प्रेम में स्पंदित हृदय
जब मिलेंगे एकांत में
स्पंदन द्रुत गति से होगा
मौन गूँजेगा निशांत में
अस्तांचल में गया रवि
जब चढ़ेगा नेत्र प्रकाश में
बेलाओं में बेला बीतेंगी
स्वप्न जीवित होंगे प्रेमाकाश में
धरा कुछ बोझिल सी होगी
घूमेगी स्वयं विकास में
तारे आँगन में चमकेंगे
होगी प्रतीक्षा इसी आस में
कुछ-कुछ 'तुम' में अब मुझे
'अपनी' सी झलक
देखने को मिलती है
और कई बार 'मुझ' में
'तुम' कुछ-कुछ
नज़र आते हो
तुम वो कहते हो जो
मैं कहा करती थी
मैं उन बातों के लिए
नाराज़ हो जाती हूँ
जो तुम्हें पसंद नहीं थीं
समय के साथ-साथ
एक दूसरे में कुछ-कुछ
मिलते जा रहे हैं
'मैं' और 'तुम'
तुम मिले, फिर बिछड़े, फिर मिले
इस मिलने और फिर बिछड़के मिलने में
बहुत कुछ बदल सा गया
अचानक कुछ समझदारी सी आ गई
रोज़ होने वाली अनबन में चुप्पी सी छा गई
बेफिजूल की रोक-टोक मिट सी गई
हमारी बातों की कतारें कुछ सिमट सी गईं
देखने में सब एकदम परफेक्ट लगने लगा
और मुझे ये परफेक्शन खलने सा लगा
अब सब संभल सा गया
और......
और बहुत कुछ बदल सा गया
तुम्हारे साथ होकर भी तुम याद आने लगे
वो बिछड़े पल अपनी याद सताने लगे
तुम्हारे होने से अच्छा तुम्हारा न होना लगने लगा
तुम्हारे साथ से अच्छा,अकेले सोना लगने लगा
तुम्हारी यादों में तुम असल से ज्यादा महसूस होते थे
अब तो रूह से कहीं और, यहाँ बस जिस्म से होते थे
तुम्हारे फिर से मिलने से हमारे खूबसूरत रिश्ते का
सूरज ढल सा गया
और......
और बहुत कुछ बदल सा गया
तुम यूँ फिर से न मिलते तो मिलने की तड़प रहती
तुम्हारी कमी में धड़कनें रोज़ नई कहानी कहती
कभी न भेजने वाले रोज़ कुछ खत लिखे जाते
फिर फुरसत में तुम्हें याद कर कुछ-कुछ पढ़े जाते
तुम नहीं होते पर तुम पर हक मेरा पूरा होता
मोहब्बत से भरा होता भले अधूरा होता
तुम्हारा फिर से मिलना खल सा गया
और......
और बहुत कुछ बदल सा गया
तुम्हारे लाल फूलों में छिपे प्रेम को
स्वीकारना शायद मेरे लिए
सहर्ष स्वीकार्य न हो
तुम पीले गुलाब को
अपनी छुअन के साथ
अपने प्रेम की सुगंध भरकर
देना, मैं हृदय से उन्हें
लाल गुलाब से ऊपर का
स्थान दूँगी
तुम्हारे दिए लाल गुलाबों को
शायद वो स्थान न मिल सके
और वो कहीं अंधेरे में
अपनी ख़ुशबू ज़ाया करते रहें
तुम्हारे पीले फूल पूर्ण अधिकार से
मेरे समीप रहकर मुझे सदैव
तुम्हारे होने की अनुभूति कराएँगे
और मुझे खास होने का अहसास कराएँगे
लाल गुलाबों पर कई प्रश्नों का अधिकार होता है
जिनके उत्तर के लिए मैं शायद बाध्य रहूँ
तुम्हारे दिए पीले फूलों पर
किसी प्रश्न का कोई अधिकार नहीं
और तुम्हारा नाम बताने को मैं बाध्य नहीं
अतः तुम्हारे प्रेम सुगंध से भरे पीले फूलों की
मुझे प्रतीक्षा रहेगी
उनसे जुड़ी तुम्हारी स्मृतियों की सदा
अन्वीक्षा रहेगी
एक सलाम आर्मी के नाम
कितनी हिम्मत, कितना जज़्बा
कितना हौंसला दिल में होता होगा
जो खुद को स्वयं ख़तरे के
सामने खड़ा करता होगा...
कितनी मोहब्बत, कितनी परवाह,
कितना प्यार दिल में उसके भरा होता होगा
जो करोड़ों को बचाने की खातिर
स्वयं रास्ते में खड़ा होता होगा...
कितनी कुर्बानी, कितनी परेशानी
कितनी बमबारी वो झेलता होगा
जो मुश्किलों का सामना करने
तैनात सीमा पर होता होगा...
माँ उसकी राह तकती,
पत्नी इंतज़ार में रहती,
बच्चा उसके बिन ही बड़ा होता है
एक सलाम उसके लिए जो अपना
सब छोड़ सरहद पर खड़ा होता है
एक सलाम
आर्मी के नाम