शाम के समय सूर्यास्त के बाद, प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन सर्वश्रेष्ठ होता है।
घर की उत्तर या पूर्व दिशा में पूजा स्थान बनाएँ।
माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
कलश (जल, आमपत्र, नारियल सहित)
पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर)
लाल कपड़ा, अक्षत, चावल
धूप, दीपक, रोली, चंदन
फूल (कमल, गुलाब), सुपारी, पान
मिश्री, फल, मिठाई और सिक्के
स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।
विशेष रूप से पीले या लाल रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।
पूजा स्थान तैयार करें।
घर का उत्तर-पूर्व कोना सबसे शुभ होता है।
माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा को लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
कलश में जल भरकर, उस पर आम के पत्ते रखें और नारियल स्थापित करें।
दीपक जलाएँ और धूप अर्पित करें।
दो दीपक रखें – एक घी का, दूसरा तेल का।
आवाहन मंत्र से माता का आह्वान करें:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः॥
अभिषेक करें:
लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल या पंचामृत से स्नान कराएँ, फिर साफ कपड़े से पोंछकर सजाएँ।
अर्पण करें:
फूल, चावल, रोली, चंदन, सुपारी, पान, मिठाई और सिक्के अर्पित करें।
विशेष रूप से कमल का फूल और खील-बताशे चढ़ाना शुभ होता है।
आरती करें:
दीपक से लक्ष्मी आरती करें —
“ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता...”
प्रसाद और आरती के बाद ध्यान करें।
परिवार के सभी सदस्य मिलकर “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः॥
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
घर में धन, सुख और समृद्धि का आगमन
आर्थिक बाधाओं का निवारण
व्यवसाय और करियर में उन्नति
घर-परिवार में सौभाग्य और शांति
श्रद्धा और सच्चे मन से की गई लक्ष्मी पूजा से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपने भक्तों के घर में धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य का वास कराती हैं।
हर शुक्रवार या शुभ तिथि पर यह पूजा अवश्य करें और माता की कृपा प्राप्त करें।
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