राष्ट्र निर्माण का संकल्प ,शिक्षा का उत्थान शिक्षक का सम्मान, बेहतर शिक्षा बेहतर समाज
फसक : आओ बच्चो गप्पे मारे
फसक एक पहाड़ी शब्द है ,जिसका अर्थ होता है गप्पे मारना , अकसर हम बच्चो को कक्षा में बाते करने से मना करते है और अनुशाशन में रहने के लिये कहते है ,यह प्रक्रिया बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि इसमें बच्चों को बात करने की स्वच्छंदता नहीं है और यही भाषा विकास में सबसे बड़ी रुकावट है, जरा सोचिए यदि बच्चों को पूरा एक वादन ही गप्पे मारने के लिए दे दिया जाए तो इसके क्या क्या फायदे हो सकते है I
गप्पे मारने के शैक्षिक के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधित भी बहुत सारे फायदे हैं गप्पे मारने से बच्चे खुश और तंदुरस्त रहेते हैं और गप्पे मारने से आपको ताजगी का अनुभव होता है ।
भाषा शिक्षण का प्रथम सोपान यही है की हम अपनी बातो ,विचारो को उन्मुक्त कंठ से प्रस्तुतकर पायें ,एक अध्यापक का भाषा शिक्षण तभी सफल है जब उसके छात्र अपने विचारो ,बातो और प्रेक्षाओं को पूर्ण विश्वाश से प्रस्तुत कर सकें ,कई बार शिक्षण उपरांत बच्चो से बातचीत करते हुए यह आभास होता है की बच्चो की शब्दावली . शारीरिक भाषा ,विश्वाश स्तर और प्रस्तुकरण का स्तर शिक्षण के समकक्ष नहीं हुआ है ,इसी समस्या को आधार बनाते हुए शुरुवात मे बच्चो से पढ़े हुए पाठ को अपने शब्दों मे छोटी कहानी के रूप मे प्रस्तुत करने को कहा गया ,शुरूवाती परेशानी के बाद बच्चे अब इस प्रक्रिया मे अभ्यस्त हो चुके है और अब वे इसे पुरे हाव भाव के साथ सुनाते है ,साथ साथ अब स्वरचित कहानिया या काल्पनिक किस्सों को भी सुंनाने लगे है ।
1. फसक क्या है :
फसक दरअसल कहानी सुनाने की एक दिलचस्प कला है। हम सबने अपने बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सैकड़ों कहानियां सुनी हैं। हमारे देश में गप्पे मारने की एक समृद्ध परंपरा रही है। घरों में आज भी बच्चों को पंचतंत्र, हितोपदेश, उपनिषदों के साथ-साथ धार्मिक-एतिहासिक एवं वीरगाथात्मक कहानियां सुनाई जाती हैं और उनके साथ बच्चे काल्पनिक लोक में विचरण करते हुए विभिन्न प्रकार के वार्तालाप करते है , प्रश्न करते है वास्तव में वे गप्पे मार रहे होते है ।
2.नवाचार का सार :
गप्पे मारने की शुरुआत कब और कहां पर हुई इसके बारे में ठीक-ठीक बता पाना तो संभव नहीं है। केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। सभ्यता के आरंभिक दौर में जब मनुष्य ने किसी अनोखी वस्तु, प्राणी या घटना के बारे में कुछ बढ़ा-चढ़ाकर, कतिपय रोचक अंदाज में और लोकरंजन की वांछा के साथ बयान करने की कोशिश की होगी; तो स्वाभाविक रूप में बाकी लोगों में उसके कहन के प्रति ललक पैदा हुई होगी। परिणामतः उन अनुभवों के प्रति सामूहिक जिज्ञासा तथा उनको रोचक अंदाज में, बार-बार सुने-कहे जाने की परंपरा का विकास हुआ। उसमें कल्पना का अनुपात भी उत्तरोत्तर बढ़ता चला गया। इसी से गप्पे मारने की शुरुवात हुई होगी । नवाचार के तौर पर हमने इसे थोड़ा सा बदलाव करते हुए प्रयोग किया ,इसके प्रयोग से न केवल बच्चो की भाषाई क्षमता का प्रारम्भ से विकास हो पाता है साथ ही साथ बच्चे विश्वास से लबरेज हो कर कार्य करते है।
3.नवाचार की आवश्यकता क्यों:
भाषा शिक्षण का प्रथम सोपान यही है की हम अपनी बातो ,विचारो को उन्मुक्त कंठ से प्रस्तुतकर पायें ,एक अध्यापक का भाषा शिक्षण तभी सफल है जब उसके छात्र अपने विचरो ,बातो और प्रेक्षाओं को पूर्ण विश्वाश से प्रस्तुत कर सकें ,कई बार शिक्षण उपरांत बच्चो से बातचीत करते हुए यह आभास होता है की बच्चो की शब्दावली . शारीरिक भाषा ,विश्वाश स्तर और प्रस्तुकरण का स्तर शिक्षण के समकक्ष नहीं हुआ है ,इसी समस्या को आधार बनाते हुए शुरुवात मे बच्चो से पढ़े हुए पाठ को अपने शब्दों मे छोटी कहानी के रूप मे प्रस्तुत करने को कहा गया ,शुरूवाती परेशानी के बाद बच्चे अब इस प्रक्रिया मे अभ्यस्त हो चुके है और अब वे इसे पुरे हाव भाव के साथ सुनाते है ,साथ साथ अब स्वरचित कहानिया या काल्पनिक किस्सों को भी सुंनाने लगे है ।
4.क्रियान्वयन: बच्चो को खूब उत्प्रेरण देते हुए पढाये गए पाठ को या पाठ के चरित्रों पर कोई किस्सा कहानी हाव भाव से त्यार करने को कहा जाता है ,अध्यापक बच्चो की मदद करने के लिये कुछ काल्पनिक किस्सों को बच्चो के समक्ष कर के दिखाते है, जिससे बच्चो को नैतिक सहयोग मिलता है और वे बेहतर परिणाम देते है ,उन्हें निर्देशन दिया जाता है की वे पाठ से हट कर अपनी कोई काल्पनिक किस्सा को भी प्रस्तुत कर सकतें है ,कुल मिलकर यह पूर्णत एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जिसमे बच्चे अपनी अपनी सुविधा अनुसार सीखते है |
5.नवाचार से प्राप्त उपलब्धिया:
Ø भाषा शिक्षण का उपयोग सिर्फ पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं बल्कि पढ़कर समझना, विचारना, योजना बनाना, कल्पना करना, अपने मन की बात साझा करना, तर्क देना, चर्चा-परिचर्चा में प्रतिभाग करना आदि बहुत-सी अन्य दक्षताएँ भी भाषा शिक्षण का ही अंग होती हैं। जिन पर सामान्य स्थिति में हम अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करते। सही शब्द, भाव, भाव सम्प्रेषण के अभाव में हम अपनी बात स्पष्टता व दृढ़ता से दूसरों तक नहीं पहुँचा पाते हैं। चूँकि हम अपने अनुभवों के आधार पर चीजों को देखते-परखते व सम्प्रेषित करते हैं इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम किसी स्थति या विषय पर अधिक से अधिक अनुभव ग्रहण करें व किसी विषय को विभिन्न नजरियों, कोणों से देखते हुए उसके बारे में अपनी समझ बनाएँ , फसक नवाचार बच्चो के मध्य ऐसी ही समझ विकसित करने मे सफल हो रही है
Ø बिना दबाव व मूल्यांकन की भावना के पाठ्यपुस्तक के साथ नवाचार का सहज प्रयोग पाठ की रोचकता बढ़ा देता है। साथ ही एक विषय के विभिन्न पहलुओं पर भी समझ बनाता है।
Ø बच्चे कहानी सुनने-सुनाने में तो दिलचस्पी लेते ही हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्हें कहानी लिखने के लिए भी प्रेरित किया जाता है। यह उनके लिए लिखने के अभ्यास का काम तो करेगा ही, उन्हें कुछ न कुछ सोचने-कल्पना करने के लिए भी प्रेरित करेगा .
Ø एनसीईआरटी के रीडिंग डेवेलपमेंट सेल की तरफ से प्रकाशित पुस्तक ‘पढ़ना सिखाने की शुरुआत’ में किस्से , कहानी , बातचीत के महत्व को यों रेखांकित किया गया है, “कहानी बच्चों को आनंदित करती है। कहानी से बच्चे सब्र से सुनना, अनुमान लगाना, कहानी के पात्रों व घटनाक्रम को याद रखना तो सीखते ही हैं, इससे उनकी एकाग्रता व स्मरण शक्ति का भी प्रशिक्षण होता है। एक बार बच्चों का किताबों की दुनिया से परिचय हो जाए तो वह उसी में रच-बस जाना चाहता है।” इस प्रक्रिया से एक पायदान आगे बढकर बच्चो के बाल मन को न सिर्फ एक साहित्यिक आधार प्रदान कर रही है साथ ही साथ उनके भीतर छुपे अभिनेता से भी परिचय कराती है अगर यु कहे की नवाचार फसक एक ऐसी विधि है जिससे बच्चो की विभिन्न क्षमताओ को विकसित किया जाता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विद्यालय में बहुत से बच्चे ऐसे आते हैं जो शर्मीले स्वभाव के होते हैं उनके अंतर्मुखी स्वभाव के कारण वह मुख्यधारा की शिक्षण प्रक्रिया से नहीं जुड़ पाते , ऐसे बच्चों से लगातार बातचीत करने की आवश्यकता होती है ,सर्वप्रथम कक्षा में ऐसे बच्चों की पहचान की जाती है जो कम बोलते हैं और कम सक्रिय रहते हैं ऐसे बच्चों को पहले निर्देशित किया जाता है कि अपने सहपाठियों के साथ बातचीत करें खूब गप्पे मारे धीरे-धीरे बालक का आत्मविश्वास बढ़ता है फिर उसे कक्षा में आगे आकर किस्से ,कहानी गप्पे मारने के लिए कहा जाता है धीरे धीरे यह क्रम चलता ही चला जाता है और जल्द ही बालक मुख्यधारा की शिक्षा के साथ जुड़ जाते हैं तत्पच्यात बच्चो को खूब उत्प्रेरण देते हुए पाठ्यपुस्तक से पढाये गए पाठ को या पाठ के चरित्रों पर कोई किस्सा कहानी हाव भाव से त्यार करने को कहा जाता है ,अध्यापक बच्चो की मदद करने के लिये कुछ काल्पनिक किस्सों को बच्चो के समक्ष कर के दिखाते है, जिससे बच्चो को नैतिक सहयोग मिलता है और वे बेहतर परिणाम देते है ,उन्हें निर्देशन दिया जाता है की वे पाठ से हट कर अपनी कोई काल्पनिक किस्सा को भी प्रस्तुत कर सकतें है ,कुल मिलकर यह पूर्णत एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जिसमे बच्चे अपनी अपनी सुविधा अनुसार सीखते है .