राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
रेडियो शो : भाषा ,बोलियों और संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु एक नवाचार
रेडियो शो : भाषा ,बोलियों और संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु एक नवाचार
अपनी भाषा बोली और सस्कृति को बढावा देने के उदेश्य से और बच्चो के अंदर अपनी सांस्कृतिक पहचान हेतु गौरव उत्पन्न करने के उदेश्य से हम यह नवाचार स्थानीय सामुदायिक रेडियो स्टेशन कुमाऊ वाणी - मुक्तेश्वर नैनीताल के साथ मिल कर करते है ,विद्यालय में प्रतयेक तीज त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है इनका उदेश्य अकादमिक के साथ साथ अपनी गौरवमई संस्कृति का प्रचार और प्रसार करना भी होता है,विद्यालय ही संस्कृति के वाहक है ,आज के समय में नवीन ज्ञान इतना अधिक हो गया है की वह संभाले नहीं संभल रहा है हम नये ज्ञान को तो आत्मसात कर रहे हैं पर पुरानी परिपाटियां ,तीज- त्योहारों को तिलांजलि देते जा रहे हैं हम अपनी भाषा ,बोलियों को बोलने में शर्म करने लगे है ,हम अपने त्यौहारों को अब उतनी जीवटता से नहीं मनाते और उनके प्रति उदासीन ही रहते हैं । तो प्रश्न उठना लाज़मी है कि आखिर यह समस्या आई कहां से ? क्या हमारी शिक्षा में कुछ कमी रह गई है ?जो हम अपनी ही संस्कृति को सम्मान से नहीं देख रहे हैं ,अपनी ही भाषा को बोलने में शर्म कर रहे हैं, अपने त्योहारों को हर्षोउल्लास से मनाना बहुत कम कर दिया है, एक बेहतर शिक्षा तो कभी ऐसा नहीं सिखाती , मुझे लगता है कि हम आधुनिक बनने का दिखावा कर रहे हैं और अपने बाहर से एक छद्म आवरण आधुनिकता का ओढ़े बैठे हैं जो इस कुंठा का शिकार है कि अपनी भाषा बोली और त्यौहार दूसरे की भाषा बोली संस्कृति से निकृष्ट है । शायद ये ही सांस्कृतिक पतन का दौर है ।
विद्यालयों का कार्य संस्कृति की सुरक्षा,उसमें सुधार, तथा उसे भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करना है। अत: हम शिक्षकों को चाहिये कि हम अपनी गौरवमयी संस्कृति की रक्षा तथा सुधार करे एवं उसे भावी पीढ़ी को विभिन्न सामाजिक एवं वैज्ञानिक विषयों के रूप में हस्तान्तरित करे जिससे बालक प्राकृतिक, राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक , सांस्कृतिक तथा धार्मिक सभी प्रकार के वातावरण से परिचित हो जाये , अपनी महान संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए बच्चों में कला-संस्कृति के प्रति अभिरुचि और निष्ठा उत्पन्न करने का कार्य भी हम शिक्षकों को ही करना होगा क्योंकि अब अन्य सामाजिक संस्थाएं इस और बहुत ध्यान नहीं दे पा रही हैं,बच्चों की कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रत्येक चरण को प्रोत्साहित करने का कार्य भी शिक्षक को ही करना होगा तभी भविष्य के नागरिक सुव्यवस्थित एवं संस्कारी बन पाएंगे और अपनी पहचान भी बना पाएंगे।
बच्चे अपनी भाषा बोली में तेजी से सीखते है इसीलिये वे अब पहले से ज्यादा बेहतर परिणाम दे पा रहें है साथ ही साथ वे अब अपनी भाषा को अपने अधिगम का हिस्सा मानते हुए इसे पहले से अधिक सम्मान की दृष्टि से देख रहे है
बच्चे अपनी भाषा ,बोली ,त्योहारों ,और संस्कृति की तरफ सजग हो रहे है ,जब वे अपनी भाषा बोली में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते है तो उनका विश्वास बढ़ता है और वे और बेहतर करने को अग्रसर होते है।
इस नवचार से स्तानीय बोली ,भाषा ,संस्कृति का प्रचार प्रसार हो पा रहा है और लुप्त प्राय से हो चुके तीज त्यौहार फिर से मनाये जा रहे है ,और बच्चो के अंदर अपनी भाषा संस्कृति बोली के लिये गौरव उत्पन्न हो रहा है ,क्योकि विद्यालय में ऐसे कार्यक्रम होना उन्हें सुखद अनुभूति प्रदान करता है।
सबसे पहले स्थानीय सामुदायिक रेडियो स्टेशन ,आकाशवाणी, या FM स्टेशन के साथ पत्राचार कर अपने कार्यक्रम का विवरण भेजा जाता है और कार्क्रम की आज्ञा मांगी जाती है , सम्बंधित रेडियो स्टेशन से आज्ञा मिलने के उपरांत उनके निर्देशन के अनुसार कार्यक्रम तय किया जाता है ,हमने सामुदायिक रेडियो स्टेशन कुमाऊ वाणी - मुक्तेश्वर नैनीताल के साथ मिल कर यह कार्यक्रम किया था ,उसके बाद बच्चो के साथ मिलकर आगामी स्थानीय तीज त्यौहार के बारे में मालूमात हासिल की जाती ,वो किस दिनाक को मनाया जायेगा ,कब और किस वक़्त मान्य जायेगा ,इसमें क्या काया किया जाता है इत्यादि इत्यादि जानकारी ले कर बच्चो के साथ कार्यक्रम का एक कच्चा खाका तैयार किया जाता है.
आधारभूत जानकारी लेकर सेवित क्षेत्र के किसी बुजुर्ग से साक्षात्कार कर इस स्थानीय तीज त्यौहार की वृहत जानकारी प्राप्त की जाती है .
स्पष्ट जानकारी मिलने के बाद अध्यापक कार्यक्रम की स्क्रिप्ट लिखते है जिसे बच्चो को रेडियो के सामने बोलना होता है ,स्क्रिप्ट लिखने के बाद अध्यापक बच्चो को पूरी स्क्रिप्ट पढ़ कर सुनाते है और उसका प्रदर्शन कैसे किया जायेगा ये भी बताते है .
वैसे तो बच्चे अपने स्थानीय तीज त्योहारों की आधारभूत जानकारी रखते ही है फिर भी उन्हें अतरिक्त जानकारी दी जाती और उसे आत्मसात करने को कहा जाता है ,जितने भी बच्चे रेडियो शो में प्रतिभाग करते है उन सभी बच्चो को स्क्रिप्ट और उनके डायलोग लिख के दिए जाते है .
अंतिम चरण होता है रिकॉर्डिंग का ,शांत कमरे में बैठ कर पुरे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग की जाती है , निश्चित है बच्चे गलतिया करेंगे ये उनकी नैसर्गिक प्रकृति है ,एक दो बार के प्रयास से वे अंततः अच्छे से कर ही लेते है .।
स्पष्ट रिकॉर्डिंग हो जाने के बाद उसे स्थानीय सामुदायिक रेडियो स्टेशन भेज दिया जाता है ,उनकी तरफ से रिकॉर्डिंग को अग्रसारित करने के उपरांत ब्राडकास्टिंग का समय दे दिया जाता है ,बच्चे और आम जनमानस रेडियो पर अपने बच्चो की आवाज सुन कर बहुत खुश होते है । .