राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
आनंदम पाठ्यचर्या बच्चों को पढ़ने के साथ तनाव मुक्ति शिक्षा देने पर जोर दिया जाना है। उन्होंने कहा कि इससे बच्चों की एकाग्रता बढ़ेगी व तनाव भी कम होगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को तनाव मुक्त शिक्षा देने के लिए पहले शिक्षकों को भी तनाव मुक्त रहना होगा। आनन्दम शिक्षक प्रशिक्षण के नोडल आफिसर डॉ अजय शेखर बहुगुणा प्रधानाचार्य,स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी राजकीय इंटर कालेज हरिपुरकला ने बताया कि आनन्दम् पाठ्यचर्या प्रशिक्षण के चार आयाम हैं जिसमें - ध्यान देने की प्रक्रिया, कहानी, गतिविधि व अभिव्यक्ति सम्मिलित है। यह पाठयक्रम मूल्यपरक शिक्षा पर आधारित है । डॉ बहुगुणा ने बताया कि आनंदम के तहत स्कूलों में प्रार्थना के बाद बच्चों को आनन्दम के अंतर्गत ज्ञानवर्धक जानकारी दी जाएं।
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में नतिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व प्रदान किया गया था। वेदों एवं उपनिषदों की ऋचाओं में अहिंसा, त्याग, परोपकार, धैर्य, क्षमा, न्याय, सहिष्णुता, समरसता आदि मानवीय मूल्यों की शिक्षा प्रदान की गई है। संविधान की उद्देशिका में भारतीय नागरिकों के मध्य न्याय, समानता, समता एवं बंधुता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। जीवन के समस्त क्षेत्रों में मानव संसाधन की आपूर्ति विद्यालयों द्वारा की जाती है। अत: मानवीय
मूल्यों की स्थापना विद्यालयों के माध्यम से ही सम्भव है। समरसता पूर्ण समाज के निर्माण हेतु मात्र कार्य के लिए शिक्षा के स्थान पर जीवन के लिए शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित किये जाने की आवश्यकता है। जीवन के लिए शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोग, दया, सहिष्णुता कृतज्ञता, परोपकार इत्यादि मानवीय मूल्यों के समावेश हेतु इन तत्वों को पाठ्यचर्या में सम्मिलित किया जाना चाहिए। शिक्षाविदों एवं दार्शनिकों द्वारा समय-समय पर विद्यालयों में इस प्रकार की पाठ्यचर्या को प्रमुख स्थान प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया जाता रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 964-66, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 4986 तथा
_एन0सी0एफ0 2005 में शिक्षा में नैतिक मूल्यों के महत्व को रेखांकित किया गया था किन्तु विभिन्न कारणों से नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा पाठयचर्या का प्रभावशाली अंग नहीं बन पायी। वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा को केवल भौतिक समृद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य तक सीमित न रखकर इसे अधिक मानवीय बनाने की आवश्यकता है। इसी क्रम में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 209 के ड्राफ्ट दस्तावेज में भी नैतिक शिक्षा के महत्व को प्रमुखता से अंकित किया गया है तथा इसे स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने की संस्तुति की गई है। (4.6.8 नीतिपरक और नैतिक चिंतन)
शिक्षा की प्रक्रिया में मानव मूल्यों को उचित स्थान प्रदान करने, विद्यालय के वातावरण को सुखद एवं आनन्दमय बनाने के
उद्देश्य से विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपनी स्कूली पाठ्यचर्या में इन तत्वों को सम्मिलित करने की शुरूआत की गयी है।
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा सदैव मानव मूल्यों पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की जाती रही है।
इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए उत्तराखण्ड राज्य द्वारा एक्सपीरियन्सियल लर्निंग (8९४08 ।९9॥7॥॥8) कार्यक्रम का
प्रस्ताव भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसे भारत सरकार द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। एक्सपीरियन्सियल
लर्निंग (8000॥08| (९३॥॥78) पर आधारित विभिन्न गतिविधियों को आनन्दम पाठ्यक्रम के अन्तर्गत ॥5 विकासखण्डों में
'पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रारम्भ किया जा रहा है। आनन्दम् पाठ्यक्रम में ध्यान देना (/॥60॥255), गतिविधि
(8८॥५३)), कहानी (5007)), अभिव्यक्ति (&9/2550॥) के सत्र आयोजित किए जायेंगे। इस पाठ्यक्रम की विशेषता यह है
कि इसमें बच्चों के लिए पृथक से कोई पाठ्यपुस्तक निर्धारित नहीं की गयी है अपितु शिक्षकों हेतु 'आनन्दिनी पुस्तिका” रचित
की गयी है। शिक्षक आनन्दिनी में निहित उददेश्यों को ध्यान में रखकर पाठयक्रम का संचालन कर सकेंगे। पाठयक्रम के
संचालन हेतु प्रथम वादन निर्धारित किया गया है। यह पाठ्यक्रम कक्षा । से 8 तक प्रवृत्त किया जायेगा।
विद्यालयों में इस कार्यक्रम के लागू किये जाने के फलरूवरूप विद्यार्थियों को सीखने में आनन्द का अनुभव होगा। विद्यालय
में सकारात्मक शैक्षिक वातावरण सृजित होगा। शिक्षकों में उत्साह का संचार होगा। विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं अभिमावकों के मध्य
अच्छे सम्बन्ध विकसित होंगे। विद्यार्थियों में बाल्यकाल से ही मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता विकसित होगी तथा भविष्य
में वे अच्छे नागरिक बनकर राष्ट्र एवं समाज के निर्माण में अपना अधिकतम योगदान दे पायेंगे, ऐसी आशा है।