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शुरुवाती भाषा शिक्षण (हिंदी और अंग्रेजी ) हेतु उपागम (Tool )
चार प्रमुख भाषाई कौशलो पर आधारित
शुरुवाती भाषा शिक्षण (हिंदी और अंग्रेजी ) हेतु उपागम (Tool )
चार प्रमुख भाषाई कौशलो पर आधारित
भाषा कौशल एक अभिव्यक्ति का साधन है जिसमें सुनने, बोलने, पढ़ने तथा लिखने का कौशल सम्मिलित होता है। किसी व्यक्ति की सम्प्रेषण की सक्षमता उसके भाषा कौशल की दक्षता पर निर्भर करती है। भाषा की प्रभावशीलता का संबंध उसकी बोधगम्यता से संबंधित होता है।
छात्रों में भाषा के कौशल का विकास करने हेतु चार प्रकार के कौशलों का प्रयोग किया जाता है, जो निम्नवत् है: -
1. सुनने का कौशल
2.वाचन कौशल
3.पढ़ने का कौशल
4.. लिखने का कौशल
उपरोक्त कौशलो के विकास हेतु और शुरवाती भाषा शिक्षण हेतु हमने विद्यालय स्थर एक टूल विकसित किया है जिसे क्रम से क्रियान्वित करने से बच्चे भाषा पे अपनी पकड़ कम समय और शिक्षा मे निहित भाषा विज्ञानं के आधार पर प्राप्त करते और जैसे जिसे वे अगली कक्षाओ मे जाते है उनकी भाषा पे पकड़ और मजबूत होती चली जाती है यह उपागम न केवल हिंदी शिक्षण में सफल रहा है साथ ही साथ यह अंग्रेजी और संस्कृत शिक्षण में भी बहुत मददगार साबित हो रहा है |
जहाँ यह उपागम कम समय में बच्चो को भाषा बोध में भलीभांति सक्षम बना पा रहा है और शिक्षक को भी कम समय में बच्चो को बेहतर और प्रभावशाली शिक्षा प्रदान करने में मदद कर पा रहा है |
यह उपागम पूर्णत शिक्षा तकनिकी और भाषा विज्ञानं पर आधारित है जिसमे भाषा कौशलो को क्रम से सिखया जाता है इसके अन्तर्गत सबसे पहले वचन कौशल ,फिर पढने का कौशल ,फिर लिखने का कौशल और अंत मे सुनने का कौसल सिखया जाता है , हर कौशल के लिये 6 सप्ताह का समय निर्धारित है ,इन 6 सप्ताह में प्रतेक कौशल हेतु ढेरो गतिविधिया ,क्रियाकलाप संचालित किये जाते है अंत में मूल्याकन द्वारा यह देखा जाता है की बच्चा सम्बंधित कौशल में कितना सीख पाया है यदि छात्र मूल्याकन में बेहतर नहीं कर पाता है तो उसे फिर से उसी कौशल को अतरिक्त समय दे कर सिखाया जाता है .
प्रतेक कौशलो हेतु पूर्व निर्धारित गतिविधिया होती है जिन्हें अध्यापक और छात्र की सुविधा हेतु कार्डो पे लिखा जाता है ,इस व्यवस्था से यह लाभ है की शिक्षक को पहले से पता रहता है की किस कौशल हेतु कौन सी गतिविधि संचालित करनी है इससे शिक्षण प्रबंधन में तो मदद मिलती ही है साथ ही अभिलेख होने से अन्य साथी अध्यापको को भी उनके शिक्षण कार्य मे मदद मिलती है
हर कौशल को विकसित करने के उदेश्य से निम्न गतिविधियों को करवाया जाता है ,ये गतिविधिया यदि क्रम से कराई जाये तो बाचे के शुरुवाती भाषा कौशलो का बहुत अच्छा विकास होता है और वे जल्द ही पढना लिखना और अपने विचारो को वयक्त करना सीखते है |
1. सुनने का कौशल:
सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया को सुनने का कौशल कहा जाता है। इस कौशल का सैद्धान्तिक पक्ष ध्वनि विज्ञान के अन्तर्गत दिया गया है। सामान्यत: कानों द्वारा जो ध्वनियाँ ग्रहण की जाती है और मस्तिष्क द्वारा उनकी अनुभूति तथा प्रत्यक्षीकरण को श्रवण कहते हैं। मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को सुनकर समझना ही श्रवण कौशल है। भाषा के संदर्भ में अर्थ बोध एवं भाव की प्रतीति सुनने के आवश्यक तत्व होते है। शुरुवाती भाषा शिक्षण में सुनने का कौशल सबसे महतवपूर्ण पद है ,बालक जितना अधिक सुनेगा उसकी सुनने की क्षमता का तो विकास होगा ही साथ ही वह भावो को भी समझ पायेगा इस हेतु मेरी कक्षा में जब बालक अत है तो परम्परा से हट कर स्वर व वयंजन सिखाने के बजाये हम इस और ध्यान देते है की वह लगातार कुछ न कुछ ध्वनियो के रूप में सुनता रहे इस हेतु हम अपना उपागम ईस्तेमाल करते है जिसमे क्रमबद्ध गतिविधियो का संचालन होता है .
( अ.) सर्व प्रथम बच्चो को उर्जापूर्ण कविताये न सिर्फ सिखाई जाती है बल्कि उन्हें इसे हाव भाव के साथ प्रदर्शित करना भी बताया जाता है ,इसका लाभ यह की बच्चा उन शब्दों के साथ समनियकरण कर लेता है जिने वह हाव भाव से कर पा रहा है ,अर्थात वह ध्वनियो को समझ पता है यह सामंजस्य बाद के कौशलो के विकास में बहुत मदद करता है
(आ.)तदुपरांत बच्चो के साथ विभिन्न प्रकरणों पर सिर्फ बातचीत की जाती है बच्चो को उन्मुक्त बोलने का मौका दिया जाता है ,अध्यापक की सहायता हो पाए और समय प्रबंधन ठीक से हो पाए इस हेतु विभिन्न प्रकरणों के कार्ड्स बना लिए जाते है और उन्ही आधार पर बच्चो से बातचीत की जाती है यह बातचीत बच्चो से समूह में की जाती है ,इसका लाभ यह है की अगर एक बच्चा बोलता है तो अन्य उसे सुनते है और वे भी देखा देखी बोलने का प्रयास करते है .
(इ.)अब अगला पडाव होता है बच्चो के साथ कुछ रचनात्मक कार्य करना और कहानी सुनाना व कहानिया बनाना ,यदि हम मात्र बच्चो को कहानी सुना कर इतिश्री कर ले तो ये उनके साथ अधिगम के साथ न्याय नहीं होगा यह सर्वविदित ही है की कहानी शिक्षण भाषा शिक्षण का एक महतवपूर्ण पहलू है | मेरे नवाचार मे इस कहानी शिक्षण को थोड़ा और मजेदार बनाते हुए बच्चो की सुरुवाती भाषा विकास पर बल दिया गया है इसके लिये पूर्व में बनाये गए कहानी के कार्डो का इस्तेमाल किया जाता है |
सबसे पहले बच्चो को कहानी सुनाई जाती है और उनसे कहानी के पत्रों ,प्रकरणों पे ढेरो प्रश्न पूछे जाते है ,इन प्रश्नों के उत्तरों से अद्यापक बच्चो की ग्रहण करने की क्षमता का मूल्यांकन कर पाते है ,अब बच्चो से सुनाई गयी कहानी के सापेक्ष उनकी अपनी कहानी सुनाने को कहा जाता है ,कई बार बच्चे नहीं कर पाते परन्तु मोटीवेट करने पर वे कुछ न कुछ तो बोलते ही है और यह बोलना ही उनके सिखने के चरण होते है .
(ई.)उपरोक्त मुख्य गतिविधियो के आलावा समय समय पर अन्य गतिविधिया भी संपन की जाती है जिनमे प्रमुख है - कहानी कार्डो पर बोलना , बच्चो के साथ गीत संगीत के कार्यक्रम आयोजित करना , स्थानीय भाषा में अपने अप को सहज समझना ..... इत्यादि
2.वाचन कौशल :
वाचन’ एक कला है। वाचन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है। व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण उसकी सुसंस्कृत एवं मधुर वाणी है। क्योंकि अन्य सभी आभूषण तो टूट या घिस जाते हैं, किन्तु वाणी सदा बनी रहती है। व्यक्ति का एकमात्र आभूषण उसकी मधुर वाणी है। अमृत भी मधुर वाणी में ही होता है। मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को बोलकर अथवा लिखकर व्यक्त करता है। भावों एवं विचारों का सम्प्रेषण या प्रकाशन ही रचना है। वाचन कौशल का भी विकास सुनने के कौशलो की भांति क्रमबद्ध चरणों में ही किया जाता है इस हेतु विभिन्न प्रकार की गतिवेधियो का संचालन किया जाता है |
(अ.) परिचर्चा ,रोल प्ले ,अनुरूपण , चित्र दिखो कुछ तो बोलो ,कथाकारिता ,साक्षात्कार , कहानी पूर्ण करो , चित्रों को देखो और अंतर बताओ , आओ खेले - कौन क्या करता है ,आओ मिलकर बोले , विभिन्न प्रकरणों पर बातचीत करना .
इन सभी गतिवेधियो को क्रम से बच्चो के साथ संपन किया जाता है ,जिससे न सिर्फ बच्चे भाषा प्रवीण होते जाते है वे अन्य भाषाओ में भी बेहतर करने लगते है
3.पढ़ने का कौशल:
लिखित भाषा को पढ़ने की क्रिया को पठन कौशल कहा जाता है, जैसे - पुस्तकों को पढ़ना, समाचार पत्रों को पढ़ना आदि। भाषा के संदर्भ में पढ़ने का अर्थ कुछ भिन्न होता है। भाव और विचारों को, लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति को पढ़कर समझना पठन कहा जाता है। लिखने का उद्देश्य होता है कि भाव और विचारों को हम दूसरों तक पहुँचाना चाहते हैं। अन्य व्यक्ति जब उसको लिखित भाषा के रूप में पढ़ेगा तब उसके भाव एवं विचारों को समझ लेगा। इस क्रिया को पठन कहते है।
बच्चों में पढ़ने का कौशल विकसित करने का सबसे बेहतर तरीका यह है की वे ध्वनि चिन्हों को अपने मन में आत्मसात कर ले इस हेतु उपरोक्त कौशलो के विकास हेतु जो गतिविधिया सम्पन की गयी वे बहुत लाभदायक होती है यदि उपरोक्त क्रियाकल्पो को ठीक ढंग से क्रियान्वित किया हो तो बालक अब इस स्थिति में होता है की वह वस्तुओ को पहचान पता है उसके लिये अब क से मात्र कबूतर नहीं होता वह क कहने पर किताब भी कह सकता है और कौवा भी , अब आवश्कता होती है उसे स्वर और वयंजन से परिचित करने की इसके लिये भी हम पूर्वनिर्मित कार्डो का प्रयोग करते है ,यहाँ हम परम्परागत रूप से स्वर वयंजन को एक क्रम से न सिखा कर अक्रमतः सिखाते है और कार्डो के माध्यम से ही एक वर्ण के लिये बहुत से शब्दों का प्रयोग कर के सिखाते है जैसे पूर्व मे यदि कोई क से कबूतर कह कर अन्य वर्ण सिखाने की और अग्रसर होते थे ,उस परिपाटी को त्याग कर हम क से कबूतर के साथ कमल ,कुत्ता ,कछुआ , कैंची ,कंघा ,किताब आदि शब्दों को उनके चित्रों के साथ सिखाते है और बच्चो को मोटीवेट करते है की वे भी कुछ नए शब्दों को अपने परिवेश से सोच कर बताये ,यह गतिवीदी इतनी सफल होती है की कुछ ही सप्ताहों में बाचा अपनी पाठ्य पुस्तक पढ ने लगता है ,साथ ही साथ परम्परागत गतिविधिया भी की जाती है जैसे बाराखडी का लयबद्ध उच्चराण इत्यादि
4.. लिखने का कौशल:
रचना भावों, एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। वह शब्दों को क्रम से लिपिबद्ध, सुव्यवस्थित करने की कला है। भावों एवं विचारों की यह कलात्मक अभिव्यक्ति जब लिखित रूप में होती है जब उसे लेखन अथवा लिखित रचना कहते हैं। अभिव्यक्ति की दृष्टि से लेखन तथा वाचन परस्पर पूर्व होते हैं। वाचन से लेखन कठिन होता है। लेखन में वर्तनी का विशेष महत्व है जबकि वाचन में उच्चारण का महत्व होता है उच्चारण की शुद्धता आवश्यक तत्व है और लेखन में अक्षरों का सुडौल होना और वर्तनी की शुद्धता होनी चाहिए। परन्तु शुरुवाती लेखन को हम इस तरह से नहीं देखते ,यदि कक्षा 2 का एक बच्चा धारा प्रवाह से अपनी पत्य्पुस्तक पढ़ पा रहा है तो उसके स्थर के लिये यह बहुत है वह धीरे धीरे अपनी लेखन क्षमता भी विकसित कर लेगा , यहाँ मुख्य बिंदु यह है की जब वह आपके साथ उपरोक्त सभी कौशलो हेतु गतिविधिया सहजता से संपन्न कर लेता है तो वह लेखन भी बड़ी प्रतिबद्ता के साथ कर लेता है ,इसके लिये विद्यालय में जो परम्परागत गतिविधिया की जाती रही है वाही प्रयोग की जाती है ,जैसे उनकी कापी में वर्णों को लिख देना और उन्हें उसे लिकने को कहना , दो वर्णों के सब्दो को लिखना ,तीन वर्णों के शब्दों को लिखना ,चार वर्णों के शब्दों को लिखना , मात्रा वाले शब्दों को लिखना ,छोटी छोटी कहानियों को पूरा करने के लिये देना क्योकि अब वे पढ़ सकते है , पूर्व में पढ़े बालगीत लिखने को देना ऐसी बहुत सी गतिविधियो से अंततः वे सभी कौशोलो को सीख जाते है ऐसा मेरा अनुभव है .
यह उपागम(टूल ) न सिर्फ हिंदी भाषा हेतु प्रयोग किया जा रहा है साथ ही साथ इंग्लिश सिखाने में भी प्रयोग किया जा रहा है जिसके बहुत आचे परिणाम मिल रहे है ,टूल अभी भी विकास की स्थति में है ,बहुत से प्रकरणों ,गतिविधियो को इसमे जोड़ा जाना बाकी है अपने शिक्षण अनुभव के आधार पर आगे भी इसका विकास करता रहूँगा |
बच्चे बिना दबाब के अपनी क्षमता से सीखते है ,उनके पास बेहतर सिखने के मौके अब उपलब्ध है
भाषा कौशलो के विकास से बाचो की अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास हो रहा है और वे बहुत कम समय में पढना ,लिखना सीख पा रहे है
भाषाई कौशलो को सिखाने के लिये बहुत सी गतिवेधियो का आयोजन किया जाता है जिससे बच्चे आनन्द के साथ सीखते है और उनका अधिगम स्थाई होता है ,क्योकि वे जो भी सुन ,बोल, लिख और पढ़ पा रहें है उसे वे समझ के साथ करते है
अध्यापक को भाषा कौशलो का ज्ञान होना चाइये , साथ ही साथ वे भाषा विज्ञान के पहलू को भी समझते हो ,इस नवाचार को अपनाने से पहले शिक्षक को भाषा कौशलो का अध्यन करना आवयश्क है .
हर भाषा कौशल हेतु गतिवेधियो का संकलन किया जाना होता है ये गतिविधिया कोई सी भी और कैसी भी हो सकती है अध्यापक अपने विवेक से अपने द्वारा रचित कोई नयी गतिविधि भी करा सकते है.
गतिविधियो के संकलन उपरांत हर भाषाई कौशल हेतु कार्डो का निर्माण किया जाता है ,इन कार्डो के बहुत से फायेदे है पहला तो यह की शिक्षण करते वक़्त हमारे समक्ष TLM की समस्या ख़त्म हो जाती है और हमे याद रखने की आवश्यकता ही नहीं की किस कौशल के लिये कोण सी गतिविधि कब करनी है ,बाचा जब एक गतिविधि में बेहतर नहीं करता तब तक उसे अगली गतिविधि नहीं कराई जाती ,इससे हेमे पता रहता है की किस छात्र का स्थर कैसा है और उसके कठिन स्थर कौन कौन से है .
हर कौशलो के कार्डो का निर्माण करने के उपरांत उन्हें एक फाइल या फोल्डर में सुरक्षित रख दिया जाता है
भाषा के शुरुवाती विकास हेतु कक्षा 1 और 2 के छात्रों को समूह में कार्य कराया जाता है और हर बच्चे का उपलब्धि स्थर और कठिन स्तरों को अलग से डायरी में नोट किया जाता है ,जो बच्चे अच्छा कार्य कर रहे हो और अपनी आयु अनुसार सीख रहे हो उन्हें अगले कौशलो पे ले जाया जाता है ,जो बच्चे अपनी आयु अनुसार बेहतर परिणाम नहीं दे पा रहें हो तो उनके कठिन स्तरों की पहचान करके उन्हें अन्य गतिविधिया करवाई जाती है .