हुए कहा।

"दिव्या, जा बेटा, अंकल जी के लिए नल चला दे" राजेश ने अपनी बेटी को आदेश के स्वर में कहा।

वैसे तो राजेश अपनी बेटी से बहुत प्यार करता है मगर ये आदेश अति अनिवार्य था। उसके नल की पवित्रता का सवाल था। कैसी विडम्बना होगी, नल सारी दुनिया को धोता है और कहीं ऐसा ना हो जाये कि नल ही धोना पड़ जाये।

दूसरे सोफे पे राजेश का लड़का बैठा हुआ था। छुट्टियों में आया हुआ था। लड़का इंजीनियरिंग के दूसरे साल में था। बिजली चले जाने की वजह से टीवी बंद हो गया तो उसे बिना मन से उसी कमरे में रहना पड़ा।

वहां बैठे बैठे सोचने लगा, भाषा का भी अलग खेल है, पापा जानकर कभी " हरिया जी" ना कहते। मगर अंकल के साथ उन्हें "जी" कहना पड़ा।

भाषा के फेर में उसे शब्दों में वो सम्मान मिला जिसे ना लेने वाला जानता था ना देने वाला।

बकवास

लेखक- विक्रम अय्यर

एक दिन मन में ख्याल आया कि चलो कथा लिखेंसर्वप्रथम सोचा पुराने अंदाज़ में लिखूं, पुस्तक-कलम सहित। पर आधुनिकता के रोग ने हमारे संसार को (और मुझे) अपनी जटाओं में बांध रखा है, और कुछ ही शब्दों के बाद मेरा दिमाग मेरे हाथ से अधिक शीघ्रता से दौड़ने लगा। अब मेरे लैपटॉप पर हिन्दी कीबोर्ड तो उपलब्ध नहीं है, तो फ़ोन पर लिखने लगा। और तैसे हस्थ लघुता से मानसिक लघुता अड़चनीय कारण बन गई। आसान शब्दों में - मेरे दिमाग ने काम नहीं किया। मैं एक लाचार रोते शिशु के समान फोन को हाथ में पकड़े खड़ा था। एक कल्पना आई, पर मैं उसे लिखित रूप में स्पष्ट कर पाता उससे पहले ही गायब हो गई। अब क्या करूं? मुझे लेखक के रूप में सफलता और ख्याति चाहिए थी, पर लेखक लायक कृत्य करने में मैं असमर्थ था। और दो तीन दिन सोच विचार में लगाए, किन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं आए। मैं हार मानने को तैयार नहीं था। मैं किसी भी विषय पर लिखने के लिए राज़ी था, बस मुझे लिखना था

आखिरकार मेरे साधरणीय कल्पना पूर्ण मन में एक कल्पना आई; क्यों न एक पहचान से प्रेरणा लें, और खड़ी बकवास पर लिखें? परिणामस्वरूप जन्म हुआ इस लेख का। मैं लिख तो रहा हूं, पर किस विषय पर? मैं इसी लेख को लिखने की क्रिया-कल्पना पर लेख लिख रहा हूं, बिल्कुल उस मशीन जैसा जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद को बंद करने का है। यह लेख एकदम फ़ालतू है। अगर इसका जन्म न हुआ होता, तो न हिंदी साहित्य को कोई अमूल्य हानि होती, और न आपके समय का दुरुपयोग। इसका एकमात्र संभव फ़ायदा आपको शायद कुछ नए काल्पनिक शब्द सिखाने का हो सकता है, यदि आप उनके शोधन का कष्ट उठाएं तो

बिना उद्देश्य के बोलना-लिखना भी एक कला है (जिसमें हमारे देश के मनोरंजन व राजनीति विभाग ने खुद को निपुण बना लिया है) दो अनुच्छेद लिख डालने के बावजूद, मैंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, कुछ ज्ञान नहीं बांटा। हां, शायद आपको थोड़ा मनोरंजन दिया हो और आपके मुख पर मुस्कान लाई हो। अगर ऐसा हुआ है तो कदाचित यह लेख पूर्णतया व्यर्थ नहीं है।एक

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लेख की लिंक -

आकाश

लेखक- विक्रम अय्यर

अंतराल की कोई मर्यादा नहीं

दूर दूर तक सीमा नहीं

अलंकार में जैसे हो हीरे

नभ में सजे हैं चमकीले


चंद्रकोर इस माले का लटकन

विशालता का केंद्र कलेजा - धड़कन

मार्ग उज्ज्वल स्पष्ट करती

जब होती केवल निराशा - रात्री


अचानक! उल्का चमक उठता है

जैसे सन्नाटे में हो गुफ्तगू।