नया शहर, नए लोग और पहली जॉब। खुशी के लिए सब कुछ नया सा था, और ये नया पन उसे किसी मजबूरी में नहीं मिला था बल्कि ये नया पन उसने खुद चुना था। जब इंगलिश लिट्रेचर में बहुत अच्छे नंबर से उसने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया तो उसका लक्ष्य और भी साफ हो गया कि उसे अब इंगलिश में पी० एच० डी० करनी है और फिर अच्छे से कॉलेज में ज्वाइनिंग लेनी है। पी० एच० डी करने से पहले वो नेट (जे० आर० एफ०) क्लियर करना चाहती थी पर अब सिर्फ घर पर रहकर पढ़ाई करने का उसका मन नहीं था। एक दिन यूँ ही इन्टरनेट पर इंग्लिश टीचर की वेकेन्सी देखी तो अप्लाई कर दिया और कुछ ही दिनों में सारी ओपचारिकताएँ पूरी करके खुशी नए शहर में पहली जॉब का अनुभव लेने आ गई और पी० जी० (पेइंग गेस्ट) में रहने लगी। शुरुआत के दिनों में वहाँ के लोगों को समझने में, वहाँ एड्जस्ट करने में उसे थोड़ी परेशानी हुई लेकिन जल्दी ही उसने उन सभी को अपना लिया।
**********
खुशी का दिन कॉलेज में और शाम लाइब्रेरी में कैसे बीत जाती उसे अंदाज़ा ही नहीं रहता।उसे कॉलेज से ज्यादा लाइब्रेरी में रहना अच्छा लगता था, जब वो किसी किताब को ढूँढने के लिए लाइब्रेरी की कई किताबों को उलट-पलट कर देखती तो कई बार अचानक उस एक पंक्ति पर आकर रुक जाती जो किसी और ने कभी पढ़ते समय हाइलाइट कर दी होगी और फिर उसे हाइलाइट करने की वजह को ढूँढने लगती। उसे इंगलिश लिट्रेचर के साथ-साथ हिन्दी लिट्रेचर भी बहुत पसंद थी। जितना उसे शेक्सपियर को पढ़ने में मज़ा आता उतना ही वो हिन्दी के प्रेमचंद और महादेवी वर्मा को पढ़कर सुकून पाती। कभी 'कीथ्स' को पढ़कर कहीं खो जाती तो कभी 'माखनलाल चतुर्वेदी' की कविताओं को पढ़कर गहरी सोचों में एसे डूबती कि फिर समय का कोई अंदाज़ा ही नहीं रहता। लेकिन इन सबसे ज्यादा अब उसे वो हाइलाइट्स पसंद आने लगे थे जो अचानक ही किसी पेज पर दिख जाते और उसे खुद के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर जाते। इन सबको पढ़ने के लिए जाने कितना समय वो बिन बैठे वहीं किताबों के पास खड़े खड़े गुज़ार देती।
**********
एक दिन उसने यूँ ही पढ़ने के लिए एक किताब उठाई तो उससे एक कागज़ नीचे गिर गया। उसे उठाकर देखा तो उसमें किसी की कोई अधूरी कविता थी-
" अजनबी तुम मिलोगे तो क्या बात होगी
वो खूबसूरत दिन और न भुलाने वाली रात होगी"
अजनबी तुम मिलोगे तो ......."
उस कागज़ के कोने में एक छोटा सा नोट लिखा था- "मुझे बहुत खुशी होगी अगर आप इस कविता को पूरी कर दें" खुशी उस कविता को पढ़कर और फिर उस नोट को पढ़कर खुद को रोक नहीं पाई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसी से ये रिक्वेस्ट की हो कि वो कविता पूरी कर दे। इसी सोच के साथ वो उस कागज़ को अपने साथ अपने रूम पर ले आई। रह-रह कर उसका ध्यान उस कविता की अधूरी पंक्तियों पर जाता और कुछ शब्दों को बुनने का काम शुरू हो जाता। सोचते- सोचते उसने रात के दो बजे अपनी डायरी में लिखा-
" अजनबी तुम मिलोगे तो क्या बात होगी
वो खूबसूरत दिन और न भुलाने वाली रात होगी"
अजनबी तुम मिलोगे तो ......."
(अजनबी द्वारा)
"अजनबी तुम मिलोगे तो मेरी खामोशी भी बोलेगी
अजनबी तुम मिलोगे तो दिल में दबे राज़ वो धीरे से खोलेगी"
अजनबी तुम मिलोगे तो बिन मौसम बरसात होगी
वो खूबसूरत दिन और न भुलाने वाली रात होगी"
(खुशी द्वारा)
ये कुछ पंक्तियाँ लिखकर खुशी को कुछ सुकून की साँस आई। उसने एक कागज़ पर इन पंक्तियों को उतारा और अपने बैग में रख लिया जिससे अगले दिन जब वो लाइब्रेरी जाए तो वो कागज़ वहाँ रख दे। वो सोचने लगी कि शायद उसके ऐसा करने से किसी कि तलाश पूरी हो जाए या इस कविता को लिखने वाले को उसकी ये पंक्तियाँ भा जाएँ। सोचते-सोचते वो कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।.
(आगे की कहानी के लिए अगला भाग पढ़ें)